बवासीर मौत के समान जिंदगी

बवासीर मौत के समान जिंदगी  

व्यूस : 16490 | मार्च 2009
मौत के समान जिंदगी आचार्य अविनाश सिंह बवासीर आयुर्वेद में ‘अर्श’ तथा आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में ‘पाइल्स’ या ‘हैमोराइड्स’ नाम से जानी जाती है। यह एक आम रोग है। इस रोग के लक्षण पचहत्तर प्रतिशत से भी अधिक लोगों में किसी न किसी रूप में पाये जाते हैं। इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं: मल त्यागने के समय गुदा द्वार से रक्त आना, शौच क्रिया में पीड़ा होना, मस्से बनना, मस्सों में पीड़ा, जलन एवं खुजली होना इत्यादि। गुदा द्वार के अंदर और बाहर जो नस है, उसके फूल जाने या सूजने का नाम बवासीर है। गुदा द्वार के कुछ अंदर शंख की तरह आवर्त होते हैं, जिन्हें बलि कहा जाता है। भीतर की तरफ डेढ़ अंगुल तक बलि को प्रवाहिनी एवं प्रथम बलि के नीचे रहने वाले दूसरी बलि को विसर्जन कहते हैं। उसके नीचे वाली बलि संवरनी कहलाती है। ये तीनों बलियां शंख की बलियों के समान बल खाये हुए होती हैं। इन्हीं के संयुक्त स्वरूप को गुदा कहते हैं। अधिक समय तक कब्ज रहने के कारण मल के भार से जब तीनों बलियां रोगाक्रांत होती हैं, तब उनमें विविध प्रकार की आकृति के मांस के अंकुर उत्पन्न हो जाते हंै, जिन्हें हम बवासीर के मस्से कहते हैं। रोग पुराना होने पर शिराओं में अधिक रक्त इक्ट्ठा हो जाता है। तब मस्से फूल कर बाहर निकल आते हंै। रोगी को मल त्याग के समय काफी कष्ट होता है। कब्ज की स्थिति में शौच के समय आंतों पर जोर डालने से रक्तस्राव होने लगता है, जिससे रोगी के शरीर में खून की कमी हो जाती है और उसे थकान, सुस्ती और कमजोरी घेर लेती हैं। बवासीर के कारण: पहले कभी यह रोग वृद्धावस्था के व्यक्तियों में पाया जाता था, लेकिन आजकल युवाओं में भी यह रोग, गलत आहार-विहार के कारण, पाया जान े लगा ह।ै इसक े मख्ु य कारण हैं: ण् लगातार बैठ कर काम करना, जिससे गुदा स्थान की शिराओं में दबाव पड़ता है। पुराना कब्ज। ण् शौच रोकना। ण् अधिक समय तक घुड़सवारी, साइकिल चलाना, वाहन चलाना आदि। ण् पर्याप्त मात्रा में पानी न पीना, गर्म, गरिष्ठ, बासी भोजन करना, मांस, मदिरा आदि का अधिक सेवन करना। वात व्याधि बढ़ाने वाले पदार्थों से, जैसे बैंगन, आचार, चटनी, मछली, अंडे, मिठाई आदि से, यह रोग भयंकर रूप धारण कर लेता है। शाकाहारियों की अपेक्षा मांसाहारी व्यक्तियों में बवासीर की बीमारी अधिक पायी जाती है। बवासीर के प्रकार: बवासीर दो प्रकार की होती है- बादी और खूनी। बादी बवासीर में मस्से केवल फूल कर बड़े हो जाते हैं, जबकि खूनी बवासीर में इन मस्सों से रक्त रिसने लगता है। कभी-कभी कब्ज के कारण भी आंतों के भीतरी सिरे से रक्त आने लगता है और शौच के समय मल के साथ काफी मात्रा में रक्त निकल जाता है। बवासीर के लक्षण: बवासीर के लक्षणों को तीन अवस्थाओं में विभाजित किया जा सकता है: ण् प्रथम अवस्था में गुदा के भीतर तथा बाहर मस्से बन जाते हैं, जिनमें शौच के समय पीड़ा और जलन एवं रक्तस्राव की शिकायत होती है। ण् दूसरी अवस्था में मस्सों का आकार और बड़ा हो जाता है तथा शौच के समय मल के साथ मस्से गुदा मार्ग से बाहर आ जाते हंै और शौच के बाद पुनः अपने स्थान पर बैठ जाते हैं। ण् तीसरी अवस्था में मस्से सूज कर इतने बड़े हो जाते हैं कि गुदा मार्ग के अंदर नहीं समा पाते और गुदा द्वार के बाहर ही लटके रहते हैं और अत्यधिक रक्तस्राव, वेदना, जलन के साथ उठने-बैठने में भी तकलीफ होने लगती है। ऐसे समय रोगी की हालत नाजुक हो जाती है। आयुर्वेदिक उपचार: आयुर्वेद सबसे पहले खान-पान पर नियंत्रण रखने का निर्देश देता है। आहार सादा, सुपाच्य, संतुलित होना चाहिए। मूंग की दाल छिलके सहित, मोटे आटे की रोटी, हरी पत्तेदार साग-सब्जियां, निशोध की पत्ती, पलाश की पत्ती, बांस रोहिणी के पत्ते, इमली के पत्ते, कचूर, गाजर, धनिया आदि के पत्ते, मूली, बथुआ, पालक, चित्रक के पत्ते, जिमीकंद, फलों का रस, नींबू, सलाद, दही की लस्सी आदि का उपयोग अधिक मात्रा में करें, जिससे कब्ज न होने पाए और पाचन क्रिया भी ठीक रहे। इन सबसे बवासीर की चिकित्सा में सहयोग मिलता है। यदि कब्ज की समस्या हो तो हरड़ का मुरब्बा, ईसबगोल का छिलका, एरंडी का तेल, बादाम का तेल, गुलकंद, रसोंत, त्रिफला आदि का सेवन करते रहना चाहिए और पानी भी पर्याप्त मात्रा में पीते रहना चाहिए। हरी और ताजा सब्जियों, सलाद आदि की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। आयुर्वेदिक घरेलू नुस्खे: ण् प्रातःकाल खाली पेट दो माह तक एक-एक प्याज खाने से बवासीर बिल्कुल ठीक हो जाती है। ण् नीम की गुठली का गूदा, काले तिल, नागकेशर, चीता, झाऊवेर के साथ कूट कर अदरक के रस में मिला कर, गोलियां बना, एक गोली रोज छाछ के साथ सेवन करने से बवासीर ठीक होती है। ण् बबूल की बिना बीज की कच्ची फलियों को छाया में सुखा और कूट कर छान लें। सुबह-शाम पांच ग्राम चूर्ण खा कर ताजा पानी पीएं। इससे हर तरह की बवासीर नष्ट हो जाती है। ण् नीम के पत्ते तथा पीपल के पत्तों को कूट-पीस कर लेप करने से बवासीर के मस्से नष्ट हो जाते हैं। ण् मूली के बीज, चाकसू, रसौत, सफेद कत्था, कमल केशर, नागकेशर, तंतरीक समान भाग में ले कर चूर्ण कर, दो माशे शहद के साथ लेने से बवासीर नष्ट हो जाती है। जिमीकंद के टुकड़े कर के छाया में सुखा लें। निंबोली का गूदा समान भाग में ले कर कूट-छान लें। दोनों चूर्ण को बराबर मात्रा में मिला कर गाय के दूध की छाछ या शीतल जल के साथ लें। ण् नींबू काट कर, उसमें खाने वाला कत्था मिला कर, ओस में रखें। सुबह नींबू चूस लें। इससे पहली ही खुराक के बाद खून आना बंद हो जाएगा। ण् गूलर के दूध की बीस बूंदंे आधे प्याले पानी में मिला कर, दस दिन तक प्रातः पीने से बवासीर ठीक हो जाती हैं। ण् पांच तोला दूध में एक नींबू का रस मिला कर एक सप्ताह तक पीने से बवासीर नष्ट हो जाती है। ण् इमली के छिलकारहित बीज तवे पर भून लें। फिर कूट-पीस कर, चूर्ण बना कर, पांच ग्राम चूर्ण दही में मिला कर रोज सुबह खाएं। यह बवासीर को नष्ट कर रोग से राहत देगा। ज्योतिषीय कारण: बवासीर का संबंध गुदा स्थान से होता है और काल पुरुष की कुंडली में अष्टम भाव गुदा स्थान का होता है। अष्टम भाव का कारक शनि होता है, इसलिए शनि का दुष्प्रभावों में रहना गुदा संबंधी रोगों को बढ़ाता है। बवासीर में गुदा द्वार से मल त्याग करते समय तीव्र पीड़ा होती है और रक्त बहता है। रक्त और पीड़ा का कारक मंगल है, इसलिए मंगल का भी दुष्प्रभाव में रहना रक्त के बहाव और शारीरिक पीड़ा को बढ़ाता है। इस प्रकार ज्योतिष में जातक की कुंडली में शनि-मंगल, अष्टमेश और लग्नेश का दूषित प्रभाव में रहने से यह रोग उत्पन्न होता है। ग्रह गोचर, दशा-अंतर्दशा के अनुसार रोग का समय जाना जाता है। जातक तत्व के अनुसार (बवासीर के कारण): ण् शनि पर अशुभ ग्रह की दृष्टि । ण् शनि का द्वादश भाव में मंगल और लग्नेश से दृष्ट होना। ण् शनि का लग्न में और मंगल का सप्तम भाव में रहना। ण् लग्नेश तथा मंगल का सप्तम भाव में और शनि का द्वादश भाव में रहना। विभिन्न लग्नों में बवासीर रोग के कारणः मेष लग्न: शनि द्वादश भाव में, मंगल छठे भाव में, बुध अष्टम भाव में हों, तो बवासीर होती है। वृष लग्न: गुरु चतुर्थ भाव में, शनि दशम भाव में, मंगल सप्तम भाव में, शक्रु अष्टम म ंे हां,े ता े बवासीर हाते ी ह।ै मिथुन लग्न: गुरु- शनि अष्टम भाव में, बुध और मंगल चतुर्थ भाव में हों, तो बवासीर रोग होता है। कर्क लग्न: शनि दशम भाव में, मंगल पंचम में, बुध अष्टम भाव में, चंद्र-शुक्र अष्टम भाव में हों, तो गुदा संबंधित रोग होते हैं। सिंह लग्न: शनि लग्न में हो, बुध-मंगल सप्तम भाव में हों, सूर्य षष्ठ भाव में, शक्रु अष्टम म ंे हा,ंे ता े बवासीर हाते ी ह।ै कन्या लग्न: चंद्र-मंगल अष्टम भाव में, शनि तृतीय भाव में, बुध द्वादश भाव में हांे, तो बवासीर रोग होता है। वृश्चिक लग्न: मंगल द्वितीय भाव में, शनि-बुध अष्टम भाव में, गुरु द्वादश भाव में हो, तो गुदा संबंधित रोग होते हैं। तुला लग्न: गुरु अष्टम भाव में, शनि सप्तम भाव में मंगल और लग्नेश से युक्त हो, चंद्र तृतीय स्थान पर हो, तो गुदा रोग होते हैं। धनु लग्न: मंगल अष्टम भाव में, शनि एकादश भाव में, शुक्र लग्न में, गुरु पचं म म ंे हा,े ता े गदु ा सबं ध्ं ाी रागे हाते े हं।ै मकर लग्न: गुरु लग्न में, बुध-शनि अष्टम भाव में, मंगल पंचम भाव में हों, तो बवासीर होती है। कुंभ लग्न: शनि एकादश भाव में, मंगल पंचम भाव में, गुरु-चंद्र अष्टम भाव में होने से गुदा संबंधित रोग होते हैं। मीन लग्न: शनि अष्टम भाव में बुध के साथ हो, मंगल-शुक्र पंचम भाव में हों और गुरु एकादश में रहने से गुदा संबंधित रोग होते हैं।



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