पित्ताशय की पथरी

पित्ताशय की पथरी  

अविनाश सिंह
व्यूस : 20660 | फ़रवरी 2010

पित्ताशय की पथरी : आराम की जिंदगी का अभिशाप पित्ताशय की पथरी अधिकतर 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगेगेगों  में  होतेतेती है। इससे अभिप्र्राय यह नहीं है कि छोटी उम्र में यह रोगेगेग नहीं होता। खाने-पीने में अनदेखेखी करना और अनियमित आहार इस रोग की शुरुआत कर सकते हैैं। जाती है और भीतर से पित्त की निकासी पूर्ण नहीं हो पाती, जो गाढ़ा हो कर पथरी में बदल जाता है। गर्भ निरोधक : जो स्त्रियां लंबे समय से गर्भ निरोधक गोलियों का उपयोग करती हैं, उनमें पथरीे होने की संभावना दुगनी होती है। अन्य कारणों में पित्ताशय का कैंसर, छोटी आंत का कुछ हिस्सा निकालना, या लंबे समय तक दवाइयों का उपयोग, रक्त कोशिका संबंधी विकार पित्ताशय की पथरी उत्पन्न कर सकते हैं।

पित्ताशय की पथरी के लक्षण : इसका मुखय लक्षण पित्ताशय में मरोड़ उठना है, जो पित्ताशय का मुख अवरूद्ध हो जाने से होता है। दर्द की शुरुआत पेट के दाहिने ओर ऊपरी हिस्से में होती है। दर्द अचानक उठता है और धीरे-धीरे कम होता है। यह दौरा कुछ मिनटों से घंटों तक एक सा रहता है। दर्द की मात्रा पूरे शरीर में एक समान होती है और अक्सर भोजन के पश्चात दर्द उठता है। पथरी के पित्त नली में अटक जाने से कई बार सिर में चक्कर और तेज बुखार भी आ सकता है। अल्ट्रासाउंड के द्वारा पथरियों की संखया और स्थिति का पता चल जाता है।


जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें !


उपचार और बचाव : आजकल कई ऐसी दवाइयां उपलब्ध हैं, जिनके लगातार सेवन से पथरी घुल कर बाहर निकल जाती है। लेकिन यदि दवाओं या अन्य उपचार पद्धतियों से काम न चले, तो फिर शल्य क्रिया जरूरी हो जाती है। लेकिन यदि व्यक्ति अपना खान-पान सुधार कर शरीर का शोधन करे, जौ, मूंग के छिलके वाली दाल, चावल, परवल, तुरई, अनार, आंवला, मुनक्का, ग्वारपाठा, लौकी, करेला, जैतून का तेल आदि ले, भोजन सादा, बिना घी-तेल वाला तथा आसानी से पचने वाला हो और योगासन करे, तो पथरी होने का खतरा नहीं होता। मांसाहार, मद्यपान आदि न करने से पथरी के रोग से बचा जा सकता है। पित्त पथरी में होम्योपैथिक दवा बहुत असर करती है, जैसे कैल्केरिया कार्ब, 30, 200, बर्बेरस वल्गेरिस, मदर टिंचर, कोलेस्टरीन 30, 200, कोलोसिंध 30, नक्सवोमिका 30। ये सब दवाएं होम्योपैथिक विशेषज्ञ से जांच करवा कर लें। याद रखें, होम्योपैथिक दवाओं का गलत उपयोग नुकसान भी दे सकता है।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण : ज्योतिषीय दृष्टिकोण से पित्ताशय की पथरी सूर्य, मंगल और पंचम भाव के दूषित प्रभाव में रहने से होती है, जैसा कि चिकित्सा पद्धति के अनुसार, पित्ताशय की पथरी, पित्ताशय में पित्त के विकार के कारण होता है। काल पुरुष की कुंडली में पित्ताशय का नेतृत्व पंचम भाव करता है। सूर्य, मंगल पित्तकारक हैं, इसलिए जब सूर्य, मंगल और पंचम भाव गोचर और दशांतर दुष्प्रभावों में रह कर लग्न या लग्नेश को प्रभावित करते हैं, तो पित्ताशय में पित्त विकृत हो कर पथरी का रूप धारण कर लेता है।

विभिन्न लग्नों में पित्ताशय की पथरी :

मेष लग्न : सूर्य दशम भाव में राहु से दृष्ट या युक्त हो। मंगल षष्ठ भाव और शनि अष्टम भाव में हों, तो पित्ताशय की पथरी होती है।

वृष लग्न : लग्नेश सूर्य से अस्त और गुरु से दृष्ट हो। पंचमेश मंगल के साथ त्रिक भावों में राहु-केतु से दृष्ट या युक्त हो, तो पित्ताशय की पथरी देता है। मिथुन लग्न : पंचमेश षष्ठ भाव में लग्नेश से युक्त हो, सूर्य पंचम भाव में और मगं ल एकादश भाव म गरुु स यक्तु हा, ता पित्ताशय की पथरी दते  हं।

कर्क लग्न : सूर्य पंचम भाव में, मंगल अष्टम भाव में, शनि एकादश भाव में, लग्नेश चंद्र-गुरु से युक्त षष्ठ भाव में होने से पित्ताशय की पथरी होने की संभावना होती है।

सिंह लग्न : लग्नेश षष्ठ भाव में शनि से युक्त हो, शुक्र पंचम भाव में बुध से युक्त हो, बुध अस्त नहीं होना चाहिए और पंचमेश द्वादश भाव में अशुभ प्रभावों में होने से पित्ताशय की पथरी होती है।


अपनी कुंडली में सभी दोष की जानकारी पाएं कम्पलीट दोष रिपोर्ट में


कन्या लग्न : गुरु पंचम भाव में, मंगल दशम भाव में लग्नेश से युक्त हो और सूर्य एकादश भाव में शनि से दृष्ट हो, तो पित्ताशय की पथरी होती है।

तुला लग्न : पंचमेश और लग्नेश दोनों अष्टम भाव में हों, गुरु की दृष्टि पंचम भाव पर हो और लग्न में राहु या केतु हों, तो उपर्युक्त रोग को उत्पन्न करते हैं।

वृश्चिक लग्न : लग्नेश षष्ठ भाव में, बुध पंचम भाव में, सूर्य चतुर्थ, शुक्र लग्न में केतु से दृष्ट या युक्त हो, गुरु शनि से दृष्ट या युक्त हो, तो पित्ताशय की पथरी होती है।

धनु लग्न : मंगल जिन भावों में शनि से दृष्ट एवं युक्त हो, सूर्य तृतीय भाव में, शुक्र चतुर्थ भाव में राहु से युक्त या दृष्ट हो और लग्नेश अस्त हो, तो पथरी देते हैं।

मकर लग्न : गुरु लग्न में और तृतीय स्थान पर सूर्य से युक्त हो, पंचमेश षष्ठ भाव में मृतक अवस्था में हो और मंगल से दृष्ट या युक्त हो, तो पित्ताशय की पथरी देते हैं।

कुंभ लग्न : सूर्य एकादश भाव में, मंगल पंचम भाव में, पंचमेश अस्त हो, चंद्र लग्न में केतु से दृष्ट या युक्त हो, गुरु नवम भाव में हो, तो पित्ताशय की पथरी रोग होता है।

मीन लग्न : शनि पंचम भाव में चंद्र से युक्त और राहु या केतु से दृष्ट या युक्त, मंगल द्वितीय भाव में और लग्नेश अष्टम भाव में स्थित हो, तो पित्ताशय की पथरी होती है। उपर्युक्त सभी योग अपनी दशा-अंतर्दशा और गोचर स्थिति के अनुसार फल देते हैं। यह एक पुरुष जातक की कुंडली है, जिसको पित्ताशय की पथरी के लिए शल्य चिकित्सा करवानी पड़ी। इस कुंडली में लग्नेश सूर्य, तृतीय स्थान पर, नीच राशि के राहु से दृष्ट है।

पंचमेश गुरु अष्ट भाव में शनि से दृष्ट है। लग्न में बाधक ग्रह मंगल, केतु और शुक्र के साथ, जातक को शल्य चिकित्सा देता है। क्योंकि पंचमेश और पंचम भाव लग्नेश और लग्न सभी दूष्प्रभाव में हैं, इसलिए पित्ताशय की पथरी की शल्य क्रिया करवानी पड़ी। मंगल की दशा में शनि का अंतर और गुरु के प्रत्यंतर में जातक


अपनी कुंडली में राजयोगों की जानकारी पाएं बृहत कुंडली रिपोर्ट में




Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.