वक्री ग्रहों का शुभाशुभ प्रभाव

वक्री ग्रहों का शुभाशुभ प्रभाव  

आर. के. शर्मा
व्यूस : 10611 | अप्रैल 2015

आकाश में जब कोई ग्रह वक्री होता है तो उस काल में जन्मे सभी प्राणियों मनुष्य, पशु, पक्षी, जलचर, कीट, वृक्षादि पर एवं संपूर्ण भूमंडल (मेदनीय ज्योतिष) पर समान रूप से प्रभाव पड़ता है। यहां तक कि गोचरीय स्थिति में ग्रहांे की वक्रता का प्रभाव भी पड़ता ही है। यदि कोई ग्रह वक्री हो और वह दो राशियों का स्वामी हो तो दो गुणा प्रभाव होगा, जैसे-मंगल मेष तथा वृश्चिक राशियों का स्वामी है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह है कि मेष और वृश्चिक राशि वाले तो प्रभावित होंगे ही, साथ में जिन व्यक्तियों का जन्म सूर्य, मेष व वृश्चिक राशि में है, वे भी प्रभावित होंगे और मंगल जिस घर में है, जहां उसकी दृष्टि है, वे भाव भी प्रभावित होंगे। साथ ही गोचर में मंगल जिस कुंडली के जिस भाव में से गति कर रहा है, वह भी प्रभावित होगा ही। जब दो ग्रह वक्री हो जाते हैं तो वे जातक की कुंडली पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

ऐसा अवसर 15 नवंबर 1975 को आया था जब दो-दो राशियों के स्वामी तीन ग्रह एक साथ वक्री हुए थे, उस समय शनि (मकर, कुंभ राशि), बृहस्पति (धनु और मीन) और मंगल (मेष$वृश्चिक) एक साथ वक्री हुए थे। अब जब एक कुंडली लग्न के 6-6 भाव वक्री ग्रहों से प्रभावित हो जाएं तो अत्यंत सूक्ष्म अध्ययन आवश्यक हो जाता है। 15 अगस्त 1975 को जब बृहस्पति वक्री हुआ तो बांग्लादेश के राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान की परिवार सहित नृशंस हत्या कर दी गयी। उस समय शेख साहब के जन्म लग्न पर से ‘नेप्च्यून’ पहले से ही वक्री चल रहा था एवं शुक्र उनके दशम भाव में जन्म से वक्री बैठा था।

30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की जब हत्या हुई उस समय नेपच्यून, यूरेनस, शनि एवं मंगल सभी ग्रह वक्री थे फलस्वरूप देशव्यापी हत्याएं हुईं, दंगे-फसाद में लाखों लोग मारे गए। प्रथम विश्व युद्ध (28 जून 1914) तथा द्वितीय विश्व युद्ध (3 सितंबर 1939) के समय तीन-तीन ग्रह वक्री थे तथा लग्न में मंगल-केतु-चंद्र की विस्फोटक युतियां थीं। दोनों ही विश्व युद्ध की कुंडलियों में गुरु नीच का होकर दुःस्थान में था तथा लग्न शुभ ग्रहों से दृष्ट नहीं था। ऐतिहासिक पुरूषों की कुंडलियों में वक्री ग्रहों का प्रभाव

1. फ्रांस के नेपोलियन की कुंडली में बुध वक्री था।

2. ग्रेट ब्रिटेन के शासक किंग जाॅर्ज की कुंडली में बुध व नेपच्यून दोनों वक्री थे।

3. बेनिटो मुसोलिनी की कुंडली में शनि वक्री था तथा द्वितीय विश्वयुद्ध में इनका प्रमुख हाथ था।

4. भारत के प्रथम राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद की कुंडली में बुध वक्री था।

5. एडोल्फ हिटलर की कुंडली में बुध वक्री था।

6. नेताजी सुभाषचंद्र बोस की कुंडली में शनि वक्री था।

7. दलाईलामा की कुंडली में बुध वक्री है।

8. शेख मुजीबुर्रहमान की कुंडली में शुक्र व शनि वक्री था।

9. लाल बहादुर शास्त्री की कुंडली में शनि व गुरु वक्री थे।

10. अमेरिकी प्रेसीडेंट कैनेडी की कुंडली में बुध व मंगल वक्री थे।

11. श्रीलंका की प्रधानमंत्री भंडारनायके की कुंडली में तृतीयेश व दशमेश मंगल वक्री था।

12. इजिप्ट के राजा फारूक की कुंडली में शनि, गुरु व नेप्च्यून तीन ग्रह वक्री थे। इनकी कुंडली में वक्री ग्रहों ने इनके व्यक्तिगत विकास में बहुत बड़ी सहायता की। संक्षेप में ग्रहों की वक्रता का प्रभाव: जन्मकाल का वक्री बुध वाले जातक संकेत, अंतर्दृष्टि की भाषा समझते हैं। इनकी तीव्र कल्पनाशक्ति एवं रचनात्मक प्रवृत्ति होती है। लेखक के रूप में ये वातावरण एवं चरित्र चित्रण पर ज्यादा एवं घटनाओं पर कम ध्यान देते हैं।

ज्योतिषी के रूप में ठोस व सटीक फल पर कम तथा भाव वर्णन और चारित्रिक विशेषताओं पर ज्यादा ध्यान देते हैं। लोगों की आलोचना पर कम तथा आत्मचिंतन पर ज्यादा ध्यान देते हैं। मुसीबत में ज्यादा घबरा जाते हैं और ज्यादा गलतियां कर जाते हैं। घटनाओं के घटित हो जाने के पश्चात् ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं। गुरु: कठिनतम कार्यों में सफलता प्राप्त कर लेते हैं, इनमें कार्य करने की अद्भुत क्षमता व शैली होती है। जहां सब असफल हो जाते हैं वहां से ये कार्य को पूरा करने और संवारने की चुनौती स्वीकार करते हैं, ये दूरदर्शी, धैर्यवान व गंभीर स्वभाव के जादूगर होते हैं।

ये हाथ आये अवसर से लाभ उठाने से नहीं चूकते। वक्री मंगल: ऐसे जातक शीघ्र क्रोधी, भड़काऊ भाषा बोलने वाले, वहमी तथा झगड़ालू स्वभाव के होते हैं। एक बार कार्य में लग जाने पर ये उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं। वैसे ये निष्क्रिय स्वभाव के होते हैं। ये जातक वैज्ञानिक, डाॅक्टर व रहस्यमय विद्याओं के जानकर होते हैं। ये ऐसे कार्य हाथ में लेते हैं जिनमें शारीरिक शक्ति कम से कम लगे। ये नेता, प्लानर एवं प्रबंधक होते हैं। शारीरिक श्रम इनको मानसिक पीड़ा पहुंचाता है। वक्री शुक्र: वक्री शुक्र वाले व्यक्ति बड़े कलाकार, संगीतज्ञ, कवि, लेखक, ज्योतिषी आदि होते हैं। ये भावुक, प्रेमी एवं विद्रोही स्वभाव के होते हैं। इनमें सृजनात्मक शक्ति होती है। इनको यदि सम्मान एवं प्रशंसा न दी जाय तो जल्दी निराश हो जाते हैं।

ये धर्म मर्मज्ञ, मानवतावादी, सेवाभावी व परोपकारी स्वभाव के होते हैं। इनकी प्रशंसा करें तभी इनको जीत सकते हैं। वक्री शनि: ये अपने शंकालु व शकी स्वभाव के कारण अपने लोगों को शत्रु बना लेते हैं। ये भाग्यवादी, एकांतप्रिय, लापरवाह, डरपोक एवं लचीले स्वभाव के होते हैं। ये जनसंपर्क से घबराते हैं, बहुत कुछ करना चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते, दोहरा जीवन जीते हैं, दिखाकर अधिक करते हैं। शारीरिक श्रम कम, ठोस काम कम, जीवन का व्यावहारिक पक्ष कम परंतु आध्यात्मिक पक्ष पर ज्यादा सफल होते हैं। वक्री यूरेनस: अद्भुत शक्ति, प्रतिभा की धनी, तीव्र कल्पना शक्ति, शीघ्र बुद्धि एवं कार्य करने की शक्ति तथा मानवीय सद्गुणों से संपन्न व्यक्तित्व वाले ये जातक होते हैं। इनमें अद्भुत आकर्षण शक्ति, प्रतिकूल परिस्थितियों एवं कठिन परीक्षा काल में भी ये विचलित नहीं होते। सत्य के अन्वेषक, दार्शनिक, दयालु, मानवतावादी, सहयोगी, परोपकारी एवं सहिष्णुता के गुणों से भरपूर होते हैं।

वक्री नेपच्यून: ये जातक सद्गुणी, शुभ कर्मों के प्रति सचेष्ट, विश्वासी, परोपकारी व उदार होते हैं। अति विश्वास करने का बुरा फल मिलता है। ये आध्यात्मिक, विनम्र, क्रान्तिकारी, रूढ़ियों के विरोधी, सर्वधर्म समन्वयी, मानवतावादी, आधुनिक स्पष्ट विचार, शैक्षणिक अनुसंधान के साथ आदर्शवादी जीवन इनकी विशेषता है। परंतु ये लोग दिखावा ज्यादा करते हैं। वक्री प्लूटो: ये व्यक्ति सामाजिक क्रांति में अग्रणी होते हैं। इनका अधिकतम समय सामाजिक सुधार एवं विकास में व्यतीत होता है। ये हर समय कुछ न कुछ करने के आदी होते हैं।

ये अकेले ही मुसीबतों से टक्कर लेते हैं। ऐसे व्यक्ति प्रखर वक्ता एवं सामाजिक नेता के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं। ये समाज सुधारक, गृहस्थ, साधु, धर्म प्रचारक, मानवधर्म रक्षक होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने जाति, धर्म, कुल, परिवार की प्रतिष्ठा के प्रति बहुत सतर्क रहते हैं। सूर्य, चंद्र सदैव मार्गी ही रहते हैं, वक्री नहीं होते। राहु तथा केतु सदैव वक्री ही रहते हैं।



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