विविध तंत्र प्रयोग
विविध तंत्र प्रयोग

विविध तंत्र प्रयोग  

निर्मल कोठारी
व्यूस : 121247 | आगस्त 2010

1. मोहन तंत्र प्रयोग:

जिस कर्म के द्वारा किसी स्त्री या पुरुष को अपने प्रति मुग्ध करने का भाव निहित हो, वो ‘मोहनकर्म’ कहलाता है। मोहन अथवा सम्मोहन यह दोनों प्रायः एक ही भाव को प्रदर्शित करते हैं। मोह को ममत्व, प्रेम, अनुराग, स्नेह, माया और सामीप्य प्राप्त करने की लालसा का कृत्य माना गया है। मोहन कर्म की यही सब प्रतिक्रियाएं होती हैं। निष्ठुर, विरोधी, विरक्त, प्रतिद्वंदी अथवा अन्य किसी को भी अपने अनुकूल, प्रणयी और स्नेही बनाने के लिए मोहन कर्म का प्रयोग किया जाता है। मोहन कर्म के प्रयोगों को सिद्ध करने के लिए पहले निम्नलिखित मंत्र का दस हजार जप करना चाहिए।

ऊँ नमो भगवते कामदेवाय यस्य यस्य दृश्यो भवामि यश्च मम मुखं पश्यति तं तं मोहयतु स्वाहा।’’

प्रयोग से पूर्व प्रत्येक तंत्र को पहले उपर्युक्त मंत्र से अभिमंत्रित कर लेना चाहिए। मोहन कर्म के प्रयोग निम्नलिखित है:-

1. तुलसी के सूखे हुए बीज के चूर्ण को सहदेवी के रस में पीसकर ललाट पर तिलक के रूप में लगाएं।

2. असगंध और हरताल को केले के विविध तंत्र प्रयोग डाॅ. निर्मल कोठारी रस में अच्छी तरह से पीसकर उसमें गोरोचन मिलाएं तथा मस्तक पर तिलक लगाएं तो देखने वाले मोहित हो जायेंगे।

3. वच, कूट, चंदन और काकड़ सिंगी का चूर्ण बनाकर अपने शरीर तथा वस्त्रों पर धूप देने अथवा इसी चूर्ण का मस्तक पर तिलक लगाने से मनुष्य, पशु, पक्षी जो भी देखेगा मोहित हो जाएगा। इसी प्रकार पान की मूल को घिसकर मस्तक पर उसका तिलक करने से भी देखने वाले मोहित होते हैं।

4. केसर, सिंदूर और गोरोचन इन तीनों को आंवले के रस में पीसकर तिलक करने से लोग मोहित होते हैं।

5. श्वेत वच और सिंदूर पान के रस में पीसकर एवं तिलक लगाकर जिसके भी सामने जाएंगे वो मोहित हो जाएगा।

6. अपामार्ग (जिसे औंगा, मांगरा या लाजा भी कहते हैं) धान की खील और सहदेवी - इन सबको पीसकर उसका तिलक करने से व्यक्ति किसी को भी मोहित कर सकता है।

7. श्वेत दूर्वा और हरताल को पीसकर तिलक करने से मनुष्य तीनों लोकों को मोहित कर लेता है।

8. कपूर और मैनसिल को केले के रस में पीसकर तिलक करने से अभीष्ट स्त्री-पुरुष को मोहित कर सकता है।

9. तंत्र साधक गूलर के पुष्प से कपास के साथ बत्ती बनाए और उसको नवनीत से जलाए। जलती हुई बत्ती की ज्वाला से काजल पारे तथा उस काजल को रात्रिकाल में अपनी आंखों में आंज ले। इस काजल के प्रभाव से वो सारे जगत् को मोहित कर लेता है। ऐसा सिद्ध किया हुआ काजल कभी किसी को नहीं देना चाहिए।

10. श्वेत धुंधली के रस में ब्रह्मदंडी की मूल को पीसने के बाद शरीर पर लेप करने से सारा संसार मोहित हो जाता है।

11. बिल्व पत्रों को लाने के बाद उन्हें छाया में सुखा लें। फिर उन्हें पीसकर कपिला गाय के दूध में मिलाकर गोली बना लें। उस गोली को घिसकर तिलक करने से देखने वाला तन, मन और धन से मोहित हो जाएगा।

12. श्वेत मदार की मूल और श्वेत चंदन-इन दोनों को पीसकर उसका शरीर पर लेप करें। इस क्रिया से किसी को भी सहज ही मोहित किया जा सकता है।

13. श्वेत सरसों को विजय (भांग) की पत्ती के साथ पीसकर मस्तक पर लेप करें। अब जिसके सामने भी जाएंगे वो मोहित हो जाएगा।

14. तुलसी के पत्तों को लाकर उन्हें छाया में सुखा लें। फिर उनमें विजया यानी भांग के बीज तथा असगंध को मिलाकर कपिला गाय के दूध में पीस लें। तत्पश्चात उसकी चार-चार माशे की गोलियां बनाकर प्रातः उठकर खाएं। इससे सारा जगत मोहित हुआ प्रतीत होता है।

15. कड़वी तुंबी के बीजों के तेल में कपड़े की बत्ती बनाकर जलाएं और उससे काजल पार कर आंखों में अंजन की भांति लगाएं। अब जिसकी तरफ भी दृष्टि उठाकर देखेगें, वो मोहित हो जाएगा।

16. अनार के पंचांग को पीसकर उसमें श्वेत धुंधली मिलाकर मस्तक पर तिलक लगाएं। इस तिलक के प्रभाव से कोई भी मोहित हो सकता है।

2. स्तंभन तंत्र प्रयोग:

स्तंभन क्रिया का सीधा प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता है। बुद्धि को जड़, निष्क्रय एवं हत्प्रभ करके व्यक्ति को विवेक शून्य, वैचारिक रूप से पंगु बनाकर उसके क्रिया-कलाप को रोक देना स्तंभन कर्म की प्रमुख प्रतिक्रिया है। इसका प्रभाव मस्तिष्क के साथ-साथ शरीर पर भी पड़ता है। स्तंभन के कुछ अन्य प्रयोग भी होते हैं। जैसे-जल स्तंभन, अग्नि स्तंभन, वायु स्तंभन, प्रहार स्तंभन, अस्त्र स्तंभन, गति स्तंभन, वाक् स्तंभन और क्रिया स्तंभन आदि। त्रेतायुग के महान् पराक्रमी और अजेय-योद्धा हनुमानजी इन सभी क्रियाओं के ज्ञाता थे। तंत्र शास्त्रियों का मत है कि स्तंभन क्रिया से वायु के प्रचंड वेग को भी स्थिर किया जा सकता है। शत्रु, अग्नि, आंधी व तूफान आदि को इससे निष्क्रिय बनाया जा सकता है। इस क्रिया का कभी दुरूपयोग नहीं करना चाहिए तथा समाज हितार्थ उपयोग में लेना चाहिए। अग्नि स्तंभन का मंत्र निम्न है।

1. ‘‘ऊँ नमो अग्निरुपाय मम् शरीरे स्तंभन कुरु कुरु स्वाहा। अयुतजपात् सिद्धि र्भवति। अष्टोत्तरशत जपात् प्रयोग (सिद्धिम) भवति।।’’ ‘‘ऊँ नमो इत्यादि अग्नि स्तंभन का मंत्र है। इस मंत्र के दस हजार जप करने से सिद्धि होती है तथा एक सौ आठ जप करने से प्रयोग सिद्ध होता है। स्तंभन से संबंधित कुछ प्रयोग निम्नलिखित है:

2. घी व ग्वार के रस में आक के ताजा दूध को मिलाकर, शरीर पर उसका लेप करने से भी अग्नि स्तंभन होता है।

3. केले के रस में घृतकुमारी व ज्वारपाठा के रस को मिलाकर शरीर पर लेप करने से शरीर अग्नि में घिरा होने पर भी नहीं जलता है।

4. पीपल, मिर्च और सौंठ को कई बार चबाकर निगल लें। इसके पश्चात् मुंह में जलता हुआ अंगारा भी रखें, तब भी मुंह नहीं जलेगा।

5. चीनी के साथ गाय के घृत को पीकर अदरक के टुकड़े को मुंह में डालकर चबाएं फिर तपे हुए लोहे के टुकड़े को मुंह में रखे तो वह भी बर्फ की भांति ठंडा प्रतीत होगा।

6. ‘‘ऊँ नमो दिगंबराय अमुकस्य स्तंभन कुरु कुरु स्वाहा। अयुत जपात् मंत्रः सिद्धो भवति। अष्टोत्तर शत जपात् प्रयोगः सिद्धो भवति। उपर्युक्त मंत्र का दस हजार जप करने से मंत्र सिद्ध होता है और आवश्यकता होने पर एक सौ आठ बार जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। मंत्र - ‘अमुकस्य’ के स्थान पर जिसके आसन पर स्तंभन करना हो उसका नाम लेना चाहिए।

7. भांगरे के रस में सरसों (सफेद) को पीसकर, मस्तक पर उसका लेप करके जिसके सम्मुख भी जाएंगे उसकी बुद्धि का स्तंभन हो जाएगा।

8. अपामार्ग और सहदेई को लोहे के पात्र में डालकर पींसें और उसका तिलक मस्तक पर लगाएं। अब जो भी देखेगा उसका स्तंभन हो जाएगा।

9. भांगरा, चिरचिटा, सरसों, सहदेई, कंकोल, वचा और श्वेत आक इन सबको समान मात्रा में लेकर कूटें और सत्व निकाल लें। फिर किसी लोहे के पात्र में रखकर तीन दिनों तक घोटें। अब जब भी उसका तिलक कर शत्रु के सम्मुख जाएंगे, तो उसकी बुद्धि कुंठित हो जाएगी।

10. ऊँ नमो भगवते महाकाल पराक्रमाय शत्रूणां शस्त्र स्तंभन कुरु-कुरु स्वाहा। प्रयोग विधि मंत्र: एक लक्ष जपामंत्रः सिद्धो भवति नान्यथा। अष्टोत्तरशत जपात् प्रयोगः सिद्धयति ध्रुवम्।। उपरोक्त मंत्र का एक लाख जप करने से वह सिद्ध हो जाता है और जब इसका प्रयोग करना हो, एक सौ आठ बार पुनः जप कर प्रयोग करें तो यह प्रयोग सफल होता है।

11. पुष्य नक्षत्र वाले रविवार के दिन अपराजिता की मूल को उखाड़कर मुंह में रखने अथवा सिर पर धारण करने से शस्त्र स्तंभन हो जाता है।

12. रवि पुष्य के दिन श्वेत गुंजा की मूल को लाकर धारण करें तो युद्ध में शत्रु के शस्त्र का भय नहीं रहता अथवा उसके शस्त्र का स्तंभन हो जाता है।

13. खजूर की मूल को पैर और हाथ में धारण करने से खंजर-शस्त्र का स्तंभन हो जाता है।

14. जामुन की मूल को हाथ पर और केबड़े की मूल को मस्तिष्क पर तथा ताड़ की मूल को मुंह में रखने से शस्त्र चाहे जिस प्रकार हो, उसका स्तंभन हो जाता है। इन तीनों जड़ों का चूर्ण बनाकर घृत के साथ सेवन करने से आक्रमणकारी के शस्त्र का स्तंभन हो जाता है।

15. चमेली की मूल को मुख में रखने से किसी भी शस्त्र का भय नहीं रहता। रविवार को पुष्य नक्षत्र आने पर अपामार्ग की मूल लाकर उसे पीस लें और शरीर पर उसका लेप करें तो सभी प्रकार के शस्त्र से स्तंभन हो जाता है।

16. ऊँ नमः काल रात्रि त्रिशूलधारिणी। मम शत्रुसैन्य स्तंभन कुरु कुरु स्वाहा। एक लक्षजपाच्यापं मंत्रः सिद्धः प्रजायते। उपरोक्त शतजपात् प्रयोगे सिद्धिरूतमा।। से भी गर्भ स्तंभन होता है। रविवार के दिन जब पुष्य नक्षत्र हो, तब काले धतूरे की मूल लाकर गर्भिणी स्त्री की कमर में बांध दें। इससे गर्भ का स्तंभन होता है।

17. मिट्टी के एक पात्र में श्मशान की भस्म से शत्रु का नाम लिखें और उसे नीले सूत्र से बांधकर एक गहरे गड्ढे में गाड़ दें। तदनंतर उस पर एक पत्थर रखकर ढांप दें। ऐसा करने से शत्रु की पूरी सेना का ही स्तंभन हो जाता है।

18. ऊँ नमो भगवते महारौद्राय गर्भस्तंभनं कुरू कुरू स्वाहा।। इस मंत्र को सिद्ध करने के लिए 1 लाख जप करना जरूरी है। अन्यथा प्रयोग सफल नहीं होंगे। जब भी प्रयोग करना हो तो एक सौ आठ बार जप अवश्य करें।

प्रयोग:

19. केशर, शक्कर, ज्वारपाठा और कुंदपुष्प को समान मात्रा में शहद में मिलाकर खाने से गर्भपात से रक्षा होती है।

20. ऋतुस्नाता स्त्री यदि रेंडी के बीज को निगल ले तो उसका गर्भ कभी नहीं गिरता। कमर में धतूरे का बीज बांधन घर में हर समय कलह बनी रहेगी।

21. कुम्हार के हाथ से लगी हुई चाक की मिट्टी को शहद में मिलाकर बकरी के दूध के साथ सेवन करने से गर्भ का स्तंभन होता है।

3. विद्वेषण तंत्र प्रयोग:

‘ द्वेष’ का अर्थ है दूसरों के लाभ में अवरोध उत्पन्न करना है इसी द्वेष भावना का क्रियात्मक रूप ‘विद्वेषण’ कहलाता है। इसका मुख्य उद्देश्य होता है किन्हीं दो लोगों के बीच फूट, विद्रोह, उपद्रव, अविश्वास और शत्रुता के भाव उत्पन्न करके विघटन की उत्पत्ति करना।

ऊँ नमो नारदाय अमुकस्याकेन सहविद्वेषणम् कुरु-कुरु स्वाहा। इस मंत्र का एक लाख जप करने से यह सिद्ध हो जाता है और जब कोई तंत्र प्रयोग करना हो तो पहले मंत्र का एक सौ आठ बार जप करके सिद्धि प्राप्त कर लेनी चाहिए। मंत्र में अमुक के स्थान पर जिस पर प्रयोग करना हो उसके नाम का उच्चारण करें।

प्रयोग:

1. शेर और हाथी के दांतों को गाय के मक्खन के साथ पीसकर जिनके नामों से आग में हवन किया जाएगा, वे विद्वेषण के प्रभाव में आ जाएंगे।

2. कुत्ते के बाल तथा बिल्ली का नाखून मिलाकर जहां जलाया जाएगा वहां के लोगों में विद्वेषण उत्पन्न हो जाएगा।

3. साही का कांटा जिसके मकान के मुख्य द्वार पर गाड़ दिया जाएगा, उस उपर्युक्त मंत्र के एक लाख जप से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है और प्रयोग के समय एक सौ आठ बार जप करके प्रयोग करने से सैन्य स्तंभन होता है।

4. जब कभी भी दो व्यक्तियों के बीच द्वेष उत्पन्न करना हो, तो उनके पैरों की मिट्टी को सान एवं गूंधकर उससे एक पुतली बनाएं और श्मशान में ले जाकर उसे भूमि में गाड़ दें। इस क्रिया को करने से उनके बीच द्वेष उत्पन्न हो जाएगा।

5. कोई भाषण या समारोह चल रहा हो, तो भैंसे और घोड़े के बालों को परस्पर मिलाकर जलाएं। इससे सभा या समारोह में भगदड़ मच जाएगी।

6. एक हाथ में कव्वे का पंख और दूसरे हाथ में उल्लू का पंख लेकर विद्वेषण के मंत्र से अभिमंत्रित करें और उन दोनों पंखों को फिर काले सूत से बांधकर जिस घर में गाड़ दिया जाएगा, उस घर में रहने वालों का आपस में झगड़ा हो जाएगा।

4. वशीकरण तंत्र प्रयोग:

वशीकरण का अर्थ वश में करना है। वह कर्म जिसके द्वारा प्रयोगकर्ता अभीष्ट प्राणी को अपने वश में कर लेता है ‘वशीकरण कहलाता है। वस्तुतः यह आकर्षण और मोहनकर्म का चरम विकसित और अत्यधिक प्रभावी रूप है।



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