श्रीमद्भागवत और पुराणों में
प्राचीन कालीन 5 ऐतिहासिक
सरोवरों का वर्णन है। जैसे चार वट
वृक्ष, प्रयाग में अक्षयवट, उज्जैन मंे
सद्धिवट, गया में बौद्ध वट, वृन्दावन
में बंसीवट और सात पुरी मथुरा,
काशी, अयोध्या, द्वारका, कांची,
अंबिका-उज्जैन, माया और पांच तीर्थ
हरिद्वार, गया, प्रयाग, पुष्कर, कुरूक्षेत्र
और आठ वृक्ष पीपल, बड़, इमली,
नीम कैथ, आंवला, बेलपत्र, आम और
नौ पवित्र नदियां गंगा, सरस्वती,
यमुना, कावेरी, ब्रह्मपुत्र, तिस्ता, सिंध,
कृष्णा है उसी तरह पांच पवित्र
सरोवर हंै। गंगा में अस्थियां छोड़ने
का वर्णन तो शास्त्रों में है लेकिन
गंगा किनारे दाह-संस्कार करने का
वर्णन किसी शास्त्र में नहीं है फिर भी
ऐसा हिंदू करते आ रहे हैं तो क्या
यह पवित्र नदियों या सरोवरों के प्रति
अपराध नहीं है।
कैलाश मान सरोवर: यही एक
सरोवर है जो अपनी पवित्र अवस्था में
आज भी मौजूद है। शायद इसलिए
की यह चीन के अधीन है। कैलाश
सरोवर प्रथम पायदान पर है। इसे
देवताओं का झील भी कहा जाता
है। यह हिमालय के केंद्र में है। इसे
ईश्वर शिव का धाम माना जाता है।
कहते हैं मानसरोवर के पास कैलाश
पर्वत पर शिव साक्षात विराजमान
हैं। यह हिंदुओं का पवित्र स्थल है।
मानसरोवर संस्कृत शब्द मानस तथा
सरोवर से मिलकर बना है। हिमालय
में ऐसी कई झीले हैं लेकिन उनमें
मानसरोवर सबसे बड़ा और कंेद्र में
है। मानसरोवर टैथिस सागर का
अवशेष है जो कभी एक महासागर
हुआ करता था। वह आज 14,900
फुट ऊंचे स्थान पर है। हजारों सालांे
में इसका पानी मीठा हो गया है,
लेकिन जो चीजें यहां पाई जाती हंै
उनसे जाहिर है कि अब भी इसमें
महासागर वाले गुण हैं। कहते हैं कि
इस सरोवर में माता पार्वती स्नान
करती हैं। यहां देवी सती के शरीर
का दायां हाथ गिरा था इसलिए यहां
एक पाषाण शिला को उसका रूप
मानकर इसे पूजा जाता है। हिंदू
पुराणों के अनुसार यह ईश्वर ब्रह्मा
जी के मन से उत्पन्न हुआ था। बौद्ध
धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है।
हिंदू पुराणों के अनुसार यह ब्रह्मा जी
के मन से उत्पन्न हुआ था। बौद्ध
धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि रानी माया
को भगवान बुद्ध की पहचान यहीं हुई
थी। जैन धर्म तथा तिब्बत के बोनपा
लोग भी इसे पवित्र मानते हैं।
नारायण सरोवर: नारायण सरोवर
का संबंध विष्णु जी से है। नारायण
सरोवर का अर्थ है विष्णु का सरोवर।
यह सिंधु नदी के सागर से संगम
के तट पर पवित्र नारायण सरोवर
है। पवित्र नारायण सरोवर के तट
पर आदि नारायण का प्राचीन व
भव्य मंदिर है। इस मंदिर से चार
किलोमीटर दूर कोटेश्वर शिव मंदिर
है। इस सरोवर की चर्चा भी भागवत
पुराण में मिलती है। इस पवित्र
सरोवर में प्राचीन कालीन अनेक
ऋषियों के आने के प्रसंग मिलते हैं।
आदि शंकराचार्य भी यहां आये थे।
चीनी यात्री ह्नेन सांग ने भी इसकी
चर्चा अपनी किताब सीयूकी में की है।
नारायण सरोवर में कार्तिक पूर्णिमा से
तीन दिन का मेला लगता है जिसमें
सभी संप्रदायों के साधु-संन्यासी
शामिल होते हैं। नारायण सरोवर में
श्रद्धालु अपने पितरों का श्राद्ध भी
करते हैं। यह गुजरात के कच्छ जिले
के लखपत तहसील में स्थित है।
पंपा सरोवर: मैसूर के पास स्थित
पंपा सरोवर एक ऐतिहासिक स्थल है।
हंपी के निकट बसे हुए गांव अनेगुंदी
को रामायण कालीण किष्किंधा माना
जाता है। तुंगभद्रा नदी को पार करने
पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग
से कुछ हट कर पश्चिम दिशा में पंपा
सरोवर है। पंपा सरोवर के निकट
पर्वत के ऊपर कई जीर्ण-शीर्ण मंदिर
दिखाई पड़ते हैं। वहीं एक पर्वत पर
गुफा है जिसे शबरी की गुफा कहते
हैं। माना जाता है कि वास्तव में
में वर्णित पंपा सरोवर यही है जो
आजकल हास्पेट कस्बे में स्थित है।
कर्नाटक में बेल्लारी जिले के हास्पेट
से हम्पी जाकर जब आप तुंगभद्रा
नदी पार करते हैं तो हनुमान हल्ली
गांव की ओर जाते हुए इसे पाते हैं।
शबरी की गुफा, पंपा सरोवर और वह
स्थान जहां शबरी राम को बेर खिला
रही है, इसी के निकट शबरी के गुरु
मतंग ऋषि के नाम से प्रसिद्ध मतंग
वन है।
पुष्कर सरोवर: राजस्थान में
अजमेर शहर से 14 किलोमीटर
दूर पुष्कर झील है। इस झील का
संबंध ब्रह्मा जी से है। ब्रह्माजी का
एक मात्र मंदिर यहीं पर है। पुराणों
में इसके बारे में विस्तार से वर्णन
मिलता है। यह स्थल कई प्राचीन
ऋषियों की तपोभूमि भी है। यहां पर
पुष्कर मेला भी लगता है। पुष्कर की
गणना पंच तीर्थों में की जाती है।
कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने भी
यहां पर यज्ञ किया था। विश्वामित्र
के यहां यज्ञ करने की बात कही
गई है। अप्सरा मेनका यहां के पावन
जल में स्नान करती थीं। सांची स्तूप
के लेखांे में इसका वर्णन है। पांडू
लेन गुफा के लेख में जो ई. सन् 125
का माना जाता है उष मदवन्त का
नाम आता है, यह विख्यात राजा नह
पाण का दामाद था। इसने पुष्कर
आकर 3000 गायों का व एक गांव
का दान किया था। महाभारत के
वन पर्व के अनुसार श्री कृष्ण जी ने
भी दीर्घ काल तक पुष्कर में तपस्या
की थी। सुभद्रा के अपहरण के बाद
अर्जुन ने पुष्कर में विश्राम किया था।
मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने भी
अपने पिता दशरथ का श्राद्ध पुष्कर
में किया था। जैन धर्म की मातेश्वरी
पद्मावती का पद्मावती पुरम यहां
जमींदोज हो चुका है जिसके अवशेष
आज भी विद्यमान हैं।
पुष्कर सरोवर तीन हैं: ज्येष्ठ
पुष्कर, मध्य पुष्कर, कनिष्ठ पुष्कर।
ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य
पुष्कर के देवता विष्णुजी, कनिष्ठ
पुष्कर के देवता रूद्र हैं। ब्रह्मा जी ने
पुष्कर में कार्तिक शुक्ल एकादशी से
पूर्णमासी तक यज्ञ किया था जिसकी
स्मृति में अनादि काल से यहां कार्तिक
मेला लगता है। पुष्कर के मुख्य
बाजार के अंतिम छोर पर ब्रह्मा जी
का मंदिर बना है। आदि शंकराचार्य
ने संवत् 713 में ब्रह्माजी की मूर्ति की
स्थापना की थी। मंदिर का वर्तमान
स्वरूप 1809 ई. में बनवाया गया
था। पुष्कर को सब तीर्थों का गुरु
कहा जाता है। इसे धर्म शास्त्रों में 5
तीर्थांे में सर्वाधिक पवित्र माना गया
है। पुष्कर, कुरूक्षेत्र, गया, हरिद्वार,
प्रयाग को पंच तीर्थ कहा गया है।
अर्द्धचंद्राकार आकृति में बनी पवित्र
एवं पौराणिक पुष्कर झील धार्मिक
और आध्यात्मिक आकर्षण का केंद्र
है। झील की उत्पत्ति के बारे में
किंवदंती है कि ब्रह्मा जी के हाथ से
यहीं पर कमल पुष्प गिरने से जल
प्रस्फुटित हुआ जिससे इस झील का
उदय हुआ। यह मान्यता भी है कि
इस झील में डुबकी लगाने से पापों
का नाश होता है। झील के चारों ओर
52 घाट व अनेक मंदिर हैं। इसमें
गउ घाट, वराहघाट, जयपुर घाट
प्रमुख है। जयपुर घाट से सूर्यास्त
का नजारा अत्यंत अद्भुत लगता है।
बिंदु सरोवर: यहां कपिल जी के
पिता कर्मद ऋषि का आश्रम था और
इस स्थान पर कर्मद ऋषि ने 10,000
वर्ष तप किया था। कपिल जी का
आश्रम सरस्वती नदी के तट पर बिंदु
सरोवर पर था जो द्वापर का तीर्थ था
ही, आज भी है। कपिल मुनि सांख्य
दर्शन के प्रणेता और विष्णु जी के
अवतार हैं। अहमदाबाद, गुजरात से
130 किलोमीटर उत्तर में अवस्थित
ऐतिहासिक सिंहपुर में स्थित है बिंदु
सरोवर। इस स्थल का वर्णन ऋग्वेद
में मिलता है जिसमें इसे सरस्वती
और गंगा के मध्य अवस्थित बताया
गया है। संभवतः सरस्वती और गंगा
की अन्य छोटी धाराएं पश्चिम की
ओर निकल गई होंगी। इस सरोवर
का उल्लेख रामायण और महाभारत
में मिलता है। महान ऋषि परशुराम
ने अपनी माता का श्राद्ध यहां सिद्धपुर
में बिंदु सरोवर के तट पर किया था।
इस सरोवर को गया की तरह दर्जा
प्राप्त है। इसे मातृ मोक्ष स्थल भी
कहा जाता है।
इसके अलावा अमृत सरोवर
कर्नाटक के नंदी हिल्स पर, कपिल
सरोवर राजस्थान बिकानेर, कुसुम
सरोवर मथुरा-गोवर्धन, नल सरोवर
गुजरात-अहमदाबाद, अभयारण्य में
लोणा सरोवर, महाराष्ट्र-बुलढाणा,
कृष्ण सरोवर, रामसरोवर, शूद्र सरोवर
आदि अनेक सरोवर हंै जिनका पुराणांे
में उल्लेख मिलता है।