विश्वव्यापी बहाई समुदाय इस कार्य
में तल्लीन है कि किस प्रकार सभ्यता
निर्माण की प्रक्रिया में यह अपना
योगदान दे सके। यह दो प्रकार के
योगदान को महत्व दे रहा है।
पहले प्रकार का योगदान बहाई
समुदाय के विकास और उन्नति
से सम्बन्धित है और दूसरा इसकी
समाज में सहभागिता से।
पहले प्रकार के योगदान के सन्दर्भ
में यह कहा जा सकता है कि बहाई
पूरे संसार में निरहंकारी वातावरण
में एक ऐसी कार्यप्रणाली व समरूपी
प्रषासनिक ढांचों की स्थापना के
लिए प्रयासरत है जो मानवता की
एकात्मकता के सिद्धान्त व इसे नया
आधार देने वाले विष्वास को मूत्र्त
रूप देते हैं।
- इनमें से कुछ विष्वास ये हैं-
सचेतन आत्मा का कोई लिंग,
जाति या वर्ग आदि नहीं होता
और इस प्रकार के विष्वास से
हर प्रकार के भेदभाव को मिटाया
जाता है क्योंकि इस प्रकार के
भदेभाव का ही यह एक ओछा
रूप है कि महिलाओं की
योग्यताओं को नजरअंदाज करके
उन्हें उनके विभिन्न उद्देष्यों की
ओर बढ़ने से रोका जाता रहा
है।
- भेदभाव का मूल कारण अज्ञानता
है जिसे केवल षिक्षा का
प्रचार-प्रसार करके ही मिटाया
जा सकता है क्योंकि ऐसा होने
से ही ज्ञान जन-2 तक पहंुच
पाएगा। ‘धर्म और विज्ञान’ ज्ञान
और अभ्यास की पूरक प्रणालियां
हैं जिनकी सहायता से हम इस
विष्व को समझ पाते हैं और
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि
धर्म और विज्ञान की बदौलत
ही सभ्यता अर्थात सामाजिक
विकास की राह सरल होती है।
- बिना विज्ञान के धर्म शीघ्र ही
एक उन्माद या अन्धविष्वास
में परिवर्तित हो जाता है और
बिना धर्म के विज्ञान अपरिष्कृत
भौतिकवाद का साधन बन जाता
है।
- हमारा ऐसा मानना है कि
भौतिकवाद और अध्यात्मवाद में
सक्रिय तालमेल के फल के रूप
में सच्ची समृद्धि तब तक हमारी
पहुंच से परे रहेगी जब तक हमारे
जीवन में हमारी उपभोक्तावाद
की प्रवृत्ति के दैत्य का प्रभुत्व
बढ़ा रहेगा।
- न्याय आत्मा की शक्ति, क्षमता,
योग्यता व संकाय है। यही
शक्ति प्राणी को सत्य व झूठ में
भेद करने में सक्षम बनाती है।
जब इसे सामाजिक मुद्दों पर
समुचित रूप से प्रत्यारोपित किया
जाता है तो यह एकता स्थापित
करने का एकमात्र व सर्वाधिक
महत्वपूर्ण उपकरण बन जाता है।
सेवा की भावना से किया गया
कार्य प्रार्थना का ही एक रूप है।
इस उद्देष्य को पूरा कर पाना
एक जटिल कार्य है यद्यपि बहाई
समुदाय ज्ञान प्राप्ति की एक
ऐसी दीर्घावधि वाली प्रक्रिया में
समर्पित है जो इस उद्देष्य की
पूर्ति हेतु समुदाय के सम्मिलित
होने को आवष्यक बताती है।
- हमें यह जानना होगा कि विभिन्न
समुदायों को बिना संघर्ष के किस
प्रकार एक साथ लाया जा सकता
है। विघटनकारी, पक्षपातपूर्ण,
हिमायती व गुरिल्ला मानसिकता
का परित्याग कर दें, विचार
और कार्य में उच्च कोटि की
समानता व एकता को प्रोत्साहन
दें और तहेदिल व तन्मयता से
सहभागी बनें। यह जानने का
प्रयास करें कि किस प्रकार से
एक ऐसे समुदाय की गतिविधियों
का प्रबंधन किया जाए जिसमें
पौरोहित्य सम्बन्धी-विषेषाधिकारों
वाला शासकीय वर्ग न हो।
-किस प्रकार से लोगों को
निष्क्रियता व विषाद की कैद से
मुक्त होने में सक्षम बनाएं ताकि
उन्हें आध्यात्मिक, सामाजिक व
बौद्धिक विकास की गतिविधियों
में लगाया जा सके। हमें श्रेष्ठ
स्तरीय ऊर्जाओं वाले युवा वर्ग
को मानव सभ्यता की उन्नति में
योगदान करने हेतु प्रोत्साहित
करना होगा।
- हमें परिवार के भीतर ऐसी
गतिविधियों को जन्म देने की
आवष्यता है जिनके माध्यम से
भौतिक व आध्यात्मिक समृद्धि
प्राप्त की जा जाए। किस प्रकार
से यह संभव हो सकेगा कि
परामर्षक प्रक्रिया के बहुआयामी
परिपे्रक्ष्यों में श्रेष्ठ निर्णय लेने का
लाभ लिया जा सके।
इस प्रकार केे सभी प्रष्नों का जवाब
देने के लिए बहाई समुदाय ने एक
ऐसी प्रणाली को अपनाया है जिसकी
विषेषताओं में क्रिया, चिन्तन, परामर्ष,
अध्ययन व अध्ययन में आषा, प्रेम
व आस्था को सुदृढ़ करने वाला
साहित्य प्रमुख है। परन्तु साथ ही
कार्य प्रणाली के वैज्ञानिक विष्लेषण
को प्रकट करने वाले साहित्य को भी
समान महत्व दिया गया है।
इस आलेख को समझ कर हम यह
निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि प्रत्येक
श्रेष्ठ स्तरीय सभ्यता में भौतिकवाद
और आध्यात्मवाद के सामंजस्य को
महत्व दिया गया।
भौतिकवाद मानव के उत्थान के
लिए आवष्यक है लेकिन अति
उपभोक्तावाद की प्रवृत्ति आध्यात्मिक
पक्ष को निष्क्रिय करने लगती है
जिस कारण मानसिक शान्ति व
समाज में एकता का अभाव तथा ध्
ार्म का उन्माद में परिवर्तित हो जाना
जैसे दुष्परिणाम उत्पन्न हो सकते हंै।
ज्योतिष में गुरु ग्रह को ज्ञान का
कारक माना जाता है जिसके कारण
मानव जाति जियो और जीने दो के
श्रेष्ठ सूत्र को धर्म का प्रतिपादक
मानती है तथा उपभोक्तावाद
व अहंकार की अपेक्षा सेवा की
भावना को अधिक महत्व देती है।
गुरु ग्रह के बिना आध्यात्मिकता व
सांसारिकता मंे समन्वय नहीं स्थापित
हो सकता और इनमें समन्वय
स्थापित हुए बिना श्रेष्ठ सभ्यता का
निर्माण नहीं हो सकता। जिस तरह
से जन्म कुण्डली के सभी ग्रहों में
गुरु का महत्व इसलिए सर्वाधिक हो
जाता है क्योंकि यह जातक को न
केवल बुद्धिजीवी व ज्ञानी बनाता है
बल्कि उसे भाग्यषाली व धन सम्पन्न
भी बनाता है। परन्तु उसका जीवन
अन्यजनों से इसलिए श्रेष्ठ होता है
क्योंकि उसमें सेवा, विनम्रता व संतोष
की भावना भी होती है तथा वह न
केवल स्वयं उन्नति करता है अपितु
दूसरों की उन्नति में भी सहायक
भूमिका निभाता है।
ठीक इसी प्रकार मेदिनीय ज्योतिष
में भी संगठनात्मक योग्यताओं के
सृजन में व सभ्य व सुषिक्षित समाज
के गठन में गुरु ग्रह का योगदान
सर्वोपरि है क्योंकि इसी ग्रह के
प्रभाव से मानव समाज में भेदभाव की
कुरीतियों को दूर करने वाले समाज
सुधारकों का अविर्भाव होता है। गुरु
ग्रह के प्रभाव से ही अज्ञनता मिटती है
और समुचित शिक्षा का प्रचार प्रसार
संभव हो पाता है। धर्म और विज्ञान
के पंडितों का जन्मदाता तो गुरु है
ही साथ ही यह आध्यात्मिकता और
भौतिकवाद में समन्वय स्थापित करने
का सूत्रधार भी है। गुरु ग्रह के प्रभाव
से ही अन्याय के विरूद्ध मानवता की
आवाज बुलंद हो पाती है। गुरु ग्रह
से ही प्राणी में श्रेष्ठ संस्कार, प्रार्थना
व सेवा आदि सद्गुणों का विकास
होता है। समाज में विभिन्न समुदायों
में एकता स्थापित करने तथा जन
सामान्य के विचारों में समरूपता लाने
में इस ग्रह का महत्वपूर्ण योगदान है।
लोगों को यह कर्मशील व प्रगतिशील
बनाता है तथा जाति, समाज व
राष्ट्र की उन्नति का पर्याय है।
अतः श्रेष्ठतम समाज के नवनिर्माण
के लिए हम गुरु ग्रह के आभारी
हैं।