डायबिटीज और प्राकृतिक चिकित्सा

डायबिटीज और प्राकृतिक चिकित्सा  

वीरेन्द्र अग्रवाल
व्यूस : 3360 | जून 2017

जिन लोगों को डायबिटीज हो जाती है, उन्हें हमेशा डर बना रहता है कि अब जिंदगी में मिठास नहीं है, जबकि हकीकत तो यह है कि डायबिटीज का होना आपको जीवन के प्रति सचेत कर रहा है कि आप अब तक केयरलेस जीवन जी रहे थे, अब बारी है जागरुकता के साथ जीने की। डायबिटीज मात्र इंसुलिन हार्मोन की कमी के कारण पैदा हुआ रोग है और इंसुलिन का निर्माण शरीर की पैन्क्रियाज ग्रन्थि द्वारा किया जाता है। हम जो भोजन करते हैं, वह शरीर में विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद ग्लूकोज में बदल जाता है जो कि शरीर में ऊर्जा के रूप में कार्य करता है।

जब रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है तो पैन्क्रियाज द्वारा स्रावित इंसुलिन हार्मोन ग्लूकोज स्तर को नियंत्रित रखता है। जब इंसुलिन स्रवण की मात्रा में व्यवधान आ जाता है तो रक्त में ग्लूकोज का स्तर अधिक होने की वजह से डायबिटीज़ हो जाता है। डायबिटीज़ रोग के क्या-क्या लक्षण हैं ? किसी भी लक्षण को पूरी तरह डायबिटीज के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। फिर भी निम्न लक्षण स्पष्ट हो सकते हैं, जैसे:- 1. पेशाब का बार-बार आना। 2. बहुत प्यास लगना। 3. मुँह सूखना। 4. थकान व शिथिलता। 5. आँखों में जलन व चुभन। 6. शरीर में खुजली। 7. वजन कम होना। 8. भूख अधिक लगना। 9. पेशाब पर चींटी लगना। 10. किसी घाव का शीघ्र न भरना। इसका उपचार क्या है ? व्यवस्थित जीवनशैली अपनाकर डायबिटीज को नियंत्रित रखा जा सकता है, जिससे कि जीवन भर दवाओं की आवश्यकता नहीं पड़े और अब तक के सर्वेक्षण द्वारा सिद्ध हो चुका है कि दवाओं के साथ भी यदि जीवनशैली व्यवस्थित नहीं है तो यह रोग अन्य रोगों को जन्म देता है। हर हालत में जीवनशैली में बदलाव कर डायबिटीज जैसे रोग को काबू किया जा सकता है। जीवनशैली में बदलाव किस तरह हो? ऐसा माना जाता है कि सब रोगों की शुरूआत पेट से ही होती है, अतः प्राकृतिक चिकित्सा की विधियों द्वारा पेट को साफ रखें। पेट पर प्रतिदिन 30 मिनट तक मिट्टी की पट्टी व 10 मिनट गर्म सेक लें।

पैन्क्रियाज वाले हिस्से को प्रतिदिन 3ः1 के रेशांे में गर्म व ठंडा सेक लें। सुबह के समय निम्न आसन नियमित रूप से करें: 1. वज्रासन 2. अर्द्धमत्स्येन्द्रासन 3. चक्रासन 4. शवासन 5. नौकासन 6. कपालभांति 7. नाड़ी शोधन 8.उड्यान बन्ध 9. मूलबन्ध 10. 3 से 4 किमी. घूमना। आहार में ऐसे खाद्य पदार्थों का चयन करना होगा, जिनसे शरीर, पैन्क्रियाज़ व बीटा सेल्स सक्रिय होते हों, जिससे इन्सुलिन निर्माण में सहायता मिलती हो। जैसे-पत्तागोभी, फीका दूध, मौसम के खट्टे फल, करेला, खीरा, लौकी, जामुन, अमरूद, फालसा, तुरई, भिंडी, सिंघाड़ा, जौ, ज्वार, चना की रोटी आदि। एक स्वस्थ व्यक्ति जिसका वजन 70 किग्रा. के आसपास है, उसके पैन्क्रियाज़ से 35 यूनिट इन्सुलिन बनता है।

जब यह अक्रिय हो जाता है, तब उसकी पूर्ति हेतु ऊपर से इन्सुलिन उसी कम हुई मात्रा के अनुपात में लेना पड़ता है। व्यक्ति स्वस्थ हो या डायबिटिक, उसे हर हाल में ऐसा आहार व व्यायाम करना ही चाहिए, जिससे इन्सुलिन अधिक से अधिक प्राप्त हो सके। जटिलतायें:- डायबिटीज के रोगियों को अन्य व्यक्तियों की तुलना में जटिल रोग होने की अधिक सम्भावनायें रहती हैं, क्योंकि डायबिटीज रोगी वैसे शारीरिक रूप से तो डायबिटीक होता है, पर वह मानसिक रूप से भी अपने को डायबिटीक मान लेता है।

रोग होने पर शरीर व आहार के प्रति जागरूक रहकर अपनी जीवनी शक्ति को बढ़ाना होगा ताकि अन्य रोग आक्रमण ही न कर पायें। इसके लिए समय-समय पर खून व पेशाब की जाँच करवाते रहना चाहिए।



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