जीवन में मुहूर्त की उपयोगिता

जीवन में मुहूर्त की उपयोगिता  

बी.एल शर्मा
व्यूस : 8384 | जून 2011

जीवन में मुहूर्त की उपयोगिता डॉ. बी. एल. शर्मा मनुष्य बौद्धिक प्राणी होने के नाते किसी भी क्षण काम किये बिना नहीं रहता है। लेकिन समय की गति को पहचाने बिना जब कार्य निष्फल होते हैं तो शास्त्र याद आता है जिसमें प्रत्येक कार्य के लिए शुभ मुहूर्त का उल्लेख किया गया है क्योंकि वे प्रत्येक कार्य की सहज सिद्धि के लिए अनिवार्य रूप से उपयोगी सिद्ध होते हैं। ज्योतिष में मुहूर्त के प्राचीन ग्रंथों में मुहूर्त चिंतामणि एवं श्री कालिदास प्रणीत ज्योतिर्विदाभरण्म मुखय हैं। मुहूर्त दीपक, मुहूर्त मार्तण्ड, मुहूर्त संग्रह, रत्न माला आदि ग्रंथ भी बहुत अच्छे हैं। वेद शास्त्रों में भी मुहूर्त की उपयोगिता का उल्लेख मिलता है। मुहूर्त ज्योतिष का स्थान संहिता स्कंध में आता है। मुहूर्तों का उद्देश्य कार्य की निर्विघ्नता पूर्वक सफलता के लिए शुद्धतम काल का निर्धारण करना है। दैनिक जीवन में मुहूर्त बहुत उपयोगी हैं। हमारी जन्मपत्री तो हमारे पूर्व जन्म के पुण्य आदि कर्म का लेखा जोखा है, जिसे हम भाग्य कहते हैं। भाग्य बदलना सरल नहीं है, परंतु यदि हम अपने आवश्यक कार्य मुहूर्त की सहायता से करें, तो उत्तम फल की संभावना प्रबल रहती है। मानव जीवन के आरंभ से मृत्यु तक की विभिन्न घटनाओं की अनुकूलता तथा प्रतिकूलता से मानव को बचाया जा सकता है।

राज्य संचालन के शुभ समय की तालिका तथा उद्योग-धंधों के प्रारंभ के शुभ मुहूर्त के ज्ञान से बहुत लाभ हुआ है। मुहूर्त का आशय क्या है? जन्मपत्रिका से यह किस तरह श्रेष्ठ है? जन्मपत्रिका जन्म के समय नक्षत्रों की स्थिति का अध्ययन करती है। उसका क्षेत्र व्यक्ति के पूर्व जन्म के संचित कर्मों तक ही सीमित होता है। लेकिन मुहूर्त उससे अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह व्यक्ति को बहुमूल्य मार्गदर्शन देने में सक्षम है, जिससे वह जन्मपत्रिका में आयी विघ्न-बाधाओं और दुष्प्रभावों को दूर करने, उनका प्रतिरोध करने, या उन्हें प्रभावहीन करने का उपक्रम कर सके। मुहूर्त बताते हैं कि समय का लाभ किस तरह उठाया जा सकता है और अशुभ घड़ियों से किस तरह बचा जा सकता है। जन्मपत्रिका यदि शिक्षा का स्पष्ट संकेत देती है, तो शुभ मुहूर्त में शिक्षारंभ उन बाधाओं के प्रभाव को न्यूनतम कर सकता है। मुहूर्तों की सहायता से पूर्व कर्मों का प्रभाव भी घटाया जा सकता है। जन्मपत्रिका तो केवल पूर्व कर्मों के संचित नतीजों को दर्शाती है। ये कर्म जन्म से ही व्यक्ति के साथ रहते हैं, जिसे भाग्य या किस्मत का नाम दिया जा सकता है।

ज्योतिषी इसी जन्मपत्रिका के अध्ययन के द्वारा भविष्यवाणियां करते हैं। विधाता के अलावा भविष्य के लिए निश्चित निर्देश देना किसी अन्य के वश की बात नहीं है। काल की अपनी गतियां होती हैं, इसलिए काल ही ज्योतिष का मूल आधार होना चाहिए। कोई एक चुनी हुई घड़ी या मुहूर्त ऐसे शुभ कंपन या गतियां कर सकती हैं, जिनकी ऊर्जा से सभी विघ्न-बाधाओं का निवारण संभव हो सकता है। सृजनात्मक, रक्षात्मक और ध्वंसात्मक शक्तियां काल के गर्भ में समाई रहती हैं। सूर्य और नक्षत्र काल के हस्ताक्षर हैं। ऊर्जा की सभी शक्तियों का स्रोत सूर्य है, इसलिए ग्रह और नक्षत्रों के चक्र संचालन से शुभ और अशुभ घड़ियों के संकेत मिलते रहते हैं। ये और कुछ नहीं बल्कि ऊर्जा विकिरण के संकेत हैं। शुक्ल या कृष्ण पक्ष के मंगलवार को पड़ने वाली तृतीया, अष्टमी या तेरस को यदि कानूनी दावा किया जाए, तो सफलता निश्चित है। शुक्ल पक्ष की पंद्रह तिथियां अपने आप में शक्ति संपन्न हैं। अमावस्या को सूर्य और चंद्र दोनों का प्रभाव बराबर मात्रा में होता है। इसलिए अमावस्या किसी भी शुभ कार्य के आरंभ के लिए शुभ नहीं मानी जाती है।

पर शल्य चिकित्सा के लिए अमावस्या सर्वोत्तम मानी गयी है, क्योंकि उस दिन शरीर में द्रवों का प्रवाह बहुत कम होता है। इसके ठीक विपरीत पूर्णिमा शल्य चिकित्सा के लिए कतई उपयोगी नहीं मानी गयी है, क्योंकि इस दिन शरीर के द्रवों की गति बहुत तेज हो जाती है। शल्य चिकित्सा यदि इन संकेतों का पालन करें, तो उसकी सफलता निश्चित है। सूर्य और चंद्र की स्थितियां मनुष्य की भावनाओं, उसके व्यवहार और आचरण को भी प्रभावित करती हैं। किसी घातक रोग में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी सांघातिक मानी गयी है, क्योंकि उस दिन सूर्य और चंद्र की युति आरंभ होकर अमावस्या को पूर्ण होती है। यदि उस दिन मरणासन्न रोगी की राशि के आठवें घर में चंद्रमा स्थित हो तो अमावस्या के पूर्व आने वाली चतुर्दशी को उसके परिजनों को विशेष रूप से सावधान हो जाना चाहिए। अमावस्या भी स्वास्थ्य के प्रकरणों में ठीक नहीं है।

यात्रा की दृष्टि से सोमवार और शनिवार को पूर्व दिशा, मंगलवार और बुधवार को उत्तर दिशा, गुरुवार को दक्षिण तथा शुक्र और रवि को पश्चिम दिशा की यात्रा वर्जित है। कृष्ण पक्ष की अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या को यात्रा आरंभ नहीं करनी चाहिए। अमावस्या के पूर्व की चौदस यात्रा के लिए शुभ नहीं मानी गयी है। किसी नये कार्य को आरंभ करने के लिए ऐसे दिनों को टालना चाहिए, जिनमें सूर्य नयी राशि में प्रवेश करता है। 14 जनवरी और 14 फरवरी ऐसी ही तारीखें हैं सामान्यतः हर माह की संक्रांति भी नये कार्य आरंभ करने के लिए उपयुक्त नहीं होती हैं। ये तारीखें मंत्र सिद्धि, तांत्रिक सिद्धि और साधना के लिए उपयोगी मानी गयी हैं। सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार को कार्य का आरंभ शुभ माना गया है। शल्य-चिकित्सा के लिए मंगलवार का दिन सर्वोत्तम है। जन्म नक्षत्र वाला दिवस मुहूर्त चयन के लिए उपयुक्त नहीं होता है। पर कृषि-भूमि का क्रय और नये पद ग्रहण तथा अन्नप्राशन के लिए ये दिन शुभ माने गये हैं। जबकि संभोग, चिकित्सा, यात्रा और विवाह के लिए ये दिन अशुभ होते हैं।

इसके विपरीत महिलाओं के लिए जन्म नक्षत्र वाले दिवस विवाह के लिए कल्याणकारी सिद्ध होते हैं। महर्षियों का कथन है कि विवाह के समय शुभ मुहूर्त का चयन जन्मपत्रिका के दोषों का निवारण कर देता है। मुहूर्तों के चयन में तिथियां भी विशेष महत्वपूर्ण होती हैं। सूर्य और चंद्रमा से अक्षांशों की दूरी से तिथियों का निर्धारण होता है। जब सूर्य और चंद्र समान अंशों पर होते हैं तो अमावस्या होती है और जब 180 डिग्री पर होते हैं, तो पूर्णिमा होती है। चंद्र और सूर्य के बारह अंश की दूरी से एक तिथि बनती है। कौन-कौन सी तिथि किस-किस प्रकार के कार्य विशेष के लिये शुभ या अशुभ हैं, उसकी जानकारी इस प्रकार है- प्रतिपदा को विवाह, यात्रा, व्रतबंध, प्रतिष्ठा, चूड़ा कर्म, वास्तु कर्म, गृह प्रवेश आदि मंगल कार्य नहीं करने चाहिए। द्वितीया को राज संबंधी कार्य, व्रतबंध, प्रतिष्ठा, विवाह यात्रा, भूषणादि कर्म शुभ होते हैं।

तृतीया को यात्रा संबंधी कार्य, शिल्प, चूड़ा कर्म, अन्नप्राशन व गृह प्रवेश शुभ है। चतुर्थी, नवमी व चतुर्दशी रिक्ता तिथियां हैं। इनमें अग्नि कर्म, मारण कार्य, बंधन कृत्य, शस्त्र, विष अग्निदाह आदि कार्य कर सकते हैं, परंतु मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए। पंचमी समस्त शुभ कार्यों के लिए उत्तम है परंतु इस दिन ऋण नहीं देना चाहिए। यात्रा, पितृ कर्म, मंगल कार्य, संग्राम, शिल्प, वास्तु, भूषण के लिए षष्ठी शुभ है। द्वितीया, तृतीया तथा पंचमी के लिए उल्लिखित सभी कार्य सप्तमी को भी शुभ हैं। अष्टमी : संग्राम, वास्तु, शिल्प, लेखन, स्त्री, रत्न धारण, आभूषण ये सब अष्टमी को शुभ हैं। दशमी : द्वितीया, तृतीया, पंचमी एवं सप्तमी में किये जाने वाले कार्य दशमी में भी शुभ होते हैं। एकादशी : व्रत, उपवास, धार्मिक कृत्य, देवोत्सव, उद्यापन तथा कथा एकादशी में शुभ है।

द्वादशी : यात्रादि को छोड़कर सभी पुष्टिकारक धार्मिक शुभ कार्य किये जा सकते हैं। त्रयोदशी को द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी के लिए नियत सभी कार्य कर सकते हैं। पूर्णमासी ्रको विवाह, शिल्प, पौष्टिक कार्य, मंगल कार्य, संग्राम, वास्तु कर्म, यज्ञ क्रिया, प्रतिष्ठा आदि कार्य कर सकते हैं। अमावस्या को पितृ कार्य और शल्य क्रिया कर सकते हैं। मुहूर्त ज्योतिष में नक्षत्रों का अपना ही महत्व है। सत्ताईस नक्षत्रों में से पुष्य नक्षत्र किसी भी काम के आरंभ के लिए अति उत्तम है। पर किसी भी स्थिति में विवाह, पुष्य नक्षत्र में नहीं किया जाना चाहिए। विभिन्न नक्षत्रों में करने योग्य कार्यों की संक्षिप्त व्याखया : ध्रुव व स्थिर नक्षत्र : उत्तराफाल्गुनी, उत्तराभाद्रपद, उत्तराषाढ़ा, और रोहिणी, ये चार नक्षत्र और रविवार, इन नक्षत्रों में स्थिर कार्य, बीज बोना, घर बनाना, शांति कर्म, बगीचा लगाना आदि कार्य सिद्ध होते हैं। चर नक्षत्र : स्वाति, पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा। इन पांच नक्षत्रों में तथा सोमवार को वाहन लाना, यात्रा करना सिद्ध होते हैं।

उग्र नक्षत्र : पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद, भरणी, मघा और मंगलवार को मरण, अग्नि का कार्य, शठता का कार्य, विष कार्य, हथियार का कार्य ठीक रहते हैं। लघु नक्षत्र : हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजित में तथा गुरुवार को बाजार का कार्य, स्त्री संभोग, शास्त्र आदि का ज्ञान, आभूषण बनवाना, दुकान का काम, चित्रकारी, गाना-बजाना आदि कला के कार्य सिद्ध होते हैं। साधारण नक्षत्र : विशाखा, कृत्तिका और बुधवार को अग्निहोत्र, शुभाशुभ कार्य ठीक हैं। मृदु नक्षत्र : मूल, ज्येष्ठा, आर्द्रा, आश्लेषा में और शनिवार को जादू-टोना, हथियार से वार करना, पशु दमन (हाथी, घोड़े आदि को सिखाना) ठीक है। जिस दिन-भद्रा-हो, उस दिन शुभ कार्य नहीं करें। एक बात और ध्यान देने योग्य है, कि शुक्ल पक्ष में एक से पंचमी तक तिथियां अशुभ कही गयी हैं, क्योंकि इन तिथियों में चंद्रमा क्षीण बल होता है और चंद्र बल उन दिनों नहीं रहने से कार्य सफल नहीं होते हैं। इसी प्रकार कृष्ण पक्ष की एकादशी से अमावस्या तक तिथियों में चंद्र बल क्षीण होने से शुभ कार्य नहीं करने चाहिए। यदि किसी कार्य सिद्धि के लिए यात्रा करनी है, तो सन्मुख चंद्र लेकर यात्रा करें।

चंद्रवास का विवरण निम्नानुसार है- मेष, सिंह, धनु का पूर्व दिशा में चंद्रवास होता है। वृष, कन्या, मकर का दक्षिण दिशा में चंद्रवास होता है। मिथुन, तुला, कुंभ का पश्चिम दिशा में चंद्रवास होता है। कर्क, वृश्चिक, मीन का उत्तर दिशा में चंद्रवास होता है। उदाहरणतः यदि इंदौर से दिल्ली, यानी उत्तर में यात्रा करनी है, तो आप कर्क, वृश्चिक या मीन राशि में चंद्र हो, तो उस दिन यात्रा प्रारंभ करने से सफलता मिलेगी। परंतु उक्त दिन जन्म राशि से चंद्रमा अष्टम नहीं हो, इस पर ध्यान देना चाहिए। इसी प्रकार से दैनिक जीवन के लिए उपयोगी सूत्र मुहूर्त शास्त्र में हैं, जिनका उपयोग दैनिक जीवन में करके लाभान्वित हो सकते हैं। मुहूर्त शास्त्र के नियमों के पालन से असंखय लोग लाभान्वित हुए हैं।



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