भावनाओं की आहुति

भावनाओं की आहुति  

आभा बंसल
व्यूस : 4061 | जून 2010

माता-पिता को चाहिए कि वह अपनी संतान की भावनाओं को समझें और स्वयं के निर्णय उन पर न थोपें और न ही उन्हें इतना प्रताड़ित करें कि उनके बच्चे विचलित होकर आवेश में दुर्भाग्यपूर्ण कदम उठाए। अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देकर ही हम उनसे अच्छे बर्ताव की उम्मीद कर सकते हैं। हाल ही में न्यूज पेपर में पढ़ा कि एक सत्रह साल के नाबालिग लड़के ने अपने पिता की चाकू मार कर हत्या कर दी क्योंकि पिता उसकी माता के साथ बहुत ज्यादा मार पिटाई कर रहा था। यह खबर कोई नई नहीं है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से ऐसी खबरें काफी आ रही हंै, जिनमें बच्चों ने अपने ही माता-पिता को मौत के घाट उतार दिया। इसके पीछे अनेक कारण हैं। जहां पिता खूब शराब पीकर रात को घर आता है और आते ही पत्नी व बच्चों से गाली गलौज करता है तो बच्चे को उसके प्रति घृणा की भावना उत्पन्न हो जाती है।

चूंकि माता हमेशा घर में रहती है और उसके खान-पान व अन्य जरूरतों का ख्याल रखती है तथा ममता से भरी होती है इसलिए बच्चे मां से ज्यादा जुड़े रहते हैं। जबकि पिता जो हमेशा ही नशे में रहता है या फिर कभी-कभी घर आता है, तो उनका उससे कोई मानसिक लगाव नहीं हो पाता और जब वह उसे अपनी मां को पीटते देखते हैं तो स्वाभाविक रूप से उसके बचाव के लिए कुछ भी कर डालते हैं। यह सब एक आवेश में होता है। कोशिश करने पर भी हमें पिताहन्ता बच्चे की जन्म तिथि नहीं मिल पाई लेकिन एक ऐसे लड़के समीर की जन्मपत्री देखने को मिली जिसने बचपन से अपने पिता को अपनी मां के साथ बदसलूकी करते देखा था। चाहे वह सुबह की चाय हो या रात का खाना समीर का पिता हमेशा ही उसकी मां से लड़ता रहता। कभी भी उसने समीर से सीधे मुंह बात नहीं की। वह हमेशा उस पर आदेश चलाता।

समीर बचपन से ही उससे अत्यंत घृणा करता था तथा उसकी बात को न मानकर वह अपनी घृणा को जाहिर करता तथा उसे अपने पिता को तंग कर एक खास खुशी मिलती थी। जब भी वह अपनी मां को एक निरीह पशु की भांति पिटते देखता तो यही सोचता था कि कैसे वह उन्हें इस दरिन्दे से बचाए। उसने अपने पिता को अनेक बार समझाने की कोशिश भी की परंतु उसके क्रोध के आगे उसकी एक न चलती। समीर के पिता का कहर उसकी मां ही नहीं उस पर भी टूटा था जिसे समीर कभी नहीं भूल सकता और उनको इसकी सजा देने के लिए एक ऐसा निर्णय लिया जिससे उसके परिवार में आगे किसी को अपमान न झेलना पड़े। समीर अपने परिवार की नजदीकी नन्दिनी से बेहद प्यार करता था।

नन्दिनी भी उसके बहुत करीब थी। दोनों का एक दूसरे के घर काफी आना जाना था। समीर को विश्वास था कि वह अपने पिता को किसी न किसी तरह मना लेगा। इसी विश्वास से जब एक दिन उसने अपने माता-पिता के समक्ष नन्दिनी से विवाह का प्रस्ताव रखा तो उसके पिता ने घर में कोहराम मचा दिया, उन्होंने उसे घर से निकल जाने को कहा और नन्दिनी और समीर दोनों को जान से मारने की धमकी भी दी। समीर की अपने पिता के क्रोध के आगे एक न चली और नन्दिनी को तथा उसके माता पिता को उन्होंने इतनी खरी खोटी सुनाई कि अपमान न झेल सकने के कारण नन्दिनी ने आत्म हत्या कर ली। समीर के लिए यह बहुत बड़ा झटका था। उसका दिल और दिमाग इस सदमे को बरदाश्त नहीं कर पाया और उसने उसी क्षण घर छोड़ने का निर्णय लिया।

पर मां की ममता और मां पर पिता के अत्याचारों ने उसके बढ़ते कदमों को पीछे खींच लिया और उसने अटल फैसला लिया कि वह आजन्म अविवाहित रहेगा ताकि इस परिवार का कोई वंशज ही न हो और उसके पिता को उनकी करनी का कुछ फल मिल सके। प्रस्तुत है दोनों की कुंडली का ज्योतिषीय विश्लेषण पिता की कुंडली वृश्चिक लग्न की है जिसका स्वामी मंगल, शनि और राहु के साथ अष्टमस्थ हैं। अर्थात् लग्नेश अन्य दो पाप ग्रहों के साथ अशुभ स्थान में स्थित है। द्वितीय भाव में क्षीण चंद्र केतु के साथ स्थित है तथा तीन पाप ग्रहों से दृष्ट है। किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि उस पर नहीं है। अर्थात् वाणी का स्थान तथा मन का कारक चंद्र बुरी तरह पाप ग्रहों से पीड़ित है। फलस्वरूप उनका अपनी वाणी पर बिल्कुल भी नियंत्रण नहीं है और वह बिना कुछ सोचे समझे अनियंत्रित होकर अनुचित भाषा का प्रयोग करते हैं।

चंद्र केतु के साथ होने के ग्रहण दोष से भी दूषित है। वाणी का कारक बुध अकारक होकर दशम भाव में स्थित है परंतु शनि की तृतीय दृष्टि से यह भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रहा है। चंद्र लग्न से सप्तम भाव में शनि, मंगल और राहु होने से पति-पत्नी में बहुत ज्यादा कलह है। पंचम भाव का कारक गुरु अस्त है तथा मंगल की दृष्टि से पीड़ित है। साथ ही पंचम भाव पर अशुभ ग्रहों सूर्य और शनि की भी दृष्टि है जिसके कारण पिता-पुत्र में शत्रुता है। जबसे शनि की दशा आरंभ हुई, पिता के एक हाथ को आंशिक रूप से लकवा भी मार गया, जिससे वह और ज्यादा गुस्सैल और धैर्यहीन हो गया। समीर की कुंडली में पंचमेश गुरु सप्तम भाव में नवमेश चंद्र तथा दशमेश सूर्य के साथ और सप्तमेश शुक्र पंचम भाव में लग्नेश के साथ स्थित है।

अर्थात लग्नेश, पंचमेश, सप्तमेश नवमेश और दशमेश का आपस में संबंध है। फलस्वरूप समीर के प्रेम संबंध हुए। समीर की कुंडली को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि वह समझदार, भावुक और जिम्मेदार है। उसकी कुंडली में किसी भी प्रकार का दुर्भाग्य योग नहीं है लेकिन उसके पिता के दुव्र्यवहार के कारण आज्ञाकारी समीर को अपने भाग्य, सुख, पे्रमिका व अपनी आकांक्षाओं आदि सभी कुछ से हाथ धोना पड़ा। माता-पिता को चाहिए कि अपनी संतान की भावनाओं को समझें और स्वयं के निर्णय उन पर न थोपें और न ही उन्हें इतना प्रताड़ित करें कि उनके बच्चे विचलित होकर आवेश में दुर्भाग्यपूर्ण कदम उठाएं। अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देकर ही हम उनसे अच्छे बर्ताव की उम्मीद कर सकते हैं।



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