वास्तु शास्त्र का आधार: वास्तु
शास्त्र प्रकृति के साथ संतुलन बनाये
रखने की विधा है अतः यह पूर्णतः
प्रकृति पर ही आधारित है। प्रकृति के
मूलभूत पांच तत्व जल, पृथ्वी, अग्नि,
आकाश और वायु से तो हम सभी
परिचित हैं। इन पांचों को अपने भवन
में कैसे संतुलित रखना है यह हमें
वास्तु शास्त्र बताता है परंतु वास्तु
शास्त्र के गूढ़ नियम जिन पांच चीजों
पर आधारित हैं वो निम्नलिखित है:
1. सूर्य का प्रकाश
2. उत्तरी ध्रुव से आने वाली विद्युत
चुंबकीय तरंगंे
3. दिशाओं के तत्व
4. वास्तु पुरुष की आकृति
5. पृथ्वी का झुकाव
सूर्य का प्रकाश: वास्तु शास्त्र
में सूर्य के प्रकाश को बहुत
महत्वपूर्ण माना गया है। इसमें सूर्य
की प्रातःकालीन सूर्य रश्मियों का
भवन में प्रवेश आवश्यक माना गया
है। प्रातः कालीन सूर्य की किरणंे
सकारात्मक ऊर्जा देने वाली और
और हर प्रकार से लाभकारी होती
हैं जिनसे घर की सारी नकारात्मक
ऊर्जायें बाहर होकर घर में अच्छे
स्वास्थ्य की वृद्धि करती है इसीलिये
वास्तु में भवन को पूर्व और उत्तर
दिशा को नीचा रखा जाता है। आज
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने भी इस
बात को मान लिया है कि सुबह का
सूर्य प्रकाश अच्छे स्वास्थ्य के लिये
आवश्यक है। दोपहर के समय का
सूर्य प्रकाश हमारे लिये हानिकारक
होता है अतः वास्तु में दक्षिण और
पश्चिम दिशा को ऊंचा रखते हैं
ताकि मध्याह्न काल की हानिकारक
सूर्य रश्मियों से बचा जा सके।
विद्युत चुंबकीय तरंगें
हमारी पृथ्वी एक विशाल चुंबक की
भांति ही है जिसमें उत्तरी धु्रव से
दक्षिणी ध्रुव अर्थात उत्तर दिशा से
दक्षिण की ओर सकारात्मक विद्युत
चुंबकीय तरंगंे चलती हंै। इन शुभ
चुंबकीय तरंगों का प्रवाह हमारे घर
में निर्बाध रूप से हो सके इसलिये
वास्तु में घर की उत्तर दिशा को
नीचा, खाली और हल्का रखा जाता
है।
दिशाओं के तत्व
सामान्य रूप से हम चार दिशाओं
पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण से परिचित
हैं परंतु वास्तु में भवन या भूखंड
को आठ दिशाओं में बांटा जाता है
जिनमें उत्तर, पूर्व के बीच का कोना
ईशान कोण दक्षिण, पूर्व के बीच का
कोना अग्नेय कोण, उत्तर-पश्चिम
को वायव्य कोण और दक्षिण-पश्चिम
को नैर्ऋत्य कोण कहते हैं। इनमें से
प्रत्येक दिशा या कोण का विस्तार
450 होता जिससे कुल मिलाकर 3600
पूरे होते हैं। इनमें प्रत्येक दिशा का
अपना अलग तत्व होता है जिसमें
पूर्व दिशा अग्नि तत्व कारक है,
पश्चिम वायु तत्व कारक, उत्तर
जल तत्व और दक्षिण दिशा भूमि
तत्व कारक है। इसी प्रकार ईशान
कोण जल तत्व कारक, आग्नेय कोण
अग्नि तत्व, वायव्य कोण वायु तत्व
और नैर्ऋत्य कोण भूमि तत्व कारक
है। इसी के आधार पर भवन में
विभिन्न कक्षों या स्थानों की दिशाएं
निश्चित की जाती हैं। जैसे अग्नि
की प्रधानता के कारण रसोई आग्नेय
कोण में बनायी जाती है। विद्युत यंत्र
यहीं रखे जाते हैं।
घर में जल स्रोत, बोरिंग आदि उत्तर
या ईशान में बनाये जाते हैं और
भूमि तत्व की प्रधानता होने के कारण
दक्षिण और नैर्ऋत्य में सर्वाधिक
निर्माण किया जाता है और अधिक
भार यहीं रखा जाता है।
किसी भी भूखंड या भवन के
मध्यभाग अर्थात केंद्र को ब्रह्मस्थल
या ब्रह्मस्थान कहते हैं। यह भी
ईशान कोण की ही भांति घर का
सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान होता है।
वास्तु पुरूष की आकृति
वास्तु पुरुष वास्तु शास्त्र की सर्वाधिक
महत्वपूर्ण कड़ी है। पौराणिक कथाओं
में वास्तु पुरुष को भगवान ‘शिव’ के
पसीना से उत्पन्न हुआ माना गया है
पर हम यहां इसके तकनीकी पहलुओं
पर ही चर्चा करेंगे। वास्तु पुरूष की
आकृति पृथ्वी या किसी भूखंड पर
इस प्रकार है कि वह मुंह नीचे किये
हुए दोनों हाथ और पैरों को एक
विशेष अवस्था में मोड़े हुए लेटा है,
उसका सिर ईशान कोण में है। दोनांे
भुजाएं आग्नेय और वायव्य कोण में
हैं तथा दोनों पंजे नैर्ऋत्य कोण में
हैं। वास्तु पुरुष की इस आकृति का
भी वास्तु नियमों की उत्पत्ति में बहुत
बड़ा महत्व है।
वास्तु में ईशान कोण को खाली,
स्वच्छ और हल्का रखने का एक
कारण यह भी है कि वहां वास्तु पुरुष
का सिर पड़ता है और मस्तिष्क पर
अधिक भार नहीं होना चाहिये।
साथ ही नैर्ऋत्य कोण को सबसे
अधिक भारी किया जाता है। जैसे
हमारे शरीर का पूरा भार हमारे पंजांे
पर होता है वैसे ही वास्तुपुरुष के
पंजे नैर्ऋत्य कोण में पड़ते हैं। अतः
वह वास्तु शास्त्र में भारी वजन के
लिये रखा गया है। वास्तु पुरूष की
स्थिति से जो आकृति बनती है वह
वर्गाकार है। अतः ‘‘वर्गाकार’’ आकृति
को ही वास्तु नियमों में श्रेष्ठ माना
गया है।
पृथ्वी का झुकाव
हमारी पृथ्वी अपनी धुरी पर एक विशेष
आकृति में झुकी हुई है जिसमें यह
23)0 नैर्ऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम)
से ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) की
ओर झुकी है। अतः इस संतुलन को
बनाये रखने के लिये तथा प्राकृतिक
ऊर्जाओं का जो प्रभाव पृथ्वी पर है
उसे अपने भवन में भी बनाये रखने
के लिये घर का ईशान कोण नीचा
और नैर्ऋत्य ऊंचा रखा जाता है।
इन उपरोक्त पांच तत्वों के आधार
पर ही वास्तु शास्त्र के नियम बने
हुये हैं जो पूर्णतः वैज्ञानिक और हमें
लाभान्वित करने वाले हैं।