एक मुखी रुद्राक्ष
इस रुद्राक्ष को धारण करने से शिव 
तत्व की प्राप्ति होती है। रुद्राक्षों में 
एक मुखी रुद्राक्ष का विशेष महत्व 
है। असली एक मुखी रुद्राक्ष बहुत 
दुर्लभ है। इसका मूल्य विशेषतः 
अत्यधिक होता है। यह अभय लक्ष्मी 
दिलाता है। इसके धारण करने पर 
सूर्य जनित दोषों का निवारण होता 
है। नेत्र संबंधी रोग, सिर दर्द, हृदय 
का दौरा, पेट तथा हड्डी संबंधित 
रोगों के निवारण हेतु इसको धारण 
करना चाहिए। यह यश और शक्ति 
प्रदान करता है। इसे धारण करने से 
आध्यात्मिक उन्नति, एकाग्रता, 
सांसारिक, शारीरिक, मानसिक तथा 
दैविक कष्टों से छुटकारा, मनोबल में 
वृद्धि होती है। कर्क, सिंह और मेष 
राशि वाले इसे माला रूप में धारण 
अवश्य करें। एक मुखी रुद्राक्ष को 
धारण करने का मंत्र: ऊँ एं हे औं ऐं 
ऊँ। इस मंत्र का जाप 108 बार (एक 
माला) करना चाहिए तथा इसको 
सोमवार के दिन धारण करें।
दो मुखी रुद्राक्ष
दो मुखी रुद्राक्ष को शिव शक्ति का 
स्वरूप माना जाता है। यह चंद्रमा के 
कारण उत्पन्न प्रतिकूलता के लिए 
धारण किया जाता है। हृदय, फेफड़ों, 
मस्तिष्क, गुर्दों तथा नेत्र रोगों में इसे 
धारण करने पर लाभ पहुंचता है। यह 
ध्यान लगाने में सहायक है। इसे 
धारण करने से सौहार्द्र लक्ष्मी का 
वास रहता है। इससे भगवान 
अर्द्धनारीश्वर प्रसन्न होते हैं। उसकी 
ऊर्जा से सांसारिक बाधाएं दूर होती 
हैं तथा दाम्पत्य जीवन सुखी रहता 
है। इसे स्त्रियांे के लिए उपयोगी 
माना गया है। संतान जन्म, गर्भ रक्षा 
तथा मिर्गी रोग के लिए उपयोगी 
माना गया है।
धनु व कन्या राशि वाले तथा कर्क, 
वृश्चिक और मीन लग्न वालों के 
लिए इसे धारण करना लाभप्रद होता 
है। दो मुखी रुद्राक्ष धारण का मंत्र: 
ऊँ ह्रीं क्षौं श्रीं ऊँ।
तीन मुखी रुद्राक्ष
तीन मुखी रुद्राक्ष को अग्नि का रूप 
कहा गया है। मंगल इसका अधिपति 
ग्रह है। मंगल ग्रह की प्रतिकूलता के 
निवारण हेतु इसे धारण किया जाता 
है। यह मूंगे से भी अधिक प्रभावशाली 
है। मंगल को लाल रक्त कण, गुर्दा, 
ग्रीवा, जननेन्द्रियों का कारक ग्रह 
माना गया है। अतः तीन मुखी रुद्राक्ष 
को ब्लडप्रेशर, चेचक, बवासीर, 
रक्ताल्पता, हैजा, मासिक धर्म संबंधित 
रोगों के निवारण हेतु धारण करना 
चाहिए। इसके धारण करने से श्री, 
तेज एवं आत्मबल मिलता है। यह 
सेहत व उच्च शिक्षा के लिए शुभ 
फल देने वाला है। इसे धारण करने 
से दरिद्रता दूर होती है तथा पढ़ाई 
व व्यापार संबंधित प्रतिस्पर्धा में 
सफलता मिलती है। अग्नि स्वरूप 
होने के कारण इसे धारण करने से 
अग्नि देव प्रसन्न होते हैं, ऐश्वर्य की 
प्राप्ति होती है तथा शरीर स्वस्थ 
रहता है। मेष, सिंह, धनु राशि वाले 
तथा मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु 
तथा मीन लग्न के जातकों को इसे 
अवश्य धारण करना चाहिए। इसे 
धारण करने से सर्वपाप नाश होते हैं। 
तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करने का 
मंत्र - ऊँ रं हैं ह्रीं औं। इस मंत्र को 
प्रतिदिन 108 बार यथावत पढ़ें।
चार मुखी रुद्राक्ष
चार मुखी रुद्राक्ष को ब्रह्म स्वरूप 
माना जाता है। बुध ग्रह की 
प्रतिकूलता को दूर करने के लिए 
इसे धारण करना चाहिए। मानसिक
रोग, पक्षाघात, पीत ज्वर, दमा तथा 
नासिका संबंधित रोगों के निदान हेतु 
इसे धारण करना चाहिए। चार मुखी 
रुद्राक्ष धारण करने से वाणी में 
मधुरता, आरोग्य तथा तेजस्विता की 
प्राप्ति होती है। इसमें पन्ना रत्न के 
समान गुण हैं। सेहत, ज्ञान, बुद्धि 
तथा खुशियों की प्राप्ति में सहायक 
है। इसे चारों वेदों का रूप माना 
गया है तथा धर्म, अर्थ, काम और 
मोक्ष चतुर्वर्ग फल देने वाला है। इसे 
धारण करने से सांसारिक दुःखों, 
शारीरिक, मानसिक, दैविक कष्टों 
तथा ग्रहों के कारण उत्पन्न बाधाओं 
से छुटकारा मिलता है। वृष, मिथुन, 
कन्या, तुला, मकर व कुंभ लग्न के 
जातकों को इसे धारण करना चाहिए। 
चार मुखी रुद्राक्ष धारण करने का 
मंत्र - ऊँ बां क्रां तां हां ईं। सोमवार 
को यह मंत्र 108 बार जपकर धारण 
करें।
पांच मुखी रुद्राक्ष
इस रुद्राक्ष को रुद्र का स्वरूप कहा 
गया है। बृहस्पति ग्रह की प्रतिकूलता 
को दूर करने के लिए इसको धारण 
करना चाहिए। इसे धारण करने से 
निर्धनता, दाम्पत्य सुख में कमी, जांघ 
व कान के रोग, मधुमेह जैसे रोगों 
का निवारण होता है। पांच मुखी 
रुद्राक्ष धारण करने वालों को सुख, 
शांति व प्रसिद्धि प्राप्त होते हैं। इसमें 
पुखराज के समान गुण होते हैं। यह 
हृदय रोगियों के लिए उŸाम है। 
इससे आत्मिक विश्वास, मनोबल 
तथा ईश्वर के प्रति आसक्ति बढ़ती 
है। मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु, 
मीन वाले जातक इसे धारण कर 
सकते हैं। पांच मुखी रुद्राक्ष धारण 
करने का मंत्र: ऊँ ह्रां क्रां वां हां। 
सोमवार की सुबह मंत्र एक माला 
जप कर, इसे काले धागे में विधि
पूर्वक धारण करना चाहिए।
छः मुखी रुद्राक्ष
छः मुखी रुद्राक्ष भगवान शिव के पुत्र 
कार्तिकेय का स्वरूप है। शुक्र ग्रह 
की प्रतिकूलता होने पर इसे अवश्य 
धारण करना चाहिए। नेत्र रोग, 
गुप्तेन्द्रियों, पुरुषार्थ, काम-वासना 
संबंधित व्याधियों में यह अनुकूल 
फल प्रदान करता है। इसके गुणों 
की तुलना हीरे से होती है। यह दाईं 
भुजा में धारण किया जाता है। इसे 
प्राण प्रतिष्ठित कर धारण करना 
चाहिए तथा धारण के समय ‘ऊँ नमः 
शिवाय’ मंत्र का जप अवश्य करना 
चाहिए। इसे हर राशि के बच्चे, वृद्ध, 
स्त्री, पुरुष कोई भी धारण कर सकते 
हैं। गले में इसकी माला पहनना अति 
उŸाम है। कार्तिकेय तथा गणेश का 
स्वरूप होने के कारण इसे धारण 
करने से ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति 
होती है। इसे धारण करने वाले पर 
माँ पार्वती की कृपा होती है। 
आरोग्यता तथा दीर्घायु प्राप्ति के 
लिए वृष व तुला राशि तथा मिथुन, 
कन्या, मकर व कुंभ लग्न वाले 
जातक इसे धारण कर लाभ उठा 
सकते हैं। छः मुखी रुद्राक्ष धारण 
करने का मंत्र: ‘ऊँ ह्रीं क्लीं सौं ऐं’।
इसे धारण करने के पश्चात् प्रतिदिन 
‘ऊँ ह्रीं हु्रं नमः’ मंत्र का एक माला 
जप करें।
सात मुखी रुद्राक्ष
इस रुद्राक्ष के देवता सात माताएं व 
हनुमानजी हैं। यह शनि ग्रह द्वारा 
संचालित है। इसे धारण करने पर 
शनि जैसे ग्रह की प्रतिकूलता दूर 
होती है तथा नपुंसकता, वायु, स्नायु 
दुर्बलता, विकलांगता, हड्डी व मांस 
पेशियों का दर्द, पक्षाघात, सामाजिक 
चिंता, क्षय व मिर्गी आदि रोगों में यह 
लाभकारी है। इसे धारण करने से 
कालसर्प योग की शांति में सहायता 
मिलती है। यह नीलम से अधिक 
लाभकारी है तथा किसी भी प्रकार
का प्रतिकूल प्रभाव नहीं देता है। इसे 
गले व दाईं भुजा में धारण करना 
चाहिए। इसे धारण करने वाले की 
दरिद्रता दूर होती है तथा यह 
आंतरिक ज्ञान व सम्मान में वृद्धि 
करता है। इसे धारण करने वाला 
उŸारोŸार उŸाम प्रगति पथ पर चलता 
है तथा कीर्तिवान होता है। मकर व 
कुंभ राशि वाले, इसे धारण कर लाभ 
ले सकते हैं। सात मुखी रुद्राक्ष धारण 
करने का मंत्र: ‘ऊँ ह्रं क्रीं ह्रीं सौं’।
इसे सोमवार के दिन काले धागे में 
धारण करें।
आठ मुखी रुद्राक्ष
आठ मुखी रुद्राक्ष में कार्तिकेय, गणेश 
और गंगा का अधिवास माना जाता 
है। राहु ग्रह की प्रतिकूलता होने पर 
इसे धारण करना चाहिए। मोतियाविंद, 
फेफड़े के रोग, पैरों में कष्ट, चर्म रोग 
आदि रोगों तथा राहु की पीड़ा से यह 
छुटकारा दिलाने में सहायक है।
इसकी तुलना गोमेद से की जाती 
है। आठ मुखी रुद्राक्ष अष्ट भुजा देवी 
का स्वरूप है। यह हर प्रकार के 
विघ्नों को दूर करता है। इसे धारण 
करने वाले को अरिष्ट से मुक्ति 
मिलती है। इसे सिद्ध कर धारण 
करने से पितृदोष दूर होता है। मकर 
और कुंभ राशि वालों के लिए यह 
अनुकूल है। मेष, वृष, मिथुन, कर्क, 
सिंह, कन्या, तुला, कुंभ व मीन लग्न 
वाले इससे जीवन में सुख समृद्धि 
प्राप्त कर सकते हैं। आठ मुखी 
रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ ह्रां 
ग्रीं लं आं श्रीं’। सोमवार के दिन इसे 
खरीदकर काले धागे में धारण करें।
नौ मुखी रुद्राक्ष
नौ मुखी रुद्राक्ष को नव-दुर्गा स्वरूप 
माना गया है। केतु ग्रह की प्रतिकूलता 
होने पर इसे धारण करना चाहिए। 
ज्वर, नेत्र, उदर, फोड़े, फुंसी आदि 
रोगों में इसे धारण करने से अनुकूल 
लाभ मिलता है। इसे धारण करने स
केतु जनित दोष कम होते हैं। यह 
लहसुनिया से अधिक प्रभावकारी है। 
ऐश्वर्य, धन-धान्य, खुशहाली को 
प्रदान करता है। धर्म-कर्म, अध्यात्म 
में रुचि बढ़ाता है। मकर एवं कुंभ 
राशि वालों को इसे धारण करना 
चाहिए। नौमुखी रुद्राक्ष धारण करने 
का मंत्र: ‘ऊँ ह्रीं बं यं रं लं’। सोमवार 
को इसका पूजन कर काले धागे में 
धारण करना चाहिए।
दस मुखी रुद्राक्ष
दस मुखी रुद्राक्ष में भगवान विष्णु 
तथा दसमहाविद्या का निवास माना 
गया है। इसे धारण करने पर प्रत्येक 
ग्रह की प्रतिकूलता दूर होती है। यह 
एक शक्तिशाली रुद्राक्ष है तथा इसमें 
नवरत्न मुद्रिका के समान गुण पाये 
जाते हैं। यह सभी कामनाओं को पूर्ण 
करने में सक्षम है। जादू-टोने के 
प्रभाव से यह बचाव करता है। ‘ऊँ 
नमः शिवाय’ मंत्र का जप करने से 
पूर्व इसे प्राण-प्रतिष्ठित अवश्य कर 
लेना चाहिए। मानसिक शांति, 
भाग्योदय तथा स्वास्थ्य का यह 
अनमोल खजाना है। सर्वग्रह इसके 
प्रभाव से शांत रहते हैं। मकर तथा 
कुंभ राशि वाले जातकों को इसे 
प्राण-प्रतिषिठत कर धारण करना 
चाहिए। दस मुखी रुद्राक्ष धारण 
करने का मंत्र: ‘ऊँ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं 
ऊँ’। काले धागे में सोमवार के दिन 
धारण करें।
ग्यारह मुखी रुद्राक्ष
ग्यारह मुखी रुद्राक्ष भगवान इंद्र का 
प्रतीक है। यह ग्यारह रुद्रों का 
प्रतीक है। इसे शिखा में बांधकर 
धारण करने से हजार अश्वमेध यज्ञ 
तथा ग्रहण में दान करने के बराबर 
फल प्राप्त होता है। इसे धारण करने 
से समस्त सुखों में वृद्धि होती है। 
यह विजय दिलाने वाला तथा 
आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करने वाला 
है। दीर्घायु व वैवाहिक जीवन में 
सुख-शांति प्रदान करता है। विभिन्न 
प्रकार के मानसिक रोगों तथा विकारों 
में यह लाभकारी है तथा जिस स्त्री 
को संतान प्राप्ति नहीं होती है इसे 
विश्वास पूर्वक धारण करने से बंध्या 
स्त्री को भी संतान प्राप्त हो सकती 
है। इसे धारण करने से बल व तेज 
में वृद्धि होती है। मकर व कुंभ राशि 
के व्यक्ति इसे धारण कर जीवन-पर्यंत 
लाभ प्राप्त कर सकते हैं। ग्यारह 
मुखी रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: 
‘ऊँ रूं मूं औं’। विधि विधान से पूजन 
अर्चना कर काले धागे में सोमवार के 
दिन इसे धारण करना चाहिए।
बारह मुखी रुद्राक्ष
बारह मुखी रुद्राक्ष को विष्णु स्वरूप 
माना गया है। इसे धारण करने से 
सर्वपाप नाश होते हैं। इसे धारण 
करने से दोनों लोकों का सुख प्राप्त 
होता है तथा व्यक्ति भाग्यवान होता 
है। यह नेत्र ज्योति में वृद्धि करता 
है। यह बुद्धि तथा स्वास्थ्य प्रदान 
करता है। यह समृद्धि और आध्यात्मिक 
ज्ञान दिलाता है। दरिद्रता का नाश 
होता है। मनोबल बढ़ता है। सांसारिक 
बाधाएं दूर होती हैं तथा ऐश्वर्य की 
प्राप्ति होती हैेे तथा असीम तेज एवं 
बल की प्राप्ति होती है। बारह मुखी 
रुद्राक्ष धारण करने का मंत्र: ‘ऊँ ह्रीं 
क्षौंत्र घुणंः श्रीं’। मंत्रोच्चारण के साथ 
प्रातः काले धागे में सोमवार को पूजन 
अर्चन कर इसे धारण करें।
तेरह मुखी रुद्राक्ष
यह रुद्राक्ष साक्षात् इंद्र का स्वरूप 
है। यह समस्त कामनाओं एवं 
सिद्धियों को प्रदान करने वाला है। 
निः संतान को संतान तथा सभी 
कार्यों में सफलता मिलती है अतुल 
सम्पŸिा की प्राप्ति होती है तथा 
भाग्योदय होता है। यह समस्त शक्ति 
तथा ऋद्धि-सिद्धि का दाता है। यह 
कार्य सिद्धि प्रदायक तथा मंगलदायी 
है। सिंह राशि वालों के लिए यह 
उŸाम है। तेरह मुखी रुद्राक्ष धारण 
करने का मंत्र: ‘ऊँ इं यां आप औं’ं 
प्रातः काल स्नान कर आसन पर 
भगवान के समक्ष बैठकर विधि-विधान 
से पूजन कर काले धागे में सोमवार 
को इसे धारण करना चाहिए। ‘ऊँ ह्रीं 
नमः’। मंत्र का भी उच्चारण किया 
जा सकता है।
चैदह मुखी रुद्राक्ष
यह भगवान शंकर का सबसे प्रिय 
रुद्राक्ष है। यह हनुमान जी का स्वरूप 
है। धारण करने वाले को परमपद 
प्राप्त होता है। इसे धारण करने से 
शनि व मंगल दोष की शांति होती 
है। दैविक औषधि के रूप में यह 
शक्ति बनकर शरीर को स्वस्थ रखता 
है। सिंह राशि वाले इसको धारण 
करें, तो उŸाम रहेगा।
चैदह मुखी रुद्राक्ष धारण करने का 
मंत्र: ‘ऊँ औं हस्फ्रे खत्फैं हस्त्रौं 
हसत्फ्रैं’। सोमवार के दिन स्नानादि 
कर पूजन-अर्चन कर काले धागे में 
इसे धारण करें।