श्री कृष्ण जन्मांग

श्री कृष्ण जन्मांग  

आभा बंसल
व्यूस : 2594 | अप्रैल 2004

यह सर्वविदित है कि श्री कृष्ण का जन्म भाद्र कृष्ण अष्टमी को मथुरा में हुआ। जैसा ग्रंथों में विदित है, विक्रमादित्य संवत् 2061में श्री कृष्ण के जन्म से 5230 वर्ष बीत चुके हैं। ज्योतिष कंप्यूटर प्रोग्राम लियो गोल्ड एवं पाम कंप्यूटर प्रोग्राम लियो पाम द्वारा गणित करने पर श्री कृष्ण का जन्म काल 21 जुलाई 3228 ईसा पूर्व प्राप्त होता है। उनकी जन्मकुंडली, नवांश कुंडली एवं ग्रह स्पष्ट निम्न आते हैं। जन्म के समय अयनांश -480 17’59’’ आता है एवं दशा का भोग्य काल चंद्रमा 3 वर्ष 9 माह 28 दिन आता है।

बंगलूर के ज्योतिर्विद श्री बी.वी रमन ने अपनी पुस्तक 300 Important Combinations (300 प्रमुख योग) में भी श्री कृष्ण का जन्मांग दिया है। उनके अनुसार श्री कृष्ण का जन्म 3228 ई.पू. में वृष लग्न में हुआ एवं चंद्र की भोग्य दशा 4 साल 2 माह 21 दिन थी। उनके द्वारा दिया गया जन्मांग कंप्यूटर द्वारा बनाये गये जन्मांग से पूर्णतः मिलता है। नवांश कुंडली भी अधिकांशतः मिलती है, लेकिन, श्री रमण के अनुसार, नवांश लग्न मिथुन आता है, जबकि कंप्यूटर द्वारा कर्क नवांश आता है। नवांश में शुक्र एवं शनि में भी थोड़ा सा अंतर आता है।

shri-krishna-janmang
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यह अंतर गणना के मतभेद के कारण हो सकता है, लेकिन जन्म तिथि में भेद के कारण कदापि नहीं। ज्योतिष रत्नाकर पुस्तक में भी श्री कृष्ण का जन्मांग दिया हुआ है। लेकिन यह कंप्यूटर द्वारा निर्मित जन्मांग से काफी भिन्न है। इस जन्मांग में मंगल सप्तम में एवं शनि दशम स्थान में दर्शाये गये हैं। साथ ही गुरु पंचम में बुध के साथ एवं राहु षष्ठ स्थान में दिखाये गये हैं। कुछ अन्य ग्रंथों के अनुसार श्री कृष्ण के जन्मांग में गुरु उच्च का कर्क में एवं शनि उच्च का षष्ठ में दिखा कर, बुध और चंद्र सहित, 4 ग्रह उच्च के दर्शाये गये हैं। यह सब ग्रह स्थितियां शायद किसी गणित पर आधारित न हो कर काव्यानुसार पत्री को बलवान बनाने के लिए दी गयी हंै। अतः उनकी सत्यता पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

श्री कृष्ण ने जन्म के पश्चात लगभग 125 वर्ष 7 माह पृथ्वी पर राज्य किया एवं चैत्र शुक्ल प्रतिपदा शुक्रवार को 3102 ई.पू. में अपना शरीर त्यागा। उसी दिन, द्वापर युग समाप्त हो कर, कलि युग का प्रारंभ हुआ और आज कलि युग के 5105 वर्ष पूर्ण हो कर 5106 वां वर्ष चल रहा है। ज्योतिष रत्नाकर पुस्तक के अनुसार चैत्र प्रतिपदा शुक्रवार, तदनुसार 18 फरवरी 3102 ई.पू. को कलि युग का प्रारंभ हुआ।


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ग्रह स्पष्ट

लग्न वृष 20: 03: 59 गुरु सिंह 28: 12: 32
सूर्य सिंह 18: 08: 53 शुक्र कर्क 15: 06: 31
चंद्र वृष 18: 13: 49 शनि वृश्चिक 23: 37: 37
मंगल कर्क 02: 52: 00 राहु कर्क 15: 04: 20
बुध कन्या 01: 52: 38 केतु मकर 15: 04: 20

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कंप्यूटर द्वारा कलि युग के प्रारंभ होने की गणना करने पर यह ज्ञात होता है कि इसका प्रारंभ 18 फरवरी 3102 ई.पू. शुक्रवार को ही हुआ। अन्य पुस्तकों में भी कलि युग का प्रारंभ इसी दिन दिया गया है। अतः कलि युग के प्रारंभ होने की गणना में कोई मतभेद नहीं है। यदि कृष्ण की आयु को कलियुग के प्रारंभ काल से घटा कर जन्म तारीख निकाली जाए, तो उससे भी जन्म वर्ष 3228 ई.पू. ही आता है। अतः श्री कृष्ण के जन्म काल में कोई मतभेद की गुंजाइश नहीं है और उनकी जन्म तिथि अवश्य ही 21 जुलाई 3228 ई. पू. है।

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कुछ पंचांगों में श्री कृष्ण का जन्म कलि युग से 135 वर्ष पूर्व दर्शित किया गया है, अर्थात् आज से 5240 बीतते दिखाये गये हैं। यह एक भूल प्रतीत होती है, क्योंकि इस गणना पर बनायी गयी पत्री श्री कृष्ण की दी गयी पत्रियों से कुछ भी मेल नहीं खाती है। श्री कृष्ण का जन्म आज से 5230 वर्ष पूर्व ही हुआ एवं सन् 2004 की जन्माष्टमी के दिन 5231 वर्ष पूर्ण हो कर 5232वां वर्ष आरंभ होगा। श्री कृष्ण की पत्री का विवेचन करें, तो लग्न का चंद्र उनको आकर्षण प्रदान करता है। गुरु और बुध की पंचम में युति एवं बुध का उच्च होना उनको वाक चातुर्य एवं बौद्धिक विलक्षणता प्रदान करता है। शनि सप्तम में बहुभार्या योग देता है। तीसरे भाव में राहु, मंगल और शुक्र का योग जीवन को संघर्षमय एवं युद्ध में लिप्त रखता है। नवम भाव में मकर का केतु तेजस्वी, प्रसिद्ध एवं जन्म स्थान से दूर रहने वाला बनाता है। जन्मांग के फल श्री कृष्ण के जन्मफल से पूर्णतया मिलते नजर आते हैं। अतः निःसंदेह कंप्यूटर द्वारा दी गई कुंडली ही श्री कृष्ण की जन्म कुंडली है।


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