वृक्षों का वैदिक महत्व

वृक्षों का वैदिक महत्व  

शरद त्रिपाठी
व्यूस : 13421 | अप्रैल 2004

पश्चिम के लोग तथा नये पढ़े-लिखे भारतीय भारत देश में प्रचलित वृक्ष पूजा का बड़ा मजाक उड़ाते हैं, जबकि स्वयं पूरे विश्व को क्रिसमस के दिन क्रिसमस ट्री की आराधना करने के लिए प्रेरित करते हंै। भारतीयों को पेड़-पत्ते का पुजारी कहा जाता है। परंतु वृक्ष की पूजा हंसी की चीज नहीं है। तुलसी पूजन हर हिंदू घर में होता है। इस पौधे का स्वास्थ्य एवं मन पर कितना प्रभाव पड़ता है, इस संबंध में अभी तक नयी-नयी बातें मालूम हो रही है। लोक पालक विष्णु हैं। आयुर्वेद के आचार्य विष्णु हैं। धन्वंतरि को विष्णु का अवतार कहते हैं। सैकड़ों रोगों की दवा तथा घर की गंदगी भरी हवा को दूर करने वाला पौधा तुलसी है। तुलसी का विष्णु से विवाह एक प्रतीक मात्र है। इसी तरह से पीपल के पेड़ में वासुदेव का पूजन करते हैं। वासुदेव अजर एवं अमर हैं। संसार में पीपल ही एक मात्र ऐसा वृक्ष है, जिसमें कोई रोग नहीं लग सकता। कीड़े प्रत्येक पेड़ तथा पत्तों में लग सकते हैं, परंतु पीपल में नहीं। वट वृक्ष की दार्शनिक महिमा है। यह ऊध्र्व मूल है, यानी, इसकी जड़ ऊपर, शाखा नीचे को आती है। ब्रह्म ऊपर बैठा है। यह सृष्टि उसकी शाखा है, वट वृक्ष का प्रतीक है। उसके पूजन का बड़ा महत्व है। ज्येष्ठ के महीने में ”वट सावित्री“ का बड़ा पर्व होता है, जिसे ”बरगदाई“ भी कहते हैं। आंवले के सेवन से शरीर का कायाकल्प हो जाता है। इसके वृक्ष के नीचे बैठने से फेफड़े का रोग नहीं होता है, चर्म रोग नहीं होता है। कार्तिक के महीने में कच्चे आंवले तथा आंवले के वृक्ष का स्वास्थ्य के लिए विशेष महत्व है। इसलिए कार्तिक में आंवले के वृक्ष का पूजन, आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने की बड़ी पुरानी प्रथा इस देश में है। कार्तिक शुक्ल पक्ष में ”धात्री पूजन“ का विधान है। इस पूजन में आंवले के वृक्ष के नीचे विष्णु का पूजन होता है।

शंकर भगवान को बिल्व पत्र चढ़ाते हैं। शंकर ने हलाहल विष का पान समुद्र मंथन के समय किया था। अतएव उसकी गर्मी से वह तृप्त हैं। हर एक नशा विष होता है। किसी के लिए संखिया विष का काम करता है, किसी के लिये नशे का काम करता है। बहुत गहरा नशा करने वाले जन कुचला, संखिया सब कुछ हजम कर जाते हैं, तो वे नागिन पालते हैं और अपनी जीभ पर उससे रोज कटवा/डसवा लेते हैं। तब कुछ नशा जमता है। नशे को उतारने के लिए सबसे अच्छी दवा बिल्व (बेल) का पत्ता है। कितनी भी भांग चढ़ी हो, जरा सा बिल्व पत्र कुचल कर, उसका अर्क पिला देने से नशा खत्म हो जाता है। हलाहल विष का पान करने वाले शंकर के मस्तक पर, या शिव लिंग पर बिल्व पत्र चढ़ाने का नियम है। जो लोग बिल्व पत्र का गुण नहीं जानते हैं, वे उसका महत्व नहीं समझते हैं।

बिल्व पत्र तथा बिल्व वृक्ष का और भी महत्व है। नव रात्र में सप्तमी के दिन बिल्व पत्र से देवी को अभिमंत्रित करना चाहिए। रावण के वध तथा राम की सहायता के लिए ब्रह्मा ने बिल्व वृक्ष में देवी का आवाहन किया था। बिल्व वृक्ष भगवती का प्रतीक माना जाता है।

विजया दशमी की शाम को शमी वृक्ष के पूजन का विधान है। शास्त्र का वचन है कि ”शमी पाप की शामक है।“ अर्जुन को महाभारत में अस्त्र-शस्त्र शमी ने धारण कराये थे। राम को प्रिय बात शमी ने सुनायी थी। यात्रा को निर्विघ्न बनाने वाली शमी है, अतः पूज्य है। यात्रा के समय यात्री के हाथ में शमी की पत्ती देने की पुरानी प्रथा इस देश में है। गणेश पूजन में गणेश जी को दूर्वा (दूब) के साथ शमी भी चढ़ाते हैं। कुश भी पूजा के काम आता है। विधान है कि भाद्रपद माह के महीने की अमावस की काली रात्रि में कुश उखाड़ना चाहिए। शास्त्र का वचन है कि दर्भ ताजे होने के कारण श्राद्ध के योग्य होते हैं।

चैत्र मास, शुक्ल पक्ष, अष्टमी को पुनर्वसु नक्षत्र में जो लोग अशोक वृक्ष की 8 कली को (उसके अर्क को) पीते हैं, उनको कोई शोक नहीं होता। अवश्य ही इस अशोक कली का कोई आयुर्वेदिक महत्व होगा, जिससे रोग दोष नष्ट होता होगा।

अशोककलिकाश्चाष्टौ ये पिबन्ति पुनर्वसौ।
चैत्रमासे सितेऽष्टम्यां न ते शोकमवाप्नुयुः।।

दौना (दमनक) की पत्तियां मीठी सुगंध देती हैं। चैत्र मास में अपने इष्ट देवता को दौने की पत्ती चढ़ायी जाती है। दौने की महक से बल-वीर्य भी बढ़ता है। इसी लिए यह ऋषि, गंधर्व आदि को मोहित करने वाला तथा कामदेव की पत्नी रति के मुख से निकले हुए भाप की सुगंधि से युक्त कहा जाता है। कहते हैं कि इसमें कामदेव का वास है:

कामभस्मसमुदभूतरतिवाष्पपरिप्लुतः।
़षिगन्धर्वदेवादि-विमोहक नमोऽस्तु ते।।

आम के वृक्ष तथा आम के फूल, जिसे मंजरी कहते हैं, के पूजन की अनेक विधियां है। वसंत पंचमी के दिन इसका पूजन होता है।

चैत्र कृष्ण प्रतिपदा धुरड्डी के दिन मंजरी पान का विधान है। यदि मकान में कोई दोष हो, या आदमी की तीसरी शादी हो, या कन्या को विधवा होने का दोष (भय) हो, तो मदार (अर्क) के साथ विवाह करने का विधान है।

अस्तु किस समय, किस ऋतु में, किस नक्षत्र में, कौन सी जड़, कौन सा कंद, पौधा, वृक्ष लगावें, या खोदें, इसका बड़ा भारी शास्त्र है, विज्ञान है, जो कपोल कल्पित नहीं है।



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