आज हमारी चर्चा का विषय
है पांच बार की विश्व
चैंपियन, ओलंपिक और
एशियाई खेलों की पदक
विजेता लौह महिला, महिला
बाॅक्सिंग को नई पहचान
देने वाली मंगते चुंगनईजंग
मैरीकाॅम
मैरी का जन्म बेहद गरीब मजदूर
परिवार में हुआ था। उनका परिवार
इतना गरीब था कि कई बार फीस न
जमा होने के कारण उन्हें क्लास से
बाहर खड़ा कर दिया जाता था जो
उनके लिए सबसे ज्यादा शर्मिंदगी के
पल होते थे।
मैरी का नाम उनकी नानी ने
चुंगनेईजंग रखा, चुंग यानी ऊंचा,
नेई यानी समृद्ध और जंग यानी
फुर्तीला। मैरी अपने नाम की ही
तरह बेहद फुर्तीली और हर काम में
बचपन से ही दक्ष थी। बचपन से ही
मैरी स्कूल की खेल प्रतिस्पर्धाओं में
अव्वल रहती थीं।
इम्फाल की साईं एकेडमी में उनकी
बाॅक्सिंग की कोचिंग शुरू हुई। कोच
थे एल- इबोमया सिंह ‘‘जिन्होंने मैरी
को देखकर कहा था कि लगता नहीं
कि तुम जैसी दुबली पतली लड़की
बाॅक्सर बन सकेगी।’’ लेकिन 15
दिनों में ही मैरी ने साबित कर दिया
कि बाॅक्सिंग स्वाभाविक तौर पर
उनके अंदर कूट- कूट कर भरी है।
जीवन की कहानी ग्रहों की जुबानी
उसी समय एक राज्य स्तरीय
प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीतकर
उन्होंने जीत का जो सफर शुरू
किया वो आज भी जारी है।
मंजिल दूर थी और जीवन की कठोर
बाधाएं सामने थीं लेकिन मैरी ने
अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से हर चुनौती
का डटकर सामना किया और खुद
को सर्वश्रेष्ठ साबित किया।
आईये जानते हैं कैसे ग्रहों ने बनाया
एक गरीब मजदूर परिवार में जन्मी
लड़की को विश्व चैंपियन।
मैरी काॅम का लग्न कुंभ है। लग्न में
सप्तमेश सूर्य विराजमान है। लग्नेश
शनि नवम भाव में अपनी उच्च राशि
तुला में विराजमान है और षड्बल
में शुक्र के बाद दूसरे स्थान पर है।
शनि राहु के नक्षत्र में और शनि के
ही उपनक्षत्र में है साथ ही वक्री भी
है।
लग्नेश शनि जो कि उच्च के हैं,
के प्रभाववश वे अत्यंत मेहनती और
कर्मठ बनीं।
मैरी काॅम
शारीरिक दृष्टि से मैरी में गजब की
शक्ति है। बचपन में जब मैरी के
हमउम्र बच्चे खेल रहे होते थे तब
मैरी अपने पिता के साथ खेतों में
काम करती थी।
वह हल चलाती, बीज बोती, जोंक
और सांप जैसे कीड़े मकोड़ों का
सामना करती थीं। मैरी को यह
साहस मिला पराक्रमेश मंगल से जो
कि द्वितीय भाव में बैठकर लग्नेश
शनि को अष्टम दृष्टि से देख रहे हैं।
विशेष बात यह है कि मंगल शनि के
ही नक्षत्र में हैं और षड्बल में पहले
स्थान पर है।
शनि व्यक्ति को कर्मठ बनाते हैं और
मंगल शरीर को मजबूती प्रदान करते
हैं। ये दोनों ही गुण मैरी को प्राप्त
हुए हैं जिसके कारण मैरी को लौह
महिला कहा जाता है।
शारीरिक क्षमताओं के बाद बात करते
हैं मानसिक क्षमता की जिसके बिना
कोई भी व्यक्ति कुछ भी नहीं कर
सकता है।
लग्नेश शनि राहु के नक्षत्र में हैं, राहु
अपने ही नक्षत्र में और अपने ही उप
नक्षत्र में हैं।
मन के कारक चंद्रमा सूर्य के नक्षत्र
में हैं और षष्ठेश होकर अष्टम भाव में
बैठकर विपरीत राजयोग बना रहे हैं।
लग्न में सूर्य स्थित है जो कि राहु
के नक्षत्र में है। राहु पंचम भाव में
बैठकर लग्न और लग्नेश और चंद्रमा
के नक्षत्राधिपति सूर्य को पूर्ण दृष्टि
दे रहे हैं।
त्रिकोण भाव में यदि राहु अकेले स्थित
होते हैं तो निश्चित ही योगकारक
ग्रह का प्रभाव देते हैं। चूंकि मैरी की
कुंडली में राहु शुभ है और शरीर व
मन दोनों को ही प्रभावित कर रहे हैं
इसी कारण उन्होंने एक ऐसे सपने
को चुना जिस सपने की उड़ान के
लिए उनके पास पंख बेशक नहीं थे
लेकिन इरादे मजबूत थे और अपने
सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने
बचपन से ही कड़ी मेहनत की और
खुद को एक मजबूत शख्सियत
प्रदान की।
मैरी की कुंडली में चतुर्थेश व नवमेश
दोनों ही शुक्र हैं। शुक्र द्वितीय भाव
में अर्थात चतुर्थ से लाभ भाव और
नवम से षष्ठ भाव में अपनी उच्च
राशि मीन में मंगल से युत होकर
स्थित है।
शुक्र लग्नेश शनि के नक्षत्र और राहु
के उपनक्षत्र में स्थित है।
शुक्र पर अष्टमस्थ चंद्रमा जो षष्ठेश
होकर विपरीत राजयोग बना रहे हैं,
की पूर्ण दृष्टि पड़ रही है।
यद्यपि मैरी का जन्म गरीब मजदूर
परिवार में हुआ था फिर भी मैरी की
कुंडली में ग्रहीय संयोजन कुछ ऐसा
है कि मैरी को हमेशा जटिल बाधाओं
को पार करने का रास्ता मिलता रहा।
जन्म के समय मैरी की सूर्य की
दशा 6 माह शेष थी। उसके बाद
प्रारंभ हुई विपरीत राजयोग बनाने
वाले षष्ठेश चंद्रमा की दशा जो कि
अष्टम भाव में बैठकर पराक्रमेश व
कर्मेश मंगल तथा चतुर्थेश व नवमेश
शुक्र को पूर्ण दृष्टि द्वारा पूर्णरूपेण
प्रभावित कर रहे हैं।
मैरी के जीवन के चंद्र दशा के 10
वर्ष शायद सबसे ज्यादा कष्टकारी
और अभाव ग्रस्त रहे होंगे। लेकिन
जिस तरह आग में तपकर सोना
निखरता है उसी तरह इन 10 वर्षों
में मैरी को जीवन के सर्वाधिक कठिन
अनुभव प्राप्त हुए।
1999 में वे अपनी मां के साथ साईं
एकेडमी में एडमिशन लेने इम्फाल
गईं। उन्हें एडमिशन तो नहीं मिला
किंतु कोचिंग की अनुमति मिल गई।
अब मंगल की महादशा चल रही थी।
यहां दो साल मैरी ने अथक मेहनत
की। सुबह शाम एकेडमी जाती, दिन
में स्कूल जाती और रात में लौटकर
खाना बनाती। मैरी को जेब खर्च
मिलता था 50 रु.। कभी-कभी पैसे
भी खत्म हो जाते थे और खाने का
सामान भी।
वर्ष 2000 में प्रारंभ हुई राहु की
महादशा। राहु बैठे हैं पंचम भाव में
अपने ही नक्षत्र और अपने ही उप
नक्षत्र में। राहु की लग्न, लग्नेश,
लाभ भाव व सप्तमेश पर पूर्ण दृष्टि
है। राहु पर मंगल की पूर्ण दृष्टि है।
राहु की महादशा में मैरी को अपने
अथक परिश्रम का फल मिलना प्रारंभ
हुआ। मैरी ने 2001 में प्रथम गोल्ड
मेडल जीता।
उसी समय मैरी को भारतीय खेल
प्राधिकरण ने बाॅक्सिंग की ट्रेनिंग के
लिए दिल्ली भेज दिया। वहां उनकी
कड़ी ट्रेनिंग होती थी। उन्हें न ढंग
से हिंदी आती थी, न ढंग से अंग्रेजी
आती थी। अकेलापन उन्हें बहुत
खराब लगता था।
यहां उनकी मुलाकात हुई ओनलेर से
जो कि कोम-रेम यूनियन के अध्यक्ष
थे। यह यूनियन दिल्ली में रहकर
पढ़ाई करने वाले नाॅर्थ ईस्ट के छात्रों
का ध्यान रखती थी, उनकी मदद
करती थी।
ओनलेर मैरी से भी इसी उद्देश्य
से मिले थे कि उनकी यूनियन कोम
जनजाति की लड़की की मदद के
लिए सदैव तैयार है।
ओनलेर ने यह साबित किया मैरी का
पासपोर्ट बनवाकर। एक ट्रेन यात्रा
के दौरान मैरी का सामान चोरी चला
गया जिसमें उनका पासपोर्ट भी था।
मणिपुर में पासपोर्ट दोबारा बनवाने
से लेकर इसे मैरी तक पहुंचाने में
ओनलेर ने दिन-रात एक कर दिये।
ओनलेर के इस प्रयास ने मैरी
और ओनलेर की दोस्ती को काफी
मजबूती प्रदान की। धीरे-धीरे यह
दोस्ती विवाह में परिवर्तित हो गई।
यह सब ग्रहों का पूर्व नियोजित खेल
था। लग्न में सप्तमेश सूर्य स्थित है।
पंचम भावस्थ राहु की लग्न, लग्नेश,
सप्तमेश सभी पर पूर्ण दृष्टि है।
सप्तमेश सूर्य बैठे हैं राहु के नक्षत्र,
भाग्येश शुक्र के उपनक्षत्र में।
लग्न, पंचम, सप्तम का योग सदैव
प्रेम विवाह का द्योतक रहा है। उनका
विवाह रा./बु. की दशा में हुआ।
मैरी और ओनलेर का पारिवारिक
सहमति से परंपरागत ढंग से विवाह
हुआ।
बैंकाॅक में एशियाई चैंपियनशिप में
रजत पदक जीतने के बाद मैरी को
अमेरिका में होने वाली वल्र्ड बाॅक्सिंग
चैंपियनशिप में जाना था।
वल्र्ड चैंपियनशिप में उन्हें रजत
पदक प्राप्त हुआ। इस रजत पदक
ने उनकी बहुत सी समस्याओं का
समाधान कर दिया।
अगली वल्र्ड चैंपियनशिप में उन्होंने
स्वर्ण पदक जीता। जब वे दोबारा
वल्र्ड चैंपियन बनीं तब राज्य
सरकार ने सब इंस्पेक्टर की नौकरी
का प्रस्ताव दिया और उन्होंने इसे
स्वीकार किया।
अब उनके जीवन के अभाव खत्म हो
गये और स्थितियां बेहतर होती जा
रही थीं। वर्ष 2010 तक वे पांच बार
वल्र्ड चैंपियन बन चुकी थीं।
2014 में उन्होंने एशियाई खेलों में
स्वर्ण पदक जीतकर यह साबित
किया कि अभी भी उनमें दम है। अब
वे 2016 में ब्राजील ओलंपिक में भाग
लेना चाहती हैं।
प्रख्यात फिल्म निर्माता संजय लीला
भंसाली ने मैरी काॅम के जीवन पर
प्रियंका चोपड़ा अभिनीत उत्कृष्ट
फिल्म बनाकर दुनिया को मैरी काॅम
के वास्तविक जीवन से परिचित
कराया। लोगों को यह बताया कि
इस सफल खिलाड़ी के पीछे कितना
अथक परिश्रम व दृढ़ इच्छा शक्ति
छिपी है।
2018 तक राहु की महादशा चलेगी।
तब तक मैरी का विजयी अभियान
जारी रहेगा।
उसके बाद बृहस्पति की महादशा
प्रारंभ होगी। बृहस्पति दशम भाव
में शनि के नक्षत्र और अपने ही
उपनक्षत्र में बैठे हैं। दशम भाव कर्म
क्षेत्र है और बृहस्पति गुरु है। मैरी
नहीं चाहतीं कि रिंग में आने के लिए
किसी गरीब बच्चे को उनकी तरह
संघर्ष करना पड़े इसीलिए उन्होंने
मैरी काॅम बाॅक्सिंग एकेडमी बनाई
है।
संभव है कि भविष्य में मैरी स्वयं
ही बाॅक्सिंग का प्रशिक्षण देने लगंे
और अपनी ही तरह अगली मैरी काॅम
बनाने का अपना सपना पूरा करे।
अब बात करते हैं मैरी काॅम की
कुंडली में बनने वाले कुछ विशिष्ट
योगों की ---
हर्ष योग: यदि जन्मपत्रिका में छठा
भाव या षष्ठेश अशुभ ग्रह से युत
या दृष्ट हो तथा षष्ठेश दुःस्थान में
निवास करे तो हर्ष योग होता है।
मैरीकाॅम की कुंडली में षष्ठ भाव पर
अष्टमेश बुध जो कि द्वादश भाव में
बैठे हैं, की दृष्टि है तथा षष्ठेश चंद्रमा
अष्टम में बैठे हैं जिनपर तृतीयेश
मंगल की पूर्ण दृष्टि है और षष्ठेश
अष्टम भाव में बैठे हैं।
इस योग में जन्मे जातक भाग्यवान
दृढ़शरीर वाले, शत्रुजित, प्रसिद्ध, धन,
पुत्र, मित्र से सुखी व यशस्वी होते
हैं।
कुंडली में लग्न या चंद्रमा से दशम में
कोई ग्रह हो तो अमल योग होता है।
मैरी की कुंडली में लग्न से दशम
भाव में धनेश विराजमान है।
उत्तम राजयोग
यदि (क) द्वितीय, नवम, एकादश
इन तीनों के स्वामियों में से एक भी
ग्रह चंद्रमा से केंद्र में हो और (ख)
द्वितीय, पंचम व एकादश इनमें से
किसी का मालिक बृहस्पति हो, यदि
उपरोक्त दोनों बातें घटित होती हांे
तो उत्तम राजयोग होता है।
मैरी काॅम की कुंडली में चंद्रमा से
सप्तम शुक्र जो कि नवमेश है स्थित
है और द्वितीय व एकादश भाव के
स्वामी बृहस्पति हैं।
इसके अतिरिक्त भी मैरीकाॅम की
कुंडली में अनेक महत्वपूर्ण योग बन
रहे हैं जिसके फलस्वरूप मजदूर
परिवार में जन्म लेने के बाद भी
ऐसी परिस्थितियां प्राप्त हुईं जिन्होंने
इन्हें एक मजबूत शख्सियत प्रदान
की और सफल बनाया। आज इनका
जीवन पूरी तरह बदल चुका है।
इनके पास सारी सुख-सुविधाएं हैं
लेकिन मैरी आज भी नहीं बदलीं।
जब ये घर पर होती हैं तो घर के
सारे काम स्वयं करती हैं। अपने
बच्चों व पति के साथ अपने मुश्किल
दिनों की खट्टी-मीठी यादों में खो
जाती ह