दीपावली महापर्व को ज्योतिपर्व के
रूप में भी जाना जाता है जो कि
दषहरा के 20 दिन के बाद अमावस
अर्थात, कार्तिक मास की काली
अंधेरी रात को अक्टूबर या नवंबर में
आता है। हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार
इस दिन की विषेष महत्ता है क्योंकि
इसी दिन भगवान श्रीराम अपने राज्य
अयोध्या 14 साल के बाद बनवास
पूरा करके वापस आये थे। 14 वर्ष
के बनवास के दौरान श्रीराम ने
लंकाधिपति रावण का अंत किया
जोकि बहुत बड़ा विद्वान पंडित था,
बहुत पढ़ा लिखा लेकिन फिर भी मन
का दुष्ट था। बुराई पर अच्छाई की
इस विजय के बाद श्रीराम अयोध्या
वापस आये। अयोध्या की जनता ने
उनके स्वागत में पूरी अयोध्या को
जलते दीयों से जगमगा दिया था।
इसीलिए यह पर्व श्रीराम के सम्मान
में उनकी लंका विजय के उपलक्ष्य
में मनाया जाता है। दीपावली के इस
त्यौहार को दीपोत्सव के नाम से भी
जाना जाता है। दीपावाली अंधेरे से
रोषनी में जाने का त्यौहार है इस
विष्वास के साथ कि सत्य की सदा
जीत होती है और झूठ का नाष
होता है। दीपावली महापर्व भी इसी
मान्यता को चरितार्थ करता है जो कि
उपनिषदों की भी आज्ञा है - असतो
मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।
दीपावली प्रकाषपर्व के साथ स्वच्छता
का भी पर्व है और इस अवसर पर
घर व व्यापारिक संस्थानों में इस
बात को विषेष महत्व दिया जाता
है। ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक
अमावस्या की काली अर्धरात्रि में
मां लक्ष्मी स्वयं भूलोक में प्रत्येक
सद्गृहस्थ के द्वार आती हैं तथा जो
घर स्वच्छ, शुद्ध, संुदर व प्रकाषयुक्त
होता है उस घर में अंष रूप में ठहर
जाती हैं। दीपावली के इस पवित्र
त्यौहार को हिन्दू धर्मावलम्बियों के
अतिरक्ति सिक्ख, बौद्ध तथा जैन धर्म
के लोग भी विषेष उत्साह से मनाते
हैं ।
दीपावली महापर्व पर विषेष
यंत्र तथा मंत्रों का महत्व
दीपावली पारम्परिक पूजाओं तथा
उत्सवों दोनों का ही पर्व है।
परम्परागत रूप में दीपावली की पूजा
घर में संध्या के बाद की जाती है।
दीपावली की मुख्य रात्रि को महालक्ष्मी
जी की प्रतिमा के साथ गणेष जी की
पूजा भी की जाती है। श्रीगणेष जी
को किसी भी कार्य के शुभारंभ तथा
किसी भी तरह की रूकावट को दूर
करने वाले विघ्नहर्ता के रूप में पूजा
जाता है। जब ये दोनों साथ-साथ
पूजे जाते हैं तो महालक्ष्मी तथा श्री
गणेष जी सभी इच्छाओं को पूर्ण
करने वाले तथा किसी भी तरह की
रूकावटों का नाष करने वाले होते
हैं। अधिकतर लोग रीति-रिवाज के
साथ परम्परागत ढंग से इस दिन
पूजा अर्चना करते हैं। जो पूजा
का परम्परागत ढंग नहीं जानते हैं
वो पण्डित के द्वारा पूजा करवाते
हैं। अन्य कुछ लोग श्रीगणेष तथा
महालक्ष्मी जी के मंत्रों के जाप भी
करते हैं। इस दिन श्रीगणेष जी तथा
लक्ष्मी जी के मंत्रों का जाप विषेष
शुभ माना जाता है। महालक्ष्मी जी
जो कि सभी सांसारिक सुखों, धन
तथा समृद्धि की दाता हंै इस दिन
अवष्य सभी मनोरथों को पूरा करती
हैं ऐसा माना जाता है। इसीलिए पूर्ण
विधि विधान के साथ उनकी पूजा
अर्चना विषेष फलदायी मानी जाती
है। वह पूजा जो मंत्रों तथा विषेष
यंत्रों के साथ की जाती है बहुत
प्रभावी परिणाम देती हैं। पौराणिक
धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान षिव ने
मां पार्वती जी को यंत्रों के रहस्यमयी
अर्थ की व्याख्या की थी। भगवान
षिव ने यंत्रों के महत्व की व्याख्या
करते समय बताया कि यंत्र भगवान
के लिए उतने ही महत्वपूर्ण होते
हैं जैसे कि दीया के लिए तेल का
होना या किसी जीवित प्राणी के लिए
शरीर का होना आवष्यक होता है।
यंत्र भगवान की प्रतिमा से ज्यादा
शक्तिषाली होते हैं। एक यंत्र हमेषा
एक विषेष मंत्र से संबंधित होता
है। जैसे कि मन शरीर से संबंधित
होता है फिर भी शरीर से अलग
होता है उसी तरह मंत्र और तंत्र का
संबंध होता है। मंत्र जागृत मन है
जबकि यंत्र सम्बंधित देवी या देवता
का आकार होता है। अतः इस दिन
विषेष यंत्र की मंत्रों के साथ पूजा
विषेष फलदायी होती है ।
पंचपर्वीय दीपावली --
दीपावली के पांच दिन
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि
दीपावली ज्योतिपर्व है जिसको कि
असीम उत्साह के साथ मनाया जाता
है। दीपावली का त्यौहार सिर्फ एक
त्यौहार न होकर त्यौहारों की एक
शृंखला है क्योंकि इस महापर्व की
विषेषता इसके पांच विविध पर्वों के
संगम में है तथा प्रत्येक दिन का
अपना एक विषेष महत्व होता है।
पंचपर्वीय दीपावली का यह त्यौहार
पांच दिनों तक विषेष उत्साह से
मनाया जाता है। दीपावली का प्रथम
दिन धनवन्तरी त्रयोदषी कहा जाता
है जिसे धनतेरस के नाम से भी
जाना जाता है। दीपावली का द्वितीय
दिन नरक चर्तुदषी के नाम से जाना
जाता है। यह कार्तिक कृष्ण पक्ष मंे
चतुर्दषी को मनाया जाता है। इसे
दीपावली की पूर्व संध्या के रूप में
छोटी दीपावली के नाम से जाना
जाता है। दीपावली के तीसरे दिन
को वास्तविक दीपावली के त्यौहार
के रूप में जाना जाता है। इस दिन
मां लक्ष्मी जी तथा श्री गणेष जी की
पूजा अर्चना की जाती है। दीपावली
के चैथै दिन गोवर्धन पूजा की जाती
है। दीपावली के पांचवें दिन को भाई
दूज के रूप में मनाया जाता है। अगर
सभी लोग इन सभी पांच दिनों को
पूर्ण श्ऱद्धा व समझ के साथ मनायें
तो यह पंचदिवसीय ज्योतिपर्व हम
सभी के जीवन में समृद्धि व सम्पूर्णता
ला सकता है। इस वर्ष दीपावली
का यह त्यौहार 23 अक्तूबर 2014,
बृहस्पतिवार को मनाया जायेगा ।
इस दिन चित्रा नक्षत्र है। विषकुंभ
योग के साथ चन्द्रमा कन्या राषि में
भ्रमण करेंगे। लेकिन इस महापर्व का
प्रारम्भ 21 अक्तूबर 2014, मंगलवार
को धनतेरस के साथ ही हो
जायेगा। दीपावली में अमावस तिथि,
प्रदोषकाल, शुभ लग्न व चैघड़िया
मुहूर्तों का विषेष महत्व है ।
दीपावली का प्रथम
दिन--धन तेरस
पंचपर्वीय दीपावाली का आरम्भ धन
त्रयोदषी के शुभ दिन से हो जाता
है। दीपावली से दो दिन पहले धन
तेरस का त्यौहार मनाया जाता है।
यह पर्व कृष्ण पक्ष में कार्तिक मास
के 13वें दिन मनाया जाता है।
इसी दिन भगवान धनवन्तरी अपने
आयुर्वेदिक ज्ञान के साथ जनमानस
के कल्याण हेतु समुद्र से बाहर आये
थे। इसी कारण से इस दिन को
धनवंतरी जयंती के रूप में भी मनाया
जाता है। इसी दिन मां लक्ष्मी जी
भी समुद्रमंथन के दौरान समुद्र से
प्रकट हुयी थीं। इसीलिए धनवन्तरी
देव के साथ इस दिन मां लक्ष्मी
तथा कुबेर जी के पूजन की परम्परा
है। इसके साथ ही इस दिन यमदेव
की भी विषेष पूजा की जाती है।
इस दिन संध्या के समय हिन्दूजन
स्नान आदि करके यमराज को
प्रसाद के साथ जलता दीया चढ़ाते
हैं और आकस्मिक मृत्यु से रक्षा की
कामना करते हैं। धनतेरस का पर्व
व्यावसायिक वर्ग, क्रय-विक्रय करने
वालों के लिए विषेष महत्व रखता
है। संध्या समय में घर के मुख्य द्वार
पर एक बड़ा दीया जलाया जाता
है। इस दिन नए बर्तन खरीदने की
परंपरा है। इस दिन स्वर्ण अथवा
रजत आभूषण खरीदने का भी रिवाज
है। इस वर्ष धनतेरस का यह पर्व
मंगलवार, कार्तिक कृष्ण पक्ष में 21
अक्टूबर, 2014 को मनाया जाएगा।
इस दिन कुबेर यंत्र की स्थापना कर
घी का दीपक जलाकर मंत्रजाप का
विषेष फल मिलता है। मिठाई का
प्रसाद भी अर्पित किया जाता है ।
दीपावली का दूसरा
दिन--छोटी दीपावली
बड़ी दीपावली से एक दिन पहले
छोटी दीपावली का त्यौहार मनाया
जाता है। इस दिन को नरक चतुर्दषी
अथवा नरक चैदस भी कहते हैं।
इस दिन भगवान कृष्ण ने राक्षसराज
नरकासुर का वध किया था तथा इस
संसार को भय से मुक्त किया था।
इस दिन संध्या समय में पूजा की
जाती है और अपनी-अपनी परंपरा
के अनुसार दीये जलाए जाते हैं। इस
दिन एक पुराने दीपक में सरसों का
तेल तथा 5 अन्न के दाने डालकर
घर की नाली की ओर रखा जाता
है। इसे यम का दीपक कहा जाता
है। इस वर्ष छोटी दीपावली बुधवार,
कार्तिक कृष्ण पक्ष 22 अक्तूबर, 2014
को मनाया जाएगा। इस दिन घर से
नकारात्मक ऊर्जा का नाष करने के
लिए विषेष यंत्र का मंत्रों के साथ
प्रयोग किया जा सकता है ।
दीपावली का तीसरा
दिन--बड़ी दीपावली
यह पंचपर्वीय दीपावली का मुख्य
दिन होता है। इस दिन मां लक्ष्मी
जी, जो कि धन व समृ़िद्धदायक
देवी हैं, उनकी पूजा-अर्चना की
जाती है ताकि घर में धन व समृद्धि
का आगमन हो, अच्छाई की बुराई
पर विजय हो तथा संसार में व्याप्त
अंधकार को ज्योतिपर्व के साथ
खत्म किया जा सके। श्री लक्ष्मी
जी का पूजन व दीपावली का मुख्य
पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की
अमावस्या तिथि में प्रदोष काल, स्थिर
लग्न के समय मनाया जाता है।
संध्या समय में गणेष जी तथा लक्ष्मी
जी का पूजन पूरे विधि-विधान से
किया जाता है। पूजन के बाद मिठाई
खाने का रिवाज है। बच्चे और बड़े
मिलकर आतिषबाजी चलाते हैं।
बम-पटाखे फोड़ते हैं। अंधकार पर
प्रकाष की विजय का यह पावन पर्व
समाज में उल्लास, भाईचारे व प्रेम
का संदेष फैलाता है। यह त्यौहार
23 अक्तूबर 2014, बृहस्पतिवार को
मनाया जाएगा। इस दिन गणेष यंत्र
व श्री यंत्र की स्थापना के साथ मंत्र
जाप विषेष फलदायी होते हैं। इससे
घर की नकारात्मक ऊर्जा का नाष
होता है तथा घर में सुख, धन तथा
समृद्धि का आगमन होता है।
दीपावली का चैथा दिन
गोवर्धनपूजा/अन्नकूट
दीपावली से अगले दिन गोवर्धन
पूजा की जाती है। इस दिन श्रीकृष्ण
ने गोवर्धन पर्वत उठाकर बृजवासियों
का उद्धार किया था तथा बृजवासियों
को गोवर्धन पूजा करने के लिए
प्रोत्साहित किया था। इस दिन को
अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता
है। हिन्दूजन मंदिरों व घरों में भगवान
श्रीकृष्ण के प्रसाद हेतु विभिन्न प्रकार
की सब्जियों को मिलाकर एक
सब्जी बनाते हैं, जिसे अन्नकूट कहा
जाता है। अन्नकूट के साथ पूरी भी
बनाई जाती है। कहीं कहीं साथ
में कढ़ी-चावल भी बनाए जाते हैं।
रात्रि समय में गोवर्धन पूजा भी की
जाती है । इस वर्ष गोवर्धनपूजा/
अन्नकूट का पर्व शुक्रवार को कार्तिक
मास, शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को 24
अक्तूबर, 2014 को मनाया जाएगा।
इस दिन आवष्यकतानुसार रूद्राक्ष
धारण कर आप सुख, समृद्धि, धन,
मान, सम्पदा आदि प्राप्त कर सकते
हैं ।
दीपावली का पांचवां
दिन--भैया दूज
दीपावली का पांचवां दिन भैया दूज
के नाम से जाना जाता है जोकि
गोवर्धन पूजा के बाद मनाया जाता
है तथा सामान्यतः दीपावली के दो
दिन बाद इस त्यौहार को मनाते हैं।
दीपावली का यह पर्व भाई-बहनों
को समर्पित है । हिन्दू धर्मग्रंथों के
अनुसार इस दिन मुत्यु के देवता यम
अपनी बहन यमुना के घर जाते हैं।
यमराज ने अपनी बहन यमुना को
एक वरदान दिया था जिसके अनुसार
इस दिन जो भी यमुना में स्नानादि
करेगा वह सभी प्रकार के पापों से
मुक्त हो जायेगा तथा अपने अंत
समय में बैकुंठधाम को प्राप्त करेगा।
इसी कारण से इस दिन भाई अपनी
बहन के घर अपने कल्याण हेतु जाते
हैं। यह त्यौहार कार्तिक शुक्ल पक्ष
की द्वितीया को मनाया जाता है। इस
दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक
करती हैं और मिठाई खिलाती हैं।
भाई बदले में बहन को उपहार देते
हैं। इस वर्ष भैया दूज का यह त्यौहार
शनिवार, कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष
की द्वितीया तिथि को 25 अक्तूबर
2014 को मनाया जाएगा।