वक्री शनि की वृश्चिक राशि में वापसी

वक्री शनि की वृश्चिक राशि में वापसी  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 4535 | जून 2017

शनि ने 26 जनवरी 2017 को सायं काल 7ः 30 मिनट पर वृश्चिक राशि से धनु राशि में प्रवेश किया और 6 अप्रैल को 10ः36 मिनट पर धनु राशि में वक्री हो गये । पुनः शनि 21 जून को सायंकाल 4ः39 बजे वृश्चिक राशि में वापस आ जायेंगे और तत्पश्चात 26 अक्तूबर 2017 को सायंकाल 15ः28 तक इसी राशि में रहेंगे। इसके बाद धनु राशि में पुनः प्रवेश करेंगे और अगले सवा 2 साल अर्थात 24 जनवरी 2020 तक इसी राशि में रहेंगे।

ज्योतिष में शनि की एक अहम भूमिका है। शनि की चंद्रमा से स्थिति साढ़ेसाती के आरंभ होने व समापन को दर्शाती है। 26 जनवरी 2017 को जब शनि ने धनु राशि में प्रवेश किया तो तुला राशि के अनेक जातकों ने सुकून पाया कि अब उनकी साढ़ेसाती समाप्त हो गयी है और इसी प्रकार मकर राशि वालों पर साढ़ेसाती का प्रभाव शुरू हुआ। लेकिन शनि के वृश्चिक राशि में जाने पर तुला के जातक असमंजस में हैं कि उनकी साढ़ेसाती समाप्त हुई या नहीं।

इसी प्रकार मकर राशि वाले लोग भी असमंजस में हैं कि उनकी साढ़ेसाती शुरू हुई या नहीं। कुछ लोगों को साढ़ेसाती समाप्त होने के फल मिल रहे हैं और कुछ को नहीं। शनि का इस प्रकार वक्री होकर दूसरी राशि में प्रवेश कर जाना और फिर इसी राशि में वापस आ जाने का क्या अर्थ है और विभिन्न राशियों पर इसका क्या प्रभाव रहेगा? इसको हम इस प्रकार से समझ सकते हैं।

कहते हैं:

क्रूरा वक्रा महा क्रूराः सौम्या वक्रा महा शुभः

अर्थात

वक्री होने पर क्रूर ग्रह अति क्रूर फल देते हैं तथा सौम्य ग्रह अति शुभ फल देते हैं।

वक्री ग्रह सबसे अधिक शक्तिशाली होते हैं। वक्री ग्रह बार-बार प्रयास कराते हैं। एक ही कार्य को करने के लिए व्यक्ति को एक से अधिक बार कोशिश करनी पड़ती है। शनि जब वक्री होते हैं तब व्यक्ति को मानसिक, आर्थिक तथा शारीरिक परेशानियां होती हंै।

ग्रह वक्री कैसे होता है?

जब भी कोई ग्रह आकाश गंगा में विपरीत चलना शुरू कर देता है तो उसे वक्र गति कहते हैं। ग्रह की वक्रता केवल पृथ्वी पर सापेक्षिक गति के कारण प्रतीत होती है अन्यथा ग्रह सूर्य के चारों ओर लग-भग एक ही गति से एक ही वृत्त में भ्रमण करते रहते हैं। जब भी पृथ्वी इनके नजदीक आती है तो ग्रह की गति पृथ्वी की गति से कम होने के कारण विपरीत दिशा में चलते हुए प्रतीत होते हैं।


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शनि की पृथ्वी से दूरी

शनि की सूर्य से दूरी औसत में 9 ए. यू रहती है। (1 ए. यू = एस्ट्रोनाॅमिकल यूनिट = पृथ्वी की सूर्य से औसत दूरी) यह दूरी अधिकतम 10 ए यू हो सकती है और कम से कम 8 ए यू। जब यह 8 से 9 के मध्य होती है तो शनि वक्री होते हैं और वक्री होने पर शनि की फल देने की क्षमता डेढ़ गुना तक वापसी बढ़ जाती है। एक बात ध्यान देने योग्य है कि भचक्र में राशियों की कोई भी रेखा नहीं होती है। ऐसा कोई बिंदु निर्धारित नहीं है जिसे पार करने के बाद ग्रह के फल बदल जाएं। अतः यह कहना कि 26 जनवरी 2017 को राशि परिवर्तन के साथ ही तुला राशि वालों की साढ़ेसाती समाप्त हो गयी है, कहना सही नहीं होगा। इसके लिए हमें चंद्रमा व लग्न के अंशों को ध्यान में रखकर ही साढ़ेसाती का विचार करना चाहिए।

साढ़ेसाती का चंद्रमा व लग्न दोनों से ही निरूपण करना चाहि एवं दोनों से ही 45° आगे-पीछे तक इसे मानना चाहिए। यदि किसी जातक की कुंडली में चंद्रमा तुला राशि में कम अंशों का है तो उसके लिए साढ़ेसाती समाप्त समझनी चाहिए और यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा 25° से अधिक का है तो उसके लिए साढ़ेसाती 26 जनवरी 2017 को समाप्त नहीं हुई है। ऐसे में उनकी साढ़ेसाती 26 अक्तूबर 2017, 15ः28 में शनि के वापस धनु राशि में प्रवेश के बाद ही जब शनि धनु में लगभग 10 अंशों का होगा, तब समाप्त होगी।

वक्री ग्रह चेष्टा बल प्राप्त करता है

फलदीपिका में श्री मंत्रेश्वर जी ने कहा है कि ग्रह जब वक्री होता है तो उसे चेष्टा बल प्राप्त होता है, वक्री, अनुवक्री, विकल, मंदतर एवं मंद का चेष्टा बल क्रमशः 1ए 1ध्2ए 1ध्4ए 1ध्8ए 1ध्16 माना गया है। अतः वक्री ग्रह सर्वाधिक चेष्टाबली होने से बलवान होता है। वक्री ग्रह को उच्च के ग्रह के समान समझा जाता है। यदि ग्रह उच्च का हो तथा वक्री हो तो उसे नीच बल शून्य समझना चाहिए लेकिन यदि ग्रह नीच का हो तथा वक्री हो तो अपनी उच्च राशि जैसा बल पा जाता है। 5 जून 2017 को सूर्य शनि समान अंशों पर आमने-सामने होंगे। इस समय शनि सर्वाधिक चेष्टा बली होंगे। अतः जिनको भी वर्तमान में वक्री शनि के कष्ट प्राप्त हो रहे हैं, इस अवधि में उनके कष्टों की चरम सीमा होगी। इसके उपरांत वक्री शनि के प्रभाव से प्राप्त होने वाले कष्ट धीरे-धीरे कम होते जाएंगे। शनि के 21 जून को राशि परिवर्तन के बाद ऐसे जातक काफी राहत महसूस करेंगे।


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वक्री शनि के फल

वक्री शनि अधिकांशतः जो फल हम महसूस कर रहे होते हैं या जिनसे हमें भय होता है उनको प्रत्यक्ष रूप में लाकर सामने खड़ा कर देते हैं। झगड़े बढ़कर अंतिम रूप में कोर्ट केस का रूप धारण कर लेते हैं। नौकरी में त्यागपत्र या निष्कासन की स्थिति बन जाती है। मानसिक भय व चिंताएं बढ़ जाती हैं और इन समस्याओं का कोई समाधान दिखाई नहीं देता है।

शनि ग्रह जातक के अहम को नष्ट कर झुकने की कला सिखाना चाहता है। अतः इसके अशुभ फलों के निवारण हेतु सर्वप्रथम उपाय यही है कि हम सामने वाले के समक्ष नतमस्तक हो जाएं और अपनी हार स्वीकार कर लें। शनि के कष्टों के निवारण हेतु किसी भी रूप में हनुमत साधना विशेष फलदायी होती है।

आइए कुछ उदाहरणों से वक्री शनि के प्रभाव को समझते हैं:

उदाहरण 1: एक जातक जिनकी कुंडली में चतुर्थ भाव में मकर राशि का चंद्रमा भाव मध्य में स्थित था। उसको शनि के वक्री होते ही अत्यधिक गृह क्लेश का सामना करना पड़ा। यहां तक कि नौबत तलाक तक पहुंच गयी।

उदाहरण 2: इसी प्रकार एक अन्य जातक की कुंडली में वृषभ राशि का चंद्रमा कम अंशों का था। इन पर शनि ढैय्या आरंभ हुई और कम अंशों के कारण वक्र शनि के प्रभाव से गृहस्थी में क्लेश की स्थिति बनी।

उदाहरण 3: एक जातक जिनकी कुंडली में धनु राशि का चंद्रमा धन भाव में स्थित था उन्हें वक्री शनि के कारण नौकरी में निलंबन का सामना करना पड़ा।

उदाहरण 4: तुला राशि के एक जातक का चंद्रमा अंतिम अंशों में था। उन पर अप्रैल माह में जाती साढ़ेसाती के दौरान फर्जी केस लगाए गये। उम्मीद है कि शनि के मार्गी होकर धनु में वापसी करने के बाद ही इन्हें कोर्ट केसों से छुटकारा मिलेगा।

उदाहरण 5: दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल जी की भी वृश्चिक राीश है। शनि के धनु राशि में आने पर शनि इनके अष्टम भाव पर गोचरस्थ है। चंद्रमा 7 अंशों का है। अतः अष्टम ढैय्या वृश्चिक राशि में अंतिम चरण से ही शुरू हो गई थी जिसके कारण इन्हें दिल्ली एवं पंजाब में हार का सामना करना पड़ा एवं शनि के वक्री होने के कारण इन्हें विशेष आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ रहा है।

उदाहरण 6: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए शनि का वक्रत्व अच्छा नहीं है। जाती हुई साढ़ेसाती इनके लिए अच्छी नहीं रहेगी। वक्री शनि इनके लिए कष्टकारी रहेंगे। यह इनके मानसिक संतुलन को प्रभावित करेंगे। शनि के मार्गी होने पर ही डोनाल्ड ट्रंप सही निर्णय ले पाएंगे। 21 जुलाई को शनि इनके जन्म चंद्र के समान अंशों पर गोचर करेंगे और 7 अक्तूबर को शनि इनके जन्मचंद्र को पार करेंगे। इसके बाद ही डोनाल्ड ट्रंप सही रूप से कार्य कर पायेंगे।

उदाहरण 7: प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी की वृश्चिक राशि है। चंद्रमा 9 अंशों का है। चंद्र लगभग 25 अंश आगे निकल चुका है। इनकी साढ़ेसाती अभी समाप्त नहीं हुई है। परंतु 15 अंश से अधिक आगे शनि के निकल जाने के कारण वक्री शनि का प्रत्यक्ष नकारात्मक प्रभाव मोदी जी पर नहीं पड़ रहा है। अतः यह वक्री शनि का गोचर मोदी जी के लिए सकारात्मक रहेगा।


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