देवानंद

देवानंद  

शरद त्रिपाठी
व्यूस : 6654 | जुलाई 2015

88 वर्ष की उम्र तक भी वक्त की करवटें उनकी हस्ती पर अपनी सिलवटें नहीं छोड़ पाईं। यह है छः दशक तक रूपहले पर्दे पर छाए रहने वाले सदाबहार नायक देव साहब के जीवन की दिलचस्प दास्तां सितारों के आईने से--- देव साहब का जन्म शुक्र के तुला लग्न में हुआ। लग्न में तृतीयेश बृहस्पति स्थित है। तृतीय भाव अभिनय, नाट्य कला, संगीत आदि का भाव है।

कालपुरुष की कुंडली में तृतीयेश बुध अभिनय क्षमता के कारक हैं। लग्नेश शुक्र द्वादश भाव में द्वादशेश बुध व नवमेश बुध से युत होकर बैठे हैं। तुला लग्न में शनि योगकारक होते हैं। लग्नेश शुक्र, द्वादशेश व नवमेश बुध, चतुर्थेश व पंचमेश शनि तथा लाभेश सूर्य इन सभी की युति द्वादश में है। तृतीयेश का लग्न में होना व अभिनय के कारक बुध का लग्नेश से युति व कर्मेश से दृष्टि संबंध देवानंद के अभिनय के क्षेत्र में आने का कारण बना। तृतीयेश गुरु अपने ही नक्षत्र में और बुध के उपनक्षत्र में लग्न में स्थित है।

यही कारण है कि देव साहब ने अदाकारी का एक अलग ही अंदाज प्रस्तुत किया। द्वितीयेश मंगल लाभ भाव में राहु से युत होकर कुटुंब, पंचम व षष्ठम को पूर्ण दृष्टि प्रदान कर रहे हैं। द्वितीय भाव वाणी, कुटुंब, धन आदि का भाव है। देवानंद का जन्म धनाढ्य परिवार में हुआ। सभी भाई बहनों को नाश्ते में दही की गाढ़ी लस्सी मिलती थी जिसमें मावे का पेड़ा डला होता था। कुंडली के योग कारक ग्रह शनि की भी पूर्ण दृष्टि कुटुंब भाव पर है।

इस कारण से भी उनका परिवार सुख सुविधाओं से संपन्न था तथा समाज में सम्मानजनक स्थिति को प्राप्त था। तृतीयेश बृहस्पति के लग्नस्थ होने के कारण और षड्बल में सर्वाधिक बली होने के कारण उनमें अभिनय क्षमता कूट-कूट कर भरी थी। इसके साथ ही तृतीय भाव छोटे भाई-बहनों का भाव है तो उनका पूर्ण सहयोग देवानंद को प्राप्त था। देवानंद के छोटे भाई गोल्डी आनंद भी देव साहब के सहयोग से गाइड फिल्म के निर्देशन को सफलतापूर्वक अंजाम देने में सफल रहे।

चतुर्थेश शनि द्वादश भाव में लग्नेश शुक्र, भाग्येश व व्ययेश बुध तथा लाभेश सूर्य से युत होकर बैठे हैं। शनि पर कर्मेश चंद्रमा की पूर्ण दृष्टि है। चतुर्थ भाव सुख भाव कहा जाता है। चूंकि सुखेश व्यय में स्थित है अतः उनके सुखों का व्यय हुआ, कहने का तात्पर्य है कि देव साहब ने अपना घर छोड़कर मुंबई में काफी समय तक फिल्मों में काम पाने के लिए संघर्ष किया।

चूंकि भाग्येश, लग्नेश, कर्मेश आदि का पूर्ण प्रभाव भी चतुर्थेश शनि के साथ था इसीलिए उन्हें अपने प्रयासों में सफलता मिली। पंचम भाव का विवेचन यदि शिक्षा की दृष्टि से करें तो पंचमेश शनि अपने से पंचमेश अर्थात नवमेश बुध, पंचम से भाग्येश अर्थात लग्नेश शुक्र से युत है तथा पंचम से षष्ठेश चंद्रमा जो कि कर्मेश भी है से दृष्ट है। देव साहब की शिक्षा बी. ए. तक अंग्रेजी माध्यम से सामान्य श्रेणी में पूर्ण हुई।

वे एम. ए. भी करना चाहते थे किंतु तब तक पिता की आर्थिक स्थिति बिगड़ चुकी थी अतः देव साहब ने पढ़ाई व घर दोनों छोड़ दिये और अभिनय जगत में संघर्ष करने के लिए मुंबई की राह पकड़ ली। पंचम भाव की व्याख्या यदि प्रेम की दृष्टि से की जाए तो देव साहब के जीवन में प्रेम की कोई कमी नहीं रही। काॅलेज के दिनों में ऊषा चोपड़ा नामक सहपाठिन से वे मन ही मन प्रेम करते थे पर इजहार न कर पाए। एक दूसरी लड़की से लगाव हुआ किंतु देव साहब के बजाए उनके दोस्त ने अपने दिल की बात कह दी और वह उनसे अलग हो गई।

एक बार दादर स्टेशन में उन्हें एक लड़की मिली। उन्होंने उससे अपने मन की बात कहने में बिल्कुल देर नहीं लगाई लेकिन उसने जब उन्हें अपने ब्वायफ्रेंड के बारे में बताया तब देव साहब उल्टे पैर वापस हो गये। फिल्मों में सफलता मिलने के बाद देवानंद ने एक से एक सफल व हिट फिल्में दीं। उसी समय देव साहब ने ‘जीत’ फिल्म साइन की जिसमें उनकी नायिका थीं सुरैया।


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जल्दी ही देव व सुरैया की मित्रता प्रेम में परिवर्तित हो गई। किंतु सुरैया के परिवार वाले इस रिश्ते से खुश नहीं थे जिसके कारण जल्द ही सुरैया व देव साहब के प्रेम का अंत हो गया। देवानंद ने बहुत मुश्किल से खुद को संभाला और फिल्मों में व्यस्त हो गये। देवानंद की अगली फिल्म बाजी में विशेष भूमिका के लिए नई तारिका मोना सिंह को लिया गया। दोनों में धीरे-धीरे जान पहचान बढ़ी।

सुरैया से दिल टूटने के बाद देव साहब के जीवन में जो खालीपन आ गया था उसे मोना ने भर दिया। बाजी हिट हुई और दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया। जल्द ही दोनों शादी के बंधन में बंध गये। देवानंद की कुंडली में पंचमेश, लग्नेश, नवमेश, द्वादशेश, एकादशेश अर्थात शनि, शुक्र, बुध, सूर्य सभी की युति द्वादश भाव में है जिसके कारण उनके अनेक प्रेम संबंध बने किंतु व्यय भाव व व्ययेश के प्रभाव के कारण स्थायी नहीं रहे। विवाह के बाद देवानंद ने एक के बाद एक अनेक सफल फिल्में दीं। 1941 से 1961 तक शुक्र की महादशा चली।

शुक्र लग्नेश होकर चंद्रमा के नक्षत्र व राहु के उपनक्षत्र में स्थित है। चंद्रमा कर्मेश है और लग्नेश शुक्र, लाभेश सूर्य, भाग्येश व व्ययेश बुध तथा सुखेश व पंचमेश शनि को पूर्ण दृष्टि प्रदान कर रहे हैं। राहु धनेश व सप्तमेश मंगल से युत होकर लाभ भाव में बैठकर धनागम को सुनिश्चित कर रहे हैं। लग्न कुंडली में लग्नेश शुक्र कर्मेश के नक्षत्र में है तथा योगकारक शनि व लाभेश से युति में भी है।

यदि नवांश कुंडली का अध्ययन करें तो हम देखेंगे कि नवांश में भी लग्नेश बृहस्पति तृतीय भाव में तृतीयेश शुक्र व बुध से युति बनाकर बैठे हैं। साथ ही बृहस्पति नवांश में कर्मेश भी है। यही कारण है कि देवानंद ने फिल्म जगत में अपने बेहतरीन अभिनय क्षमता के कारण एक अलग जगह बनाई। तृतीय भाव, तृतीयेश व बुध तीनों ही अभिनय क्षमता के कारक हैं। जब भी लग्नेश, कर्मेश, धनेश, लाभेश व कुंडली के योगकारक ग्रहों का संबंध इनसे होगा जातक को अभिनय के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होगी इसमें कोई संदेह नहीं है।

शुक्र की महादशा में देवानंद ने फिल्मी करियर का चर्मोत्कर्ष प्राप्त किया। जब शुक्र की दशा समाप्ति की ओर बढ़ रही थी तभी देवानंद का फिल्मी करियर भी अपनी ढलान की ओर था। अनेक असफल फिल्मों जैसे- ‘नीचा नगर’, ‘अफसर’ आदि के बाद ‘फंटूश’ ‘सी. आई. डी.’, ‘कालाबाजार’, तीन देवियां आदि सुपरहिट फिल्में देवानंद के नाम के साथ जुड़ी हैं। इन सबके बाद आई ‘गाइड’ एक किंवदंती बन चुकी थी, सेलुलाइड पर रची किंवदंती।

‘गाइड’ एक निर्माता के रूप में देव साहब के लिए और निर्देशक के रूप में गोल्डी के लिए ‘उच्चतम शिखर’ थे जिसे छूने के बाद ढलान की यात्रा तो शुरू होनी ही थी। इसके बाद ‘तीसरी मंजिल’, ‘जाॅनी मेरा नाम’, ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ तथा अंत में ‘देश परदेश’ देवानंद की आखिरी हिट फिल्म थी। 80, 90 के दशक में देवानंद द्वारा बनाई व अभिनीत लगभग सभी फिल्में असफल ही रहीं। किंतु दाद देनी होगी उनकी जीवटता की कि हर फिल्म के फ्लाॅप होते ही वे अगली फिल्म की तैयारी शुरू कर देते थे।

यह सारा खेल ग्रहों का ही है क्योंकि वे फिल्मों के लिए ही बने थे। उनकी लग्न कुंडली में लग्नेश, धनेश, लाभेश, कर्मेश सभी महत्वपूर्ण भावों एवं ग्रहों का घनिष्ठ संबंध बना हुआ है। इन्हें जितना धनोपार्जन अभिनय जगत से हुआ वह सभी कुछ इन्होंने फिल्मी दुनिया में ही लगा दिया। इन्होंने जितनी सफल फिल्में दीं उतनी ही लंबी कतार इनकी असफल फिल्मों की भी है। इसका एक मात्र कारण व्ययेश का उपरोक्त सभी ग्रहों के साथ घनिष्ठ संबंध है। इन्होंने सफलता का शिखर भी देखा और असफलता का धरातल भी देखा लेकिन इनकी जीवटता को कभी आंच नहीं आई। देव साहब ने दर्शकों के सामने अपनी अलग छवि बनाई और उसे कायम रखा व हमेशा अपने सूटेड-बूटेड अंदाज में ही लोगों से मिलते थे।

देवानंद के जीवन की अंतिम दशा बृहस्पति की थी। बृहस्पति तृतीयेश अर्थात अष्टम से अष्टमेश हैं साथ ही तृतीय भाव में बैठे हैं। बृहस्पति की दशा 2002 में प्रारंभ हुई जो कि 2018 तक चलनी थी किंतु 4 दिसंबर 2011 को लंदन में उनका देहावसान हो गया। लग्नेश द्वादश भाव में स्थित है जिसके कारण जन्म स्थान से इतनी दूर इनकी मृत्यु हुई। लग्नेश ही अष्टमेश भी है, द्वादश भाव में बैठकर षष्ठ भाव को पूर्ण दृष्टि दे रहे हैं और षष्ठेश लग्न में बैठकर लग्न को बलवान बना रहे हैं जिस कारण इन्हंे दीर्घायु प्राप्त हुई और आज हमारे बीच न होकर भी अपनी अभिनय क्षमता के कारण हमारी स्मृतियों में अमिट छवि बनाए हुए हैं।


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