प्राण रक्षा हेतु उपाय

प्राण रक्षा हेतु उपाय  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 67454 | मार्च 2010

प्राण रक्षा हेतु उपाय

प्रश्नः किसी व्यक्ति की प्राण रक्षा हेतु क्या-क्या पूजा-अनुष्ठान, मंत्र-पाठ, हवन, दान एवं अन्य उपाय किए जाने चाहिए? सभी का विस्तार एवं विधि-विधानपूर्ण प्रक्रिया का वर्णन करें? इन क्रियाओं से किसी व्यक्ति की आयु को कितना बढ़ाया जा सकता है? या सिर्फ उस बुरे वक्त को टाला जा सकता है। हिंदू धर्म में विभिन्न जातियों के लोग रहते हैं जो अलग-अलग मंत्रों का अनुसरण करते हैं और जिनकी पूजा-अनुष्ठान की अपनी-अपनी विधियां होती हैं।

लक्ष्य सब का एक होता है - मानव कल्याण और प्राण रक्षा। यहां विभिन्न पूजा-अनुष्ठानों, मंत्र के जप, हवन, दान, उपायों आदि का विस्तृत विवरण प्रस्तुत है। हवन मंत्रों द्वारा प्राण रक्षा के उपाय मंत्र एवं हवन की उपयोगिता को विद्गव भर में मान्यता प्राप्त है परंतु भारत एकमात्र ऐसा देद्गा है जहां रोज हजारों प्रकार की हवन एवं मंत्र क्रियाएं तथा कई प्रकार के टोटके किए जाते हैं। इन सभी का लक्ष्य एक है - जीवन को परेद्गाानियों और बीमारियों से मुक्त रखना, उसे सही दिद्गाा देना। महामृत्युंजय मंत्र का महत्वः महामृत्युंजय एक अति प्रभावद्गााली और चमत्कारी मंत्र है।

इस मंत्र के विषय में द्गिाव पुराण की रुद्र संहिता के सतीखंड में उल्लेख है कि इस मंत्र के विषय में द्गिाव पुराण की रुद्र संहिता के सतीखंड में उल्लेख है कि पूर्व काल में महामुनि दधीच और राजा ध्रुव के मध्य श्रेष्ठता को लेकर परस्पर विवाद इतन उग्र हो उठा कि राजा ने महर्षि के शरीर को काट डाला। दधीच ने पृथ्वी पर गिरते समय शुक्राचार्य का स्मरण किया तो उन्होंने तत्काल वहां उपस्थित होकर अपनी मृत संजीवनी विद्या के बल से दधीच मुनि के अंगों को जोड़कर उन्हें पूर्ववत सकुशल जीवित कर दिया और तदुपरांत मृत्युंजय विद्या के प्रर्वतक शुक्राचार्य जी ने उन्हें वेदों में प्रतिपादित महामृत्युंजय मंत्र का उपदेश दिया।

दधीचि इसी महामृत्युंजय मंत्र की साधना से अवध्य हो गए तथा उनकी हडि्डयां वज्र हो गईं। बाद में दधीच ने देवताओं के हितार्थ अपनी अस्थियों का दान कर दिया, जिससे देवराज इंद्र का अस्त्र वज्र बना। महामृत्युंजय मंत्र की महिमा अपार है। यह साधक को मृत्यु के मुंह से खींच लाने वाला अचूक मंत्र है। मृत्युंजय विद्या के प्रवर्तक शुक्राचार्य ने इसे मृतसंजीवनी मंत्र संज्ञा दी है। इस मंत्र के जप ध्यान से साधक रोगमुक्त व अजेय हो जाता है। महर्षि दधीच ने इस मंत्र के माध्यम से अवध्यता, वज्रमय अस्थि व अदीनता का वरदान प्राप्त किया और अजेय बन गए। उन्होंने न केवल महाराज ध्रुव के अहंकार का मर्दन किया बल्कि भगवान विष्णु व देवताओं से भी अपराजित रहे। महामृत्युंजय मंत्र की साधना करके वर्तमान में भी आधि, व्याधि, भय, अपमृत्यु आदि पर विजय प्राप्त की जा सकती है।

यह अनुभवसिद्ध मंत्र है। आज भी आए दिन दैनिक जीवन में प्रत्यक्षतः व पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से इस मंत्र के द्वारा मृत्यु पर विजय व रोग मुक्ति की घटनाएं देखने व पढ़ने को मिलती हैं। महामृत्युंजय मंत्र ऋग्वेद, यजुर्वेद, नारायणोपनिषद् शिवपुराण आदि में महामृत्युंजय मंत्र का विशद उल्लेख है। संपुट सहित यह मंत्र इस प्रकार है : क्क हौं जूं सः, क्क भूर्भुवः स्वः। क्क भूर्भवः स्वः। क्क त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्व्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्। स्वः भुवः भूः क्क हौं जूं सः क्क । इस मंत्र की साधना यज्ञ, जप, अभिषेक आदि के माध्यम से की जाती है। शिवलिंग का जलाभिषेक करते हुए मंत्रोच्चारण शीघ्र फलदायक माना गया है। वैसे तो महामृत्युंजय का अनुष्ठान 11 पंडितों से 11 दिन तक कराने का विधान है लेकिन यह काफी खर्चीला है। इसलिए विद्वाना ने जन कल्याण हेतु संक्षिप्त विधि द्वारा व्यक्तिगत रूप से जप करने की विधि प्रावधान किया है, जो उक्त अनुष्ठान के समान फलदायक है। इस संक्षिप्त विधि से अनुष्ठान करने के लिए सर्वप्रथम शुद्ध होकर गणेश जी का स्मरण करना चाहिए। इसके पश्चात् तिथि, वारादि का उच्चारण करते हुए संकल्प कर भगवान महामृत्युंजय का जप आरंभ करना चाहिए। इस मंत्र का 8, 9, 11, 21, 30 या 45 दिनों में कम से कम सवा लाख जप करने का विधान है। यदि व्यक्ति रोग के कारण स्वयं मंत्र साधना नहीं कर सके, तो कोई अन्य व्यक्ति रोगी के नाम से संकल्प लेकर मंत्र की साधना कर सकता है।


Get the Most Detailed Kundli Report Ever with Brihat Horoscope Predictions


रोगी को महामृत्युंजय मंत्र से अभिमंत्रित जल का सेवन करना चाहिए। रोगी की शय्या के चारों ओर कम से कम तीन बार महामृत्युंजय का जप करते हुए और जल छिड़कते हुए परिक्रमा कर महामृत्युंजय रक्षा कवच का निर्माण करना चाहिए। इन मंत्रों के उच्चारण में साधक को सतर्कता बरतनी चाहिए। यदि उच्चारण में कठिनाई प्रतीत होती हो, तो निम्नलिखित रोगनाशक लघुमृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए। लघु मृत्युंजय मंत्र : क्क हौं जूं सः उक्त मंत्रा महामृत्युंजय मंत्रा की तरह ही करना चाहिए। गायत्री मंत्र अपने स्वरूप में जिस प्रकार विशिष्ट है उसी प्रकार गंभीर एवं विवेचना योग्य भी है। वर्तमान में इसके त्रिपाद ही स्पष्ट होते हैं जबकि इसका चतुर्थ पाद गोपनीय खा गया है। इस मंत्र में क्क भू र्भुव स्वः तो प्रणव हैं, तत्सवितुर्वरेण्यम् पहला पद भर्गो देवस्य धीमहि द्वितीय पद और धियो यो नः प्रचोदयात् तृतीय पद है। महर्षियों ने जब इसके तीक्ष्ण प्रभावों को अनुभव किया तब चतुर्थ पाद गोपनीय कर दिया और उसे केवल सुपात्र को गोपनीय रूप से देने का विधान रखा। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि गायत्री मंत्र मूल रूप में एक ध्वन्यात्मक मंत्र है और इसमें स्पष्ट उच्चारण का ही महत्व हैं।

इसे ज्यों का त्यों रट लेने से अथवा दोहरा भर देने से इसके वास्तविक प्रभावों को प्राप्त नहीं किया जा सकता। साधक श्वेत वस्त्र धारण कर पूर्वाभिमुख होकर बैठे और अपने सामने एक ताम्र पात्र में अथवा लाल वस्त्र पर लघु सूर्य यंत्र स्थापित कर उसका कुंकुम एवं अक्षत से पूजन कर सूर्य मंत्र का एक माला जप करे। फिर रोगी के स्वस्थ होने की कामना गायत्री देवी से करते हुए गायत्री मंत्र का जप करे। वैसे तो मान्यता है कि जिस मंत्र में जितने शब्द होते हैं उस मंत्र का जप उतने लाख बार करना चाहिए। गायत्री मंत्र में 24 शब्द हैं, इसलिए इस मंत्र का 24 लाख बार हवन करना चाहिए। इससे घर परिवार में लोगों का स्वास्थ्य अनुकूल रहेगा और घर में किसी भी प्रकार की बुरी शक्ति का प्रवेश नहीं होगा। जिस व्यक्ति की रोग से मुक्ति की कामना से यह हवन किया जाता है, वह करने वह जल्द ही ठीक हो जाता है तथा उसकी आयु में वृद्धि होती है। गायत्री हवन को पुराण काल से ही मान्यता प्राप्त है, परंतु इस हवन का प्रयोग बहुत कम जगह किया जाता है।

मंत्र अनुष्ठान से प्राण रक्षा के उपाय पति को रोगमुक्त रखने हेतु मंत्र : यदि किसी स्त्री का पति निरंतर बीमार रहता हो और उसकी मृत्यु की संभावना प्रबल हो, तो ऐसी स्थिति में बगलामुखी देवी के समक्ष दीपक जलाकर निम्नलिखित मंत्र का तीन माला जप प्रतिदिन करना चाहिए। क्क ऐं ऐ क्क ह्रीं बगलामुखी ईशानाय भूतादिपतये, वृषभ वाहनाय कर्पूर वर्णनाय त्रिाशूल हस्ताय सपरिवाराय, एहि एहि मम्। विघ्नान् विभंज्जय विभंज्जय, क्क मम पति अस्य अकाल मृत्यु मुखं मृत्यु स्तम्भय स्तम्भ्य, क्क हृीं मम पति अस्य आकाल मृत्यु मुखं भेदय भेदय, क्क वश्यम् कुरू कुरू, क्क हृीं बगलामुखि हुम पफट् स्वाहा।

सिख धर्म का चमत्कारिक सबद : किसी भी प्रकार के रोग को दूर करने के लिए निम्नलिखित सबद का 41 दिन तक नित्य 108 बार जप करना चाहिए। सेवी सतिगुरु आपणा हरि सिमरी दिन सभी रैणि। आपु तिआगि सरणि पवां मुखि बोली मिठड़े वैण। जनम जनम का विछुड़िआ हरि मेलहु सजणु सैण। जो जीअ हरि ते विछुड़े से सुखि न वसनि भैण। हरि पिर बिनु चैन न पाईअै खोजि डिठे सभि गैण। आप कामणै विछुडी दोसु न काहू देण। करि किरपा प्रभ राखि लेहु होरू नाही करण करेण। हरि तुध विणु खाकू रूलणा कहीअै किथै वैण। नानक की बेनंतीआ हरि सुरजणु देखा नैण।

स्वास्थ्य लाभ हेतु : स्वास्थ्य से संबंधित परेशानियों से मुक्ति हेतु निम्नलिखित प्रयोग करना चाहिए। होलिका दहन के समय निम्नलिखित मंत्र का मन ही मन जप करते हुए होली की ग्यारह परिक्रमा लगाएं। देहि सौभाग्यमारोग्यं, देहि मे परमं सुखं। रूपं देहि, जयं देहि, यशो देहि, द्विषो जहि॥ होली के बाद भी प्रातः काल इस मंत्र का ग्यारह बार जप अवश्य करें।

हृदय रोग से बचाव हेतु अनुभूत ऋगवेद मंत्र : क्क घन्नघ मित्रामहः आरोहन्नुत्तरां दिवम्। हृद्रोग मम् सूर्य हरि मांण् च नाश्यं। प्रातः काल प्रतिदिन सूर्योदय के समय सूर्य के सम्मुख उक्त मंत्र का 108 बार जप करें।


Get Detailed Kundli Predictions with Brihat Kundli Phal


रामचरित मानस की चौपाइयों का प्रयोग : रामचरित मानस की चौपाइयां चमत्कारिक फल देने वाली होती हैं। ये चौपाइयां सिद्ध मंत्र ही हैं। इनके नियमित पाठ से सभी रोगों से मुक्ति मिल सकती है। इस ग्रंथ की निम्नलिखित चौपाई के पाठ से हर तरह के विघ्न से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। सकल विघ्नव्यापहिं नहिं तेही, राम सुकृपां बिलोकहिं जेही॥ राम सकल नामन ते अधिका, होउ नाथ अघ खग नग बधिका॥ अपने बायें सरसों के तेल का और दायें घी का दीपक जलाकर निम्नलिखित मंत्र का 1008 बार जप नियमित रूप से करें। यह क्रिया रविवार को आरंभ करें।

कैंसर रोग : कैंसर के रोगी को निम्नोक्त सूर्य गायत्री मंत्र का प्रतिदिन कम से कम पांच माला और अधिक से अधिक आठ माला जप निष्ठापूर्वक करना चाहिए। इसके अतिरिक्त दूध में तुलसी की पत्ती का रस मिलाकर पीना चाहिए। मान्यता है कि जब जप की संखया 1 कोटि (1 करोड़) पूरी हो जाएगी, तो कैंसर का गलाव प्रारंभ हो जाएगा। वैसे गायत्री का का जप एक अभेद्य कवच का काम करता है। ''क्क भास्कराय विद्यहे दिवाकर। धीमहि तन्नो सूर्य प्रचोदयात्।'' यह भी मान्यता है कि यदि पूरी निष्ठा एवं श्रद्धा से गायत्री का जप किया जाए तो साधक स्वस्थ एवं रोगमुक्त रहेगा। मधुमेह रोग से मुक्ति पाने हेतु नौ दिन तक रुद्राक्ष की माला से निम्नोक्त मंत्र का 5 माला जप करें। क्क ह्रौ जूं सः यदि रोगी इस मंत्र का जप न कर पाए, तो किसी शुक्रवार को स्फटिक माला, श्री यंत्र युक्त नवरत्न लॉकेट, श्री दुर्गा कवच लॉकेट एवं सर्वविघ्ननाशक श्री महामृत्युंजय कवच लॉकेट धारण करे।

वैद्यनाथ प्रयोग : इसमें काली हकीक की माला अथवा मूंगे की माला, जो पहले कभी किसी अन्य साधना में प्रयोग न लाई गई हो, पर निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें। क्क पूर्ण ऐश्वर्य देहि शिवाय पफट् जप के पश्चात् शिवलिंग पर रुद्राक्ष चढ़ाएं और श्रद्धा भाव से रोगी के स्वस्थ होने की कामना करते हुए भगवान शिव को प्रणाम करें।

नीरोग जीवन और दीर्घायु हेतु : क्क जूं सः माम्पालय पालय सः जूं क्क मंत्र का नियमित जप करना चाहिए। प्रातः काल स्नानादि से निवृत्त होकर ऊन के आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर घी का दीपक जलाकर और शिवपूजन कर के इस मंत्र का रुद्राक्ष की माला से एक माला जप नियमित रूप से करने से शारीरिक व्याधियां नहीं होतीं और व्यक्ति की आयु दीर्घ होती है।

शाबर सिद्ध चौंतीसा यंत्र द्वारा सर्वकार्य सिद्ध हेतु : सतो पुत्र कालिका, बारह वर्ष कुंआर। एक देवी परमेश्वरी, चौदह भुवन दुवार॥ दो हृीं पक्षी, निर्मल तेरह देवी। देव अष्ट-भूजी परमेश्वरी, ग्यारह रुद्र शरीर॥ सोलह कला संपूर्ण त्रय दवी। रक्ष-पाल दश औतार, उचरी पांच पांडव॥ नार नव नाथ, षट-दर्शनी पंद्रह तिथौ। ज्ञान चौही कीटी, परसिये काटा माता, मुश्किल आन॥ यंत्र को चौकी पर लाल कपड़े पर स्थापित कर घी का चौमुखी दीप एवं धूप जलाएं। फिर पंचोपचार पूजन कर ऊपर वर्णित मंत्र का 1008 बार जप करें। जप लाल चंदन की माला पर करें। पूर्ण स्वास्थ्य हेतु मंत्र जप ॥ क्क बृं नमः ॥ होली की रात 'त्रिष रत्ना' को मिट्टी के एक छोटे बर्तन में रखें और गुलाब पुष्प की पंखुड़ियों से ढक दें। फिर ऊपर वर्णित मंत्र का 51 बार जप कर उस बर्तन को पुष्प व त्रिष रत्ना सहित होली की अग्नि में डाल दें, स्वास्थ्य अनुकूल रहेगा। यदि कोई व्यक्ति यह प्रयोग स्वयं नहीं कर सकता तो उसके घर का कोई सदस्य त्रिष रत्ना को उसके सिर से पांच बार स्पर्श कराए और मिट्टी के एक बर्तन में थोड़ी सी काली सरसों लेकर त्रिष रत्ना को उस में रख दे और ऊपर वर्णित मंत्र का ही 60 बार उच्चारण करें और निर्जन स्थान पर फेंक दे। रोगी शिशु को रोगमुक्त करने के लिए मुर्गी के देशी अंडे पर निम्नलिखित यंत्र बनाकर शिशु के पलंग के नीचे रख दें, अगले दिन किसी पवित्र नदी में मौन रहकर बहा दें। यह क्रिया तीन गुरुवार को करें। यंत्र लेखन की एक विधि होती है, उसी विधि से यंत्र लेखन करें, अन्यथा वांछित फल नहीं मिलेगा। हनुमान चालीसा एवं बजरंग बाण का पाठ करने से रोगों का नाश हो जाता है।


Consult our astrologers for more details on compatibility marriage astrology


कई अन्य प्रकार के टोने-टोटके एवं उपाय भी हैं जिन्हें अपना कर रोगों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। जन्मकुंडली में ग्रहों की स्थिति भी स्वास्थ्य में बाधक बनती है। यदि व्यक्ति बचपन से ही गायत्री मंत्र का जप, ध्यान एवं सरल मंत्रों का प्रयोग नियमित रूप से करे तो उसका जीवन पूर्णतः स्वस्थ एवं नीरोग रहेगा। सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःख भाग भवेत॥ जब जातक के प्राण अत्यंत संकट में हों : समय का कोई विश्वास नहीं है, न जाने कब कौन सा संकट आ जाए। अन्य संकटों से तो मनुष्य किसी तरह बच सकता है, पर प्राणों का संकट आने पर अन्य सहायताएं मिलने पर भी ईश्वर कृपा की बड़ी आवश्यकता होती है। इस हेतु महामृत्युंजय मंत्र का विधि विधानपूर्वक जप ही फलदायी हो सकता है। इसके अतिरिक्त आगम शास्त्रों में कुछ अन्य मंत्र भी दिए गए हैं जिनमें शताक्षरी गायत्री मंत्र शुक्रोपासित गायत्री यंत्रगर्भित त्र्यम्बक मंत्र तथा सार्ध नाचंडी पाठ प्रयोग का बड़ा महत्व है। मंत्रों का मानसिक जप रोगी स्वयं करे। रोगी के परिवार के लोग रोगी के कमरे में घृत का दीपक जला कर जप करें या किसी योग्य ब्राह्मण द्वारा किसी शिव मंदिर में या घर में ही जप का प्रयोग पूजा के स्थान पर कराएं। ऑपरेशन या अन्य विशेष चिकित्सा के पहले ही मृत्युंजय मंत्र या उक्त किसी मंत्र का जप करना आरंभ कर लेना चाहिए। प्राण रक्षा का अमोघ उपाय महामृत्यंुंजय-अभिषेक : जब रोगी अत्यंत संकट की स्थिति में होता है तब परिवार और आत्मीय जन बड़ी बेचैनी का अनुभव करते हैं। सभी अपनी-अपनी बुद्धि और योग्यता के अनुसार उपाय खोजने में और उसकी व्यवस्था में लग जाते हैं।

कालों के भी काल महाकाल उस समय एक मात्र सहायक होते हैं। शिव को प्रसन्न करने के अनेक उपाय हैं जिनमें महामृत्युंजय मंत्र जप और रुद्राभिषेक प्रयोग प्रमुख हैं। अभिषेक का तात्पर्य अभिषेक शब्द का तात्पर्य है स्नान करना या कराना। यह स्नान एक तो भगवान मृत्युंजय शिव को कराया जाता है और दूसरा रोगी को। किंतु आजकल विशेष रूप से रुद्राभिषेक ही कराया जाता है। रुद्राभिषेक का अर्थ है रुद्र अर्थात शिव का शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक। इस प्रकार रुद्राभिषेक करना 'जलधाराप्रियः' उक्ति को चरितार्थ करता है। रुद्रमंत्रों का विधान ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में उद्धृत मंत्रों से किया जाता है। रुद्राष्टाध्यायी में अन्य मंत्रों के साथ यह मंत्र भी उल्लिखित है। किंतु कैवल्योपनिषद् और जावालोपनिषद् में इसका विस्तृत वर्णन है। कैवल्योपनिषद में यः शतरुद्रियमधीते सोऽग्निपूतो भवति' इत्यादि वचनों द्वारा 'शत-रुद्रिय' के पाठ से अग्नि, वायु, सुरापान, ब्रह्महत्या, सुवर्ण चोरी, कृत्य एवं अकृत्य से पवित्र होने तथा ज्ञानप्राप्ति पूर्वक कैवल्यपद प्राप्ति तक का फल होता है, जबकि जावालोपनिषद् में कुछ ब्रह्मचारी महर्षि याज्ञवल्क्य से पूछते हैं कि ''किसका जप करने से अमृतत्व प्राप्त होता है?'' इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा- 'शतरुद्रियेणेत्येतान्येव हवा अमृतस्य नमानि एतैही वा अमृतो भवतीति।' अर्थात शतरुद्रिय के पाठ से (इसके द्वारा अभिषेक करने से) अमृतत्व प्राप्त होता है। ये ही (शतरुद्रिय में आए हुए) नाम अमृत के समान हैं। अतः शतरुद्रिय मंत्रों से अभिषेक का बड़ा माहात्म्य है। शतरुद्रियं से क्या तात्पर्य है? यह प्रश्न भी स्वाभाविक है। इसके उत्तर के संबंध में तीन मत प्राप्त होते हैं- नमस्ते रुद्रमन्यव इत्यादि 16 मंत्रों का समूह ही शतरुद्रिय है।

यह कमला कर भट्टादि का मत है। कुछ का मत है कि 66 नील सूक्त ('नमस्ते से 'जन्मे मध्यः' तक) पुनः नमस्ते आदि 16 मंत्र, एष तेट नमस्ते, न तं विद् 2 और मीदृष्टम 4 से मंत्र शतरुद्रिय में आते हैं। कुछ अन्य आचार्योंका कहना है कि केवल नमस्ते आदि 66 मंत्र ही शतरुद्रिय हैं क्योंकि यहां शत का अर्थ असंखयात है, सौ नहीं। ऐसी स्थिति में अपनी गुरु परंपरा का अनुसरण करते हुए शतरुद्रिय का पाठ कर अभिषेक करना चाहिए। अभिषेक के लिए ग्राह्य वस्तु अभिषेक साधारण रूप से तो जल से ही होता है। विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों में गोदुग्ध या अन्य दूध मिला कर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है। विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और चीनी से अलग-अलग अथवा सब को मिला कर 'पंचामृत' से भी अभिषेक किया जाता है। तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी अभिषेक करने का विधान है जैसे अत्यंत उष्णज्वर और मोती झारा (टाइफाइड) में मट्ठे (दही की छाछ) से अभिषेक करने से लाभ होता है। शत्रु द्वारा यदि कोई अभिचार किया गया प्रतीत हो, तो सरसों के तेल से अभिषेक करना चाहिए। आम, गन्ने, मौसमी, संतरे, नारियल आदि फलों के रस को एक साथ मिलाकर अथवा अलग-अलग रस से अभिषेक किया जाता है। विजया से भी अभिषेक का विधान है। ऐसे अभिषेक से भगवान शिव प्रसन्न होकर सब प्रकार की सुख-शांति प्रदान करते हैं।


For Immediate Problem Solving and Queries, Talk to Astrologer Now


गाय-बैल के समान जंगली पशु के सींग को शुद्ध करके उसमें जलादि भर कर अभिषेक करना अत्यंत शुभ फलदायक होता है। इसके अभाव में पीतल, ताम्र या चांदी के सींग द्वारा भी अभिषेक किया जा सकता है। इनमें आगे गोमुख बना कर या तीन, पांच, सात अथवा ग्यारह छिद्र बना कर तत् तत् संखयक जलधाराभिषेक भी किया जाता है। गंगोत्तरी और यमुनोत्तरी का जल लेकर रामेश्वरम् पर चढ़ाने और दक्षिण के समुद्रों का जल लाकर केदारेश्वर पर चढ़ाने से भी पुण्य लाभ होता है। सभी रोगों से मुक्ति के लिए विशिष्ट दान : प्रायः देखा गया है कि कुछ रोग ऐसे होते हैं जिनका अनेक प्रकार से उपचार करने पर भी उनसे मुक्ति नहीं मिलती है। ऐसी स्थिति में चिकित्सा और जप के अतिरिक्त शास्त्रकारों की आज्ञा है कि तत्तद्वोषविनाशार्थ दानं कुर्याद् यथोदितम्। प्रतिरोगं च यदानं जपहोमादि कीर्तितम्॥ प्रायश्चित्तं तु तत्कृत्वां चिकित्साभारभेत्ततः। प्रदद्यात् सर्वरोगघ्नं छायापात्रं विधानतः॥ अर्थात कर्म दोषों से उत्पन्न रोगों से मुक्ति के लिए जिन-जिन दानों का उल्लेख किया गया है, वे दान करने चाहिए। यहां दान के कुछ प्रभावशाली प्रयोगों का उल्लेख प्रस्तुत है।

छायापात्र दान कांसे की कटोरी में घी भर कर उसमें सुवर्ण का टुकड़ा या कुछ दक्षिणा डाल कर रोगी उस घी में अपनी छाया देखे। छाया में पैर से लेकर मुंह तक देखने का विधान है। किंतु अधिक न हो तो केवल मुंह देखे। फिर किसी ब्राह्मण को दान दे। दान से पूर्व संकल्प करे जिसमें तिथि, वारादि का स्मरण करके 'ममदीर्घायुरारोग्यसुतेजस्वित्वप्राप्तिपूर्वकं शरीरगत (अमुक) रोगनिवृत्तये अमुकनाम्ने ब्राह्मणाय सघृत-दक्षिणांक छाया पात्रदानमहं करिस्ये।' बोल कर जल दे। फिर पात्र की निम्नलिखित मंत्र से पूजा करे। क्क आज्यं सुराणामाहारमाज्यं पापहरं परम्। आज्यमध्ये मुखं दृष्टवा सर्वपापेः पमुच्यते॥ घृतं नाशपते व्याधिं घृतं च हरते रुजम्। घृतं तेजोधिकरणं घृतमायुः प्रवर्धते॥ पूजा के बाद आयुर्बलं यशो वर्च आज्यं स्वर्ण तथामृतम्। आधारं तेजसां यस्मादतः शान्तिं प्रयच्छ मे॥ कहकर पात्र ब्राह्मण को देकर प्रणाम करें। रोग-प्रतिरूपदान किसी पात्र या वस्त्र में अपनी श्रद्धा के अनुसार सवाया तोल में चावल लेकर उसमें कुछ पैसे या वस्तु रखें और रोगी के सिर से पैर तक 21 बार उतारकर नीचे लिखा हुआ मंत्र बोलकर ब्राह्मण को आदरपूर्वक दान कर दें।

ये मां रोगाः प्रवाधन्ते देहस्था सतंत मम। गृहणीस्व प्रतिरूपेण तान् रोगान् द्विजसत्तम॥ ब्राह्मण उसे लेकर कहे 'बाढम्' । दान के बाद ब्राह्मण को विदा कर दें और उसका मुंह नहीं देखें। तुलादान शरीर में किसी विशेष रोग ने घर कर लिया हो और उपचार करने पर भी लाभ नहीं हो, तो सूर्य या चंद्रग्रहण के अवसर पर तुलादान करें। इस विधान में दो प्रकार के दान होते हैं- किसी एक ही वस्तु का अथवा कई वस्तुओं को एक साथ मिलाकर। सामान्य रूप से तुलादान में दानकर्ता के वजन के बराबर स्वर्ण, चांदी, तांबा, पीतल, लोहा, जस्ता आदि धातुओं, गेहूं, चावल, ज्वार, मकई, बाजरा, उड़द, चना, मूंग, मसूर, अरहर, जौ, तिल आदि धान्य तथा श्वेत, लाल, पीत, कृष्ण, काले तथा हरे रंग के वस्त्रों और फलों (सूखे और हरे), मेवों आदि का रोगी के वजन के बराबर दान संकल्पपूर्वक करना चाहिए। दान में एक तुला के एक पलड़े पर दान सामग्री रखी जाए और दूसरे पर रोगी को बिठाया जाए। अन्यविधि तुलादान - पद्धति के अनुसार करना चाहिए। इस हेतु किसी योग्य विद्वान कर्मकांडी ब्राह्मण का सहयोग प्राप्त करना उत्तम है।


Know Which Career is Appropriate for you, Get Career Report




Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.