सन्तति योग

सन्तति योग  

नीरज शर्मा
व्यूस : 6782 | मई 2013

संतान मनुष्य के जीवन की एक बड़ी ईच्छा है। प्रत्येक दम्पत्ति को संतान प्राप्ति व माता-पिता कहलाने के सौभाग्य की ईच्छा होती है परंतु सभी व्यक्तियों को यह सौभाग्य समान रूप से प्राप्त नहीं होता। ज्योतिषीय भाव के महत्व को तो सभी विद्वान एक मत से स्वीकार करते हैं परंतु इसके अतिरिक्त भी कई ऐसी चीजें हैं जिनका विचार संतान पक्ष के लिए परमावश्यक है


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 जन्मकुंडली का पंचम भाव तो संतान का भाव है ही अतः पंचम भाव व पंचमेश का शुभ या अशुभ स्थिति में होना तो विचारणीय है, परंतु पंचम से पंचम अर्थात नवम भाव व नवमेश का विचार भी अवश्य करें। इसके अतिरिक्त संतान का नैसर्गिक कारक ग्रह बृहस्पति है जिसका विचार करना परमावश्यक है। अतः यदि जन्मकुंडली में पंचम भाव में शत्रु ग्रह या त्रिक भाव के स्वामी (षष्टेश, अष्टमेश, द्वादशेश) स्थित हों या पंचमेश नीचस्थ त्रिक भाव में या अन्य प्रकार से पीड़ित हो तो संतान प्राप्ति में बाधाएं आती हैं और पंचम भाव व पंचमेश बली व शुभ एवं मित्र ग्रहों से प्रभावित होने पर अच्छे संतान की प्राप्ति होती है।

इसी प्रकार नवम भाव व नवमेश का प्रभाव भी संतान पक्ष पर पड़ेगा। इसके अतिरिक्त यदि संतान पक्ष अच्छा होगा व बृहस्पति नीचस्थ या अन्य प्रकार से कमजोर होने पर संतान प्राप्ति में बाधा होगी। ऊपर बताये गये घटकों में से जितने अधिक घटक कमजोर होंगे उतनी ही समस्यायें अधिक होंगी तथा अधिकांश घटक शुभ स्थिति में होने पर संतान प्राप्ति व सुख भी उतना ही अच्छा होगा। इन सबके अतिरिक्त एक बात और विचारणीय है। पुरुष की कुंडली में सूर्य और शुक्र तथा स्त्री की कुंडली में मंगल और चंद्रमा यदि अति निर्बल या पीड़ित है तो भी संतान प्राप्ति में बाधाएं आयेंगी। शुक्र और रज के योग से ही संतान की उत्प होती है

अतः स्त्री की कुंडली में मंगल और चंद्रमा रज को नियंत्रित करते हैं और सूर्य व शुक्र पुरुष के वीर्य को पुष्ट करने का कार्य करते हैं अतः इन घटकों के अति पीड़ित होने पर भी संतान प्राप्ति में बाधा आयेंगी या चिकित्सीय उपचार के बाद ही संतान प्राप्ति होगी। बृहस्पति संतान का नैसर्गिक कारक तो है परंतु इसका संतान पक्ष में एक महत्व और भी है। बृहस्पति की दृष्टि में अमृत होता है अतः यदि पंचम भाव में कोई पाप योग बन रहा हो या पंचमेश किसी प्रकार पीड़ित हो और बलवान बृहस्पति की इन पर दृष्टि पड़ रही हो तो कुछ समय या बाधाओं के बाद संतान प्राप्त अवश्य हो जाती है।

यदि किसी व्यक्ति को संतान प्राप्ति में बाधाएं आ रही हों तो पति-पत्नी दोनों की कुंडली में उपरोक्त घटकों को मेहनत से अध्ययन कर उपचार बताने चाहिए। इसके अतिरिक्त सूर्य, मंगल व बृहस्पति पुत्र प्राप्ति व शुक्र, चंद्रमा पुत्री प्राप्ति कारक हैं। कुछ नपंुसक ग्रह हैं तथा शनि का पंचम भाव पर मित्र प्रभाव पुत्र व शत्रु प्रभाव पुत्री कारक होगा। इसके अतिरिक्त एक विशेष बात संस्कार के रूप में है अतः ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी इसका शुभ समय आंका जा सकता है।


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जन्मकुंडली में पंचमेश, नवमेश, लग्नेश व बली बृहस्पति की अंतर्दशा या प्रत्यंतर्दशा गर्भाधान के लिए शुभ है। इसके अतिरिक्त हमारी कुंडली में पंचमेश ग्रह जिस राशि में है, गोचरवश जब बृहस्पति उस राशि में या उससे पांचवी, सातवीं या नौवीं राशि में आये तो यह समय भी गर्भाधान के लिए शुभ होता है।



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