वास्तु शास्त्र में पंच तत्व

वास्तु शास्त्र में पंच तत्व  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 8397 | दिसम्बर 2015

आकाश, पृथ्वी, जल, वायु एवं अग्नि इन पंच तत्वों का उचित संतुलन, पृथ्वी के अतिरिक्त, किसी अन्य ग्रह पर नहीं पाया जाता है, क्योंकि अन्य ग्रहों पर जीवन का अस्तित्व नहीं है। अग्नि तत्व का कार्य प्रकाश और ऊष्मा देना है। नेत्र द्वारा देखा जा सकता है। त्वचा के द्वारा हवा (वायु) के स्पर्श की अनुभूति कर सकते हैं। आकाश तत्व द्वारा, ध्वनि के आंदोलन से, कर्ण से सुन सकते हैं। पृथ्वी तत्व की सहायता से अपनी नासिका द्वारा गंध सूंघ सकते हैं। जल तत्व की सहायता से अपनी जिह्वा द्वारा स्वाद का अनुभव कर सकते हैं। मानव मस्तिष्क में आकाश तत्व है। कंधों में अग्नि तत्व, नाभि में वायु तत्व, घुटनों में पृथ्वी निवास करते हैं और पैरों में जल तत्व का प्रभुत्व है।

सूर्य ऊर्जा अग्नि तत्व है, हवा वायु तत्व है, वर्षा का जल जल तत्व की ऊर्जा शक्ति है और पृथ्वी तत्व का गुरुत्वाकर्षण चुंबकीय प्रवाह (बायो इलेक्ट्रिक-मैग्नेटिक एनर्जी) ऊर्जा शक्तियां हैं। मूलाधार चक्र में पृथ्वी तत्व, मणिपुर चक्र में अग्नि तत्व, अनाहत चक्र में वायु तत्व, स्वाधिष्ठान चक्र में जल तत्व और विशुद्ध चक्र में आकाश तत्व का वर्चस्व रहता है। दो नयनों के बीच में आज्ञा चक्र तीसरा नेत्र है। उनसे मन प्रभावित होता है। मस्तक में सहस्र चक्र, जो मुकुटमणि है, वहां जीव का स्थान माना जाता है। वास्तु शास्त्र से किसी के भाग्य में परिवर्तन तो नहीं किया जा सकता, मगर उनकी जीवन शैली में बदलाव अवश्य ला सकते हैं। व्यक्ति का भाग्य उसके पिछले जन्मों के कर्मों पर आधारित है।

अपने कार्य, विचार, रचनात्मक अभिगम और फर्नीचर आदि की सजावट से पंच तत्वों में संतुलन ला कर उत्तम स्वास्थ्य, धन-ऐश्वर्य, सुख-शांति प्राप्त कर सकते हैं। अग्नि तत्त्व: दैनिक जीवन में अग्नि का विशेष महत्व है। सूर्य के प्रकाश और ऊष्मा से अग्नि ऊर्जा प्राप्त होती है। सूर्य का प्रकाश घर में खिड़कियों और दरवाजों से आता है। सुबह मूल्यवान, आरोग्यप्रद सूर्य के किरणों में प्रजीवक ‘डी’ रहता है।

मगर जब सूर्य दक्षिण दिशा में हो कर पश्चिम दिशा में ढलता है, तब नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ता है। सूर्य का हानिकारक प्रभाव कम करने के लिए दक्षिण-पश्चिम दिशा की दीवार को बड़ा-चैड़ा बनाना चाहिए और दरवाजे-खिड़कियां कम रखनी चाहिए। प्रकाश एवं ऊष्मा से पृथ्वी पर स्थित सभी वनस्पतियों में जीवन का संचार होता है। प्रकाश से मनुष्य देख सकता है।

शुभ कार्यों में दीप प्रगट कर के, होम-हवन कर के, अपने इष्ट देवता का स्मरण कर के, प्रार्थना-अर्चना कर, शांति प्राप्त करते हैं। सूर्य की अच्छी ऊर्जा प्राप्त करने के लिए भवन की उत्तर और पूर्व दिशाएं नीची होनी चाहिए और वहां ज्यादा खिड़कियां-दरवाजे होने चाहिए। सूर्य की किरणंे, जो दोपहर के बाद हानिकारक होती हैं, उनसे बचना चाहिए।

आकाश तत्त्व: आकाश (आसमान) एक मूल तत्व है। मानव मस्तिष्क में आकाश का नियमन है। मकान की चारदीवारी की ऊंचाई में आकाश तत्व प्राप्त कर सकते हैं। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, जैन मंदिर, गिरजे के गुंबजों में आकाश तत्व रहता है।

आकाश शक्ति का प्रतीक माना जाता है। मकान की दीवारें छोटी होने से व्यक्ति के शरीर में आकाश तत्व का विकास रुक जाता है। जगह का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने के लिए 7 से 8 फुट ऊंचाई पर छत रखते हैं। आकाश तत्व प्राप्त करने के लिए कम से कम 9 से 10 फुट की ऊंचाई रखनी चाहिए। जिस घर-मकान में प्रवेश करते समय मन को आनंद-शांति मिलती है, बैठने में जी लगता है, उस जगह का वास्तु अच्छा लगता है।

ऐसा स्थान केंद्र की जगह आकाश तत्व का निर्देश करता है। ब्रह्मांड में आकाश तत्व की प्रधानता है। उसी प्रकार भवन में भी इसकी महत्ता को भूलना नहीं चाहिए। आकाश से नैसर्गिक ऊर्जाओं का प्रभाव निर्बाध रूप से प्राप्त होता रहता है। किसी भवन में नैर्ऋत्य कोण का वास्तु बिगड़ने तथा अंधकार और नकारात्मक ऊर्जा होने से प्रेत बाधा रहती है। आकाश एवं वायु तत्व का सही निर्धारण न करने से बहुत सी मुश्किलें आती हैं।

पृथ्वी तत्व: भवन निर्माण के समय भूमि पूजन और वास्तु शांति करते हैं। पृथ्वी तत्व में स्पर्श, ध्वनि, रूप, रस और गंध के गुण हैं। पृथ्वी में उत्तर-दक्षिण दिशा में चुंबकीय ध्रुव हैं और गुरुत्वाकर्षण की शक्ति प्राप्त की जाती है।

वायु तत्व: प्राण वायु (आॅक्सीजन) का जीवन में विशेष महत्व है। समस्त प्राणी सजीव पदार्थ वायु से जीवन और चेतना प्राप्त करते हैं। 21 प्रतिशत की मात्रा में प्राण वायु होती है, जो सजीव प्राणियों के श्वास लेने के लिए आवश्यक है। पर्यावरण दूषित होने पर कार्बन डाई-आॅक्साइड (अंगार वायु), कार्बन मोनोक्साइड, सल्फर डाई-आॅक्साइड की मात्रा में वृद्धि होने से स्वास्थ्य को हानि पहुंचती है। प्राण वायु या स्वच्छ वायु का सेवन स्वास्थ्य एवं दीर्घायु के लिये आवश्यक है।

प्राण वायु का संचारण निर्बाध होना चाहिए। पूर्व दिशा, ईशान कोण, उत्तर दिशा, सर्वाधिक खुला और नीचा रहे, जिससे प्रातः काल से सूर्य की किरणें, प्रकाश एवं शुद्ध वायु निरंतर प्राप्त होते रहें। वायु तत्व की प्राप्ति के लिए वायव्य कोण में वायु का स्थान रखना स्वास्थ्य, प्राणी और भवन की दीर्घायु के लिए आवश्यक माना जाता है। वायु संचारण के लिये भवन में दरवाजों, खिडकियों, रोशनदानों, बरामदा, कूलर, एयर कंडीशनर को उत्तर, पूर्व, ईशान, वायव्य में रखना चाहिए।

ईशान कोने में इंफ्रारेड किरणें आती रहती हैं, जो मानव जीवन के लिए लाभकारी, शुभ और कल्याणकारी होती हैं। ईशान कोण में गंदगी, हानिकारक, दूषित, वायु बुरा प्रभाव डालती हैं। इसलिए ईशान कोण साफ-सुथरा रखना चाहिए।हवा के मुक्त आवागमन के लिए ‘क्राॅस वेंटीलेशन’ प्रत्येक घर में होना आवश्यक है।

जल तत्व: पृथ्वी पर जल अमृत है। सर्जन, पोषण और वृद्धि के लिए जल की आवश्यकता रहती है। बावड़ी, नदी, तालाब, कूप, जमीन के अंदर पानी की टंकी इत्यादि जल वास्तु का स्थान ईशान कोण में होना चाहिए। जल स्थान पूर्व, उत्तर, ईशान में होना चाहिए। छत पर जल की टंकी दक्षिण, पश्चिम, नैर्ऋत्य में रख सकते हैं और वहां वजन में वृद्धि कर सकते हैं। जल गर्म हो कर वाष्प का रूप धारण कर लेता है, जो गैस के रूप में नीचे आ कर बादल बनते हैं, जिससे वर्षा से फिर जल प्राप्त होता है। कुआं, जलाशय एवं प्याऊ निर्माण से पुण्य प्राप्त कर, जीवन सार्थक कर सकते हैं।

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