क्यों?

क्यों?  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 7683 | मई 2014

प्रश्न: रजस्वला स्त्री अस्पृश्य क्यों? उत्तर: स्त्री के शरीर में आर्तव (एक प्रकार का रुधिर) एक मास पर्यन्त इकट्ठा होता रहता है। उसका रंग काला पड़ जाता है तब वह धमनियों द्वारा स्त्री की योनि के मुख पर आकर, बाहर निकलना प्रारंभ होता है, इसी को ‘रजोदर्शन’ कहते हैं। रजोदर्शन से रजनिवृत्ति के चार दिनों के मध्यकाल में स्त्री को ‘रजस्वला’ कहते हैं। रजस्वला के दिनों में स्त्री को अस्पृश्य कहा गया है तथा उसका छुआ हुआ जल भी लोग नहीं पीते। इन चार दिनों में उसे अस्पृश्य समझा जाता है तथा रसोईघर में उसका प्रवेश शास्त्र-वचनों के अनुसार निषिद्ध माना गया।

पर आजकल की व्यस्त कामकाजी महिला एवं समय की कमी वाले संसार में असुविधामूलक इन बातों को दकियानूसी प्रथा कहा जाने लगा है। पर सच तो यह है कि दुर्गन्धादि दोषयुक्त होने के कारण स्त्री की अपवित्रता इन दिनों प्रत्यक्ष सिद्ध है। इन दिनों स्त्री के स्पर्श मात्र से शुद्ध जल भी संक्रामक हो जायेगा रजस्वला के स्राव में विषैले तत्त्वों पर अनेक वैज्ञानिक अनुसंधानों में इन दिनों स्त्रियों को अस्पृश्य घोषित किया है। प्रश्न: रजस्वला स्त्रियों के लिये धर्मशास्त्र ने क्या नियम निर्धारित किये हैं? उत्तर:

1. रजस्वला स्त्री को चाहिये कि वह ऋतुकाल में ब्रह्मचारिणी रहे।

2. दिन में शयन न करे

3. आंखों में काजल न डाले

4. रोये नहीं

5. स्नान करना

6. चंदन-उबटन, सुगंधित चीज लगाना, तेल मालिश करना

7. दौड़ना

8. अत्यधिक हंसना

9. अधिक बोलना

10. भयंकर शब्द सुनना

11. केश-संस्कार

12. उग्रवायु सेवन करना

13. अत्यधिक परिश्रम करना आदि इन सभी कार्यों से यथाशक्ति दूर रहे।

प्रश्न: ऋतुस्नाता किसे कहते हैं? उत्तर: रजोनिवृत्ति के बाद चैथे दिन विधिपूर्वक स्नान की गई स्त्री को‘ऋतुस्नाता’ कहते हैं। प्रश्न: ऋतुस्नाता को क्या करना चाहिये? ऐसा क्यों? उत्तर: ‘‘पूर्वं पश्येत् ऋतुस्नाता, यादृशं नरमंगना। तादृशं जनयेत्पुत्रं, भर्तारं दर्शयेद् ततः।’’ ऋतुस्नाता स्त्री चैथे दिन सुंदर वस्त्र, आभूषण पहनकर मंगलाचरण तथा स्वास्तिवाचन करे। तत्पश्चात कुलवैद्य, कुलगुरू एवं पति के दर्शन करे। क्योंकि ऋतुस्नाता के अनन्तर स्त्री जैसे पुरुष का प्रथम दर्शन करती है, उसको उसी प्रकार की संतान उत्पन्न होगी।

प्रश्न: नवजात शिशु को माता का दूध क्यों पिलायें? उत्तर: पाश्चात्य देश के कुछ मनचले डाॅक्टरों ने इस प्रकार के विचार व्यक्त किये थे कि स्त्रियों के स्वास्थ्य-नाश का कारण उनका बच्चों को दूध पिलाना है। इससे स्त्री के शरीर में निर्बलता आती है और वे जल्दी वृद्ध हो जाती हैं। विदेशी शिक्षा से दीक्षित नर-नारियों पर इसका जादू-सा प्रभाव हुआ, फलतः डिब्बों के बंद दूध का प्रचलन अत्यधिक बढ़ गया। नवजात शिशु को बंद डिब्बे के दूध पिलाने से अनेक प्रकार के रोग हो जाते हैं तथा उसका मानसिक विकास नहीं हो पाता है।

अब डाॅक्टर लोग एवं विभिन्न देशों की सरकारें ही टी. वी. पर विज्ञापन कर रही हैं कि नवजात शिशु को मां का दूध ही पिलाना चाहिये। स्तनपान मधु अर्थात् प्रेम-भावना का स्रोत है जो बालक के लिये पुष्टि तथा बलदायक है। माता का दूध उसके वात्सल्य प्रेम से मिश्रित होता है। वो मजा निर्जीव डिब्बों में कहां? माता का दूध बच्चे के लिये सब औषधियों से ऊपर, अमृत तुल्य होता है।



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