एक बहुत पुरानी कहावत है
चिराग तले अंधेरा अर्थात दीपक
की रोशनी सारे घर में उजाला
करती है परंतु उसके नीचे नितांत
अंधेरा रहता है। यह कहावत वास्तव
में चरितार्थ हुई निशा के घर में।
निशा का विवाह रायपुर के एक
अत्यंत धनाढ्य परिवार में हुआ
था। उनका प्रकाशन का कारोबार
वर्षों से चल रहा है जहां बच्चों के
स्कूल की पुस्तकों से लेकर डाॅक्टरी,
इंजीनियरिंग, वास्तुकला आदि कोर्स
में प्रवेश के लिए पुस्तकें छापी जाती
हैं और इन पुस्तकों को पढ़ कर न
जाने कितने विद्यार्थी उच्च शिक्षण
संस्थाओं में प्रवेश पा चुके हैं।
निशा को जब पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई
तो वह खुशी से फूली न समाई और
अपने पुत्र के भविष्य को लेकर उसने
न जाने कितने सुंदर-सुंदर सपने
संजोए। मयंक बचपन से अपनी काफी
शरारती और उद्दंड था। उसे तीन
वर्ष की आयु में एक नर्सरी स्कूल में
भेजा गया जहां उसका मन बिल्कुल
नहीं लगता था और वह बस शरारतें
ही करता रहता। बचपन में सभी
बच्चे बाल सुलभ शैतानियां करते हैं
ऐसा सोच कर उसकी शैतानियों को
नजरअंदाज कर दिया जाता। निशा
के अथक परिश्रम एवं लाड़ दुलार
के फलस्वरूप वह पांचवीं कक्षा तक
पहुंचा लेकिन पांचवीं कक्षा के पश्चात्
उसने स्कूल जाना बिल्कुल बंद कर
दिया और जबरदस्ती स्कूल भेजे
जाने पर वहां बच्चों की पिटाई कर
देता। उसके उद्दंड व्यवहार से
नाराज होकर उसे स्कूल से निकाल
दिया गया। एक प्रतिष्ठित परिवार
का होने के कारण उसे अनेक स्कूलों
में दाखिल कराया गया पर वह
अपनी हरकतों से बाज नहीं आया
और अंततः उसके लिए सभी स्कूलों
के दरवाजे बंद हो गए।
घर पर भी उसकी पढ़ाई के लिए
भरसक प्रयत्न किए गए पर कोई
सफलता नहीं मिली और उसका
व्यवहार दिन प्रतिदिन कठोर होता
गया। उसके छोटे भाई को दूर
बोर्डिंग स्कूल में डाला गया क्योंकि
मयंक उसे भी अपने ही रंग में ढाल
रहा था।
निशा मयंक को मनोवैज्ञानिक के पास
ले गई तो मयंक ने आसपास लोगों
से पता लगा लिया कि यहां पर किस
तरह का इलाज होता है और जब
उसे पता चला तो वह मम्मी को ही
पागल कहने लगा, उसने दवाई खाने
से साफ इन्कार कर दिया।
बहुत से पंडितों को उसकी जन्मपत्री
दिखाई गई, किंतु उनके द्वारा दिए
गए सभी रत्नों अथवा ताबीजों को
उसने तोड़-मोड़ कर फेंक दिया।
निशा और उसके पति विशाल को
यही चिंता खाए जाती थी कि वह
भविष्य में क्या करेगा। परिवार के
कारोबार में भी वह हाथ नहीं बंटा
सकता क्योंकि वह उसमंे सक्षम नहीं
है। वैसे उसका मस्तिष्क जरूरत से
ज्यादा तेज है। कंप्यूटर के खेल हों
या कोई इलेक्ट्राॅनिक वस्तु, वह सभी
कुछ बिना सिखाए सीख लेता है।
2006 में जब मयंक की जन्मपत्री
फ्यूचर पाॅइंट के आॅफिस में दिखाई
गई थी तो उसके माता-पिता को
यही आश्वासन दिया गया था कि
2011 के पश्चात शनि की अंतर्दशा
प्रारंभ होने पर मयंक की अपने
पिता के कार्य में रूचि जागृत हो
जाएगी और वह पढ़ने के साथ-साथ
उनके कार्य के प्रति भी ध्यान देने
लगेगा। और इसे मयंक के परिवार
की खुशकिस्मती ही कहेंगे कि जिस
बच्चे के भविष्य के लिए उसके माता
पिता इतने चिंतित थे वही अब सही
समय आने पर अपनी बी. काॅम की
पढ़ाई भी कर रहा है और पिता के
व्यवसाय में हाथ भी बंटा रहा है।
उसके माता-पिता अब बहुत खुश हैं
कि देर से ही सही पर भगवान ने
उनकी फरियाद सुनी और उनके पुत्र
का भविष्य सुधर गया।
क्या होगा मयंक का भविष्य, कैसे
वह अपने जीवन को संवारेगा, आइए,
जानें मयंक की कुंडली से।
मयंक का जन्म गंडमूल नक्षत्र अश्विनी
के प्रथम चरण में हुआ है जिसका
स्वामी केतु है। इस नक्षत्र में जन्मे
व्यक्ति का जीवन संघर्षशील होता
है। वह अस्थिर एवं चंचल प्रकृति का
होता है। अश्विनी के प्रथम चरण में
जन्मा व्यक्ति विशेष रूप से अपने
पिता के लिए कष्ट उत्पन्न करने
वाला होता है और उसके कारण
माता-पिता को परेशानियां उठानी
पड़ती हैं।
मयंक की कुंडली में लग्नेश बुध
अपनी नीच राशि में अष्टमेश शत्रु
मंगल के साथ सप्तम भाव में युति
बना रहा है जिसके कारण वह और
अधिक अशुभ हो गया है। चंूकि दोनों
ग्रह लग्न को पूर्ण दृष्टि से देख रहे
हंै, मयंक के स्वभाव में उद्दंडता एवं
अनुशासनहीनता विद्यमान है।
इस लग्न के लिए चतुर्थ के स्वामी गुरु
की भूमिका भी अहम है क्योंकि वह
विद्या का कारक होने के साथ-साथ
चतुर्थ का स्वामी भी है। शिक्षा का
विचार पंचम के साथ-साथ चतुर्थ
भाव से भी किया जाता है। गुरु
केन्द्राधिपति दोष से ग्रस्त होकर द्व
ादश भाव में बैठा है और अशुभ फल
दे रहा है, जिसकी वजह से मयंक
का मन पढ़ाई में नहीं लगा।
पंचम स्थान का स्वामी शनि स्वगृही
होकर वहीं स्थित है, अतः मयंक के
पास बुद्धि की कमी नहीं है परंतु वह
अपनी उद्दंडता के कारण अपनी
बुद्धि का उपयोग न तो सही ढंग
से और न ही सही कार्यों में कर पा
रहा है।
इस जन्म कुंडली में शनि ही शुभ
स्थिति में है तथा शुभ भाव और चंद्र
लग्न एवं सूर्य लग्न से कर्म स्थान
में स्थित है। इस ग्रह स्थिति के
फलस्वरूप मयंक को तकनीकी कार्यों
से, लोहे से अथवा पिता के व्यवसाय
से भी लाभ होने की संभावना है।