लग्नानुसार रत्न निर्धारण

लग्नानुसार रत्न निर्धारण  

वात्सल्य शर्मा
व्यूस : 20260 | मई 2014

रत्नों का ज्योतिष में महत्व अत्यंत प्राचीन है। ग्रहों को अनुकूल बनाने हेतु रत्न धारण किये जाते हैं। ग्रहों के अनुसार रत्न इस प्रकार हैं: ग्रह रत्न सूर्य माणिक्य चंद्र मोती मंगल मंूगा बुध पन्ना गुरु पुखराज शुक्र हीरा शनि नीलम कई बार ज्योतिषी बोलते नामानुसार राशि तय कर रत्न धारण करने की सलाह देते हैं तथा कई बार परिस्थितिवश अथवा ग्रह दशा/ गोचर के अनुसार सलाह देते हैं। लग्न के अनुसार रत्न धारण करना ही श्रेष्ठ है तथा इस प्रकार जीवन भर इन रत्नों से लाभ उठाया जा सकता है।

बारह लग्न अनुसार जातक कौनसा रत्न धारण करे यह निम्न प्रकार से है: मेष लग्न मेष लग्न के जातक को मूंगा व माणिक्य व पुखराज धारण करना उचित रहेगा क्योंकि लग्नेश मंगल है, पंचमेश सूर्य व नवमेश गुरु हैं। इन्हें धारण करने से जातक के व्यक्तित्व, विद्या, संतान, यश, आयु, भाग्य का विकास हो सकता है। वृष लग्न वृष लग्न में शनि योगकारक ग्रह होता है क्योंकि कुंभ व मकर राशियां क्रमशः नवम् (त्रिकोण) व दशम (केंद्र) में होती है अतः वृष लग्न के लिए नीलम सर्वश्रेष्ठ रत्न है। नीलम धारण करने से जातक को भाग्य, शिक्षा, शासन, नौकरी, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, पद प्राप्ति हो सकती है।

शुक्र का लग्न होने के कारण हीरा भी धारण कर सकते हैं। परंतु इसके लिए शुक्र की स्थिति का आकलन कर लेना चाहिए क्योंकि मूलत्रिकोण राशि तुला षष्ठ भाव में स्थित है। मिथुन लग्न मिथुन लग्न में बुध योगकारक होता है क्योंकि मिथुन व कन्या राशियां क्रमशः प्रथम (केंद्र व त्रिकोण) तथा चतुर्थ केंद्र में स्थित हैं अतः मिथुन लग्न के लिए पन्ना, सर्वश्रेष्ठ रत्न है। पन्ना धारण करने से जातक को मानसिक शांति, व्यक्तित्व विकास, समस्त सुख, संपत्ति, वाहन व जन सहयोग प्राप्त हो सकता है। शुक्र की राशि मूल त्रिकोण भाव में स्थित है अतः हीरा व नीलम भी पहन सकते हैं।


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परंतु वृष राशि व्यय (द्वादश) भाव में तथा मकर आयु/मृत्यु (अष्टम) में स्थित है अतः अच्छी तरह से विचार कर लेना चाहिए। कर्क लग्न इस लग्न में मंगल योगकारक होता है क्योंकि वृश्चिक व मेष राशियां क्रमशः पंचम (त्रिकोण) तथा दशम (केन्द्र) में स्थित हैं अतः कर्क लग्न के लिए मूंगा सर्वश्रेष्ठ रत्न है। इसे धारण करने से विद्या, संतान, पद, मान-सम्मान-प्रतिष्ठा तथा पिता से लाभ प्राप्त हो सकता है। कर्क लग्न में लग्नेश चंद्र का रत्न मोती धारण करने से व्यक्तित्व में चहुंमुखी विकास हो सकता है। सिंह लग्न सिंह लग्न में मंगल योगकारक होता है क्योंकि मंगल चतुर्थ (केंद्र) व नवम (त्रिकोण) स्थान का स्वामी होता है। मूंगा धारण करने से जातक को भाग्य में प्रबलता व सभी सांसारिक सुखों की प्राप्ति हो सकती है। लग्नेश सूर्य है अतः माणिक्य धारण कर सकते हैं। कन्या लग्न कन्या लग्न में बुध योगकारक ग्रह होता है

क्योंकि प्रथम (केंद्र व त्रिकोण) तथा दशम (केंद्र) में स्थित क्रमशः कन्या व मिथुन राशियों का स्वामी है इसलिए कन्या लग्न के जातक के लिए पन्ना धारण लाभकारी हो सकता है जिससे व्यक्तित्व विकास, पद, प्रतिष्ठा, मान सम्मान की प्राप्ति हो सकती है। तुला लग्न इस लग्न में शनि योगकारक ग्रह होता है क्योंकि चतुर्थ (कंेद्र, व पंचम (त्रिकोण) भाव की राशियां क्रमशः मकर व कुंभ का स्वामी होता है। अतः नीलम धारण करना लाभकारी हो सकता है जिससे सुख-सम्पŸिा, धन, वाहन, विद्या, संतान, यश वृद्धि हो सकती है। तुला शुक्र की मूल त्रिकोण राशि लग्न में है अतः हीरा भी लाभकारी हो सकता है। वृश्चिक लग्न वृश्चिक लग्न में कर्क राशि भाग्य (नवम) भाव में स्थित होती है अतः इन जातकों के लिए मोती धारण करना लाभकारी हो सकता है जिससे भाग्यवृद्धि हो। धनु लग्न धनु लग्न में गुरु योगकारक होता है क्योंकि धनु व मीन राशियां क्रमशः प्रथम (केंद्र व त्रिकोण) व चतुर्थ (केंद्र) में होती हैं अतः गुरु रत्न पुखराज धारण करना चाहिए। भाग्येश सूर्य तथा पंचमेश मंगल होने के कारण माणिक्य व मूंगा भी लाभप्रद हो सकते हैं। मकर लग्न मकर लग्न में शुक्र योगकारक होता है


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क्योंकि पंचम (त्रिकोण) व दशम (केंद्र) का स्वामी होता है। अतः हीरा धारण करना लाभप्रद हो सकता है जो विद्या, संतान, यश, पद, मान आदि में वृद्धि कर सकता है। भाग्यवृद्धि के लिए पन्ना धारण कर सकते हैं क्योंकि बुध की मूल त्रिकोण राशि कन्या नवम भाव में स्थित है। कुंभ लग्न कुंभ लग्न में भी शुक्र योगकारक होता है क्योंकि चतुर्थ (केंद्र) व नवम (त्रिकोण) भाव का स्वामी होता है अतः हीरा धारण करना लाभप्रद हो सकता है जिससे भाग्यवृद्धि, वाहन, सुख, शांति, समृद्धि, पद आदि की प्राप्ति हो सकती है।

शनि की मूल त्रिकोण राशि कुंभ लग्न (केंद्र व त्रिकोण) में स्थित है अतः नीलम धारण करने से व्यय में कमी आयेगी व व्यक्ति का विकास भी होगा। मीन लग्न मीन लग्न में गुरु योगकारक होता है क्योंकि प्रथम (कंेद्र व त्रिकोण) तथा दशम (कंेद्र) का स्वामी होता है। अतः पुखराज धारण करना लाभप्रद हो सकता है जिससे व्यक्तित्व विकास, पद, मान, सम्मान, धन आदि में वृद्धि हो सकती है तथा मोती भी धारण कर सकते हैं क्योंकि कर्क राशि पंचम भाव में स्थित है जिससे, विद्या, संतान, यश लाभ मिल सकता है।



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