एडोल्फ हिटलर प्रखर वक्ता
थे, जब वे बोलते थे तो लोग
सुध-बुध खोकर सुनते थे। उनका
कहना था कि यदि जर्मनी में उनकी
सरकार बनी तो मजदूरों को दिनभर
जी तोड़ मेहनत करने के बाद भूखा
नहीं सोना पड़ेगा पर असलियत में
जो हुआ वो सबके सामने है।
हिटलर की मौत के इतने साल बाद
भी हम हिटलर से निजात नहीं पा
सके हैं। जहां तहां शासक प्रशासक
जनता को सपनों की दुनिया दिखाते
हुए चुपके से उसी जनता को तरीकों
व दमनकारी साजिशों से प्रताड़ित
करते हैं वहां आज भी रक्तबीज की
तरह हिटलर फिर जी उठता है।
हिटलर जैसा न कोई हुआ न कोई
होगा और शायद ही कोई हिटलर
जैसा बनना चाहेगा। आइये जानते
हैं हिटलर को ग्रहों के नजरिये से
क्योंकि सितारों का ही खेल है कि
कोई मदर टेरेसा बनता है और कोई
‘‘एडोल्फ हिटलर’।
हिटलर की अग्नि तत्व की मेष राशि
है जिसका स्वामी मंगल स्वयं अग्नि
तत्व का ग्रह है।
लग्न में मंगल जो कि अष्टमेश भी है
के साथ धनेश व सप्तमेश दोनों ही
मारक भाव के स्वामी शुक्र हैं और
तृतीयेश व षष्ठेश बुध तथा पंचमेश
सूर्य भी स्थित है।
हिटलर बचपन से ही जिद्दी, लड़ाकू,
पढ़ाई के प्रति उदासीन बच्चा था।
अपने पिता से उसकी सदैव से
ही अनबन रही। उसके पिता उसे
सुधारने के लिए डांटते -फटकारते
और कभी-कभी मारते पीटते भी थे।
पिता के ऐसे व्यवहार ने उसमें एक
ऐसी शख्सियत को गढ़ना शुरू किया
कि वह जब कोई जिद ठान लेता
तो उसे उचित साबित करने कुछ न
कुछ तर्क जुटा ही लेता था।
ग्रहीय स्थिति को देखकर हमें यह
ज्ञात होता है कि लग्न जो कि
व्यक्तित्व को दर्शाती है अत्यंत ही
क्रूर व अशुभ प्रभाव में है।
पंचमेश सूर्य जो कि पृथकतावादी ग्रह
है लग्न में अपनी राशि में स्थित है
जिसके प्रभाव से लग्नेश मंगल अस्त
हो गए हैं।
बुध व शुक्र दोनों ही दो-दो अशुभ
भावों के स्वामी होकर लग्न व लग्नेश
के साथ ही पंचमेश सूर्य को भी
प्रभावित कर रहे हैं।
अशुभ ग्रहों के प्रभाववश ही हिटलर
अनुशासनहीन बन गया। पंचमेश
यद्यपि अपनी उच्च राशि में है
किंतु क्रूर व अशुभ प्रभाव के कारण
हिटलर ने अपनी बौद्धिक क्षमता
को नकारात्मक व विध्वंसक कार्यों
में लगाया। हिटलर का जन्म मूल
नक्षत्र में हुआ था। मूल नक्षत्र में जन्मे
जातक उद्दंड स्वभाव के होते हैं।
हिटलर इसका उदाहरण है।
हिटलर के पिता एल्वाइस हिटलर
अनुशासनप्रिय व्यक्ति थे। वे एक सीमा
शुल्क अधिकारी थे और चाहते थे कि
उनका बेटा भी इतनी काबिलियत
हासिल करे कि आॅस्ट्रियाई सरकार
में माकूल मुलाजिम बन सके।
उनकी तमाम कोशिशों के बाद भी
हिटलर का तकनीकी शिक्षा में मन
नहीं लगा और जब हिटलर महज
चैदह वर्ष का था तभी पिता स्वर्ग
सिधार गए।
पिता के जाने के बाद हिटलर की मां
ने भी अपने पति के अरमानों को पूरा
करने की कोशिश की पर हिटलर का
आचरण बद से बदतर होता गया।
मात्र 19 वर्ष की उम्र में ही हिटलर
ने अपनी मां को भी खो दिया। मां
की मृत्यु के बाद हिटलर भावनात्मक
रूप से काफी टूट चुका था।
हिटलर की कुंडली में नवमेश
बृहस्पति व्ययेश भी है चतुर्थेश चंद्रमा
नवम भाव में नवमेश बृहस्पति से युत
होकर चतुर्थ भाव से षडाष्टक योग
बनाए हुए है।
नवांश कुंडली में चतुर्थेश व नवमेश
जो कि माता व पिता का प्रतिनिधित्व
करते हैं दोनों के स्वामी मंगल हैं
और चतुर्थ भाव में बैठकर नवम भाव
से षडाष्टक बना रहे हैं।
नवांश में हिटलर के लग्नेश सूर्य
का भी मंगल से षडाष्टक योग बना
है। यही कारण है कि हिटलर की
विचारधारा माता-पिता के विपरीत
थी।
नवम भाव से दशम, नवम व एकादश
अर्थात षष्ठ, पंचम व सप्तम के स्वामी
क्रमशः सूर्य, बुध, शुक्र की युति लग्न
में अर्थात नवम से पंचम भाव में
पंचमेश के साथ है। यही कारण है
कि हिटलर के पिता अनुशासन प्रिय
शिक्षा सम्पन्न संभ्रांत व्यक्ति थे तथा
सरकारी कर्मचारी और सम्मानित
जीवन व्यतीत कर रहे थे।
टिप्पणी: ‘‘हिटलर का जन्म केतु
की महादशा में हुआ जो कि तीन
वर्ष शेष थी। उसके बाद शुक्र की
महादशा प्रारंभ हुई।
शुक्र द्वितीयेश व सप्तमेश है। द्वितीय
भाव चतुर्थ से एकादश व सप्तम भाव
नवम से एकादश है।
एकादश भाव छठे से छठा भाव
होता है और इनके स्वामी अपनी
दशांतर्दशा में मृत्यु अथवा मृत्युतुल्य
कष्ट दे सकते हैं।’’
हिटलर की कुंडली में चतुर्थेश व
नवमेश दोनों की ही युति नवम भाव
में है।
शुक्र की दशा के प्रारंभ होते ही पिता
से हिटलर के संबंध तेजी से बिगड़ने
शुरू हुए। पिता ने तकनीकी शिक्षा
हेतु हिटलर को रियालशूल में भर्ती
किया लेकिन हिटलर पढ़ाई के प्रति
उदासीन ही रहा। कुछ वर्ष पश्चात्
उसके पिता का देहांत हो गया।
हिटलर की बदतमीजियों की वजह
से उसे रियालशूल से निष्कासित
कर दिया गया। 19 वर्ष की आयु
में बीमार मां ने भी हिटलर का साथ
छोड़ दिया।
शुक्र की महादशा माता-पिता के लिए
तो अशुभ रही ही साथ ही हिटलर
के लिए दो मारक भाव के स्वामी की
दशा थी यही कारण है कि शुक्र की
20 वर्ष की दशा में हिटलर ने अपने
जीवन के सबसे बुरे दिन देखे। यहां
तक कि कई दिनों तक हिटलर को
भूखा भी रहना पड़ा। द्वितीय भाव धन
भाव भी है तो धनेश की दशा में धन
लाभ भी होना चाहिए। किंतु हिटलर
की कुंडली में धनेश शुक्र अपने से
द्वादश भाव में वक्री होकर बैठे हैं।
यही कारण है कि शुक्र की दशा में
हिटलर को कुटुंब, धन आदि का
कोई भी सुख प्राप्त नहीं हुआ और
वह घर से बेघर हो गया।
शुक्र के प्रभाववश ही हिटलर
चित्रकारी के प्रति आकर्षित था किंतु
शुक्र के वक्रत्व ने उसे चित्रकारी के
प्रति आकर्षित तो किया किंतु उसको
प्रतिभा संपन्न नहीं बनने दिया। इसी
कारण वह वियेना के एकेडमी आॅफ
फाइन आर्ट्स की प्रवेश परीक्षा कई
प्रयासों के बाद भी पास नहीं कर
सका।
हिटलर की तकनीकी शिक्षा न के
बराबर हुई थी। अपने पिता से तो
हिटलर की कभी नहीं बनी किंतु पिता
द्वारा जमा की गई पत्र-पत्रिकाओं व
पुस्तकों से हिटलर का जब साबका
पड़ा तब उसके अंदर इतिहास के
बारे में एक खास तरह की समझदारी
विकसित होने लगी।
1870-71 में हुए फ्रांस और जर्मनी
के युद्ध के बारे में जानने के बाद
हिटलर की युद्ध और सैन्य मामलों
के प्रति रूचि बढ़ने लगी।
पंचमेश सूर्य लग्नेश व अष्टमेश मंगल
से युत होकर लग्न में अपनी उच्च
राशि में स्थित है। सूर्य व मंगल पर
कर्मेश व लाभेश शनि की पूर्ण दृष्टि
है।
नवांश लग्न में लग्नेश सूर्य एकादश
भाव से पंचम को पूर्ण दृष्टि दे रहे
हैं। पंचमेश बृहस्पति लग्न में हैं तथा
मंगल के साथ चतुर्थ भाव में कर्मेश
स्थित हैं और मंगल की अष्टम दृष्टि
लग्नेश सूर्य पर है। दशमांश लग्न में
सूर्य दशम भाव में है, लग्न कुंडली
के कर्मेश शनि अपनी उच्च राशि से
दशमांश के कर्मेश बुध को पूर्ण दृष्टि
दे रहे हैं। यहां भी मंगल की पूर्ण
दृष्टि सूर्य पर है। साथ ही बुध मंगल
की ही राशि में हैं। सूर्य लग्नेश बुध
की ही मिथुन राशि में है।
कहने का तात्पर्य यह है कि लग्न,
नवांश व दशमांश तीनों ही लग्नों में
सूर्य, मंगल, शनि तीनों ही कहीं न
कहीं संबंध बना रहे हैं साथ ही इन
तीनों का ही लग्न, पंचम व दशम
भावों से संबंध बन रहा है।
सूर्य राजा, मंगल सेनापति, शनि सेना
तथा लग्न व्यक्तित्व, पंचम बुद्धि,
दशम कर्मक्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते
हैं साथ ही हिटलर की कुंडली में
तीनों ही ग्रह षड्बल में बली होने के
साथ ही लग्न, पंचम व दशम को भी
प्रभावित कर रहे हैं।
यही कारण है कि हिटलर की रूचि
शासक वर्ग, सेना व युद्ध के प्रति
दिन प्रति दिन बढ़ती ही जा रही थी।
किंतु व्ययेश बृहस्पति की पंचम भाव
व लग्न पर पूर्ण दृष्टि तथा मारकेश
शुक्र का लग्न व अधिकांश ग्रहों पर
प्रभाव के कारण हिटलर की बौद्धिक
क्षमता ने नकारात्मक व विध्वंसकारी
विचारों व परिस्थितियों को उत्पन्न
करने में योगदान दिया।
अपनी इच्छाओं को मूर्त रूप देने के
लिए हिटलर जर्मन सेना की बवेरियन
रेजीमेंट का हिस्सा बन गया। फौज
में हिटलर का भाग्य बहुत अच्छा
रहा। कभी-कभी पूरी सेना को क्षति
पहुंचती थी किंतु हिटलर सुरक्षित
बच जाता था। कारण स्पष्ट है कि
भाग्येश बृहस्पति व्ययेश होने के साथ
ही भाग्येश होकर लग्न व लग्नेश
तथा पंचमेश सभी को बल प्रदान कर
रहे हैं।
1912 से 1918 तक सूर्य की महादशा
में हिटलर को अनेक मौके मिले
जिससे वह जर्मन सेना में अपनी
मजबूत जगह बनाने में कामयाब हो
गया।
उसके बाद प्रारंभ हुई चंद्रमा की
महादशा (चतुर्थेश अर्थात पंचम से
द्वादश भाव के स्वामी की महादशा)।
1918 के अंत तक युद्ध खत्म हो चुका
था। वर्साय के समझौते ने हिटलर
समेत तमाम जर्मन राष्ट्रवादियों को
अपमानित सा कर छोड़ दिया।
हिटलर को जर्मन श्रमिक पार्टी की
सदस्यता मिल गई।
हिटलर के भड़काऊ भाषणों के चलते
पार्टी का जनाधार बढ़ने लगा। यही
पार्टी आगे चलकर पूरी दुनिया में
हिटलर की नाजी पार्टी के रूप में
कुख्यात हुई।
हिटलर की कुंडली में वाणी का
कारक ग्रह शुक्र है। शुक्र षड्बल में
तृतीय स्थान पर है और अपने नक्षत्र
में तथा तृतीयेश व षष्ठेश बुध के उन
क्षेत्र में है।
शुक्र के बलवान होने की वजह से ही
हिटलर को अद्भुत वाक्शक्ति प्राप्त
थी। वह जब बोलता था तो लोग
मंत्र-मुग्ध होकर सुनते थे।
किंतु शुक्र का वज्रत्व उसके भाषणों
को विध्वंस रूप प्रदान करने वाला
बना।
चतुर्थ भाव प्रजा का भाव है, चतुर्थ
भाव में कर्मेश शनि बैठे हैं, पंचमेश
सूर्य लग्न में लग्नेश के साथ उच्चस्थ
स्थिति में विराजमान हैं। शनि का पूर्ण
प्रभाव लग्न, लग्नेश, पंचमेश, षष्ठ व
दशम स्थान पर है। यही कारण है
कि हिटलर को सरकारी नौकरियां
प्राप्त हुई और वह राजनीतिक क्षेत्र में
भी अपना प्रभुत्व जमाने में कामयाब
हुआ।
2 अगस्त 1934 को राष्ट्रपति हिंडेनबर्ग
का देहांत हो गया। हिटलर ने
चुनाव कराने की बजाय खुद को ही
फ्यूरर घोषित कर दिया। देश अपनी
खूबसूरत संस्कृति को भूलकर एक
जड़ पुलिसिया संस्कृति का गुलाम
बनकर रह गया।
1937 में जब राहु की महादशा
प्रारंभ हो चुकी थी हिटलर ने द्वितीय
विश्वयुद्ध के लिए अपनी सेना को
तैयार करना शुरू कर दिया।
1935 के बाद प्रारंभ हुई राहु की
महादशा ने हिटलर जो कि अपनी
नजरों में सफलता की बुलंदियों पर
पहुंच चुका था धीरे-धीरे पराजय के
धरातल पर लाना प्रारंभ कर दिया
था।
20 अप्रैल 1945 को हिटलर ने अपना
छप्पनवां जन्मदिवस मनाया।
30 अप्रैल को हिटलर ने लगभग
साढे़ तीन बजे दोपहर में खुद को
गोली मारकर आत्महत्या कर ली
क्योंकि वह जीते जी गिरफ्तार होकर
हारना नहीं चाहता था। हिटलर
का आत्मदाह करना भी ग्रहों के
आश्चर्यजनक गोचरीय संयोजन का
परिणाम था। सामान्यतया चंद्रमा
अष्टम भाव में बैठे या लग्नेश व
चंद्रमा का संबंध अष्टम भाव से हो
तो जातक आत्महत्या करता है।
हिटलर की कुंडली में लग्नेश मंगल
ही अष्टमेश भी है जो कि लग्न में
स्थित है। नवांश में भी अष्टमेश
बृहस्पति लग्न में स्थित है।
हिटलर की मृत्यु के समय रा/बु./
रा. की दशा थी। राहु तृतीय भाव में
है जो कि अष्टम से अष्टम है, राहु
की पूर्ण दृष्टि चंद्र पर है। चंद्रमा
केतु के नक्षत्र में और राहु के उप
नक्षत्र में है।
गोचर में आयु का स्थिर कारक शनि
मिथुन राशि में राहु से युति बनाए
थे। जन्म के चंद्रमा व व्ययेश तथा
व्यय भाव पर शनि की पूर्ण दृष्टि
थी।
बुध, शुक्र, मंगल तीनों ही द्वादश
भाव में गोचर कर रहे थे तथा चंद्रमा
गोचर में अष्टम भाव में गोचर कर
रहे थे। व्ययेश बृहस्पति सिंह राशि
में पंचम भाव में, सूर्य मेष राशि में
लग्न में थे।
व्ययेश बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि लग्नेश
मंगल पर थी और एकादशेश जो
कि छठे से छठा है के स्वामी शनि
की पूर्ण दृष्टि व्ययेश बृहस्पति और
लग्नेश मंगल पर तथा मारकेश शुक्र
पर थी तथा राहु से युति तृतीय भाव
में थी ही। बुध की अंतर्दशा थी जो
कि तृतीयेश व षष्ठेश हैं और लग्न
में लग्नेश, पंचमेश व मारकेश शुक्र
से युति बनाकर बैठे हें।
हिटलर महानायक बनना चाहता
था लेकिन ग्रहीय संयोजन कुछ
ऐसा हुआ कि अपनी हवस में
अधिनायक बनता हुआ इतिहास का
खौफनाक खलनायक बन गया।
क्रूरता के वशीभूत होकर उसने रक्त
की नदियां बहाने में कोई संकोच
नहीं किया और स्वयं के प्रति भी
उसने सहानुभूति नहीं दिखाई तथा
आत्महत्या करके ही सही अपनी
नजरों में वह महानायक बन गया।