वास्तु दोषों से उत्पन्न कष्ट

वास्तु दोषों से उत्पन्न कष्ट  

पं. जय प्रकाश शर्मा
व्यूस : 6074 | जुलाई 2010

वास्तु दोषों से उत्पन्न कष्ट डॉ. जयप्रकाद्गा शर्मा वास्तु दोषों को हम तीन भागों में बांट सकते हैं- मुखय द्वार संबंधी दोष दिशाओं संबंधी दोष प्रयोगात्मक दोष मुखय द्वार संबंधित दोष : घर का मुखय द्वार बनाने के लिए पूरे प्लाट पर 81 पद वाले वास्तु मंडल की रचना की जाती है। इस प्रकार प्रत्येक दिशा को 9 भागों में बांट कर शुभ फल देने वाले भाग में ही मुखय द्वार बनाया जाता है। मुखय द्वार के लिए उपयुक्त जगह इस प्रकार है- मुखय द्वार उपयुक्त जगह पर न होने से कष्टों की प्राप्ति होती है।

मुखय द्वार की स्थापना शुभ मुहूर्त में ही करनी चाहिए। मुखय द्वार के सामने किसी प्रकार का वेध नहीं होना चाहिए। द्वार के सामने टूटा-फूटा मकान, मंदिर, वृक्ष, खड्ढा व खंभा शुभ नहीं होता। मुखय द्वार को अन्य द्वारों से बड़ा होना चाहिए। एक ही सीध में घर के तीन द्वार नहीं होने चाहिए। द्वार की चौड़ाई से दुगुनी द्वार की ऊंचाई होनी चाहिए। अपने आप खुलने वाले द्वार से उन्माद रोग व अपने आप बंद होने वाले द्वार से कुल का विनाश होता है। आवाज के साथ बंद होने वाला द्वार भयकारक होता है।

दिशा संबंधी दोष व कष्ट :

पूर्व दिशा : कोई भी निर्माण संबंधी दोष होने पर व्यक्ति के अपने पिता से संबंध ठीक नहीं होंगे। सरकार से परेशानी, सरकारी नौकरी में परेशानी, सिरदर्द, नेत्र रोग, हृदय रोग, चर्म रोग, अस्थि रोग, पीलिया, ज्वर, क्षय रोग व मस्तिष्क की दुर्बलता आदि कष्ट हो सकते हैं।

आग्नेय कोण दिशा : पत्नी सुख बाधा, प्रेम में असफलता, वाहन से कष्ट, शृंगार के प्रति अरुचि, नपुंसकता, हर्निया, मधुमेह, धातु एवं मूत्र संबंधी रोग व गर्भाशय रोग आदि कष्ट हो सकते हैं।

दक्षिण दिशा : क्रोध अधिक आना, भाईयों से संबंध ठीक न होना, दुर्घटनाएं होना, रक्त विकार, कुष्ठ रोग, फोड़े-फुंसी, उच्च रक्तचाप, बवासीर, चेचक व प्लेग रोग आदि कष्ट हो सकते हैं।

नैर्ऋत्य कोण दिशा : नाना व दादा से परेशानी, अहंकार हो जाना, त्वचा रोग, कुष्ठ रोग, मस्तिष्क रोग, भूत-प्रेत का भय, जादू-टोना से परेशानी, छूत की बीमारी, रक्त विकार, दर्द, चेचक व हैजा संबंधी कष्ट हो सकते हैं।

पश्चिम दिशा : नौकरों से क्लेश, नौकरी में परेशानी, वायु विकार, लकवा, रीढ़ की हड्डी में कष्ट, भूत-प्रेत भय, चेचक, कैंसर, कुष्ठरोग, मिर्गी, नपुंसकता, पैरों में तकलीफ आदि कष्ट हो सकते हैं।

वायव्य कोण : माता से संबंध ठीक न होना, मानसिक परेशानियां, अनिद्रा, दमा, श्वास रोग, कफ, सर्दी-जुकाम, मूत्र रोग, मासिक धर्म संबंधी रोग, पित्ताशय की पथरी व निमोनिया आदि कष्ट हो सकते हैं।

उत्तर दिशा : धन नाश होना, विद्या बुद्धि संबंधी परेशानियां, वाणी दोष, मामा से संबंध ठीक न होना, स्मृति लोप, मिर्गी, गले के रोग, नाक का रोग, उन्माद, मति भ्रम, व्यवसाय में हानि, शंकालु व अस्थिर विचार आदि कष्ट हो सकते हैं।

प्रयोग संबंधी दोष व कष्ट: 

1. पश्चिम की ओर सिर करके सोना -बुरे स्वप्न आना

2. उत्तर की ओर सिर करके सोना -वायु विकार, वहम, धन नाश, मृत्यु तुल्य कष्ट

3. दक्षिण की ओर मुख करे खाना बनाना -मान हानि, अनेकानेक संकट

4. दंपति का ईशान कोण में सोना -भयंकर रोग कारक

5. ईशान कोण में रसोई बनाना -ऐश्वर्यनाशक

6. आग्नेय कोण में धना रखना -धननाशक, महामारी कारक

7. ईशान कोण में अलमारी -दरिद्रता कारक

8. पूर्व, उत्तर और ईशान में पहाड़ो के चित्र -धन नाशक

9. ईशान में तुलसी वन -स्त्री के लिए रोगकारी

10. खिड़की या दरवाजे की ओर पीठ करे बैठना -धोखा व झगड़ा

11. पूर्व दिशा में कूड़ा करकट, पत्थर व मिट्टी के टीले -धन ओर संतान की हानि

12. पश्चिम दिशा में आग जलाना -बवासीर व पित्तकारक

13. उत्तर दिशा में गोबर के ढेर -आर्थिक हानि

14. दक्षिण दिशा में लोहे का कबाड़ -शत्रु भय व रोग कारक

15. ईशान कोण में कूड़ा-करकट -पूजा में मन न लगना, दुश्चरित्रता बढ़ना

16. आग्नेय कोण में रसोई घर की दीवार टूटी-फूटी होना -स्त्री को कष्ट, जीवन संघर्षपूर्ण

17. नैत्य कोण में आग जलाना -कलह व वायु विकार कारक

18. वायव्य कोण में शयन कक्ष -सर्दी-जुकाम, आर्थिक तंगी, कर्जा

19. पूजा घर में आपके हाथ से बड़ी मूर्तियां -संतान को कष्ट

20. पश्चिम की ओर मुख करके खाना -रोग कारक

21. बंद घड़ियां -प्रगति में रुकावट

22.वायव्य में अध्ययन कक्ष -पढ़ाई में मन न लगना, अध्ययन में रुकावटें

23. र्नैत्य में मेहमानों को ठहराना -मेहमानों से कष्ट, मेहमानों का टिके रहना, खर्च वृद्धि

24. वायव्य में नौकरों को बैठाना -नौकरों का न टिकना ईशान कोण

दिशा : पूजा में मन लगना, देवताओं, गुरुओं और ब्राह्मणों पर आस्था न रहना, आय में कमी, संचित धन में कमी, विवाह में देरी, संतान में देरी, मूर्छा, उदर विकार, कान का रोग, गठिया, कब्ज, अनिद्रा आदि कष्ट हो सकते हैं।

प्रयोगात्मक दोष : निर्माण वास्तु सम्मत होने पर भी कई बार व्यक्ति को कष्ट होता है तो उस स्थिति में यह पाया जाता है कि व्यक्ति उस घर का प्रयोग सही तरह से नहीं कर रहा होता। जैसे-गलत दिशा में सिर करके सोना, गलत दिशा की ओर मुंह करके कार्य करना, गलत कमरे में कार्य करना, किसी दिशा विशेष में उसके शत्रु ग्रहों से संबंधित सामान रखना, गलत दिशा में धन रखना, गलत दिशा में पूजा करना आदि। इन प्रयोग संबंधी दोषों के भी कई बार बहुत भयंकर परिणाम देखने में आये हैं।

जीवन में जरूरत है ज्योतिषीय मार्गदर्शन की? अभी बात करें फ्यूचर पॉइंट ज्योतिषियों से!



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.