WhatsApp और ज्योतिष

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व्यूस : 4461 | जनवरी 2017

ग्रह और आहार फलित ज्योतिष में ग्रहों की प्रतिकूलता से बचने के लिए बहुत से उपाय बताए गए हैं जिनमें मंत्र जाप, दान, ग्रह शांति से लेकर रत्न धारण करने संबंधी अनेक उपाय प्रमुखता से बताए जाते हैं। ग्रहांे की प्रकृति के अनुरूप भोजन (आहार) करना भी एक प्रकार का उपाय ही है जिसके प्रभाव से अशुभ ग्रह अपने अशुभ प्रभाव को छोड़कर शुभ प्रभाव देने लगते हैं। यहाँ आहार द्वारा अथवा खानपान द्वारा सभी नौ ग्रहों के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने का उपाय बता रहे हैं।

(1) सूर्य ग्रह हमारे शरीर में आरोग्य, आत्मा, आत्मविश्वास, आँखों व हड्डियों का कारक होता है। कुंडली में सूर्य प्रथम, नवम व दशम भाव का कारक माना जाता है। सूर्य गुलाबी व सुनहरा रंग लिए हुए अग्नि के रूप मंे कटु रस लिए हुए है। सूर्य की शुभता के लिए गेहूं, दलिया, आम, गुड़, केसर, तेजपत्ता, खुमानी, खजूर, छुहारा, किशमिश तथा घी आदि का सेवन करना चाहिए।

(2) चन्द्र ग्रह सफेद रंग का है। यह ग्रह हमारे शरीर में हमारे मन व जल का प्रतिनिधित्व करता है तथा कुंडली मंे चतुर्थ भाव का कारक होता है। इसकी अनुकूलता के लिए सभी प्रकार के दूध व दूध पदार्थ, चावल, सफेद तिल, अखरोट, मिश्री, आइसक्रीम, दही, मिठाई आदि का प्रयोग अधिक से अधिक करना चाहिए।

(3) मंगल लाल रंग का ग्रह है। यह अग्नि तत्व तथा तीखे व चटपटे रस का स्वामी है जो शरीर मंे ऊर्जा, रक्त, पराक्रम एवं उत्साह प्रदान करता है। इसे कुंडली के तीसरे व छठे भाव का कारक माना गया है। इसकी अनुकूलता के लिए मसूर की दाल, अनार, गाजर, चैलाई, चुकंदर, टमाटर, चाय, गुड़, अनार, कॉफी और लाल सरसांे आदि का प्रयोग करना चाहिए।

(4) बुध हरे रंग का ग्रह है। यह ग्रह पृथ्वी तत्व व मिश्रित रस प्रधान है। यह हमारी बुद्धि का प्रतीक होने से हमें बुद्धिमत्ता प्रदान करता है। कुंडली मंे इसे चतुर्थ व दशम भाव का कारक माना गया है। इसकी अनुकूलता के लिए इलायची, हरी मूंग की दाल, बथुआ, लौकी, हरा पेठा, मेथी, मटर, मोठ, अमरूद, हरी सब्जियां आदि का सेवन करना चाहिए। 

(5) गुरु ग्रह पीले रंग का प्रतिनिधित्व करता है। यह ग्रह आकाश तत्व व मीठे रस का कारक है जो हमारे शरीर में गुर्दों व लीवर का प्रतिनिधित्व करता है। कुंडली में इसे दूसरे, पांचवें, नवें, तथा एकादश भाव का कारक माना जाता है। इस ग्रह की अनुकूलता के लिए पपीता, मेथी दाना, शकरकंद, अदरक, चना, चने की दाल, सीताफल, संतरा, बेसन, मक्का, हल्दी, केला, सेंधा नमक तथा पीले फलों का सेवन करना चाहिए।


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(6) शुक्र सफेद रंग का कारक है। यह ग्रह जल तत्व, खट्टा रस तथा सुगंध प्रिय होने से हमारे शरीर मंे ‘‘काम’’ जीवन को नियंत्रण करता है। यह कुंडली में सप्तम भाव का कारक माना गया है। इसकी अनुकूलता के लिए खीर, त्रिफला, कमलगट्टे, मूली, मखाने, दालचीनी, भीगे बादाम, सफेद मिर्च, सिंघाड़ा, अचार व खट्टे फल का सेवन करना चाहिए।

(7) शनि काले व नीले रंग का कारक ग्रह है। यह ग्रह वायु तत्व व कसैले रस का अधिपति है जो हमारे शरीर में कमर, पैर व स्नायु मण्डल का प्रतिनिधित्व करता है। कुंडली मंे इसे छठे, आठवें व बारहवें भाव का कारक माना जाता हैं। इसकी अनुकूलता के लिए काली उड़द, कुलथी, सरसों या तिल का तेल, काली मिर्च, जामुन, मड़वे का आटा, काले अंगूर, मुनक्का, गुलकंद, अलसी, लौंग और काले नमक आदि का सेवन करना चाहिए।

(8) राहु की अनुकूलता के लिए शनि ग्रह की तथा

(9) केतु की अनुकूलता के लिए मंगल ग्रह की वस्तुओं का ही खानपान करना चाहिए। Tushar Joshi 9723172333 अन्न का सम्मान ’लक्ष्मी जी कहती हैं कि हे मनुष्य! जो भी व्यक्ति अन्न का आदर करता है अर्थात अन्न का एक कण कभी व्यर्थ नष्ट नहीं करता, थाली में जूठा नहीं छोड़ता और जैसे- सोना हम कचरे में, नहीं डालते उसी तरह अन्न को कचरे में नाली में नहीं जाने देता उसको कभी भी सात जन्म और सात पीढ़ी में दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ता। Devendra Dayare 9689061101 टोटके शनि ग्रह का नाम सुनकर अक्सर डर जाते हंै, जबकि शनि इंसान के कर्म के अनुसार ही उसको फल देते हैं, याद रखें शनि की साढे़साती या ढैय्या, इंसान को बुलंदी पर लेकर जा सकती है।

यह तभी सम्भव है जब आपके वर्तमान कर्म अच्छे हांे, लेकिन अगर आपके वर्तमान कर्म अच्छे नहीं हैं तो, साढे़साती या ढैय्या सबसे दुखद समय होता है। निम्न उपाय अवश्य करें - नित्य शनिवार हनुमान मंदिर में सुन्दर कांड का पाठ करें। - प्रत्येक दिन काले तिल के लड्डू गौ माता को पान के पत्ते पर खिलायें। - उच्च कोटि का नीलम धारण करें। Raja Pandit 9236553033 केतु ग्रह के उपाय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में बैठे ग्रहों की चाल ही व्यक्ति को जीवन में शुभ व अशुभ फल देती है। समय के साथ विभिन्न ग्रहों का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। ज्योतिष शास्त्र में केतु को पाप ग्रह माना गया है। इसके प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में कई संकट आते हैं। कुछ साधारण उपाय कर केतु के अशुभ प्रभाव को कम किया जा सकता है।


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ये उपाय इस प्रकार हैं- उपाय

- दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को केतु के निमित्त व्रत रखें।

- भैरवजी की उपासना करें। केले के पत्ते पर चावल का भोग लगाएं।

- गाय के घी का दीपक प्रतिदिन शाम को जलाएं।

- हरा रुमाल सदैव अपने साथ में रखें।

- तिल के लड्डू सुहागिनों को खिलाएं और तिल का दान करें।

- कन्याओं को रविवार के दिन मीठा दही और हलवा खिलाएं।

- बरफी के चार टुकड़े बहते पानी में बहाएं।

- कृष्ण पक्ष में प्रतिदिन शाम को एक दोने में पके हुए चावल लेकर उस पर मीठा दही डाल लें और काले तिल के कुछ दानों को रख दान करें। यह दोना पीपल के नीचे रखकर केतु दोष शांति के लिए प्रार्थना करें।

- पीपल के वृक्ष के नीचे प्रतिदिन कुत्ते को मीठी रोटी खिलाएं।

- दो रंग का कंबल किसी गरीब को दान करें।

इन टोटकों को करने से केतु से संबंधित आपकी हर समस्या स्वतः ही समाप्त हो जाएगी। यदि आपके कर्मचारी अक्सर छोड़कर जाते हैं इसको रोकने के लिये आपको यदि रास्ते में पड़ी हुई कोई कील मिले, यदि वह दिन शनिवार हो तो अति उत्तम है। इसे भैंस के मूत्र से धो लें। जिस जगह के कर्मचारी ज्यादा छोड़ कर जाते हैं वहां पर इस कील को गाड़ दें।

इसके फलस्वरूप कर्मचारी स्थिर हो जायेंगे। इस बात का भी ध्यान रखें कि आपके कर्मचारी इस प्रकार अपना काम करें कि काम करते समय उनका मुख पूर्व या उत्तर की ओर रहे। S P Goswami 9999035290 सर्दियों में उठायें मेथी दानों से भरपूर लाभ मेथीदाना उष्ण, वात व कफनाशक, पित्तवर्धक, पाचन शक्ति व बल वर्धक एवं हृदय के लिए हितकर है। यह पुष्टिकारक, शक्ति स्फूर्तिदायक टॉनिक की तरह कार्य करता है। सुबह-शाम इसे पानी के साथ निगलने से पेट निरोग बनता है, साथ ही यह कब्ज व गैस को दूर करता है। इसकी मूँग के साथ सब्जी बनाकर भी खा सकते हैं।

यह मधुमेह के रोगियों के लिए खूब लाभदायी है। अपनी आयु के जितने वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, उतनी संख्या में मेथी के दाने रोज धीरे-धीरे चबाने या चूसने से वृद्धावस्था में पैदा होने वाली व्याधियों, जैसे - घुटनों व जोड़ों का दर्द, भूख न लगना, हाथों का सुन्न पड़ जाना, सायटिका, मांसपेशियों का खिंचाव, बार-बार मूत्र आना, चक्कर आना आदि में लाभ होता है।

गर्भवती व स्तनपान करानेवाली महिलाओं को भुने मेथी दानों का चूर्ण आटे मंे मिलाकर लड्डू बनाकर खाना लाभकारी है। ’शक्तिवर्धक पेय’ दो चम्मच मेथी दाने एक गिलास पानी में 4-5 घंटे भिगोकर रखें फिर इतना उबालें कि पानी चैथाई रह जाय। इसे छानकर 2 चम्मच शहद मिलाकर पीयें। ’औषधीय प्रयोग’ कब्ज: 20 ग्राम मेथीदाने को 200 ग्राम ताजे पानी में भिगो दें। 5-6 घंटे बाद मसल के पीने से मल साफ आने लगता है, भूख अच्छी लगने लगती है और पाचन भी ठीक होने लगता है।

जोड़ों का दर्द: 100 ग्राम मेथी दाने अधकच्चे भून के दरदरा कूट लें। इसमें 25 ग्राम काला नमक मिलाकर रख लें। यह मिश्रण 2 चम्मच सुबह-शाम गुनगुने पानी से फाँकने से जोड़ों, कमर व घुटने का दर्द, आमवात (गठिया) का दर्द आदि में लाभ होता है। इससे पेट में गैस भी नहीं बनेगी। पेट के रोगों में: 1 से 3 ग्राम मेथी दानों का चूर्ण सुबह, दोपहर व शाम को पानी के साथ लेने से अपच, दस्त, भूख न लगना, अफरा, दर्द आदि तकलीफों में बहुत लाभ होता है।


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दुर्बलता: 1 चम्मच मेथी दाने को घी में भून के सुबह-शाम लेने से रोगजन्य शारीरिक एवं तंत्रिका दुर्बलता दूर होती है। मासिक धर्म में रुकावट: 4 चम्मच मेथी दाने 1 गिलास पानी में उबालें। आधा पानी रह जाने पर छानकर गर्म-गर्म ही लेने से मासिक धर्म खुल के होने लगता है। अंगों की जकड़न: भुनी मेथी के आटे में गुड़ की चाशनी मिलाकर लड्डू बना लें।

1-1 लड्डू रोज सुबह खाने से वायु के कारण जकड़े हुए अंग 1 सप्ताह में ठीक हो जाते हैं तथा हाथ-पैरों में होनेवाला दर्द भी दूर होता है। विशेष: सर्दियों में मेथी पाक, मेथी के लड्डू, मेथी दाने व मूँग-दाल की सब्जी आदि के रूप में इसका सेवन खूब लाभदायी है। सावधानी: मेथी दाने का सेवन शरद व ग्रीष्म ऋतुओं में, पित्तजन्य रोगों में तथा उष्ण प्रकृतिवालों को नहीं करना चाहिए।

Jiwan Mishra 9414764325 नक्षत्र से रोग विचार तथा उपाय.... ज्योतिष और आयुर्वेद हमारे ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्र के अनुसार रोगों का वर्णन किया गया है। व्यक्ति की कुंडली में नक्षत्र अनुसार रोगों का विवरण निम्नानुसार है। आपकी कुंडली में नक्षत्र के अनुसार परिणाम आप देख सकते हैं: अश्विनी नक्षत्र: जातक को वायुपीड़ा, ज्वर, मतिभ्रम आदि से कष्ट। उपाय: दान पुण्य एवं दिन दुखियों की सेवा से लाभ होता है।

भरणी नक्षत्र: जातक को शीत के कारण कम्पन, ज्वर, देह पीड़ा से कष्ट, देह में दुर्बलता, आलस्य व कार्य क्षमता का अभाव। उपाय: गरीबों की सेवा करें लाभ होगा। कृतिका नक्षत्र: जातक को आँखों सम्बंधित बीमारी, चक्कर आना, जलन, निद्रा भंग, गठिया, घुटने का दर्द व हृदय रोग, गुस्सा आदि। उपाय: मन्त्र जप तथा हवन से लाभ। रोहिणी नक्षत्र: ज्वर, सिर या बगल में दर्द, चित्त में अधीरता। उपाय: चिर चिटे की जड़ भुजा में बांधने से मन को शांति मिलती है। मृगशिरा नक्षत्र: जातक को जुकाम, खांसी, नजला, से कष्ट।

उपाय: पूर्णिमा का व्रत करें, लाभ होगा।

आद्र्रा नक्षत्र: जातक को अनिद्रा, सिर में चक्कर आना, आधासीसी का दर्द, पैर, पीठ में पीड़ा।

उपाय: भगवान शिव की आराधना करंे, सोमवार का व्रत करें, पीपल की जड़ दाहिनी भुजा में बांधें लाभ होगा।

पुनर्वसु नक्षत्र: जातक को सिर या कमर में दर्द से कष्ट। रविवार को पुष्य नक्षत्र में आक के पौधे की जड़ अपनी भुजा पर बांधने से लाभ होगा।

पुष्य नक्षत्र: जातक निरोगी व स्वस्थ होता है। कभी तीव्र ज्वर से दर्द व परेशानी होती है।

कुशा की जड़ भुजा में बांधने से तथा पुष्य नक्षत्र में दान-पुण्य करने से लाभ होता है।

अश्लेषा नक्षत्र: जातक की दुर्बल देह प्रायः रोगग्रस्त रहती है। देह में सभी अंग में पीड़ा, विष प्रभाव या प्रदूषण के कारण कष्ट।

उपाय: नागपंचमी का पूजन करें, पटोल की जड़ बांधने से लाभ होता है।

मघा नक्षत्र: जातक को अर्धसीसी या अर्धांग पीड़ा तथा भूत पिशाच से बाधा।

उपाय: कुष्ठ रोगी की सेवा करें। गरीबों को मिष्टान्न खिलायें।

पूर्वा फाल्गुनी: जातक को बुखार, खांसी, नजला, जुकाम, पसली चलना, वायु विकार से कष्ट।


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उपाय: पटोल या आक की जड़ बाजू में बांधें। नवरात्रों में देवी माँ की उपासना करें। उत्तरा फाल्गुनी: जातक को ज्वर ताप, सिर व बगल में दर्द, कभी बदन में पीड़ा या जकड़न। उपाय: पटोल या आक की जड़ बाजू में बांधें। ब्राह्मण को भोजन करायें। हस्त नक्षत्र: जातक को पेट दर्द, पेट में अफारा, पसीने से दुर्गन्ध, बदन में वात पीड़ा, आक या जावित्री की जड़ भुजा में बांधने से लाभ होगा। चित्रा नक्षत्र: जातक जटिल या विषम रोगों से कष्ट पाता है। रोग का कारण बहुधा समझ पाना कठिन होता है।

फोड़े-फुंसी सूजन या चोट से कष्ट होता है। उपाय: अश्वगंधा की जड़ भुजा में बांधने से लाभ होता है। तिल, चावल, जौ से हवन करंे। स्वाति नक्षत्र: वात पीड़ा से कष्ट, पेट में गैस, गठिया, जकड़न से कष्ट। उपाय: गौ तथा ब्राह्मणों की सेवा करें, जावित्री की जड़ भुजा में बांधें। विशाखा नक्षत्र: जातक को सर्वांग पीड़ा से दुःख। कभी फोड़े होने से पीड़ा। उपाय: गूंजा की जड़ भुजा पर बांधना व सुगंधित वस्तु से हवन करना लाभदायक होता है। अनुराधा नक्षत्र: जातक को ज्वर, ताप, सिर दर्द, बदन दर्द, जलन, रोगों से कष्ट। उपाय: चमेली, मोतिया, गुलाब की जड़ भुजा में बांधने से लाभ।

ज्येष्ठा नक्षत्र: जातक को पित्त बढ़ने से कष्ट। देह में कम्पन, चित्त में व्याकुलता, एकाग्रता में कमी, काम में मन नहीं लगना। उपाय: चिरचिटे की जड़ भुजा में बांधने से लाभ। ब्राह्मण को दूध से बनी मिठाई खिलायें। मूल नक्षत्र: जातक को सन्निपात ज्वर, हाथ पैरों का ठंडा पड़ना, रक्तचाप मंद, पेट गले में दर्द अक्सर रोगग्रस्त रहना। उपाय: 32 कुओं (नालों) के पानी से स्नान तथा दान पुण्य से लाभ होगा। पूर्वाषाढ़ नक्षत्र: जातक को देह में कम्पन, सिर दर्द तथा सर्वांग में पीड़ा। सफेद चन्दन का लेप, आवास कक्ष को सुगन्धित पुष्प से सजाने, कपास की जड़ भुजा में बांधने से लाभ ।

उत्तराषाढ़ा नक्षत्र: जातक को संधि वात, गठिया, वात शूल या कटी पीड़ा से कष्ट और कभी असहय वेदना। उपाय: कपास की जड़ भुजा में बांधें, ब्राह्मणों को भोजन करायें लाभ होगा। श्रवन नक्षत्र: जातक को अतिसार, दस्त, देह पीड़ा, ज्वर से कष्ट, दाद, खाज, खुजली जैसे - चर्म रोग, कुष्ठ, पित्त, मवाद बनना, संधि वात, क्षय रोग से पीड़ा। उपाय: अपामार्ग की जड़ भुजा में बांधने से रोग का शमन होता है। धनिष्ठा नक्षत्र: जातक को मूत्र रोग, खूनी दस्त, पैर में चोट, सूखी खांसी, बलगम, अंग-भंग, सूजन, फोड़े या लंगड़ेपन से कष्ट।

उपाय: भगवान मारुति की आराधना करें। गुड़ चने का दान करें। शतभिषा नक्षत्र: जातक को जलमय, सन्निपात, ज्वर, वात पीड़ा, बुखार से कष्ट। अनिद्रा, छाती पर सूजन, हृदय की अनियमित धड़कन व पिंडली में दर्द से कष्ट। उपाय: यज्ञ, हवन, दान, पुण्य तथा ब्राह्मणों को मिठाई खिलाने से लाभ होगा। पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र: जातक को उल्टी या वमन, देह पीड़ा, बेचैनी, हृदय रोग, टकने की सूजन, आंतांे के रोग से कष्ट होता है।

उपाय: भृंगराज की जड़ भुजा पर बांधने, तिल का दान करने से लाभ होता है। उत्तराभाद्रपद नक्षत्र: जातक अतिसार, वात पीड़ा, पीलिया, गठिया, संधिवात, उदरवायु, पांव सुन्न पड़ना से कष्ट हो सकता है। उपाय: पीपल की जड़ भुजा पर बांधने से तथा ब्राह्मणों को मिठाई खिलाने से लाभ होगा।

रेवती नक्षत्र: जातक को ज्वर, वात पीड़ा, मति भ्रम, उदर विकार, मादक द्रव्य सेवन से उत्पन्न रोग, किडनी के रोग, बहरापन या कण के रोग, पांव की अस्थि, मांसपेशियांे मंे खिंचाव से कष्ट। उपाय: पीपल की जड़ भुजा में बांधने से लाभ होगा। Mukesh Kumar 9334913911



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