ज्योतिष शास्त्र में मूक प्रश्न

ज्योतिष शास्त्र में मूक प्रश्न  

चिराग व्यास
व्यूस : 10019 | जून 2017

प्रश्न शास्त्र ज्योतिष की वह अभिन्न विधा है, जिसकी सिद्धि के पश्चात एक ज्योतिर्विद किसी जातक के मन में उठ रहे प्रश्नों को तथा प्रश्न संबंधी समाधान को सरलता पूर्वक ज्ञात कर सकता है। प्रश्न शास्त्र के अंतर्गत प्रश्न क्या है, मुष्टिगत वस्तु का रंग क्या है, घर से बाहर गए व्यक्ति का आगमन कब होगा, मुकद्दमे में जीत होगी या हार, शत्रु कब पैदा होंगे, व्यापार में लाभ-हानि, अन्न के भावों में उतार-चढ़ाव, चोरी हुई वस्तु की जानकारी, चोर स्त्री है या पुरुष, चोर घर का है या बाहर का, चोर का स्वरुप आदि विषयों पर प्राचीन ज्योतिर्विदों ने कई योगायोग बताये हैं। जातक के मन में चल रहे विचार-रूपी प्रश्न को प्रश्न कुंडली द्वारा ज्ञात करने की विद्या मूक प्रश्न कहलाती है।

‘मूक’ का अर्थ होता है शांत अथवा छुपा हुआ। मूक प्रश्नों पर अनुसंधान एवं खोज प्राचीन भारत में संभवतः (एक तंत्रीय) राजशाही शासन के अंतर्गत हुई होगी। चूँकि राजशाही शासन के समय प्रत्येक राजा का एक राजकीय ज्योतिषी होता था जो प्रतिदिन होने वाले लाभ-हानि, शुभ-अशुभ घटनाओं की सूचना प्रश्न कुंडली के माध्यम से राजा को दिया करता था। कई बार राजा अथवा मंत्री ज्योतिष एवं ज्योतिष शास्त्र की परीक्षा हेतु झूठ-मूठ के प्रश्न बना कर पूछते थे। यदि कोई ज्योतिर्विद इस प्रकार के परीक्षा लेने आये हुए व्यक्ति की प्रश्न कुंडली द्वारा पहचान कर लेता था तो उसे बड़ा विद्वान समझा जाता था। इसके विपरीत कोई ज्योतिषी इस प्रकार सटीकता पूर्वक परीक्षा लेने आये जातक की पहचान नहीं कर पाता तो उसे अयोग्य समझ कर दंडित तक भी किया जाता था। इसी कारणवश ‘मूक प्रश्न’ विद्या अत्यधिक फलने-फूलने लगी एवं कालांतर में इस पर कई अनुसन्धान हुए।

मूक प्रश्न सिद्धि एक ज्योतिषी में किसी जातक के मन में उठे प्रश्नों को प्रश्न कुंडली द्वारा ज्ञात करने हेतु अध्ययन के अतिरिक्त, आचरण एवं नियमों का समन्वय होना भी आवश्यक है। ज्योतिषी को देवज्ञ भी कहा जाता है क्योंकि ज्योतिषी देवों की परिस्थिति को भी ज्योतिषीय गणना द्वारा ज्ञात कर लेने की क्षमता रखता है। एक अच्छा ज्योतिषी होना सभी विद्वानों या महात्माओं के भाग्य में नहीं होता। इसके लिए ज्योतिषी को आस्तिक, सत्यवादी, समदृष्टा तथा विनम्र होना चाहिए। प्रातः सूर्योदय से पूर्व निद्रा का त्याग कर भूमि पूजा करके (भूमि भी एक ग्रह है), शौचकार्यों से निवृत्त होकर गायत्री मंत्र का जाप कर, इष्टदेव का स्मरण आदि करके प्रश्न कुंडली बना कर पहले ये देखना चाहिए कि आज कितने जातक मेरे पास आएंगे अथवा कितने जातकों से मिलना होगा। इस प्रकार अभ्यास करने से मूक प्रश्न का फलित करना अधिक सरल हो जाता है।

प्रश्न कुंडली द्वारा प्रश्न ज्ञान: यह सर्वविदित है कि जन्म कुण्डली की तरह ही प्रश्न कुंडली भी प्रश्नकर्ता के फोन करने अथवा वार्तालाप करने के समय या मिलने के संपर्क करने के समय, जो राशि पूर्वी क्षितिज पर उदित हो रही होती है उसे प्रश्न लग्न मान लिया जाता है। उस समय की ग्रह स्थिति को जन्म कुंडली की तरह मानकर कुंडली के विभिन्न भावों में रखकर प्रश्न कुंडली का निर्माण किया जाता है । आधुनिक युग में तकनीक के बढ़ते प्रयोग के कारण प्रश्न कुडंली बनाना बहुत सरल है। वहीं दूसरी ओर प्रश्न ज्योतिष को इसलिए भी महत्ता प्राप्त हुई है क्योंकि फेसबुक, व्हाट्स एप्प एवं इंटरनेट के माध्यम से प्रश्न पूछने वाले जातकों में वृद्धि हुई है। दूरस्थ प्रदेशों में बैठे जातकों से सरलता पूर्वक संपर्क होना ज्योतिष की इस विधा के प्रचलन का मुख्य कारण है। प्र

कुंडली में प्रश्न लग्न, प्रश्न लग्नेश एवं चंद्रमा की स्थिति सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है। पूर्व ज्योतिर्विदों के अनुसार प्रश्नों की संख्या एक से अधिक होने की स्थिति में:


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Û पहले प्रश्न का लग्न से, दूसरे प्रश्न का चंद्रमा स्थित भाव और तीसरे प्रश्न का विचार सूर्य स्थित भाव को लग्न मान कर करना चाहिए।

Û चैथे प्रश्न का विचार बृहस्पति स्थित भाव को लग्न मान कर करना चाहिए। यदि बृहस्पति अस्त या नीच राशिस्थ हो तो उस भाव को लग्न न मान कर जिस भाव में कोई ग्रह वक्री अवस्था में हो उस भाव को लग्न मान कर चैथे प्रश्न का विचार करना चाहिए। अगर एक से अधिक ग्रह वक्री हों तो उनमें से सर्वाधिक बली ग्रह के स्थित भाव को लग्न मानकर चैथे प्रश्न का विचार करना चाहिए।

Û इसी प्रकार पांचवें प्रश्न हेतु बुध, शुक्र तथा मंगल में से जो ग्रह बली होकर जिस भाव में स्थित है उस भाव को लग्न मानकर फलित करना चाहिए।

Û प्रश्न कुंडली में चंद्रमा का लग्नेश से जितने भावों का अंतर होगा उस संख्या वाले भाव के संबंध में प्रश्न होना चाहिए। उदाहरणार्थ वृषभ लग्न में लग्नेश शुक्र सप्तम भाव में वृश्चिक राशि में स्थित हैं और चंद्रमा मकर राशिगत हो कर दशम भाव में स्थित हैं। अतः लग्नेश शुक्र से चंद्रमा चार भाव की दूरी पर हैं। अतः प्रश्न कुंडली के चैथे भाव माता, भूमि, संपत्ति आदि से सम्बंधित हो सकता है।

Û लग्नेश जिस भाव में हो उस भाव से सम्बंधित प्रश्न होना चाहिए।

Û प्रश्न लग्न में मेष, सिंह तथा वृश्चिक राशि में अग्निकारक ग्रह सूर्य अथवा मंगल स्थित हों तो प्रश्न किसी धातु से सम्बंधित हो सकता है। यदि लग्न पर सूर्य अथवा मंगल की दृष्टि हो तो प्रश्न धातु संबंधी हो सकता है। वर्तमान ज्योतिष में प्रश्न धातु, जीव, मूल आदि तक ही सीमित नहीं रहे हैं अपितु विवाह, नौकरी, स्थान परिवर्तन, रोग, सट्टा-लॉटरी आदि कई प्रकार के प्रश्न जातक के मन में हो सकते हैं। अतः अनुसन्धान के अनुसार कुछ फलीभूत योग इस प्रकार हैं:

Û प्रश्न लग्नेश जिस भाव में हो उस भाव से सम्बंधित प्रश्न होना चाहिए।

Û प्रश्न लग्नेश जिस भाव में हो उस भाव का स्वामी लग्नेश को देखे तो जातक स्वयं के बारे में प्रश्न लेकर आता है।

Û लग्नेश तथा चंद्रमा में से जो ग्रह बली, स्वगृही, उच्च या मूलत्रिकोणस्थ होकर जिस भाव में स्थित हो उस भाव से संबंधित प्रश्न हो सकता है।

Û शुक्र का संबन्ध चंद्र अथवा मंगल के साथ हो तो प्रेम-विवाह या प्रेम संबंधों के सम्बन्ध में प्रश्न होना चाहिये।

Û छठे भाव का सम्बन्ध द्वितीय अथवा दशम भाव से हो तो प्रश्न नौकरी के संबंध में है, यदि द्वितीयेश, दशमेश का सम्बन्ध सप्तम या एकादश भाव से हो रहा हो तो प्रश्न व्यवसाय के बारे में होना चाहिए।

Û यदि दशम भाव पर सूर्य अथवा गुरु की दृष्टि हो तो प्रश्न सरकारी नौकरी से सम्बंधित होना चाहिए।

Û छठे भाव में नीच राशिस्थ चंद्रमा हो तो प्रश्न चोट अथवा किसी बीमारी के संबंध में होना चाहिए।

Û द्वादशेश, नवमेश एवं तृतीयेश का संबंध लग्नेश के साथ हो तो विदेश यात्रा का प्रश्न हो सकता है।

Û लग्नेश अस्त हो तथा कोई पाप ग्रह अष्टमेश होकर, चंद्रमा को देखे तो गंभीर बीमारी या जीवन मृत्यु का प्रश्न हो सकता है।

Û कुंडली के छठे भाव में किसी ग्रह का परिवर्तन योग हो तो खोने या चोरी होने का प्रश्न होना चाहिए। उदाहरणार्थ: प्रस्तुत प्रश्न कुंडली में जातिका ने रात्रि में फोन द्वारा प्रश्न बनाने को कहा। प्रश्न समय रू 20 बजकर 22 मिनट दिनांक: 18-3-2017 स्थान: गाजियाबाद केस 1: प्रश्न लग्न में कन्या राशि है एवं लग्नेश बुध सूर्य के साथ सप्तम भाव में है। नवम भाव को दक्षिण भारत में पिता का भाव माना जाता है। नवमेश शुक्र लग्नेश बुध एवं सूर्य के साथ युति करके सप्तम भाव से लग्न को देख रहे रहें हैं। सूर्य पिता का कारक है। अतः प्रश्नकर्ता ने संभवतया अपने पिता के लिए प्रश्न किया हो। लग्नेश के बाद हम चंद्र को देखते हैं।


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चंद्र एकादशेश है एवं नीच राशि का होकर अष्टम से अष्टम (तृतीय) भाव में अष्टमेश मंगल से दृष्ट है। अतः जातिका के पिता को किसी मृत्यु तुल्य कष्ट का अनुमान होता है। मंगल पर चंद्र की दृष्टि अस्पताल संबंधी प्रश्न की भी संभावना बना रही है। लग्न में गुरु वक्री है तथा षष्ठेश शनि दशम भाव, षष्ठ भाव को एवं लग्न को देख रहा है। अतः प्रश्न पिता की बीमारी से संबंधित हो सकता है। इस तरह जातिका ने अपने पिता की बीमारी से संबंधित प्रश्न किया होगा जो कदाचित अस्पताल में हो। यह बात जातिका के अगले कॉल से प्रमाणित भी हो गयी। जातिका के पिता किडनी की समस्या के चलते अस्पताल में प्ब्न् में भर्ती थे और जातिका ने उनके स्वास्थ्य संबंधी प्रश्न किया था। लग्न में गुरु का होना आयुष्य क लिए शुभ है साथ ही लग्नेश भी बली है और लग्न वर्गोत्तम है इस वजह से जातक की आयु पर प्रभाव नहीं होगा, यद्यपि मृत्युतुल्य कष्ट अवश्य होगा परंतु लग्न अस्त है एवं लग्नेश बुध नवमेश शुक्र के साथ नवांश में अष्टम से अष्टम यानि तृतीय भावस्थ है जो आयुष्य हेतु चिंता का विषय है।

उदाहरण 2 प्रश्न समय रू 10ः45 सुबह दिनांक: 2-3-2017 स्थान: दिल्ली प्रस्तुत उदाहरण में जातक ने फोन करके शंका तथा समाधान हेतु प्रश्न कुंडली बनाने को कहा। प्रश्न लग्न में लग्नेश शुक्र षष्ठेश भी है एवं उच्च का होकर एकादश भाव में अष्टमेश तथा एकादशेश गुरु से दृष्ट है। अतः प्रश्न प्रश्नकर्ता के भाई-बहनों से सम्बंधित हो सकता है एवं लग्नेश, अष्टमेश का समसप्तक होना जीवन मृत्यु अथवा बीमारी से सम्बंधित प्रश्न की संभावना बनाता है। चंद्र द्वादशेश मंगल के साथ द्वादश भावस्थ है जो अस्पताल में अर्थ व्यय की संभावना भी दर्शाता है। बृहस्पति अष्टमेश है एवं नवमांश में कन्या राशिस्थ हो कर अष्टम भाव में है। इस तरह जातक के किसी भाई अथवा बहन से सम्बंधित प्रश्न हो सकता है जो अस्पताल में किसी रोग के कारण भर्ती है।

इसकी पुष्टि जातक से अगले संपर्क में हो गयी। जातक की भतीजी अस्पताल में किडनी की समस्या से जूझ रही थी और जातिका से ये कष्ट कब समाप्त होगा ये जानने के लिए संपर्क किया था। इस प्रकार यदि जातक के मन में उठने वाले प्रश्न को बिना जातक के बोले ही प्रश्न कुंडली बना कर प्रस्तुत कर दिया जाये तो निस्संदेह वह अचंभित हो जायेगा । यह कला एक ज्योतिषी के प्रति जातक के मन में निष्ठा तथा श्रद्धा उत्पन्न करती है, जिसके फलस्वरूप ज्योतिषी द्वारा बताये गए उपाय को जातक लग्न एवं श्रद्धापूर्वक निभाता है और जातक अपने कार्यों में सफलता प्राप्त करता है।


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