ज्योतिष एवं मधुमेह

ज्योतिष एवं मधुमेह  

आर. के. शर्मा
व्यूस : 3238 | जून 2017

मधुमेह के ज्योतिषीय योग

1. गुरु नीच राशि या षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में हो।

2. शनि तथा राहु, गुरु से युति या दृष्टि द्वारा पीड़ित करते हों।

3. अस्त गुरु-राहु केतु अक्ष पर हो।

4. शुक्र षष्ठ भाव में, गुरु के द्वारा द्वादश भाव से दृष्ट हो।

5. पंचमेश 6, 8, 12 वें भावेशों से युक्त हो।

6. वक्री गुरु त्रिक भाव में पीड़ित हो। यकृत और अग्न्याशय पंचम भाव के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। इनके एक भाग का कारक गुरु तथा दूसरे भाग का शुक्र है। शुक्र शरीर की ‘हार्मोन’ प्रणाली का भी कारक है। अतः पंचम, गुरु तथा शुक्र की भूमिका रहती है।


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उदाहरण -1: स्त्री को मधुमेह लग्न कुंडली में गुरु षष्ठ भाव में अष्टमेश नीच मंगल से दृष्ट है। शुक्र, द्वादशेश नीच सूर्य से युक्त तथा षष्ठेश शनि व अष्टमेश मंगल से दृष्ट है। पंचम भाव तथा पंचमेश राहु-केतु और मंगल से पीड़ित हैं।

नवांश में पंचम भाव में मंगल व गुरु इकट्ठे हैं। शुक्र एकादश भाव में मंगल व शनि से दृष्ट है। द्रेष्काण में पंचमेश बुध, अष्टमेश गुरु से युक्त है, दोनों मंगल व शनि से दृष्ट हैं। शुक्र सूर्य से युक्त/अस्त है तथा मंगल और गुरु से दृष्ट हैं। विंशोत्तरी दशा: इस स्त्री का जन्म 8 नवंबर 1962 को हुआ था। रोग का शनि-चंद्र (13-12-1981 से 13-7-1983) में पता चला। शनि (महादशा) पीड़ित पंचमेश है। चंद्र (अंतर्दशा) षष्ठ भाव में है। दोनों नीच अष्टमेश से पीड़ित हंै।

नवांश में षष्ठेश शनि पीड़ित तथा नीच है। चंद्र द्वादशेश है। द्रेष्काण में पीड़ित शनि पंचमेश को देख रहा है। यहां चंद्र षष्ठ भाव में स्थित है तथा अष्टमेश गुरु से दृष्ट है। योगिनी दशा: सिद्धा - उल्का (शुक्र-शनि) 24 सितंबर 1981 से 24 नवंबर 1982 तक चली। इस स्त्री को अपने मधुमेह रोग का 1982 में पता चला। नोट: सभी कंुडलियों (द्वादशांश में भी) में अष्टमेश पंचम भाव से या पंचमेश से संबद्ध है। अष्टम भाव का अधिकार क्षेत्र वंशानुगत भी है। अतः जातिका की माता भी मधुमेह रोग से पीड़ित थी।

उदाहरण-2: जातक मधुमेह के कारण अंधा हो गया था। जातक को मधुमेह का पता 1951 में चला। मधुमेह की जटिलता से जातक अंधा हो गया। षष्ठेश, वक्री गुरु लग्न में राहु-केतु अक्ष पर शनि से दृष्ट है। शुक्र अष्टमेश है तथा शनि-मंगल और राहु-केतु से पीड़ित है। पंचमेश शनि नीच है तथा मंगल व राहु-केतु से पीड़ित भी है। नवमांश में गुरु तथा शुक्र, शनि से पीड़ित है। राहु-केतु अक्ष पंचम भाव पर है। द्रेष्काण कुंडली में पंचम भाव, पंचमेश तथा शुक्र सभी राहु-केतु अक्ष से, मंगल की दृष्टि से, शनि की युति इत्यादि से पीड़ित हैं। गुरु षष्ठेश होकर पंचम भाव को देख रहा है। द्वादशांश कुंडली: पंचमेश गुरु अष्टम भाव में है। शुक्र सूर्य से युक्त है। पंचम भाव तथा पंचमेश शनि से दृष्ट है।

विंशोत्तरी दशा: 28 अगस्त 1948 से 7 मई 1951 तक शनि-बुध की दशा चली। 7 मई 1951 से 16 जून 1952 तक शनि-केतु की दशा चली। शनि (महादशा) पीड़ित है तथा दृष्टि या भावेशत्व के कारण पंचम भाव से संबंधित है। द्वादशेश नीच बुध (अंतर्दशा) षष्ठ भाव में पापयुक्त है। यह नवांश तथा द्रेष्काण में शनि और/या मंगल के प्रभाव में है तथा द्वादशांश में शनि और राहु-केतु अक्ष के प्रभाव में है। आने वाली अंतर्दशा का स्वामी केतु पंचमेश शनि को पीड़ित कर रहा है। नवांश तथा द्रेष्काण में केतु पंचम भाव में है।

योगिनी दशा: भ्रामरी (मंगल) 9 मई 1950 से 9 मई 1954 तक चली, चंद्र कुंडली में मंगल (महादशा) पंचमेश शनि को देख रहा है। नवांश तथा द्रेष्काण में यह अष्टम भाव में स्थित है। द्रेष्काण में यह पंचमेश शनि को देख रहा है। द्वादशांश में यह नीच षष्ठेश है। मधुमेह का वर्गीकरण एवं लक्षण इंसुलिन आश्रित मधुमेह: यह मधुमेह 40 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों में अधिक होता है। इस रोग में रक्त शर्करा पर नियंत्रण रखने के लिए इंसुलिन का इंजेक्शन लगाने की आवश्यकता होती है।


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- बार-बार पेशाब आना, भूख लगना तथा वजन कम होना।

- रक्त और पेशाब में अधिक शर्करा हो जाती है तथा पेशाब में कीटोन नामक पदार्थ भी रहता है। बिना इंसुलिन-मधुमेह: यह मधुमेह अधेड़ उम्र या वृद्धावस्था में होता है। इसमें नियंत्रण हेतु इंसुलिन का इंजेक्शन नहीं लगाया जाता है। यह दो प्रकार का होता है - 8 10 4 12 2 9 5 11 3 7 6 1 शुसूगुकेचंबुद्रेष्काण कुंडली मंरा. श.

1. मोटे व्यक्तियों में यह नहीं होता है। जांच में अचानक मधुमेह का पता चलता है, प्रत्यक्ष लक्षण नहीं मिलते हैं।

2. कुछ व्यक्तियों में आम लक्षण जैसे- बार-बार भूख व पेशाब लगना, घाव का न भरना, त्वचा व फेफड़ों का संक्रमण हो जाने जैसे संकेत मिल जाते हैं।

कुपोषण जनित मधुमेह: मधुमेह सामान्यतः गरीब और पिछड़े देशों में मिलता है। इन रोगियों में कुपोषण के साथ-साथ खाद्य पदार्थों में मौजूद विषैले तत्व भी मधुमेह के उत्तरदायी होते हैं। यह रोग आनुवांशिक होता है। गर्भावस्था का मधुमेह: अनेक स्त्रियों में गर्भावस्था के दौरान रक्त-शर्करा का स्तर बढ़ जाता है। फिर प्रसव के पश्चात पुनः सामान्य हो जाता है। यह रक्त शर्करा पुनः गर्भावस्था में तथा भविष्य में बढ़ भी सकता है।

मधुमेह के अन्य कारण

1. अग्न्याशय ग्रंथि के संक्रमण, कसिंग सिंड्रोम, थायरोटाॅक्सिकोसिस आदि के कारण भी मधुमेह हो सकता है।

2. गुर्दों की खराबी के कारण शर्करा का पूरा अवशोषण नहीं हो पाता है। अतः शर्करा मूत्र में मौजूद रह जाती है।

3. वंशानुगत कारण और माता-पिता में से कोई भी यदि मधुमेह से पीड़ित हो तो बच्चों को भी रोग होने की संभावना रहती है...।



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