नवग्रह के विभिन्न उपाय

नवग्रह के विभिन्न उपाय  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 32055 | सितम्बर 2010

नवग्रह के विभिन्न उपाय यह सर्वथा सत्य है कि यदि प्रामाणिक उपाय, टोने, टोटके, यंत्र, मंत्र, तंत्रादि का समुचित प्रयोग किया जाए तो मनुष्य के समक्ष कोई समस्या नहीं रह जाती। मानव जीवन सुखी हो ''सर्वेभवंतु सुखिनः'' के उद्देश्यों से मानव जीवन पर पड़ने वाले कुप्रभाव व्यवधानादि के निवारण हेतु प्रस्तुत उपाय ग्रहणीय हैं। ज्योतिष शास्त्र में यह प्रमाण मिलता है कि मानव जीवन में तीन प्रकार के ताप (दुःख) या सुख मनुष्य को प्रकृति के अनुरूप प्राप्त होते हैं।
(1) आधिदैविक
(2) आधिभौतिक
(3) आधिदैहिक,

प्रकृति के तीन स्वरूप
(1) कफ
(2) पित्त
(3) वात जनित रोग कष्टादि का सृजन करते हैं।
यदि ग्रहादि की अनुकूलता रहे, या ग्रहों के दुष्प्रभाव को शमन कर लिया जाए तो उपर्युक्त दैहिक, दैविक एवं भौतिक समस्याओं का समाधान हो जाया करता है। ज्योतिष शास्त्र सर्वप्रथम जन्मपत्रिका के ग्रहों, अवस्थाओं आदि से संबंधित उपाय प्रकाशित कर जातक का मार्ग निर्देशन करते हैं। सूर्यग्रह की अनुकूलता हेतु आराध्य देव- 'विष्णु भगवान' वैदिक उपाय : सूर्य के वैदिक मंत्र का सात हजार जप करना चाहिए। वैदिक मंत्र से सूर्य भगवान को प्रातः काल जल का अर्घ्य सिंदूर या लाल फूल डालकर देना चाहिए। वैदिक मंत्र : ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्न मृतं मर्त्त्यंन्च हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्।
तांत्रिक मंत्र
1. ऊँ ह्रां हृीं हृौं सः सूर्याय नमः
2. ऊँ घृणि सूर्याय नमः (तांत्रिक उपाय) सूर्य के उपर्युक्त मंत्र का जप अठ्ठाईस हजार करना चाहिए।


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आदित्य हृदय स्तोत्रम् का पाठ चालीस दिन करना चाहिए। सूर्य गायत्री मंत्र (एक बार) आदित्याय विद्महे प्रभाकराय धीमहि तन्नोः सूर्य प्रचोद्यात्॥ सूर्य यंत्र : सूर्य के यंत्र को भोजपत्र पर अष्टगंध से अनार की कलम से रविवार को लिख कर पंचोपचार पूजन कर, अथवा ताम्र पत्र पर गुरु पुष्य, रवि पुष्य, अमृत योग काल उत्कीर्ण करा कर लाल धागे में गूंथ कर गले या बांह में रविवार को प्रातः काल धारण करना चाहिए। व्रत का विधान : ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से प्रारंभ कर कम से कम बारह और अधिक से अधिक तीस व्रत रखें। सूर्यास्त से पूर्व गेहूं की रोटी, गुड़ या गुड़-गेहूं-घी से बना हलुआ खाएं। नमक बिल्कुल नहीं खाना चाहिए। दिन में लाल वस्त्र धारण करें तथा लाल चन्दन का टीका (तिलक) करें। दान : सोना, माणिक्य, तांबा, गेहूं, गुड़, घी, पुष्प, केसर, मूंगा, लाल गाय, रक्त वस्त्र, रक्त, चामर, रक्त चंदन रविवार को दान करना चाहिए। हवन : समिधा, आक की लकड़ी। औषधि स्नान : मैनसिल, इलायची, देवदारू, केसर, खस, मूलहट्टी, रक्त पुष्प, को जल में डाल कर स्नान करना चाहिए।
तांत्रिक टोटका
(क) मधु और दूध पीएं तथा अग्नि को दूध दें।
(ख) आटे, गुड़ तथा तांबे का दान करें।
(ग) नदी की धारा में तांबे के पैसे फेकें।
(घ) सूर्य शनि के साथ हो और शनि अस्त हो तो सूर्य की आराधना, सूर्य की दान सामग्री का दान दे कर करें। रत्न धारण : सूर्य का रत्न मणिक्य 5( रत्ती से अधिक 7( रत्ती तक स्वर्ण या ताम्र में मंढ़वा कर, रविवार को कच्चे दूध एवं गंगा जल से धो कर, प्राण प्रतिष्ठा ब्राह्मणों से करा कर या सूर्य के किसी तांत्रिक मंत्र को ग्यारह बार पढ़ कर सीधे हाथ की अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए। रुद्राक्ष धारण : पंचमुखी रुद्राक्ष धारण करें। एकमुखी रुद्राक्ष की पूजा करें।
स्वास्थ्य के लिए तीनमुखी या छह मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। कुंडली का जो भाव कमजोर हो उस भाव के फल को बढ़ाने के लिए उतने रुद्राक्ष धारण करने चाहिए। जड़ी धारण : रविवार की प्रातः काल को जडी़ ( इंच का टुकड़ा लाल कपड़े में सी कर गंगाजल से यंत्र को धो कर, सीधे हाथ में धारण करना चाहिए। चंद्रमा ग्रह की अनुकूलता हेतु आराध्य देव-शिव वैदिक उपाय : चंद्रमा के वैदिक मंत्र का 11000 जप करना चाहिए। वैदिक मंत्र से सायं काल दुग्ध से चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए। वैदिक मंत्र : ऊँ इमं देवा असपलग्वं सुबध्वं महते क्षत्रय महते ज्येष्ठयाय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्य पुत्रमनुष्यै पुत्र मस्यै विशएष वोऽमी राजा सोमेऽस्माकं ब्रह्मणानाग्वं राजा॥
तांत्रिक मंत्र
1. ऊँ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः
2. ऊँ सों सोमाय नमः
3. (तांत्रिक उपाय) चंद्रमा के उपर्युक्त मंत्र का चवालीस हजार जाप करना चाहिए। चंद्र गायत्री मंत्र ऊँ अमृतांगाय विद्यमहे कलारूपाय धीमहि तन्नोः सोमः प्रचोदयात्। चंद्र यंत्र : ग्रह पीड़ा निवृत्ति हेतु चंद्रमा के यंत्र को सोमवार के दिन श्वेत चंदन से अनार की कलम से लिख कर पंचोपचार पूजन करके चांदी के ताबीज में मढ़ कर या सफेद कपड़े में सी कर या चांदी के पत्र पर सोमवार के दिन यंत्र को उत्कीर्ण कराकर सफेद धागे में प्रातः काल गले या बांह में धारण करना चाहिए। सोमवार व्रत : यह व्रत ज्येष्ठ या श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से प्रारंभ करना चाहिए। कम से कम दस और अधिक से अधिक चौवन व्रत करने चाहिएं। दान : मोती, चांदी, चावल, मिसरी, हल्दी, सफेद कपड़ा, दक्षिणा, सफेद फूल, शंख, कपूर, श्वेत बैल, श्वेत चंदन। हवन : समिधा, पलाश की लकड़ी।औषधि स्नान : पंचगव्य, गजमद, शंख, सिप्पी, श्वेत चंदन, स्फटिक।
तांत्रिक टोटका
(क) नदी में चांदी डालें।
(ख) पानी और दूध को मिला कर रात में सोते समय अपने सिरहाने (तकिया के नीचे) रखें और सुबह कीकर, पीपल वृक्ष में डाल दें।
(ग) चांदी, पानी, दूध दान करें।
(घ) चांदी का चंद्रमा बनवा कर भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्रमा की पूजा कर धारण करें।
(ड़) प्रथम भाव दूषित होने पर अपने साथ चावल और चांदी रखें।
(च) तृतीय भाव दूषित होने पर कुंवारी लड़की को हरा वस्त्र दान दें।
(छ) चतुर्थ भाव दूषित होने पर रात में दूध न पीएं। दूसरे को दूध पिलाएं।
(ज) अष्टम भाव दूषित होने पर किसी मरघट या मजार के नजदीक के कुंए का जल अपने घर में रखें।
(झ) दशम भाव दूषित होने पर रात में दूध न लें।


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(अ) एकादश भाव दूषित होने पर भैरवजी को दूध चढ़ावें। रत्न धारण : शुद्ध मोती 5( रत्ती चांदी में मंढ़वा कर सोमवार के दिन प्रातः काल कच्चे दूध में धो कर व बा्रह्मणों से प्राण प्रतिष्ठा करवाकर या चंद्रमा के मंत्र का ग्यारह बार जप कर, सीधे हाथ की कनिष्ठा उंगली में धारण करना चाहिए। जड़ी औषधि धारण : सोमवार के दिन प्रातः काल श्वेत आक की जड़ की मिट्टी खोदकर निकाल लें पुनः गंगा जल से धो कर श्वेत वस्त्र में सीकर सीधे हाथ में धारण करना चाहिए। मंगल ग्रह की अनुकूलता हेतु आराध्य देवश्री हनुमानजी, शिवजी तथा श्री गणेशजी वैदिक उपाय : मंगल के वैदिक मंत्र का जाप दस हजार बार करना चाहिए। वैदिक मंत्र ऊँ अग्निर्मूर्द्धादवः ककुत्पति पृथिव्याअयमपाग्वं रेताग्वंसि जिन्वति॥ वैदिक मंत्र से मंगलवार के दिन हनुमान जी को सिंदूर, चोला, जनेऊ, लाल फूल, लड्डू चढ़ाना चाहिए।
तांत्रिक मंत्र
1. ऊँ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः
2. ऊँ अं अंगारकाय नमः
3. मंगलवार के दिन मंगल के तांत्रिक मंत्र का 40000 का जप करना चाहिए। भौम गायत्री मंत्र : ऊँ अंगारकाय विद्महे शक्ति हस्ताय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात्। (इस मंत्र का नित्य 108 बार जप करना चाहिये) ग्रह पीड़ा निवृत्ति हेतु यंत्र : मंगल के यंत्र को मंगलवार के दिन रक्त चंदन से अनार की कलम से भोज पत्र पर लिख कर पंचोपचार पूजन कर के तांबे या सोने के ताबीज में मढ़वा कर अथवा ताम्रपत्र पर मंगल यंत्र को मंगलवार को ही उत्कीर्ण करा कर लाल धागों में गूंथ कर मंगलवार को गले या बांह में धारण करना चाहिए।
तांत्रिक टोटका
(क) तंदूर में मीठी रोटी बना कर दान करें।
(ख) बहती नदी में सफेद तिल की रेवड़ी या बताशा डालें।
(ग) मसूर दाल, मृग चर्म का दान करें।
(घ) मसूर दाल की पूजा करें (कम से कम मंगलवार को अवश्य ही पूजा तथा ध्यान करें)
(ड़) यदि मंगल और बुध साथ हो, जिससे छोटी बहन का स्वास्थ्य खराब हो, तो चीनी, शहद और सौंफ, एक सुराही में रख कर जमीन के नीचे गाड़ दें। दान : मूंगा, सोना, कनक (विष), गुड़, तांबा, रक्त चंदन, रक्त वस्त्र, लाल बैल, मसूर, लाल फूल, दक्षिणा।
हवन : हवन समिधा, बिल्व पत्र, लकड़ी। औषधि स्नान : बिल्व छाल, रक्त चंदन, धमनी, लाल फूल, सिंगर, माल कंगनी, मौलश्री आदि। रत्न धारण : लाल मूंगा 6( रत्ती या सिंदूरी मूंगे को स्वर्ण या ताम्र में मढ़वा कर मंगलवार को कच्चे दूध में तथा गंगा जल में धो कर, ग्यारह बार मंगल मंत्र से प्राण प्रतिष्ठा करा कर अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए। औषधि धारण : अनंत मूल को लाल कपड़े में सिल कर मंगलवार को सीधे हाथ में बांधना चाहिए। आवश्यकतानुसार संकल्प पूर्वक पाठ करें अथवा करावें। उसके बाद ब्राह्मण भोजन करा कर दक्षिणा दे कर समापन करें, अथवा प्रति दिन स्वयं पाठ करना चाहिए। बुध ग्रह की अनुकूलता हेतु आराध्य देव-श्री दुर्गाजी, श्री गणेश जी वैदिक उपाय वैदिक मंत्र ऊँ उद्बुधस्याग्ने प्रति जागृहित्वमिंष्टापूर्ते सग्वं सृजेथामयंन्च। अस्मिन्सद्यस्ते अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवायजमानश्य सींदत्॥ बुध ग्रह के वैदिक मंत्र का नौ हजार जप करना चाहिए।


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तांत्रिक मंत्र
(क) ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः।
(ख) बुं बुधाय नमः। बुध ग्रह के तांत्रिक मंत्र का छत्तीस हजार जाप करना चाहिए।
बुध गायत्री मंत्र ऊँ सौम्यरूपाय विद्महे वाणेशाय धीमहि, तन्नो सौम्यः प्रचोदयात्॥ व्र्रत : बुधवार का व्रत ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार से प्रारंभ करना चाहिए। कम से कम इक्कीस बार या पैंतालीस बार व्रत रखें। व्रत के दिन हरा वस्त्र धारण कर बुध के बीज मंत्र ''ऊँ बुं बुधाय नमः'' का एक सौ आठ दाने की स्फटिक माला पर तीन या सत्रह माला जप करें। उसके बाद गुड़ के साथ मूंग दाल का हलुवा या लड्डू भोग लगा कर स्वयं खाएं। अंतिम बुधवार को पूर्णाहुति हवन कर समापन करें तथा ब्राह्मण भोजन कराएं। हवन : अपामार्ग की समिधा। दान : हरा वस्त्र, मूंगी, कांस्य, घृत, मिस्री, हाथी दांत, सुवर्ण, पन्ना, पुष्प, कपूर, दक्षिणा। औषधि स्नान : गोबर, अक्षत, फूल, गोरोचन, मधु, मोती, सोना। ग्रहपीड़ा निवृत्ति हेतु बुध यंत्र : बुध के यंत्र को बुधवार के दिन भोजनपत्र पर अष्टगंध से अनार की कलम से, लिखकर पंचोपचार पूजन कर स्वर्ण यंत्र या तांबे के यंत्र में मढ़वा कर अथवा ताम्र पत्र पर उत्कीर्ण करा कर पंचोपचार पूजन कर के हरे धागे में गूंथ कर सीधे हाथ में या गले में धारण करना चाहिए। औषधि धारण : विधारामूल हरे कपड़े में सिल कर व हरे धागे में गूंथ कर बुधवार को धारण करना चाहिए या सोने के ताबीज में डाल कर धारण करना चाहिए। रत्न धारण : पन्ना 6( रत्ती का स्वर्ण में मढ़वा कर बुधवार के दिन प्रातः काल अंगूठी को दूध से, पुनः गंगा जल से धो कर, सीधे हाथ की अंगुली में धारण करना चाहिए। संभव हो तो अंगूठी में प्राण-प्रतिष्ठा कर के धारण करना चाहिए।
तांत्रिक टोटके :
(क) बुधवार को एक रोटी में गुड़ लगा कर बुधवार को प्रातः काली गाय को खिलाना चाहिए।
(ख) कौड़ी को जला कर उसकी भस्म उसी दिन नदी में प्रवाहित करें।
(ग) छेद वाले तांबे के पैसे को नदी में प्रवाहित करें।
(घ) मूंग दाल दान करें।
(ड.) श्री दुर्गाजी की अराधना करें।
(च) फिटकरी से मुंह धोवें।
(छ) कुंवारी कन्या का पूजन करें।
(ज) धार्मिक संस्थान को दान दें।
(झ) छाग दान भी किया जाता है।
(अ) हरी सब्जी या चारा गाय को खिलाएं।
गुरु ग्रह की अनुकूलता हेतु आराध्य देव- ब्रह्म, विष्णु तथा इंद्र वैदिक उपाय : गुरु की अनुकूलता हेतु गुरु के वैदिक मंत्र का उन्नीस हजार जप करना चाहिए। वैदिक मंत्र ऊँ बृहस्पते अतियदर्योअर्ध्नाद्युमद्धि भातिक्रतुमज्जनेषु। यदीदयच्छवसऽऋत प्रजात तदस्मासु द्रविणं द्येहिचित्रम्।
तांत्रिक मंत्र
(क) ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः
(ख) ऊँ बृं बृहस्पत्यै नमः गुरु के किसी तांत्रिक मंत्र का छिहत्तर हजार जप करना चाहिए।
हवन : अश्वस्थ (पीपल) की लकड़ी से हवन करना चाहिए। दान : पीला अन्न, पीला वस्त्र, सोना, घृत, पीला फूल, पीला फल, पुखराज, हल्दी, कपड़ा, पुस्तक, शहद, नमक, चीनी, भूमि, छत्र, दक्षिणा आदि। औषधि स्नान : मालती पुष्प, पीला चंपा फूल, सरसों, पीली मुलहट्टी, शहद। व्रत : ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम बृहस्पतिवार से यह व्रत प्रारंभ करके तीन वर्ष या सोलह गुरुवार को लगातार किया जाता है। इस व्रत को रखने वाले दिन में पीला वस्त्र धारण कर बृहस्पति के बीज मंत्र का एक सौ आठ माला, तीन माला या ग्यारह माला जप कर पीले फूल और बेसन के गुड़ से लड्डू बना कर, या गुड़ में दूध चावल मिला कर खीर को (केसरयुक्त कर) भोग लगा कर भोजन करें। अंतिम गुरुवार को पूर्णाहुति हवन कर गरीब ब्राह्मण को भोजन करा कर समापन करें।


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(हवन समिधा ऊपर वर्णित है) ग्रह पीड़ा निवृत्ति हेतु गुरु यंत्र गुरुवार को भोजपत्र पर हल्दी से अनार की कलम से लिख कर अथवा गुरु पुष्य, रवि पुष्य, सर्वाथ सिद्धी योग में ताम्र या स्वर्ण पत्र पर यंत्र उत्कीर्ण करा कर पंचोपचार पूजन कर के गले या बांह में धारण करना चाहिए। रत्न धारण : पीला पुखराज 5( रत्ती स्वर्ण में मढ़वा कर गुरुवार को प्रातः काल कच्चे दूध से धो कर, गंगा जल से शुद्ध करा के किसी पंडित से प्राण प्रतिष्ठा करा कर, या गुरु मंत्र को निन्यान्वे बार जप कर धारण करना चाहिए। औषधि धारण : भृंगराज की पत्ती, या हल्दी की गांठ पीले कपड़े में सी कर व पीले धागे में लगा कर, गले में या सीधे हाथ की बांह में धारण करनी चाहिए।
तांत्रिक टोटका
(क) गुरुवार को केले के पेड़ में हल्दी, पीला चावल, चना, दाल, गुड़, लड्डू और पीले फूल से पूजन करना चाहिए।
(ख) नज़दीकी संबंधी द्वारा मंदिर में एक पैसे का दान दिया जाए।
(ग) पीपल में जल डालें।
घ) केसर, हल्दी, चना तथा स्वर्ण का दान करें।
(ड़) ब्रह्म की आराधना करें तथा निस्संतान, संतान के लिए हरि (विष्णु) की भी आराधना करें।
शुक्र ग्रह की अनुकूलता हेतु आराध्य-देवी- लक्ष्मी, इंद्राणी तथा दुर्गा जी वैदिक उपाय : शुक्र के वैदिक मंत्र का सोलह हजार जप करना चाहिए। वैदिक मंत्र ऊँ अन्नात्परश्रिुतो रसं ब्राह्मण व्यपिवत्क्षत्रं पयः सोमं प्रजापतिः। ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानग्वं शुक्रमन्ध्रंस इन्द्रस्येन्द्रियर्मिदं पयोऽमृतं मु॥
तात्रिंक मंत्र
(क) ऊँ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः
(ख) ऊँ शुं शुक्राय नमः शुक्र के किसी भी तांत्रिक मंत्र का चौंसठ हजार जप करना चाहिए।
गायत्री मंत्र ऊँ भृगुजाय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नो शुक्रः प्रचोदयात्। हवन : उदुंवर की समिधा से हवन करना चाहिए। दान : श्वेत चावल, श्वेत चंदन, श्वेत वस्त्र, श्वेत पुष्प, चांदी, हीरा, घृत, सोना, श्वेत घोड़ा, दही, सुगंध द्रव्य, शर्करा, गेहूं, दक्षिणा आदि। औषधि स्नान : इलायची छोटी, मैनसिल, सुवृक्ष मूल, केसर। शुक्रवार व्रत : ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से व्रत प्रारंभ करके इक्कीस या तैंतीस शुक्रवार लगातार करें। व्रत के दिन उपासक स्नान कर, श्वेत वस्त्र धारण करके शुक्र के बीज मंत्र का एक सौ आठ दाने की स्फटिक अथवा रुद्राक्ष माला पर तीन या इक्कीस माला जप करें। उसके बाद दूध, चीनी, चावल से बनी खीर का भोग लगा कर स्वयं खाएं तथा दूसरों को भी खिलाएं। यदि संभव हो तो एक आंख वाले गरीब व्यक्ति (शुक्राचार्य) को दें, या गाय को खिलावें। अंतिम शुक्रवार को पूर्णाहुति, हवन द्वारा करें तथा चांदी, श्वेत वस्त्र, चावल, दूध, गरीब को दान में दें। ग्रह पीड़ा निवृत्ति हेतु शुक्र यंत्र : भोजपत्र पर श्वेत चंदन एवं अनार की कलम से शुक्रवार को प्रातः काल लिख कर, पंचोपचार पूजन करके अथवा चांदी के पत्र पर शुक्रवार को उत्कीर्ण करा कर, पूजन कर गले या बांह में धारण करना चाहिए। रत्न धारण : श्वेत पुखराज, हीरा, सफेद मूंगा - चांदी या श्वेत धातु में मढ़वा कर पंचोपचार पूजन, ब्राह्मण से प्राण प्रतिष्ठा करा कर, तर्जनी उंगली में धारण करना चाहिए। औषधि धारण : शुक्रवार के दिन केले की जड़ को सफेद कपड़े में बांध कर व सफेद धागे में (यदि रेशम का हो तो अच्छा है) बांध कर गले या बांह में धारण करना चाहिए।
तांत्रिक टोटका
(क) अपने भोजन में से प्रथम ग्रास (कौर) गाय को खिलावें।
(ख) गाय को चारा, घी, दही, कपूर, मोती का दान करें।
(ग) महिला अथवा गरीब संस्था को दान दें या उसमें स्वयं सहयोग दें।
(घ) चांदी की गाय बनवा कर दान करें।
(ड.) लक्ष्मी जी की अराधना करें।
(च) चीनी तथा आटा चींटियों को डालें।
(छ) कन्याओं को खीर खिलाएं।
शनि की अनुकूलता हेतु आराध्य देव- हनुमान जी तथा शनि देव वैदिक उपाय : शनि वैदिक मंत्र का तेईस हजार जप करना चाहिए। वैदिक मंत्र : ऊँ शन्नोदेवीरभीष्टये आपो भवन्तु पीतये संयोरभिश्रवण्तु नः
तांत्रिक मंत्र
(क) ऊँ प्रां प्रौं सः शनये नमः
(ख) ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः।
(ग) ऊँ शं शनैश्चराय नमः।
शनि के किसी भी तांत्रिक मंत्र का बयानवे हजार जप करना चाहिए। गायत्री मंत्र : ऊँ भग भवाय विद्यहे मृत्युरूपाय धीमहि तन्नः शनि प्रचोदयात्। शनिवार व्रत : शनिवार व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से प्रारंभ करना चाहिए। व्रत के दिन उपासक स्नान करके, काला वस्त्र धारण कर शनि के बीज मंत्र का एक सौ आठ दाने की स्फटिक या जीवापुत की माला से तीन या उन्नीस माला जप करें। उसके बाद एक थाल में जल, काला तिल, काला या नीला फूल, लवंग, गंगा जल, चीनी, दूध पूर्वाभिमुख हो कर पीपल की जड़ में डालें और तिल के तेल का दीपक जलावें। रात में काली उड़द की दाल की खिचड़ी स्वयं खाएं और दूसरों को भी खिलावें। पूजा-पाठ : पंचमुखी हनुमान कवच का पाठ एवंम शनि देव की स्तुति करें। दान : तेल, नीलम, तिल, काला कपड़ा, कुलथी, लोहा, भैंस, काली गाय, काला फूल, काले जूते, कस्तूरी, सोना आदि। हवन : संध्या समय शमी समिधा (लकड़ी) से हवन करना चाहिए। औषधि स्नान : काला तिल, सुरमा, लोबान, धमनी, सौंफ, मुत्थरा, खिल्लां आदि। शनि ग्रह पीड़ा निवृत्ति हेतु शनि यंत्र : भोजपत्र पर काली स्याही अनार की कलम से शनिवार को प्रातः काल लिख कर, पंचोपचार पूजन कर लौह पत्र पर शनिवार को उत्कीर्ण करा कर काले धागे में गूंथ कर गले या बांह में धारण करना चाहिए। रत्न धारण : नीलम रत्न को चांदी या सोने में मढ़वा कर, पंचोपचार पूजन कर तथा ब्राह्मण से प्राण प्रतिष्ठा करा कर शनि की उंगली में (मध्यमा) शनिवार को शयन के पूर्व भोजन के बाद धारण करना चाहिए। काले घोड़े की नाल का शनिवार को छल्ला बनवा कर मध्यमा उंगली में शनिवार की रात्रि में धारण करें व छल्ले को तेल लगाएं। औषधि धारण : शमी मूल (जड़) को काले कपड़े या नीले कपड़े में बांध कर सीधे हाथ में धारण करना चाहिए।
तांत्रिक टोटका
(क) जल में मछली को आटे की गोली बना कर खिलावें।
(ख) अपने भोजन से प्रथम ग्रास निकाल कर गाय को खिलावें।
(ग) काला तिल, उड़द दाल, लोहा, चमड़ा, लोहे की अंगीठी, चिमटा, सरसों तेल, दारू, स्पिरिट का दान करें।
(घ) शिवजी की भैरव रूप की अराधना करें।
(ड.) रात को उड़द दाल की खिचड़ी हर शनिवार को खानी चाहिए।
(च) तिल का तेल मध्यमा उंगली से बारह बजे दिन में दोनों पैर के अंगूठे, एड़ी, घुटना, नाभी, छाती, गले पर लगाएं।
(छ) बिना तेल का चावल, उड़द की दाल भून कर एक बोतल में रख लें। प्रत्येक शनिवार को शाम के समय थोड़ी सी खुद लें और जो भी लोग हों सब को खिलावें या गाय को खिला दें।
(ज) यदि शनि सूर्य के साथ हो और सूर्य परास्त हो, जिससे स्वर्ण, पद, प्रतिष्ठा व दृष्टि की हानि हो गयी हो तो शनि की शांति दान दे कर करनी चाहिए।
(झ) यदि सूर्य और शनि एक साथ हो, जिससे स्त्री अस्वस्थ हो तो स्त्री के वजन के बराबर मवेशी का चारा दान करें।
(अ) काले घोड़े के अगले बांये पांव की नाल, अथवा सांढ़ को दागने वाले लोहे अथवा नाव की कील के लोहे, या मछली मारने वाले जाल में लगे लोहे की अंगूठी मध्यमा उंगली में शनिवार को बारह बजे दिन में धारण करना चाहिए।
(ट) पीपल के वृक्ष में नित्य जल डालें। रुद्राक्ष धारण : नौमुखी रुद्राक्ष को चांदी में कोरा (दोनो ओर) लगा कर, लाल धागे में शिवजी के भैरव रूप की पूजा-ध्यान कर शनिवार को धारण करना चाहिए।
राहु की अनुकूलता हेतु आराध्य देव - भैरव भैरव की विधिवत् पूजा कर गुड़ और बेसन का रोट बना कर भोग लगाना चाहिए। स्वयं खाएं और कुत्ते को खिलाएं । वैदिक उपाय : राहु के वैदिक मंत्र का अट्ठारह हजार जप करना चाहिए। वैदिक मंत्र : ऊँ कयानश्चित्र आभुवदूती सदा वृघः सखा कया शचिष्ठया वृता॥
तांत्रिक मंत्र


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(क) ऊँ छ्रां छ्रीं छ्रौं सः राहुवे नमः
(ख) रां राहवे नमः। राहु के किसी भी तांत्रिक मंत्र का बहत्तर हजार जप करना चाहिए। राहु गायत्री मंत्र : ऊँ शिरोरूपाय विद्महे अमृते शाय धीमहि तन्नो राहु प्रचोदयात्॥
दान : उड़द, स्वर्ण का सांप, सात प्रकार के अन्न, नीला वस्त्र, गोमेद, काला फूल, चाकू, तिल डाल कर तांबे का बर्तन, सोना, रत्न, दक्षिणा।
पूजन
(क) शनिवार के दिन शिव जी के भैरव रूप की पूजा करनी चाहिए।
(ख) श्री हनुमान बजरंग बाण का पाठ तथा हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए।
हवन : रात्रि के समय दूब से हवन करना चाहिए। औषधि स्नान : लोबान, तिल का पत्ता, मुत्थरा, गजदंत, कस्तूरी। राहु, ग्रह पीड़ा निवृत्ति हेतु राहु यंत्र
(क) भोज पत्र पर नीले रंग से अनार की कलम से लिख कर, शनिवार को सायंकाल लिख कर, पंचोपचार पूजन कर अथवा लौह पत्र पर शनिवार को उत्कीर्ण करा कर पुनः पूजन कर के नीले धागे में बांध कर, गले और बांह में धारण करना चाहिए।
(ख) उपर्युक्त यंत्र को अष्ट धातु की अंगूठी में उत्कीर्ण करा कर मध्यमा उंगली में धारण करना चाहिए।
रत्न धारण
(क) गोमद 7( रत्ती को चांदी में मढ़वा कर, पंचोपचार पूजन करके ब्राह्मणों द्वारा प्राण प्रतिष्ठा करा कर, उल्टे हाथ की मध्यमा उंगली में रात्रि भोजन के पश्चात् धारण करना चाहिए।
(ख) यदि राहु के साथ चंद्रमा हो तो चांदी में मोती मढ़वा कर अनामिका में धारण करना चाहिए।
(ग) यदि राहु के साथ सूर्य हो तो गारनेट चांदी में मढ़वा कर अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए।
औषधि धारण : श्वेत चंदन को नीले वस्त्र में बांध कर शनिवार को सीधे हाथ, बांह या गले में पहनना चाहिए। तांत्रिक टोटके
(क) शनिवार को कोयला, तिल, नारियल, कच्चा दूध, हरी घास, जौ, तांबा बहती नदी में प्रवाहित करें।
(ख) कुष्ठ रोगी को मूली का दान दें।
(ग) नदी में लकड़ी का कोयला प्रवाहित करें।
(घ) यदि क्षय रोग से पीड़ित हों तो गोमूत्र से जौ को धो कर एक बोतल में रखें तथा गोमूत्र के साथ उस जौ से अपने दाँत साफ करें।
(ड.) नदी में पैसा प्रवाहित करें। ़
(च) सरसों तथा नीलम का दान किसी भंगी या कुष्ठ रोगी को दें।
(छ) यदि राहु चंद्रमा के साथ हो तो पूर्णिमा के दिन नदी की धारा में नारियल, दूध, जौ, लकड़ी का कोयला, हरी दूब, यव, तांबा, काला तिल प्रवाहित करें।
(ज) यदि राहु सूर्य के साथ हो तो सूर्य ग्रहण के समय कोयला और सरसों नदी की धारा में प्रवाहित करना चाहिए।
रूद्राक्ष : नौमुखी और चारमुखी रुद्राक्ष को चांदी का कोढ़ा (किनारी) लगा कर दाहिनी बांह पर धारण करना चाहिए। धारण करने से पूर्व शिवजी के भैरव रूप की पूजा करनी चाहिए। केतु ग्रह की अनुकूलता हेतु आराध्य देव - श्री गणेश जी वैदिक उपाय : ऊँ केतुं कृण्वन्न केतवे पेशो मर्या अपे से समुषभ्दिंरिजायथाः। वैदिक मंत्र का अट्ठारह हजार जप करना चाहिए। तांत्रिक मंत्र ऊँ ऐं ह्रीं केतवे नमः। ऊँ कें केतवे नमः केतु के किसी भी तांत्रिक मंत्र का बहत्तर हजार जप करना चाहिए। दान : उड़द, कंबल, कस्तूरी, वैदूर्य मणि, लहसुनिया, काला फूल, तिल, तेल, रत्न, सोना, लोहा, बकरा, शास्त्र, सात प्रकार के अन्न, दक्षिणा। पूजन : हनुमान जी की उपासना, हनुमान अष्टक तथा बजरंग बाण का पाठ नित्य करें। काली हृदय स्तोत्र का पाठ करें। शनि तथा मंगलवार को हनुमान जी के दर्शन कर बेसन के लड्डू का भोग लगावें। संभव हो तो शनिवार और मंगलवार को सिंदूर और चोला भी चढ़ाना चाहिए। हवन : रात्रि काल कुशा की समिधा से हवन करना चाहिए। औषधि स्नान : लोबान, तिलपत्र, पुत्थरा, रत्न धारण : लहसुनियां 7( से 9( रत्ती तक चांदी या तांबे में मढ़वा कर कच्चे दूध एवं गंगा जल से धो कर, ब्राह्मण द्वारा प्राण प्रतिष्ठा करवा कर, सीधे हाथ की अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए। औषधि धारण : अश्व गंध को लाल कपड़े में यंत्र जैसा बांध कर, सीधे हाथ में बांधना चाहिए। कच्चे दूध के बाद गंगा जल से धोना आवश्यक है। व्रत उपवास : केतु की प्रसन्नता के लिए शनिवार और मंगलवार को व्रत करना चाहिए। उपवास के बाद सायं काल हनुमान जी के आगे धूप, दीप जलाने के पश्चात् मीठा भोजन करना चाहिए। यदि नमक न खाएं तो उत्तम है।
तांत्रिक टोटके
(क) कुत्ते को खाना खिलावें।
(ख) यदि पुत्र आज्ञाकारी नहीं हो तो मंदिर में कंबल दान करें।
(ग) पैर में या पेशाब में कोई तकलीफ हो तो शुद्ध रेशम का उजला धागा धारण करें।
(घ) संतान सुख के लिए भी कुत्ते को खाना खिलावें।
(ड.) भूरा कुत्ता घर में पालें। नवग्रह पूजन (विशेष) स्तोत्र युक्त सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र शनि राहु एवं केतु का स्थान बना कर अलग-अलग आवाहन कर अलग-अलग ग्रहों के वैदिक या तांत्रिक मंत्र से पंचोपचार पूजन (यथा- ध्यान, आवाहन, अर्घ्य, स्नान, वस्त्र आदि) करने के पश्चात् नवग्रह मंत्र व स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।


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