मंगल

मंगल  

अजय भाम्बी
व्यूस : 8197 | मई 2013

मंगल के जन्म से संबंधित एक बहुत ही सुंदर कथा है। प्राचीन काल में जब हिरण्य कश्यप दैत्य के बड़े भाई हिरण्याक्ष ने पृथ्वी का हरण किया तो पृथ्वी को दैत्य से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने वराह के रूप में अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध कर पृथ्वी को पुनः अपने स्थान पर स्थापित किया। कथा में आगे वर्णन है कि पृथ्वी भगवान के वराह अवतार (रूप) से बहुत प्रभावित हुई तथा उनकी पत्नी होने की ईच्छा करने लगी। भगवान वराह तो सहस्र सूर्य के तेज पुंज से भी अधिक दीप्तिवान थे, अतः सामान्य प्राणियों को तो उनके समीप जाना भी संभव नहीं था। किंतु पृथ्वी की इच्छा को जानते हुए भगवान सामान्य रूप में देवी के सम्मुख प्रकट हुए तथा एक वर्ष तक दोनांे ने एकांत स्थान पर सहवास किया, जिसके कुछ समय बाद देवी पृथ्वी ने मंगल को जन्म दिया। ज्योतिष का आधार वह आकाशीय पिंड है जिसे विभिन्न ग्रहों के नाम से जाना जाता है। समस्त संसार में यह मान्यता है कि यह आकाशीय पिंड अथवा ग्रह संसार व मनुष्य पर अपना-अपना प्रभाव डालते हैं।

ज्योतिष इस संसार की प्राचीनतम विधाओं में से एक है। जिसका अध्ययन सुमेर से सुमात्रा तक समस्त सभ्यताओं में होता रहा है। पूर्व व पश्चिम अथवा रोम व मिश्र आदि सभी सभ्यताओं में ज्योतिष से संबंधित कथाएं पाते हैं। इनमें से अधिकांश सभी ग्रहों की उत्पत्ति से संबंधित जुड़ी कथाओं का वर्णन बहुत ही विराट रूप में दर्शाया गया है। ग्रहों का जन्म सीधे-सीधे भगवानों के साथ जोड़कर दिखाया गया है तथा उन्हें असीमित शक्तियों व सत्ता को प्राप्त किया दिखाया गया है जिसके द्वारा वह किसी को भी अत्यंत लाभ अथवा हानि पहुंचाने का सामथ्र्य रखते है। प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह संसार के किसी भी हिस्से का वासी हो संकट पड़ने पर अथवा अज्ञात से लाभ प्राप्ति हेतु आकाश की ओर देखता है। शायद यही कारण है कि सभी धर्मों में भगवान के आकाश में वास करने की परिकल्पना पाई जाती है।

भगवान के आकाश में वास करने का विषय तर्क का विषय हो सकता है किंतु ग्रह तो निश्चय ही अंतरिक्ष के वासी हैं। प्राचीनतम विद्या होने के कारण ऋषियों और इसके ज्ञाताओं ने ग्रहों की उत्पत्ति के विषय में ऐसी प्रभावशील कथाएं कही हंै कि जिनके आधार पर ग्रहों का प्रभाव तो मानव मन पर पड़ता है और हम उसको समझ सकते है क्योंकि इनका जन्म या तो ईश्वर से हुआ है अथवा इन्होंने अपनी उपलब्धियों से यह सामाथ्र्य प्राप्त की है कि वे कुछ भी कर सकते हैं। यहां तक की असंभव को संभव करने की क्षमता रखते हैं। जैसा कि हम पहले भी बता चुके हैं कि सूर्य व चंद्रमा एक-एक राशि के स्वामी हैं किंतु अन्य ग्रह दो-दो राशियों पर अधिकार रखते हैं। दो राशियों के स्वामी होने के कारण अन्य ग्रह अतिरिक्त ऊर्जा, स्वभाव, चरित्र और व्यवहार क्षमता रखते हैं। दो राशियों का स्वामित्व उनके व्यक्तित्व को नये आयाम प्रदान करता है।

उनके पूर्ण प्रभाव को हम दोनों राशियों का विचार किये बिना पूरी तरह से नहीं समझ सकते। यह बहुत ही विचित्र व अचरज भरा लगता है कि जब हम ग्रहों की दोनों राशियों के व्यवहार का अध्ययन करते हैं तो हमें उनका व्यक्तित्व बंटा हुआ सा जान पड़ता है। दूसरे शब्दों में ग्रहों का प्रभाव विभिन्न प्रकार के परिणाम देता है तथा यह प्रक्रिया कभी-कभी अप्रत्याशित-सी मालूम पड़ती है। जहां एक अवसर पर ग्रह अपने चमत्कारी प्रभाव से एक टूटे बिखरे जीवन को पल भर में संवार देता है वहीं दूसरे अवसर पर एक धीरे-धीरे बनकर खड़े हुए जीवन को पल भर में नष्ट कर देता है। मंगल से जुड़ी उग्रता उसके आत्मसंरक्षण, संवध्र् ान की मूल वृत्ति में ही निहित है।

स्वयं (निजता) की पहचान वह मूल आवश्यकता है जो दूसरों के सम्मुख अपने आप को स्थापित करने को आवश्यक बना देती है। अपने द्वारा निश्चित किये उद्देश्यों को पाने के लिए जीवन में संघर्षों और तनाव का सामना करना ही पड़ता है। मानव व्यक्तित्व में मंगल ग्रह, दूसरों के सम्मुख अपने को स्थापित करने में मदद करता है। यह उस ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है जो कि अपने उद्देश्यों को पाने में प्रयोग की जाने वाली मूल प्रवृत्ति की ओर संकेत करती है। यह वह अंतर्निहित प्रवृत्ति है जो व्यक्ति को समूह से अलग करती है। यह महान प्रोत्साहक व कार्य प्रारंभ करने की प्रेरक शक्ति है। आत्मसंरक्षण की वृत्ति मनुष्य को बहुत गहराई से प्रभावित करती है जो कि कभी-कभी अपने परिवार व पैतृक अभाव के कारण दूर जाने को प्रेरित करती है। इसमें संसार पर सदा के लिए अपनी छाप छोड़ जाने की आंतरिक ईच्छा रहती है।

दूसरों से संघर्ष में तथा अपने आपको स्थापित करने में मंगल व्यक्ति को आंतरिक अभिव्यक्ति, मानसिक परिपक्वता तथा उग्रता प्रदान करता है। मंगल के स्वभाव में ईच्छाओं और भावनाओं का कोई स्थान नहीं है। किंतु वे निराशा व पराजय को सहर्ष रूप से स्वीकार नहीं कर पाते। वे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपनी समस्त शक्तियों के साथ उस समय तक लगे रहते हैं जब तक कि अपने उद्देश्यों को पा नहीं लेते। हिन्दी व संस्कृत भाषा में ‘मंगल’ शब्द का अर्थ है ‘शुभ’ अथवा ‘कल्याणकारी’। देवी पृथ्वी से इसकी उत्पत्ति होने के कारण इसे भूमि पुत्र, कजा आदि नामों से भी जाना जाता है। ये विभिन्न नाम मंगल के प्रभाव को दर्शाते हैं। मंगल का विवाह के विषय में विशेष महत्व है तथा मंगल के शुभ प्रभाव के अभाव में भूमि का स्वामित्व प्राप्त होना असंभव है।

मंगल को ‘युद्ध का देवता’ भी माना जाता है। अतः यह आपस में मतभेद व अलगाव का भी कारक होता है। जबकि शुक्र कोमल और शांत ऊर्जा का धारक है जो विरोधी शक्तियों को संतुलन में लाकर उन्हें लाभकारी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक जुट करने में सहायक होता है। मंगल, ब्रह्माण्ड की दो महत्वपूर्ण राशियों मेष और वृश्चिक का स्वामी है। यदि हम मंगल के प्रभाव को पूर्ण रूप से जानना चाहते हैं तो अपने द्वारा स्वामित्व प्राप्त राशियों मेष और वृश्चिक में इसके प्रभाव को देखना होगा। मेष व वृश्चिक राशि की विपरीत राशियां वृष व तुला है जिन पर मादक शुक्र का अधिकार है। इस तथ्य का विशेष महत्व है क्योंकि मंगल व शुक्र में एक विशेष संबंध है।

जहां मंगल पौरुष का द्योतक है तो वहां शुक्र कोमल नारीत्व का बोध कराता है। जैसा कि हम जानते हैं मेष राशिचक्र की पहली राशि है तथा लक्ष्यहीन (अनिश्चित) ऊर्जा को दर्शाती है। राशि का स्वामी मंगल इस अदृश्य ऊर्जा से ओतप्रोत है। वह किसी भी प्रकार के प्रभाव में नहीं है परंतु उग्रता से परिपूर्ण है। अतः मंगल की यह ऊर्जा विद्रोह, साहस, प्रतिद्वंद्विता तथा नेतृत्व के द्वारा अपनी अभिव्यक्ति का मार्ग खोजती रहती है। एक लक्ष्य साधक व कर्ता होने के कारण व्यक्ति की पूर्ण शक्तियों का प्रयोग अपने को सिद्ध करने का, बिना किसी संदेह के सामाजिक ऊंचाइयों को छूने में ही होता है। दूसरों के सम्मुख उदाहरण बनने व अपनी विशिष्ट छवि को सिद्ध करने के लिए जातक अपनी संपूर्ण शक्ति को लगा देते हैं। स्वभाव से ही हिसाब-किताब से दूर रहने के कारण वे कोई भी काम अपने हाथ में लेने से पहले उसमें आने वाली कठिनाइयों का आकलन नहीं कर पाते।

किंतु उनमें यह जन्मजात वृत्ति होती है कि समस्त बाधाओं के रहते हुए भी वे अपने लक्ष्य की ओर विश्वासपूर्वक बढ़ते रहते हैं जब तक कि उसे पा नहीं लेते। ये अपने इर्द-गिर्द एक आभामंडल बना लेते हैं तथा किसी भी व्यक्ति का अपने निकट आना पसन्द नहीं करते व अपने भीतर का भेद नहीं पाने देते। उनका क्रियाशील व्यक्तित्व तथा त्वरित निर्णय लेने की क्षमता उनके चारों ओर स्वाभाविक सुरक्षा कवच का निर्माण करती है जिसमें कोई प्रवेश नहीं कर पाता। एक अनिश्चित योजना की स्वाभाविक प्रवृत्ति के कारण वह सदा भयभीत रहते हैं। कोई उनके नजदीक न आ जाए या उनकी कार्यप्रणाली का विश्लेषण न कर दे, यही भय उनकी एकाग्रता खो सकता है। मंगल के स्वामित्व में दूसरी राशि वृश्चिक है। वृश्चिक राशि बहुत ही जटिल स्वभाव वाली है।

इसलिए इसे रहस्यात्मक राशि भी कहते हैं। राशिचक्र में वृश्चिक आठवीं राशि है तथा जीवन के दो महत्वपूर्ण पक्षों पर अपना प्रभाव रखती है। वे हैं ‘काम’ और ‘मृत्यु’। मंगल ग्रह अपने में प्रचंड ऊर्जा का स्रोत है और ऊर्जा के मूल स्वभाव को दो प्रकार से उपयोग में लाया जाता है। पहला ‘निर्माण’ में तथा दूसरा ‘विध्वंस’ में। ऊर्जा के स्वभाव का एक यह भी पक्ष महत्वपूर्ण है कि वह कभी नष्ट नहीं होता, केवल उसे परिवर्तित ही किया जा सकता है। मंगल गतिमान ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है जो कि अपने आपको अभिव्यक्त करने को आतुर है। मंगल की प्रथम राशि मेष में यह ऊर्जा बहिर्मुखी दिशा की ओर उद्यत है तथा जहां यह दूसरों को प्रभावित करने व अपनी एक स्पष्ट छाप छोड़कर अपनी उपस्थिति को दर्शाना चाहती है वहीं दूसरी ओर इसकी दूसरी राशि वृश्चिक में वही ऊर्जा अंतर्मुखी होकर अपने भीतर ही अभिव्यक्ति का मार्ग देख रही है तथा इनमें वह ऊर्जा स्वयं की आत्मतुष्टि की प्रेरणा से ओतप्रोत दिखाई देती है। मेष एवं वृश्चिक राशि की विपरीत राशि वृष एवं तुला है जो शुक्र की राशि कहलाती हैं।

मंगल व शुक्र में एक विशेष सम्बन्ध है जहां मंगल पुरुष वृत्ति का प्रतिनिधित्व करता है तो शुक्र नारीत्व (स्त्रीत्व) की कोमल भावनाओं का द्योतक है। मंगल की ऊर्जा में शुक्र की शक्ति से मिलने की आंतरिक ईच्छा रहती है। इसमें वह प्रकट रूप में पुरुषोचित उग्रता, शक्ति, आधिपत्य, नियंत्रण तथा निर्लिप्तता का प्रयोग करता प्रतीत होता है किंतु यह पूर्ण रूप से सत्य नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रारंभ में मंगल, शुक्र पर अपनी छाप छोड़ने को आतुर जान पड़ता है, वह संसार को दिखाना चाहता है कि उसने कुछ विशेष प्राप्त किया है तथा किसी को भी उसके अधिक निकट आने का साहस नहीं करना चाहिए। आंतरिक स्तर पर एक बार अपनी रसिकता का विभिन्न स्तरों पर अनुभव होने पर तथा काम कला में निपुणता पाने के बाद वह अपने साथी (शुक्र) के प्रति समर्पण का अनुभव करने लगता है। काम, एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का कारक होता है जहां ऊर्जा विस्तारित व परिवर्तित होकर नए अनुभव को जन्म देने लगती है जो गहरे में स्वयं से साक्षात्कार करने में सहायक होती है।

यह ध्यान देने योग्य बात है कि वृश्चिक एक जलीय राशि है तथा जैसा कि हम जानते हैं, ज्योतिष के अनुसार जल तत्व भावनाओं, अनुभूतियों, कल्पनाओं तथा सृजन आदि से संबंधित है। वृश्चिक की यह भावुकता मंगल की उग्र वृत्ति व निर्दय क्रियाशीलता से मेल नहीं खाती, अतः मंगल जब पूर्ण रस को प्राप्त कर लेता है तो अपने सिद्धांतों के विपरीत समर्पण की ओर उन्मुख होने लगता है। एक बार प्रारंभिक उग्रता के अंत के साथ निष्क्रियता, सहनशीलता का प्रारम्भ हो जाता है तथा वह आज्ञाकारी, समझदार, अधिकार न जताने वाला तथा बहुत हद तक समर्पित हो जाता है। यदि मंगल नकारात्मक (नीच स्थिति में) हो तो जीवन भर विनाश (विध्वंस) लाने वाला होता है। वह व्यक्ति को अहंवादी और उग्र स्वभाव का बनाता है जो कि उसके लिए पतन का कारक होता है तथा उद्दंडता, हिंसा, सत्ता व शक्ति का मोह तथा अतिवादिता जीवन का मूल उद्देश्य हो जाता है। व्यक्ति भावनाओं का गुलाम, असहनशील, धैर्यहीन और अनियंत्रित व्यवहार करने लगता है।

मंगल मेष व वृश्चिक राशि का स्वामी है। मकर में मंगल ‘उच्च’ का होता है तथा इसका उच्चतम भाव 28 अंश पर होता है। इसके विपरीत कर्क राशि में यह नीच का होता है। अतः कर्क राशि में मंगल 28 अंश पर नीचतम होता है। मंगल की मूल त्रिकोण राशि मेष है। विशेषतः जब यह 0 से 12 अंश के मध्य हो तथा बाकी अंशों पर मेष राशि को अपने स्वामित्व में ही मानता है।



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.