अरविंद घोष

अरविंद घोष  

यशकरन शर्मा
व्यूस : 2990 | मई 2010

अरविंद का उद्देश्य किसी धर्म, आस्था या संघ को स्थापित करना नहीं अपितु आंतरिक उत्थान करना था, जिससे प्रत्येक मनुष्य सभी के अंदर के एक रूप को समझ सके और महान ज्ञान को प्राप्त कर सके, ताकि मानव में ईश्वरीय गुणों की उत्पŸिा हो। ऋषि अरविंद महान हिंदू संत, क्रांतिकारी, कवि, दार्शनिक, लेखक, योगी और आध्यात्मिक गुरु थे। उनके व्यक्तित्व पर भारतीय व पाश्चात्य सभ्यता का संयुक्त प्रभाव था। ऋषि अरविंद योगियों के आदर्श और महान समाज सुधारक थे। ऋषि अरविंद का जन्म कोलकाता के एक बंगाली परिवार में सन् 1872 ई. में हुआ। उनके पिता पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति से अत्यधिक प्रभावित थे। उन्होंने अरविंद का पालन पोषण अंग्रेजी वातावरण में किया। अरविंद को अपनी मातृभाषा का भी ज्ञान न हो सका। सात वर्ष की अवस्था में उन्हें इंग्लैंड भेज दिया गया। पढ़ाई में अति मेधावी अरविंद अंग्रेजी, ग्रीक, लैटिन, फ्रेंच, जर्मन, इटालियन और और स्पैनिश भाषाओं के प्रकांड विद्वान थे।

उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा भी उŸाीर्ण की। सन् 1893 में ऋषि अरविंद ने 21 वर्ष की अवस्था में बड़ौदा के महाराजा के अधीन काम करना शुरू किया। तत्पश्चात्, बड़ौदा काॅलेज में लेक्चरार के पद पर कार्य करना शुरू किया। उसके बाद अंग्रेजी के लेक्चरार का कार्यभार संभाला और फिर काॅलेज के वाइस प्रिंसिपल बन गए। यहां उन्होंने संस्कृत, भारतीय इतिहास और अनेक भारतीय भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। सन् 1906 में ऋषि अरविंद भारत के कोलकाता स्थित प्रथम राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के प्रिंसिपल के पद से त्यागपत्र देकर सक्रिय राजनीति में आ गए। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया और शीघ्र ही बंदेमातरम में देश भक्ति से सराबोर अपने संपादकीय लेखों के कारण विशेष प्रसिद्ध हो गए। सी.आर. दास के अनुसार ऋषि अरविंद भारतीयों के लिए ‘‘देशभक्ति के कवि, राष्ट्रवाद के मसीहा व मानवता के प्रेमी’’ बन गए। सुभाषचंद्र बोस के अनुसार अरविंद का नाम स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया।


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लेकिन उस समय के वाइसराय लाॅर्ड मिंटो ने कहा था कि ‘‘यह हमारे लिए सबसे अधिक खतरनाक व्यक्ति है, जिसे हमें रोकना होगा’’। अरविंद स्वतंत्रता के निर्भीक प्रचारक थे। अंग्रेजों ने उन्हें शीघ्र ही बंदी बना लिया और 1908 से 1909 ई. तक जेल में रखा। परंतु एकांत का यह वर्ष न केवल अरविंद अपितु संपूर्ण मानव जाति के लिए एक छिपा वरदान सिद्ध हुआ। जेल में रहकर उन्होंने महसूस किया कि मानव को महामानव बनकर इस संसार में दैवी जीवन का सृजन करने की इच्छा करनी चाहिए। दृष्टिकोण में इस प्रकार का परिवर्तन होने से उनकी चेतना शक्ति आध्यात्मिक उन्नति के प्रयास में पूर्णतया नियोजित हो गई, जिसके कारण उनका क्रांतिकारी आध्यात्मिक उत्थान हुआ। कहते हैं कि एक बार ध्यान से उठते हुए उन्होंने ऐलान किया कि भारत को 15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को स्वतंत्रता प्राप्त होगी। सन् 1910 में अंतःप्रेरणा मिलने पर ऋषि अरविंद पाॅन्डीचेरी पहंुचे और राजनैतिक जीवन का परित्याग कर मानव जाति की उन्नति के लिए योग साधना में लीन हो गए।

ऋषि अरविंद कई वर्षों तक मन, इच्छाशक्ति, हृदय, जीवन, शरीर व चेतना शक्ति के विकास के लिए कठिन योग साधना करते रहे। उन्होंने सत्य, शांति व शाश्वत आनंद की प्राप्ति का मार्ग खोज निकाला। उन्होंने माना कि ईश्वर तक पहुंचने के लिए यही हमारा संबल हो सकता है। अरविंद का उद्देश्य किसी धर्म, आस्था या संघ को स्थापित करना नहीं अपितु आंतरिक उत्थान करना था, जिससे प्रत्येक मनुष्य सभी के अंदर के एक रूप को समझ सके और महान ज्ञान को प्राप्त कर सके, ताकि मानव में ईश्वरीय गुणों की उत्पŸिा हो। ऋषि अरविंद एक महान साहित्यकार थे। वे अपने पीछे जनता को प्रबुद्ध करने वाला साहित्य छोड़ गए। उनकी महान कृतियों में द लाइफ डिवाइन, द सिन्थेसिस आॅफ योगा, एसेज आॅन गीता, काॅमेंटरीज आॅन ईषोपनिषद और पावर्स विदिन शामिल हैं। इन सभी पुस्तकों में ऋषि अरविंद ने उस ज्ञान की विस्तृत चर्चा की है, जो उन्हें योग साधना से प्राप्त हुआ था।

अरविंद की अन्य पुस्तकों में द फाउडेशन आॅफ इंडियन कल्चर, द ह्यूमन साइकल, द फ्यूचर पोइट्री, द सीक्रेट आॅफ द वेदा आदि प्रसिद्ध हैं। अंग्रेजी साहित्य के विद्यार्थियों में ऋषि अरविंद ‘सावित्री’ नाम से विख्यात महाकाव्य के लिए जाने जाते हैं। सन् 1950 में 72 वर्ष की आयु में ऋषि अरविंद का देहांत हो गया। वह अपने पीछे आध्यात्मिक कीर्ति की अमूल्य संपदा छोड़ गए। प्रस्तुत है इस महान योगी की जन्मकुंडली का ज्योतिषीय विश्लेषण। ऋषि अरविंद की जन्मकुंडली में उच्चराशिस्थ गुरु पंचमेश मंगल के साथ लग्नस्थ है। द्वितीय भाव वाणी और सरस्वती का भाव माना गया है। इस भाव पर सूर्य, शुक्र व बुध की युति अति उŸाम है। द्वितीयेश का शुभ ग्रहांे के साथ द्वितीय भाव में होना उस स्थिति में श्रेष्ठ योग है जब पंचमेश की विद्या कारक गुरु के साथ युति हो। इसके अतिरिक्त विद्या व बुद्धि के पंचम भाव में केतु की स्थिति व गुरु की उस पर दृष्टि के कारण ऋषि अरविंद महान बुद्धिमान तथा विद्या-बुद्धि से संपन्न हुए।


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कर्क लग्न कल्पना, अंतःप्रज्ञा, सहानुभूति इत्यादि का प्रतीक है। द्वितीय भाव में सूर्य बुध और शुक्र की युति ने उन्हें महान कवि बनाया। चतुर्थेश बुध से युक्त है। चतुर्थ भाव पर योगकारक मंगल की दृष्टि है। पंचमेश मंगल पंचम के कारक उच्चराशिस्थ गुरु से युक्त है। इसलिए अरविंद विशेष प्रतिभासंपन्न विद्यार्थी थे। शिक्षा और संस्कृति के भावों पर मंगल, गुरु और शुक्र का पूर्ण प्रभाव होने के फलस्वरूप वह अनेक भाषाओं के प्रकांड विद्वान थे। कर्क लग्न का स्वामी चंद्र राजनैतिक ग्रह माना जाता है, क्योंकि चंद्र और सूर्य दोनों राजसी ग्रह हैं। दशमेश मंगल लग्न में भाग्येश से युक्त है। राजसी ग्रह सूर्य स्वग्रही और शुभ ग्रहों के प्रभाव में है। मंगल की स्थिति ने उन्हें निर्भीक और लौह संकल्प वाला पुरुष बनाया। छठे भाव में स्थित शनि प्रबल शत्रुहंता योग बनाता है। मंगल और गुरु की युति जातक को लौह पुरुष बनाती है।

अपनी कुंडली में ये सभी गुण होने के कारण ऋषि अरविंद ने राजनीति में उच्चकोटि की सफलता प्राप्त की और ब्रिटिश सरकार उनसे घबराने लगी। आध्यात्मिक उन्नति का कारक गुरु लग्न में हंस योग बना रहा है और लग्न में बैठकर उनकी आत्मा और व्यक्तित्व को दैवी गुणों से संपन्न कर रहा है। पंचम भाव से भक्ति और नवम भाव से आध्यात्मिक उन्नति व धार्मिक आस्था तथा ईश्वर व गुरु कृपा का विचार किया जाता है। गुरु लग्न, पंचम व नवम इन तीनों भावों को पूर्ण रूप से प्रभावित कर रहा है इसलिए उन्हें उच्च कोटि की आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त हुई। पंचम भाव में केतु के स्थित होने के फलस्वरूप अध्यात्म के क्षेत्र में उनकी विशेष रुचि हुई। पंचमेश मंगल गुरु के ही साथ है। पंचम भाव और केतु पर गुरु की दृष्टि है। गुरु स्वयं पंचम भाव का कारक है। इस प्रकार, पंचम भाव, पंचमेश और पंचम के कारक इन तीनों की स्थिति शुभ होने के कारण ऋषि अरविंद विशेष भक्ति भाव से युक्त और बुद्धिमान तथा ज्ञानी पुरुष हुए।

शनि और चंद्र की युति के कारण जातक श्रेष्ठ विचारक बनता है। ऋषि अरविंद की कुंडली के अनुसार उन पर 1896 तक शुक्र की महादशा चल रही थी, जिसके फलस्वरूप उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में पूर्ण सफलता प्राप्त हुई। द्वितीय भाव से सरस्वती कृपा, चतुर्थ भाव से शिक्षा, पंचम से बुद्धि, नवम से उच्च शिक्षा व दशम भाव से विद्या जनित यश का विचार किया जाता है। विद्या प्राप्ति के ग्रहों में गुरु, शुक्र व बुध का महत्व सर्वोपरि है। किसी भी क्षेत्र में पूर्ण सफलता के लिए सूर्य, गुरु व मंगल का महत्व सर्वाधिक है। ऋषि अरविंद की कुंडली में ये सभी पक्ष पूर्ण बली हैं। उन्होंने शिक्षा, अध्ययन, अध्यापन, राजनीति व योग साधना में उच्चस्तरीय सफलता प्राप्त की। शिक्षा काल में शिक्षा भाव के स्वामी शुक्र की दशा में उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में विशेष सम्मान प्राप्त हुआ। शुक्र की महादशा में अमात्यकारक बुध (जो चंद्र कुंडली में दशमेश भी है) की अंतर्दशा आरंभ होने पर उन्होंने बड़ौदा में नौकरी करना आरंभ किया। छठे भाव में लग्नेश और अष्टमेश की युति जेल योग का संकेत देती है।

इसलिए चंद्र में शनि की अंतर्दशा आने पर उन्हें जेल जाना पड़ा। चंद्र में बुध की अंतर्दशा में वह आत्मोत्थान के लिए कठिन योग मार्ग पर चल पड़े और आध्यात्मिक चिंतन-मनन किया, लेकिन लग्नेश चंद्र के अशुभ भाव में अष्टमेश से युक्त होने के कारण उनकी साधना का आरंभ जेल से हुआ। चंद्र की महादशा में केतु की अंतर्दशा में अरविंद ने राजनीतिक जीवन का परित्याग कर अध्यात्म साधना का मार्ग अपना लिया। चंद्र और केतु दोनों अध्यात्म के कारक ग्रह हैं। केतु भक्ति के पंचम भाव में अध्यात्म के ग्रह गुरु से दृष्ट है। राहु की दशा में अरविंद की प्रसिद्ध पुस्तकें प्रकाशित हुईं और गुरु की महादशा में उनका नाम एक उत्कृष्ट आध्यात्मिक गुरु के रूप में जगत्प्रसिद्ध हो गया। ज्योतिष सीख Û भक्ति योग: लग्न में भक्ति भाव व धर्म भाव के स्वामी की युति तथा हंस योग के कारण उच्च कोटि का भक्ति योग बन रहा है।


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Û चंद्र शनि की युति व्यक्ति को श्रेष्ठ विचारक बनाती है - यदि गुरु उच्च राशिस्थ हो। Û उच्च कोटि के विद्या योग होने की स्थिति में शिक्षा काल में शुभ ग्रह की दशा विद्या प्राप्ति में विशेष उन्नतिदायक होती है, जैसे अरविंद की शुक्र की महादशा। Û द्वितीय भाव में सूर्य, शु और बुध की युति श्रेष्ठ साहित्यकार बनने में सहायक हो सकती है - विशेष रूप से गुरु के उच्च राशिस्थ होने पर। Û गुरु के उच्च राशिस्थ होने की स्थिति में पंचमस्थ केतु आध्यात्मिक उन्नति के लिए सर्वश्रेष्ठ योग बनाने के साथ-साथ जातक को महाबुद्धिमान भी बनाता है।



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