श्री बगलामुखी स्तोत्र-अर्थ एवं महत्व

श्री बगलामुखी स्तोत्र-अर्थ एवं महत्व  

रंजू नारंग
व्यूस : 57349 | मार्च 2009

श्री बगलामुखी स्तोत्र - अर्थ एवं महत्व रंजू नारंग त्रैलोक्य नक्षत्र स्तंभिनी, ब्रह्मास्त्र विद्या, षडकर्माधार विद्या, पीताम्बरा, बगला आदि नामों से विख्यात मां बगलामुखी की उपासना अनंतकाल से होती आ रही है। इस उपासना से प्रतिकूल ग्रह नक्षत्रों के प्रभावों का शमन भी किया जा सकता है। शत्रु बाधा निवारण, युद्ध, वाद-विवाद मुकदमे, लड़ाई-झगड़े आदि में विजय, प्रतियोगिता परीक्षा में सफलता, अधिकारी वर्ग को अपने अनुकूल बनाने, असाध्य रोगों से छुटकारा पाने, अचानक आई विपत्ति, ग्रहजनित पीड़ा के निवारण आदि के लिए मां बगलामुखी की उपासना करनी चाहिए। देवी बगलामुखी की उपासना यंत्र, मंत्र या तंत्र किसी भी माध्यम से की जाए, चमत्कारी प्रभाव का सृजन करती है। श्री बगलामुखी स्तोत्र का पाठ भी मां बगलामुखी की स्तुति करने का एक सरल माध्यम है। श्रद्धा-भक्तिपूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करने से मां की कृपा प्राप्त होती है। शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से प्रारंभ कर लगातार 43 दिन तक श्री बगलामुखी स्तोत्र का पाठ करें। प्रातःकाल स्नानादि निवृत्त होकर पीले वस्त्र पहन कर पीले आसन पर बैठें। मां बगलामुखी चित्र के समक्ष शुद्ध घी का दीपक जलाएं।

मां बगलामुखी यंत्र की भी पूजा करें। फिर पीले पुष्प, मिष्टान्न आदि अर्पित करके स्तोत्र का पाठ करें। संस्कृत में मंत्रोच्चारण संभव न हो, तो मनोयोगपूर्वक हिन्दी में ही पाठ करें। पाठ के पूर्व विनियोग आदि जरूर कर लें। विनियोग - ¬ अस्य श्री बगलामुखी स्तोत्रस्य नारद ऋषिः त्रिष्टुप छन्दः। श्री बगलामुखी देवता, ींीं बीजं स्वाहा शक्तिः ींीं कीलकं मम श्री बगलामुखी प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः। अर्थ - इस श्री बगलामुखी स्तोत्र के भगवान नारद ऋषि हैं। मां बगलामुखी देवता हैं। अपने छिपे हुए शत्रुओं की अनुचित वाणी, मुख, पद, जिह्वा, बुद्धि के स्तंभन के लिए मां बगलामुखी की कृपा प्राप्ति हेतु विनियोग करता हूं। ध्यान - निम्न मंत्र को पढ़ते हुए मां का ध्यान करें: सौवर्णासनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांषुकोल्लासिनीं, हेमाभांगरुचिं शषंकमुकुटां स्रक चम्पकस्त्रग्युताम्, हस्तैमुद्गर, पाषबद्धरसनां संविभृतीं भूषणैव्यप्तिांगी बगलामुखी त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तये। सोने के आसन पर स्थित, तीन नेत्रों वाली, स्वर्णकांति के समान चन्द्र मुकुट धारिणी चंपा के फूलों की माला पहने, हाथ में मुद्गर और पाष लिए, शत्रु की जिह्वा पकड़े, आभूषणों से सुसज्जित तीन लोकों को स्तंभित करने वाली जो पीताम्बरा देवी बैठी हैं, मैं उनका ध्यान करता हूं। ऊँ मध्ये सुधाब्धिमणिमण्डपरत्नवेदीं, सिंहासनोपरिगतां परिपीतवर्णाम्। पीताम्बराभरणमाल्यविभूषितांगी देवीं भजामि धृतमुदग्रवैरिजिव्हाम्।

।1।। अर्थ - अमृतमणियों से सजी हुई मंडप की रत्नजड़ित चैकी पर स्वर्ण सिंहासन पर बैठी पीतवर्णा, पीताम्बरा, आभूषणों से सुषोभित सुंदर अंगों वाली, शत्रु की जिह्वा पकड़े, मुद्गर हाथ में लिए देवी को मैं भजता हूं। जिह्वाग्रमादाय करेण देवी, वामेन शत्रून परिपीडयन्तीम्। गदाभिघातेन च दक्षिणेन, पीताम्बराढयां द्विभुजां भजामि

।। 2।। अर्थ - बाएं हाथ से शत्रु की जिह्वा का अग्रभाग तथा दाएं हाथ में मुद्गर पकड़े शत्रु को पीड़ा देने वाली, पीताम्बर से सुषोभित, दो भुजाओं वाली पीताम्बरा देवी को मैं भजता हूं। चलत्कनककुण्डलोल्लसित चारु गण्डस्थलां, लसत्कनकचम्पकद्युतिमदिन्दुबिम्बाननाम्।। गदाहतविपक्षकांकलितलोलजिह्वाचंलाम्। स्मरामि बगलामुखीं विमुखवांगमनस्स्तंभिनीम्

।। 3।। अर्थ - स्वर्णकुण्डलों के कंपन होने से सुषोभित कपोलों वाली, चंपा पुष्प से द्युतियुक्त, चंद्रबिंब सदृश मुख वाली, गदा से आहत शत्रु की चंचल जिह्वा को नष्ट करने वाली तथा शत्रु की वाणी, मन और मुख का स्तंभन करने वाली बगलामुखी पीताम्बरा का मैं स्मरण करता हूं। महत्व- इस मंत्र के पाठ से शत्रु की वाणी, मन व मुख स्तंभित हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में शत्रु अपनी शत्रुता नहीं निभा पाता। पीयूषोदधिमध्यचारुविलसद्रक्तोत्पले मण्डपे, सत्सिहासनमौलिपातितरिपुं प्रेतासनाध् यासिनीम्। स्वर्णाभांकरपीडितारिरसनां भ्राम्य˜दां विभ्रमामित्थं ध्यायति यान्ति तस्य विलयं सद्योऽथ सर्वापदः

।। 4।। अर्थ - सागर के मध्य में रक्तकमल दल के सिंहासन पर विराजमान शत्रुओं के शीषों को गिरा, प्रेतासन पर बैठी स्वर्ण समान प्रकाषयुक्त, शत्रु जिह्वा को पीड़ित करने वाली गदा को घुमाती हुई भगवती बगलामुखी के ध्यानमात्र से ही सभी विपत्तियों का क्षणमात्र में नाष होता है। ऐसी पीताम्बरा मां का मैं ध्यान करता हूँ। महत्व- इस मंत्र के पाठ के प्रभाव से साधक पर आने वाली विपत्तियां नष्ट हो जाती हैं। प्रतिकूल ग्रह के प्रभाव, बाधा, आदि सभी विपत्तियों का नाष होता है। देवि त्वच्चरणाम्बुजार्चनकृते यः पीतपुष्पान्जलीन्। भक्तया वामकरे निधाय च मनुम्मन्त्री मनोज्ञाक्षरम्। पीठध्यानपरोऽथ कुम्भकवषाद्वीजं स्मरेत् पार्थिवः। तस्यामित्रमुखस्य वाचि हृदये जाडयं भवेत् तत्क्षणात्

।। 5।। अर्थ - हे देवि! जो श्रद्धा से आपके चरणों के पूजन में पीले पुष्पों की अंजलि अर्पित करता है और सुंदर स्पष्ट अक्षरों से मंत्र का ध्यान करता है तथा आपके कुंभक वषाद् बीजमंत्रों का स्मरण करता है उस मनुष्य के शत्रु की वाणी मन एवं हृदय उसी क्षण जड़ हो जाते हैं। महत्व- इस मंत्र के साथ भगवती को पीले पुष्प अर्पित करने से शत्रु की वाणी, बुद्धि जकड़ जाती है अर्थात् सभी प्रकार की शत्रुता, व्याधियां कष्ट नष्ट हो जाते हैं। वादी मूकति रंकति क्षितिपतिवैष्वानरः शीतति। क्रोधी शाम्यति दुज्र्जनः सुजनति क्षिप्रानुगः खंजति।। गर्वी खर्वति सर्वविच्च जडति त्वद्यन्त्रणायंत्रितः। श्रीनित्ये बगलामुखी प्रतिदिनं कल्याणि तुभ्यं नमः

।। 6।। अर्थ - हे देवि! आपके द्वारा शत्रु की वाणी मूक हो जाती है, राजा रंक हो जाता है, धधकती अग्नि शांत हो जाती है, दुर्जन सज्जन हो जाता है, शीघ्रगामी लंगड़ा हो जाता है, घमंडी का घमंड चूर हो जाता है और शत्रु जड़वत् हो जाता है। आपके प्रभाव से संपूर्ण विष्व नियंत्रित होता है। हे लक्ष्मी! हे नित्ये! हे बगलामुखी! हे कल्याणी! मैं आपको प्रणाम करता हूं। महत्व- इस मंत्र के पाठ से सभी प्रकार के बाह्य व गुप्त शत्रु शांत होते हैं। क्रोध, अहंकार और लोभ रूपी शत्रु भी शांत हो जाते हैं। मन्त्रस्तावदलं विपक्षदलनं स्तोत्रं पवित्रं च ते, यन्त्रं वादिनियन्त्रणं त्रिजगतां जैत्रं च चित्रं च ते। मातः श्रीबगलेतिनामललितं यस्यास्ति जन्तोर्मुखे, त्वन्नामग्रहणेन संसदि मुखस्तम्भे भवेद्वादिनाम्

।। 7।। अर्थ - हे माते! आपके मंत्र के बल से शत्रुओं का दलन होता है। आपका स्तोत्र अत्यंत पवित्र है। आपका यंत्र वादी दल को नियंत्रित करने वाला, अति विचित्र, त्रिलोक को जीतने वाला है। जो व्यक्ति आपके मंत्र का स्मरण करता है उसके शत्रुओं के मुख का अवष्य ही स्तंभन हो जाता है। महत्व- इस मंत्र के प्रभाव से शत्रु का मुंह जड़ हो जाता है। वह कुछ नहीं बोल पाता। दष्टु स्तम्भ्नमगु ्र विघ्नषमन,ं दारिद्रयविद्रावणम,् भूभöीषमनं चलन्मृगदृषान्चेतः समाकर्षणम्। सौभाग्यैकनिकेतनं समदृषां कारुण्यपूर्णाऽमृतम्, मृत्योर्मारणमाविरस्तु पुरतो मातस्त्वदीयं वपुः

।। 8।। अर्थ - हे माते! दुष्टों का स्तंभन करने वाले, कठिन विघ्नों का नाष करने वाले, दरिद्रता को दूर करने वाले, राजाओं के भय का नाष करने वाले, सुंदरियों को आकर्षण प्रदान करने वाले, सौभाग्यदायक आश्रय देने वाले और मृत्यु से रक्षा करने वाले करुणा भरे आपके अमृत रूप के मैं दर्षन करता हूं। महत्व- इस मंत्र से स्तुति करने से मां विघ्नों और दारिद्र्य को दूर करती हैं तथा अपनी शरण में लेती हैं। मातर्भन्जय मे विपक्षवदनं जिव्हां च संकीलय, ब्राह्मीं मुद्रय नाषयाषुधिषणामुग्रांगतिं स्तम्भय। शत्रूंश्रूचर्णय देवि तीक्ष्णगदया गौरागिं पीताम्बरे, विघ्नौघं बगले हर प्रणमतां कारूण्यपूर्णेक्षणे

।। 9।। अर्थ - हे माते! मेरे शत्रुओं के मुख को तोड़ उनकी जिह्वा का कीलन करें, उनकी समस्त बुद्धि के विकार को नष्ट कर दें तथा वाणी एवं शीघ्रगामी गति का स्तंभन करें। हे देवि! हे गौरांगी! हे पीतांबरे! हे करुणापूर्ण नेत्रे! हे भगवती बगले! अपनी वज्र के समान गदा के प्रहार से शत्रुओं का चूर्ण कर हमारे सभी विघ्नों का नाष कर दें। महत्व- इस स्तुति से शत्रुओं की बुद्धि में परिवर्तन आता है तथा शत्रुता नष्ट होती है। मातभैरवि भद्रकालि विजये वाराहि विष्वाश्रये। श्रीविद्ये समये महेषि बगले कामेषि रामे रमे।। मातंगि त्रिपुरे परात्परतरे स्वर्गापवगप्रदे। दासोऽहं शरणागतः करुणया विष्वेष्वरि त्राहिमाम्

।। 10।। अर्थ - हे माते! हे भैरवी! हे भद्रकालि! हे विजये! हे वाराहि! हे विष्वाश्रये! हे लक्ष्मी! हे समये! हे महेषि! हे बगले! हे कामेषि! हे रमे! हे मातंगी! हे त्रिपुर सुन्दरि! हे परात्परे! हे स्वर्गापवर्गप्रदे! हे विष्वेष्वरि! मैं आपका दास शरणागत हूं, आप मेरी रक्षा करें। महत्व- इस स्तुति में मां के विभिन्न नामों को भजते हुए उनकी शरण में जाने से माता सदैव रक्षा करती हैं। सरम्भे चैरसंघे प्रहरणसमये बन्धने वारिमध् ये, विद्यावादे विवादे प्रकुपितनृपतौ दिव्यकाले निषायाम्। वष्ये वा स्तम्भने वा रिपुबधसमये निर्जने वा वने वा, गच्छस्तिष्ठंस्त्रिकालं यदि पठति षिवं प्राप्नुयादाषुधीरः

।। 11।। अर्थ - युद्ध में, चोरों के समूह में, प्रहार के समय में, बंधन में, जल के मध् य में, शास्त्रार्थ में, विवाद में, राजा के कुपित होने पर, रात्रि में, शुभ अवसर पर, वषीकरण में, स्तंभन के समय में, निर्जन स्थान में अथवा वन में, उठते बैठते हर समय जो व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ करता है, निष्चय ही सभी विपत्तियों से छुटकारा पाता है। महत्व- इस मंत्र के पाठ से मानव हर प्रकार की विपत्ति (ज्ञात अथवा अज्ञात) से मुक्त हो जाता है। त्वं विद्या परमा त्रिलोकजननी विघ्नौघसिंच्छेदिनी योषाकर्षणकारिणी त्रिजगतामानन्द सम्वध्र् िानी। दुष्टोच्चाटनकारिणीजनमनस्संमोहसंदायिनी, जिव्हाकीलनभैरवि! विजयते ब्रह्मादिमन्त्रो यथा

।। 12।। अर्थ - हे माते! आप परम विद्या हैं, त्रिलोकी माता हैं, विघ्नों को दूर करने वाली हैं। आप स्त्रियों का आकर्षण बढ़ाने वाली हैं, त्रिलोक में व्याप्त हैं, सर्वत्र आनंद को बढ़ाने वाली हैं, दुष्टों का उच्चाटन करने वाली हैं, सभी प्राणियों के मन को वष में करने वाली हैं, शत्रु की जीभ को अति निपुणता से कीलित करती हैं। हे भैरवि! जिस प्रकार ब्रह्मा आदि देवताओं के मंत्र सदा विजयप्रद होते हैं उसी प्रकार आपका मंत्र भी सर्वदा विजय कराता है। महत्व- इस मंत्र के पाठ से हर प्रकार की विघ्न बाधा पर विजय प्राप्त होती है। विद्याः लक्ष्मीः सर्वसौभाग्यमायुः पुत्रैः पौत्रैः सर्व साम्राज्यसिद्धिः। मानं भोगो वष्यमारोग्य सौख्यं, प्राप्तं तत्तद्भूतलेऽस्मिन्नरेण

।। 13।। अर्थ - आपके स्तोत्र का श्रवण तथा पाठ करने से विद्या, लक्ष्मी, सौभाग्य, आयु, पुत्र, पौत्र, मान, ऐष्वर्य, वषीकरण शक्ति, आरोग्य सुख आदि की प्राप्ति और साम्राज्य सिद्धि होती है। महत्व- इस मंत्र के पाठ से सभी प्रकार के भौतिक एवं आध्यात्मिक सुख प्राप्त होते हैं। यत्कृतं जपसन्नाहं गदितं परमेष्वरि।। दुष्टानां निग्रहार्थाय तद्गृहाण नमोऽस्तुते

।। 14।। अर्थ - हे देवि! हे परमेष्वरि! आपके जप करने वाले तथा मुझसे जो उच्चारित किया गया मंत्र है, उससे दुष्टों का नाष होता है। आपको मेरा बारंबार नमस्कार है। हे भगवति! इसे ग्रहण कीजिए। ब्रह्मास्त्रमिति विख्यातं त्रिषु लोकेषु विश्रुतम्। गुरुभक्ताय दातव्यं न दे्यं यस्य कस्यचित्

।। 15।। अर्थ - यह आपका स्तोत्र ब्रह्मास्त्र की भांति तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। यह स्तोत्र गुरु के भक्त को ही देना चाहिए। पीतांबरा च द्वि-भुजां, त्रि-नेत्रां गात्र कोमलाम्। षिला-मुद्गर हस्तां च स्मरेत् तां बगलामुखीम्

।। 16।। अर्थ - पीताम्बरा देवी, दो भुजाओं, तीन नेत्रों, उज्ज्वल शरीर वाली, षिला मुद्गर धारण करने वाली मां बगलामुखी का निरंतर स्मरण करना चाहिए। नित्यं स्तोत्रमिदं पवित्रमहि यो देव्याः पठत्यादराद्- धृत्वा यन्त्रमिदं तथैव समरे बाहौ करे वा गले। राजानोऽप्यरयो मदान्धकरिणः सर्पाः मृगेन्द्रादिका- स्तेवैयान्ति विमोहिता रिपुगणाः लक्ष्मीः स्थिरासिद्धयः

।। 17।। अर्थ - जो मनुष्य इस पवित्र स्तोत्र का निष्ठापूर्वक नित्य पाठ करता है, बगलामुखी यंत्र को अपनी भुजा अथवा कंठ में धारण करता है उसके सामने राजा, शत्रु, मतवाला हाथी, सर्प, सिंह सब वष में होते हैं। साथ ही लक्ष्मी भी स्थिर होती है तथा स्थिर सिद्धि प्राप्त होती है। महत्व- किसी भी प्रकार के संकट के समय महाषक्ति बगलामुखी की साधना संकट का निवारण तथा सभी सुख प्रदान करती है।



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