परी कथा

परी कथा  

आभा बंसल
व्यूस : 6168 | मई 2010

प्रत्येक बच्चा जन्म लेते ही अपना भाग्य अपने साथ लाता है। यह जरूरी नहीं कि धनवान व्यक्ति का बच्चा भी भाग्यशाली और धनवान ही बने। यदि ग्रह प्रतिकूल हों, तो संचित धन भी चुटकियों में उड़ जाता है, और वहीं यदि ग्रह अनुकूल हो, तो भाग्य से गरीब का बच्चा भी देश के सर्वोच्च शिखर पर पहुंच सकता है। यह तो बच्चे का अपना भाग्य है, जो कीचड़ में खिले गुलाब की तरह उसे गंदगी से निकाल कर किसी घर की शोभा बना सकता है। मई 2009 का ग्रीष्म काल। चंडीगढ़ के नारी निकेतन में एक अविवाहित मूक बधिर और मानसिक रुप से विक्षिप्त युवती के अचानक शारीरिक परिवर्तन से वहां का वार्ड स्टाफ चैंक गया।

अधिकारियों का माथा ठनका। मेडिकल जांच से पता चला कि युवती गर्भवती है। बात गोपनीय रखने का प्रयास किया गया और गर्भपात कराने का निर्णय लिया गया। तब तक बात फैल चुकी थी और सार्वजनिक हो गई थी। फिर सिलसिला आरंभ हो गया - पुलिस केस, न्यायालय, हस्पताल, प्रशासन, सामाजिक संस्थाओं के सक्रिय होने का। यह युवती थी काजल, जिसे कोई चंडीगढ़ की सड़क के किनारे एक साल पूर्व फेंक गया था। क्या काजल जन्म लेने वाली संतान के पालन-पोषण का जिम्मा उठा सकेगी? कौन पालेगा भावी जीव को? कौन है

जिम्मेवार आने वाली अवैध संतान का? ऐसे कितने ही प्रश्न चिह्न समाज में तैरने लगे। एक वर्ग आने वाले जीव को रोकने के पक्ष में था, तो एक भ्रूण हत्या के विरुद्ध। मामला डाॅक्टरों और कोर्ट के मध्य लटक गया, क्योंकि भावी संतान मेडिकल की दृष्टि से स्वस्थ नजर नहीं आ रही थी। समाज सेवी संस्था सिटिजन फोरम आॅन ह्यूमन राइट्स के अध्यक्ष श्री सुशील गुप्ता ने मोर्चा संभाला और अंत में एक नन्ही जान ने इस धरती पर काफी विवादों के बाद नन्हे कदम रखे। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के निर्देेशानुसार, बच्चे की डिलीवरी का जिम्मा सेक्टर 32 के सरकारी काॅलेज एवं हस्पताल के डाइरेक्टर डाॅ. राज बहादुर और डाॅ. विपिन कौशल को तथा लालन-पालन का दायित्व समाज एवं कल्याण विभाग को सौंपा गया। पुलिस को अवैध संतान के पिता को पकड़ने का जिम्मा दिया गया। पुलिस ने आधा दर्जन कर्मचारियों को हिरासत में लेकर जांच आरंभ कर दी, परंतु नतीजा कुछ नहीं निकला। कारण स्पष्ट था

कि कर्मचारियों की मिलीभगत से नारी निकेतन में कुकृत्य हो रहे थे। मानसिक रूप से विक्षिप्त, मूक और बधिर काजल को इस बात की भनक भी नहीं थी कि उससे दुराचार किया जा रहा है। वह न तो किसी को पहचान सकती थी, न बोल सकती थी। सारा चंडीगढ़ उत्सुकता से एक विवादित जन्म की प्रतीक्षा कर रहा था। और एक सुबह खबर छपी कि काजल ने 3 दिसंबर, 2009 की प्रातः 00ः44 बजे एक सुंदर-सी बच्ची को जन्म दिया है। सिटिजन फोरम आॅन ह्यूमन राइट्स के अध्यक्ष श्री सुशील गुप्ता और उनकी पत्नी ने उस नवजात का नामकरण किया - परी। 13 जनवरी को सेक्टर 47 स्थित आश्रय में उन्होंने नन्ही परी की पहली लोहड़ी मनाई।

काजल को नए कपड़े पहनाए गए, मेकप किया गया और उसकी गोद में परी को बिठाया गया। काजल कहीं से मूक और बधिर और मानसिक रूप से मंद नहीं लग रही थी। गर्भाधान के बाद उच्च श्रेणी के चिकित्सकों ने उसका इलाज किया। आश्रय का प्रांगण चंडीगढ़ के संपूर्ण मीडिया और वी.आइ. पी. से खचाखच भरा था मानो परी न हो, बाॅलीवुड की हिरोइन आश्रय की सरजमीन पर उतर आई हो! परी की गोद में गिफ्ट, नए वस्त्र, मिठाइयां, खिलौने, शगुन धड़ाधड़ गिरते जा रहे थे। कहीं लग ही नहीं रहा था कि यह एक ऐसी बच्ची की लोहड़ी मनाई जा रही है


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जन्मदाता का कुछ अता-पता ही नहीं है। मां को यह नहीं पता कि यह सब हो क्या रहा है। डी. एन. ए. टेस्ट के बाद पुलिस ने एक संदिग्ध कर्मचारी को गिरफ्तार कर उस पर मुकदमा दायर कर दिया है। ज्योतिषीय दृष्टि आज भारत में ऐसी घटनाएं कोई नई नहीं हैं। ऐसे कितने मामले सामने ही नहीं आते। स्लम एरिया में तो इस तरह की घटनाएं आए दिन होती रहती हैं। आखिर ऐसे कौन से ग्रह हैं जिन्होंने एक अवैध शिशु को ऐसा वी. आइ. पी. बना दिया, जिसकी रक्षा हेतु पुलिस, प्रशासन, न्यायालय, सामाजिक संस्थाएं, हस्पताल, मीडिया जगत आदि चटट्ान की तरह उठ खड़े हुए? परी के लिए प्रशासन ने एक विशेष नर्स की नियुक्ति की है।

परी का जन्म 3 दिसंबर, 2009 की सुबह 00.44 बजे , सिंह लग्न, बृष राशि मृगशिरा नक्षत्र और मंगल की दशा में गुरुवार की प्रातः हुआ। लग्नेश सूर्य मंगल की मित्र राशि वृश्चिक में मातृ भाव में शुक्र के साथ स्थित है। चतुर्थेश एवं भाग्येश मंगल 12वें भाव में नीचस्थ है। चतुर्थ भाव में सूर्य के मंगल की राशि में होने के कारण जन्म सरकारी खर्चे पर, विशेष वार्ड में पुलिस सुरक्षा में हुआ। शुक्र के मातृ भाव में होने के कारण जन्म के समय वे सभी सुख सुविधाएं मिलीं, जो एक समृद्ध परिवार को प्राप्त होती हैं। शुक्र चैथे भाव में हो, तो वैभव, विलासिता, भवन, वाहनादि प्रदान करता है।

एक राह चलती, मंदबुद्धि, मूक और बधिर युवती को उसकी संतान ने वह सब कुछ दिला दिया, जिसकी वह कभी कल्पना भी नहीं कर सकती थी। एक भिखारिन को आश्रय नामक सरकारी भवन, जो सभी आधुनिक सुख सुविधाओं से युक्त है, में दीर्घकाल के लिए आश्रय मिल गया। एक स्पेशल नर्स भी मां और बच्ची की परवरिश के लिए नियुक्त की गई है। डेढ़ माह की बच्ची को शुक्र की कृपा से वाहन भी मिल गया और वह ग्लैमर से भी जुड़ गई। लोहड़ी पर, परी की पहली लोहड़ी का आयोजन राजकीय स्तर पर हुआ। परी के पितृ भाव का विश्लेषण यहां अत्यंत आवश्यक है।

नवम् एवं चतुर्थ भाव दोनों के ही स्वामी नीच के होकर 12वें भाव में विराजमान हैं, जो हस्पताल एवं जेल दोनों का ही द्योतक है। माता गर्भ धारण के बाद हस्पताल में रही और पिता, परी के जन्मोपरांत जेल में। भाग्येश के दूषित होने के कारण पिता का दुलार नहीं मिल सका। पिता के कारक ग्रह सूर्य पर शनि की तृतीय दृष्टि होने के फलस्वरूप भी परी इससे वंचित रही। चंद्र 12वें भाव का स्वामी होकर यदि 10वें भाव में हो, तो जातक पर राजाओं अर्थात सरकार द्वारा वैभवशाली खर्च होता है, किंतु उसे पिता का प्यार कम मिलता है। ऐसा ही परी के साथ हुआ। सारा खर्च आज भी चंडीगढ़ प्रशासन और गैर सरकारी स्वयंसेवी संस्थाएं उठा रही हैं।


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द्वितीयेश बुध पंचम में राहु से युक्त है, इसलिए उसकी शिक्षा-दीक्षा में बाधा आ सकती है, पर यह बाधा कब आएगी, यह समय ही बताएगा। हां इतना अवश्य है कि तृतीयेश शुक्र जातका को बुद्धिमान व धनी बनाएगा। इसके अलावा कई राजयोग भी जन्मांग में विद्यमान हैं। इसी कारण गर्भ में आते ही इस बालिका को राज्य का संपूर्ण आश्रय मिल गया, जो सब को नसीब नहीं होता। बृहत् जातक के अनुसार यदि चंद्र लग्न से 10वें भाव में हो, तो माता के कारण प्रसिद्धि मिलती है या धनार्जन होता है। ऐसा ही हुआ परी के साथ। चंद्र उच्च का है और शुक्र से दृष्ट है।

इस योग ने उसे अत्यंत सुंदर, आकर्षक तथा ग्लैमरस बना दिया है। मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिषाचार्य, मो.- 098156-19620 मकान न. 196,सैक्टर 20 ए ,चंडीगढ़ परी के जन्म के समय चंद्र की दशा चल रही थी। जन्म के चार दिन पश्चात मंगल की दशा आरंभ हो गई। पिता के कारक सूर्य और दशम भाव के स्वामी शुक्र पर शनि की तृतीय दृष्टि के कारण उसे माता-पिता का पूर्ण सुख प्राप्त नहीं हो रहा है। परंतु केंद्र में पूर्ण चंद्र अति शुभ स्थिति में है, जिसके कारण माता-पिता का प्रत्यक्ष सुख न होते हुए भी उसे अन्य संस्थाओं और लोगों का दुलार मिल रहा है। शारीरिक रूप से परी सुंदर व स्वस्थ है क्योंकि लग्नेश सूर्य केंद्र में शुक्र के साथ स्थित है और पूर्ण चंद्र की दृष्टि में है।

अभी मंगल की दशा चल रही है। मंगल सुखेश व भाग्येश होकर अपनी नीच राशि (कर्क) में बारहवें भाव में गुरु की पूर्ण दृष्टि में है। परंतु चूंकि कर्क राशि का स्वामी चंद्र स्वयं केंद्र में अपनी उच्च राशि में स्थित है, इसलिए परी को नीच भंग राज योग का लाभ मिल रहा है, और इसीलिए परी का लालन-पालन अच्छे ढंग से होना चाहिए। मंगल की महादशा के बाद राहु की महादशा में शिक्षा उत्तम रूप से होनी चाहिए क्योंकि राहु गुरु के भाव में और सूर्य के नक्षत्र में है। सूर्य बली होकर केंद्र में है। गुरु विद्या का कारक होकर नीच राशि में है, परंतु चूंकि कर्क राशि (जहां गुरु उच्च का होता है) का स्वामी चंद्र केंद्र में उच्च राशि में है, इसलिए गुरु का भी नीच भंग हो रहा है।

परी को बाह्य सहायता से उच्च शिक्षा प्राप्त होगी, इसमें संदेह नहीं है, क्योंकि इस लग्न के लिए राज योग कारक मंगल भी गुरु को देख रहा है। दोनों का परस्पर दृष्टि संबंध उच्च शिक्षा के लिए शुभ है। गुरु की महादशा में विदेशी सहायता से विदेश में भी उच्च शिक्षा संभव है। षष्ठेश शनि पर गुरु की पूर्ण दृष्टि है और शनि सूर्य के नक्षत्र में है। इसलिए शनि की दशा में उच्च पद और मान-सम्मान की प्राप्ति होगी तथा जीवन समृद्धिशाली होगा। चंद्र लग्न से नवम व दशम का स्वामी शनि पंचम में है, जो शिक्षा के क्षेत्र में यश प्राप्ति का द्योतक है।

परी के वैवाहिक जीवन को देखें, तो सप्तमेश शनि मित्र राशि में उच्चाभिलाषी होकर धन भाव में स्थित है और धन कारक ग्रह गुरु से दृष्ट है। इसलिए परी का विवाह किसी धनवान व्यक्ति से होगा अर्थात विपरीत परिस्थितियों में जन्मी यह नन्ही परी अपने शुभ ग्रहों की बदौलत निश्चित रूप से एक सुखी, सुंदर व वैभवशाली जीवन व्यतीत करेगी। लग्नेश सूर्य, सुख के कारक शुक्र और दशम भाव में उच्चराशिस्थ चंद्र की श्रेष्ठ स्थिति के कारण माता-पिता के सुख से वंचित होने के बावजूद यह बच्ची जन्म से ही राजकीय संरक्षण प्राप्त करके सचमुच की परी बन गई। यही तो है ग्रहों का खेल!


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