शनि का गोचर

शनि का गोचर  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 4582 | फ़रवरी 2017

नौ ग्रहों में से पांच ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध एवं शुक्र शीघ्रगामी ग्रह हैं। चंद्रमा तो सवा दो दिन में ही राशि परिवर्तन कर लेता हैं। अन्य ग्रह भी औसत एक से दो महीने में राशि परिवर्तन कर लेते है। अतः इन ग्रहों का शुभाशुभ प्रभाव जातक पर सीमित समय के लिए ही होता है। यदि इनके गोचर से कष्ट होता भी है तो शीघ्र ही समाप्त भी हो जाता है। इस कारण से जातक पर विशेष प्रभाव नहीं रहता है। गुरु शुभ ग्रह है। यह न तो अत्यधिक शुभ और न ही अत्यधिक अशुभ होता है। राहु-केतु जिस घर में बैठते है उसके स्वामी के फल देते हैं। केवल शनि ही एक मंदगति एवं दीर्घगामी व् प्रभावशाली ग्रह है जिनका शुभ या अशुभ प्रभाव जातक को विशेष रूप से महसूस होता है और ढ़ाई वर्ष तक एक राशि में रहने के कारण लंबे समय तक सुख या कष्ट की अनुभूति होती है।

यही कारण है की लोग शनि से भयभीत रहते हैं। ठीक भी है यदि हम किसी के जीवन के उतार-चढ़ाव का अध्ययन करना चाहते है तो केवल शनि पर अपना ध्यान केंद्रित करके उसके जीवन का सार 90ः तक जान सकते हैं। इस प्रकार नौ ग्रहों को छोड़कर यदि हम केवल एक ग्रह शनि पर ध्यान केंद्रित करें तो हम एक अच्छे ज्योतिषी बन सकते हैं। आइये सीखते है शनि के गोचर के बारे में - शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या व्यक्ति के जीवन में प्रायः तीन बार आती है।

एक जन्म से 30 वर्ष में, दूसरे 30 से 60 वर्ष में तीसरे 60 से 90 वर्ष में। यदि व्यक्ति दीर्घायु अर्थात 90 वर्ष से अधिक हो तो चैथी बार भी साढ़ेसाती आ सकती है। प्रथम साढ़ेसाती यदि 10 वर्ष से पहले आती है तो स्वास्थ्य खराब करती है। 10 से 25 वर्ष के बीच में शिक्षा पर कुप्रभाव डालती है व तदुपरांत व्यवसाय या विवाह पर प्रभाव डालती है। प्रथम साढ़ेसाती का फल अधिकांशतया मां-बाप को झेलना पड़ता है।


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दूसरी साढ़ेसाती का प्रभाव शनि के गोचर भावानुसार वैवाहिक सुख या व्यवसाय पर पड़ता है। इसे स्वयं ही झेलना पड़ता है। तीसरी साढ़ेसाती का प्रभाव व्यवसाय व स्वास्थ्य पर पड़ता है। इससे संतान प्रभावित होती है क्योंकि मां-बाप के स्वास्थ्य का ध्यान अब उनकी जिम्मेदारी होती है। चैथी साढ़ेसाती तो स्वयं पर मारकेश होकर ही आती है। मुख्यतः शनि चन्द्रमा से 12, 1, 2, 4, 8 स्थानों पर अनिष्टकारी माना गया है। पहले तीन 12, 1, 2 स्थानों पर शनि की साढ़ेसाती कहलाती है और शेष दो 4 एवं 8 पर शनि की ढैय्या। यही स्थिति लग्न से भी प्रभावी होती है।

साथ ही शनि मेष, कर्क, सिंह व वृश्चिक राशियों पर अशुभ फलदायक है। साढ़ेसाती/ढैय्या में शनि अपनी उच्च राशि तुला में भी कष्टकारी होता है। शनि जब भी अपने शत्रु ग्रहों- सूर्यं, चंद्र और मंगल के ऊपर से गोचर करता है तो नेष्ट फल देता है। इनकी राशियों से भी शनि का फल नकारात्मक ही प्राप्त होता है। यदि लग्न व चंद्र दोनों से शनि की स्थिति नकारात्मक होती है तो शनि अति अशुभ हो जाता है।

इस पर अभी यदि वह शत्रु राशि या ग्रह पर गोचर करता है तो फल और अधिक नकारात्मक हो जाते हैं। इसीलिए शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या कुछ जातकों के लिए अति अशुभ, कुछ के लिए सम और कुछ के लिए कम अशुभ व शुभ अधिक होती है। साढ़ेसाती में मुख्य रूप से मानसिक परेशानियां व भविष्य का डर सताता है। कष्ट इतने होते हैं कि रात में नींद टूट जाते हैं। जोड़ों में दर्द शुरू हो जाते हैं। कभी धन हानि एवं व्यवसाय की हानि भी हो जाती है।


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मुकद्दमे आदि से भी आदमी उलझनों में फंस जाता है। लंबा समय होने के कारण कष्टों का निवारण नहीं दिखता। लेकिन यही साढ़ेसाती राजनैतिक भविष्य के लिए अति लाभप्रद हैं। यदि शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या में चुनाव लड़ा जाय तो जीत के आसार बहुत बढ़ जाते हैं। साथ ही कुछ पद प्राप्त होने की भी संभावना रहती है। राश्यानुसार शनि गोचर फल राशि विशेष कष्ट कष्ट निम्न कष्ट 1 मीन, वृश्चिक मेष, कर्क मिथुन 2 मेष, धनु वृष, सिंह मिथुन 3 मिथुन वृष, मकर मिथुन, कर्क, कन्या 4 कर्क सिंह, कुंभ तुला 5 कर्क सिंह मीन कन्या, वृश्चिक 6 सिंह, मेष तुला कन्या, धनु 7 तुला कन्या, वृष मकर, वृश्चिक 8 तुला, वृश्चिक मिथुन धनु, कुंभ 9 वृश्चिक, कर्क धनु मकर, मीन 10 धनु, सिंह, मकर, मेष कुंभ 11 कन्या मकर, कुंभ मीन, वृष 12 तुला कुंभ, मेष मीन, मिथुन शनि भावानुसार गोचर फल प्रथम व्यावसायिक, यश, जीवनसाथी से संबंध द्वितीय धन, कुटुम्ब, कलह तृतीय स्वास्थ्य, संतान, यात्रा चतुर्थ घर में कलह, शत्रु, व्यवसाय, तनाव पंचम संतान, जीवनसाथी, धन षष्ठ स्वास्थ्य, धन, न्यायिक सप्तम शादी, जीवनसाथी, तनाव, घर में कलह अष्टम स्वास्थ्य, व्यवसाय, धन, संतान, न्यायिक नवम धन, स्वास्थ्य, शत्रु दशम व्यवसाय, घर व जीवनसाथी से कलह, धन हानि, ग्यारह धन, संतान, स्वास्थ्य द्वादश धन, स्वास्थ्य, अस्पताल में भर्ती, तनाव, न्यायिक चंद्रराश्यानुसार व शनि के भावानुसार फल उपरोक्त तालिकाओं में वर्णित हैं।

शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव चंद्रमा के भावानुसार भी विशेषरूप से पड़ता है। चंद्रमा यदि लग्न में हो तो शनि की साढ़ेसाती का प्रारंभ व अष्टम ढैय्या विशेष रूप से कष्टकारी होते हंै। चंद्रमा के द्वितीय भाव में होन पर साढे़साती का प्रभाव लग्न से बारहवें शनि आने से ही स्वास्थ्य पर प्रारंभ हो जाता है। अष्टम ढैय्या का विशेष प्रभाव नहीं होता। तृतीय भाव में चंद्रमा होने पर साढ़ेसाती कम कष्टकारी होती है।

चैथे चंद्रमा से घर में कलह बढ़ जाती है। पंचम चंद्रमा से अष्टम ढैय्या स्वास्थ्य के लिए विशेष कष्टदायी होती है। छठे सातवें व आठवें चंद्रमा की साढ़ेसाती अनिष्टकारी कम व शुभ फलदायी अधिक होती है। नवें चंद्रमा होने पर साढ़ेसाती का प्रारंभ सब कुछ ले बैठता है। दशम चंद्रमा की साढ़ेसाती शुभ रहती है। एकादश चंद्र होने पर उतरती साढ़ेसाती व द्वादश चंद्रमा में साढ़ेसाती की बीच की ढैय्या स्वास्थ्य हानि कराती है। सूक्ष्मता से साढ़ेसाती की गणना के लिए चंद्र स्पष्ट या लग्न स्पष्ट को लेना चाहिए एवं साढ़ेसाती 450 पहले से लेकर 450 बाद तक माननी चाहिए।


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चतुर्थ व अष्टम ढैय्या के लिए यह मान 150 होता है। यदि शनि वक्री हो जाते हैं और उनका गोचर चंद्रमा की ओर होता है तो शनि का प्रभाव अधिक महसूस होता है। यदि शनि चंद्र से पहले है व वक्री हो जाएं तो वक्री होने पर चंद्र से दूरी बढ़ने लगती है और इस प्रकार उनके द्वारा कष्ट में थोड़ी राहत महसूस होती है। यदि शनि चंद्र से आगे है और वक्री हो जाएं तो इनकी चंद्र से दूरी घटने के कारण कष्टों में अधिकता आ जाती है। वैसे भी वक्री ग्रह पृथ्वी के पास होने के कारण अधिक प्रभावशाली होते हैं।

वक्री ग्रह का प्रभाव केवल साढ़ेसाती ही नहीं वरन् चतुर्थ एवं अष्टम ढैय्या में भी इसी प्रकार लेना चाहिए। उपरोक्त कथनानुसार वृश्चिक राशि से धनु राशि में शनि का राशि परिवर्तन मेष, सिंह, तुला व वृश्चिक राशी के जातकों के लिए शुभ रहेगा। मिथुन, कर्क, धनु, कुंभ व मीन के लिए सम रहेगा एवं वृष, कन्या व मकर के लिए अशुभ रहेगा। उपरोक्त प्रभाव लग्नानुसार भी प्रभावी होगा। यदि लग्न व राशि दोनों से इसका प्रभाव शुभ है तो फल अतिशुभ होंगे। यदि दोनों से अशुभ है तो अति अशुभ फल होंगे। यदि एक से शुभ दूसरे से अशुभ या दोनों से फल सम हैं तो कुल फल भी सम होंगे। यदि एक से शुभ व दूसरे से सम तो फल सम एवं एक से अशुभ व दूसरे से सम तो कुल फल अशुभ होंगे। शनि जनित कष्टों के निवारण हेतु निम्न उपाय विशेष लाभप्रद हैं:-

1. शनिवार को कटोरी में तेल लें उसमें एक रूपया डालें। अपनी छाया देखकर मंदिर में शनि के चरणों में अर्पित करें या डकौत को दें। इससे मानसिक व शारीरिक शांति प्राप्त होती है।

2. शनि के तान्त्रोक्त मंत्र का 7 मुखी रुद्राक्ष माला पर जप करें एवं इस माला को प्रतिदिन धारण करें। इससे विशेष मानसिक शांति व भय से छुटकारा मिलेगा।

3. हनुमान चालीसा का नित्य प्राठ करें। इससे भय दूर होगा।


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4. हनुमत् मंत्र ‘‘ ऊँ हं हनुमतये नमः’’ का नित्य जप भी भय से छुटकारा दिलाता है।

5. स्वास्थ्य लाभ हेतु महामृत्युंजय मंत्र का नित्य जप या सवा लाख मंत्रों का अनुष्ठान विशेष फलदायी होता है।

6. यदि कोई मुकद्दमा हो या विशेष व्यक्ति से परेशानी हो तो मां बगलामुखी का अनुष्ठान कष्टों का निवारण करता है।

7. यदि व्यवसायिक परेशानी है तो नित्य सुंदरकांड का पाठ रामबाण है। इसका थोड़ा-थोड़ा पाठ नित्य करने से कष्ट दूर होते हैं।

8. शनि के दान आर्थिक परेशानियों से छुटकारा दिलाते हैं।



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