समरांगण सूत्रधार के अनुसार
शुभ एवं मंगल रूप से निर्मित
सुखद मकान में अच्छे स्वास्थ्य, धन
संपत्ति, बुद्धि, संतान तथा शांति का
निवास होता है। भवन स्वामी को
कृतज्ञता के ऋण से मुक्त करेगा।
यदि भवन का निर्माण वास्तु शास्त्र
के नियमों की उपेक्षा कर हुआ है
तब अनावश्यक यात्राओं, अपयश,
प्रसिद्धि की हानि, निराशा एवं दुख
के परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। घर
ही नहीं अपितु ग्राम, कस्बा एवं नगर
का निर्माण वास्तु शास्त्र के नियमों के
अनुरूप होना चाहिये।
विश्वकर्मा के अनुसार वास्तुशास्त्र
के अनुसार निर्मित भवन स्वास्थ्य,
सुख और संपन्नता प्रदान करता है।
वास्तुशास्त्र केवल सांसारिक सुख ही
नहीं अपितु दिव्य अनुभव भी है।
जनसंख्या वृद्धि एवं शहरी क्षेत्रों में
भूमि की कमी के कारण महानगरों में
आवास की विकट समस्या पैदा हो
रही है। ऐसी परिस्थिति में बहुमंजिले
फ्लैट्स में वास्तु नियमों को अपनाना
सरल कार्य नहीं है। क्योंकि समस्त
फ्लैट्स की सुविधाएं एक दूसरे से
संबंधित होती है। एक निश्चित
स्थान ही उपलब्ध होता है। प्रत्येक
मंजिल पर सामान्य दीवारों वाली
अनेक इकाईयों का प्रारूप बनाना,
रसोई, शौचालय एवं स्नानागार,
मल्टीस्टोरी फ्लैट की वास्तु की
उपयोगिता एवं व्यवस्था
डाॅ. अमित कुमार ‘राम’
शयनकक्ष इत्यादि को उनके सही
स्थान पर बनाना, द्वार, सीढ़ियां को
उचित स्थान पर रखना आदि कार्य
शिल्पकार के लिए अत्यंत कठिन
है। लेकिन वास्तु नियमों के अनुसार
उपयुक्त भूमि के चयन, भूमि के क्रय
एवं उसका शोधन, जल संग्रह, इकाई
को उत्तर-पूर्व में स्थापित करने,
दक्षिणी एवं पश्चिमी भाग की दीवारों
को ऊंचा रखने एंव इस भाग में बड़े
वृक्ष लगाने, उत्तरी एवं पूर्व को नीचा
रखते हुए इस भाग में अधिक खाली
स्थल छोड़ने इत्यादि उपायों को
अपनाकर संतोषजनक परिणाम प्राप्त
किये जा सकते हैं। एक बहुमंजिला
भवन या फ्लैट्स बनाने हेतु कुछ
वास्तुपरक नियमों का निम्न प्रकार से
अंकन किया जा रहा है-
- भूमि चयन संबंधी नियम सभी जगह
एक समान प्रयुक्त होते हैं। भूखंड
आयताकार होना श्रेष्ठ माना जाता
है। उत्तर-पूर्व कोने से दक्षिण पश्चिम
कोने तक की लंबाई दक्षिण-पूर्व कोने
से उत्तर-पश्चिम कोने की लंबाई से
अधिक होनी चाहिये।
- फ्लैट का मुख्यद्वार: यदि
फ्लैट्स के उत्तर अथवा पूर्व में सड़क
स्थित है तो इसे आदर्श स्थिति माना
जाता है। ऐसी स्थिति में मुख्य द्वार
उत्तर-पूर्व अथवा पूर्व उत्तर-पूर्व में
रखने चाहिये।
यदि सड़क उत्तर या पश्चिम में हो
तब मुख्य द्वार उत्तर, उत्तर-पूर्व अथवा
पश्चिम उत्तर-पश्चिम में स्थापित
करने चाहिये। यदि सड़क दक्षिण
अथवा पश्चिम में हो, ऐसी परिस्थिति
में मुख्य द्वार दक्षिण, दक्षिण-पूर्व
तथा पश्चिम उत्तर-पश्चिम में रखना
चाहिये।
- फ्लैट का दक्षिण-पश्चिम:
उत्तर-पूर्व में अधिक खाली स्थल
छोड़ना चाहये। उत्तर तथा पूर्व का
तल दक्षिण एवं पश्चिमी की तुलना में
नीचा होना चाहिये। दक्षिण-पश्चिम
कोना सबसे ऊँचा एवं भारी होना
चाहिये।
- फ्लैट की बालकनी: बालकनी
उत्तर, पूर्व एवं उत्तर-पूर्वी भाग में
बनानी चाहिये।
- फ्लैट की किचन (रसोई घर):
प्रत्येक फ्लैट में रसोईघर दक्षिण-पूर्व
में होना चाहिए। यदि दक्षिण-पूर्व
उपलब्ध नहीं हो रहा है तब उत्तर
पश्चिम में रसोईघर रख सकते हैं।
रसोईघर में स्लेब इस प्रकार हो
जिससे खाना बनाते समय खाना
बनाने वाले का मुंह पूर्व अथवा उत्तर
में रहें।
- पार्किंग के लिये स्थान: पार्किंग
हेतु तलहट का निर्माण भूखंड के
पूर्वी भाग से उत्तरी भाग में करना
चाहिये। दक्षिण एवं पश्चिमी भाग
में तलहट का निर्माण नहीं करना
चाहिये।
- खिड़की एवं दरवाजे: एक
ब्लाॅक में खंभे की संख्या सम (किंतु
10, 20, 30 नहीं) होनी चाहिए। इसी
प्रकार खिड़कियों एवं दरवाजें की
संख्या भी सम होनी चाहिये।
- अंडरग्राउंड वाटर टैंक एवं
स्वीमिंग पूल:
भूमिगत पंप एवं जल संग्रह इकाई
अथवा स्वीमिंग पूल भूखंड के
उत्तर-पूर्वी भाग में होना चाहिये।
किंतु यह उत्तर-पूर्व होने की
दक्षिण-पश्चिम कोने से मिलाने वाली
रेखा को स्पर्श नहीं करना चाहिये।
- सीढ़ियां: सीढ़ियां दक्षिण, पश्चिमी
अथवा दक्षिण पश्चिमी भाग में होनी
चाहिये। सीढ़ियों की संख्या विषम
होनी चाहिये।
- हवा एवं रोशनी: ऊपरी
मंजिलों का निर्माण इस प्रकार हो
कि प्रातःकालीन सूर्य रश्मियां समस्त
फ्लैट्स में प्रवेश करें एवं वायु संचरण
की निर्वाध रूप से हो।
- ओवर हैंड वाटर टैंक: ओवर
हैंड वाटर टैंक दक्षिण अथवा दक्षिण
पश्चिमी भाग में होना चाहिए।
- इलैक्ट्रिक पैनल इत्यादि:
इलैक्ट्रिक पैनल, जनरेटर, अथवा
ट्रांसफार्मर फ्लैट्स के दक्षिण-पूर्वी
भाग में स्थापित करने चाहिए।
- सिक्योरिटी गार्ड रूम: सुरक्षा
कक्ष उत्तर-पश्चिम दक्षिण-पूर्व म
रखना चाहिये। यह कक्ष उत्तर-पूर्वी
कोने में कदापि नहीं होना चाहिए।
- ईमारत की मंजिलों की ऊंचाई
ः बहुमंजिली इमारत की हम वीणा
से तुलना कर सके हैं। ऊर्जा को
उपयुक्त संचरण हेतु हमें विभिन्न
मंजिलों की निम्नलिखित ऊंचाई
उपयुक्त होती है।
प्रथम मंजिल: भूतल की 5/6
द्वितीय मंजिल: प्रथम मंजिल 6/7
तृतीय मंजिल: द्वितीय मंजिल की
7/8
बृहत् संहिता एवं मत्स्य पुराण के
अनुसार प्रत्येक मंजिल की ऊंचाई
में 1/12 की शनैः शनैः कमी होनी
चाहिये।
- फ्लैट की आंतरिक साज-सज्जा
ः फ्लैट्स की आंतरिक साज सज्जा
में रंगों का भी विशेष महत्व होता है।
विभिन्न फ्लैट्स में हम निम्नलिखित
रंगों की योजना को अपना सकते हैं।
पूर्व मुखी फ्लैट: सफेद, क्रीम
कलर
पश्चिमी मुखी फ्लैट: हल्का नीला
रंग
उत्तरमुखी फ्लैट: हरा अथवा नीला
दक्षिण मुखी फ्लैट:गुलाबी या
नारंगी रंग