कार्य व्यवसाय एवं वैवाहिक सुख

कार्य व्यवसाय एवं वैवाहिक सुख  

फ्यूचर पाॅइन्ट
व्यूस : 5161 | जनवरी 2017

वैवाहिक सुख व कार्य-व्यवसाय के बारे में ज्योतिष द्वारा विश्लेषण करने की विस्तृत विधि: वैवाहिक सुख का विचार सामान्यतः सप्तम व कार्य-व्यवसाय का विचार दशम भाव से किया जाता है। कार्य-व्यवसाय अर्थात् जातक आजीविका में व्यापार करेगा या नौकरी। यह भी दशम भाव, स्वामी, कारक तथा इसमें स्थित ग्रह तथा इन सब पर दृष्टि डालने वाले ग्रहों पर निर्धारित होता है। व्यवसाय के योग:

1. दशमेश व लग्नेश की युति किसी भी भाव में हो तो जातक स्वतंत्र व्यवसाय करता है। यदि यह युति विशेषकर लग्न या दशम भाव में हो तो जातक स्वतंत्र उद्योग/व्यवसाय में अत्यधिक ख्याति प्राप्त करता है।

2. दशमेश, यदि केंद्र या त्रिकोण अथवा एकादश भाव में शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो जातक व्यापार में सफल होता है।

3. यदि दशमेश, लग्न भाव में स्थित हो तो जातक स्वतंत्र व्यवसाय करता है।

4. यदि दशमेश, द्वितीय भाव में हो तो जातक पैतृक व्यवसाय में अधिक उन्नति करने वाला होता है।

5. दशमेश यदि, तृतीय भाव में स्थित हो तो जातक या तो व्याख्याता होता है या लेखन, संपादन या पत्रकारिता के माध्यम को व्यवसाय के रूप में अपनाता है।

6. यदि दशमेश, चतुर्थ भाव में हो तो जातक प्रोपर्टी डीलर, कृषि कार्य करने वाला, भूमि संबंधी व्यवसाय या ट्रांसपोर्ट संबंधी व्यवसाय, डेयरी उत्पाद आदि करने वाला होता है।

7. यदि दशमेश, पंचम भाव में स्थित हो और किसी शुभ ग्रह से दृष्ट न हो तो जातक दलाली, लाॅटरी, सट्टा, शेयर मार्केट, एजेंट का व्यवसाय करता है।


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8. दशमेश, यदि छठे भाव में हो तो जातक न्यायालय, थाना, कचहरी या जेल आदि से संबंधित कार्य करने वाला होता है।

9. दशमेश, यदि सप्तम भाव में स्थित हो तो साझेदारी, सहकारी उद्यम, मैरिज ब्यूरो और राजनैतिक कार्य आदि से जुड़ा व्यापार, व्यवसाय करता है।

10. दशमेश, अष्टम भाव में स्थित हो तो जातक शिक्षा संबंधी व्यवसाय जैसे- कोचिंग, ट्यूशन, विद्यालय व अन्य शैक्षणिक क्षेत्रों से जुड़ा व्यवसाय करता है।

11. यदि दशमेश, नवम भाव में स्थित हो तो जातक पुरोहित, मंदिर का पुजारी, धर्म गुरु, उपदेशक, अध्यात्म एवं दार्शनिक क्षेत्र का पथ-प्रदर्शक, समाज सुधारक और पैतृक व्यवसाय करने वाला होता है।

12. यदि दशमेश, दशम भाव में ही स्थित हो अर्थात् स्वगृही हो तो जातक स्वतंत्र व्यवसाय करके शिखर पर पहुंचने वाला होता है। ऐसा जातक जो भी कार्य करता है, उसमें वह अत्यधिक सफलता प्राप्त करता है।

13. दशमेश, एकादश भाव में स्थित हो तो जो भी कार्य करता है उससे आय, लाभ कमाने वाला होता है। साथ ही ऐसा व्यक्ति अनेक लोगों को जीविका देने वाला होता है। सराहनीय कार्यों में लगा रहकर सम्मान प्राप्त करता है।

14. दशमेश, यदि द्वादश भाव में स्थित हो तो जातक विदेशांे में व्यवसाय करने वाला तथा व्यय भाव में होने से कभी-कभी उन्नति या निन्दनीय व्यवसाय करने वाला भी होता है।

15. चूंकि बुध ग्रह व्यापार का कारक ग्रह है अतः जिसकी कुंडली में बुध दशमेश होकर सप्तम भाव में स्थित हो या सप्तमेश होकर दशम भाव में स्थित हो वह जातक व्यापार/ वाणिज्य से जुड़ा होता है।

16. यदि दशम भाव में बुध अकेला स्थित हो तो जातक व्यवसायी होता है।

17. यदि बुध दशमेश होकर, एकादश भाव में या एकादशेश होकर दशम भाव में स्थित हो तो जातक व्यापार द्वारा धन कमाता है। ें हो या दशमेश शत्रु राशिगत स्थित हो तो जातक निन्दनीय व्यवसाय करने वाला होता है। कभी-कभी वह व्यवसाय में हानि भी उठाता है।

19. यदि दशम भाव में अनेक ग्रहों की दृष्टि या युति हो तो जातक व्यवसाय करता है।

20. यदि सप्तमेश व एकादशेश के बीच भाव परिवर्तन हो तो जातक व्यापार के द्वारा जीवन-यापन करता है।

21. दशमेश, द्वितीयेश या दशमेश, नवमेश के बीच भाव परिवर्तन होने पर जातक व्यवसाय द्वारा धन कमाता है।

22. यदि सूर्य, चतुर्थ भाव में परम नीच अवस्था में स्थित हो और इसका नीचत्व भंग नहीं हो रहा हो तो जातक अपना स्वतंत्र व्यवसाय करता है।

23. बुध व शुक्र यदि द्वितीय, चतुर्थ, दशम, एकादश में हो तो जातक, कवि, साहित्यकार, लेखक या आध्यात्मिक व्यक्ति होता है।


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24. यदि दशमेश दशम भाव को छोड़कर किसी भाव में स्वगृही या उच्च का स्थित हो तथा दो या तीन ग्रहों से दृष्ट हो तो जातक व्यापार में सफल होता है तथा सम्मानित उद्योगपतियों या कारोबारियों में गिना जाता है।

25. यदि दशम भाव में सूर्य$मंगल हो तो जातक औषधि संबंधी व्यवसाय से धन, लाभ व नाम कमाता है।

26. यदि पांच या इससे अधिक ग्रह 7 से 12 भाव तक या 10 से 3 भाव तक स्थित हो तो जातक व्यापार द्वारा जीवन यापन करता है।

27. यदि 5 या अधिक ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल व राहु के नक्षत्रों या नवांशों में हो या वायु तत्व राशियों -मिथुन, तुला, कुंभ के नवांश में हो तो जातक स्वतंत्र व्यवसाय करने वाला होता है।

28. यदि सूर्य, चंद्र, मंगल, राहु जन्मपत्री के ऊपरी भाग- 4 से 10 भाव में (आलोकित भाग) स्थित हो, साथ में शनि योगकारक होकर दशम भाव या दशमेश से युति/दृष्टि द्वारा संबंध स्थापित करें तो जातक स्वतंत्र व्यवसाय द्वारा जीवन यापन करता है।

29. यदि पूर्ण परमात्मांश ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल व राहु पत्री में शुभ होकर बली होकर केंद्र/त्रिकोण में स्थित हो तथा 2, 11 से संबंध स्थापित करंे तो जातक व्यापार द्वारा धन कमाता है।

30. जब दशम भाव में कोई भी ग्रह शत्रु राशि या नीचस्थ हो तथा करियर बनने के समय इसी ग्रह की दशा का समय चले तो जातक को सरकारी नौकरी से वंचित रहकर व्यवसाय करना पड़ता है।

31. जब दशमेश शत्रु राशि या नीच का स्थित हो तो भी जातक व्यवसाय करता है। कुंडली-1 में, दशमेश गुरु नवम भाव में शुभ है लेकिन महादशा कारक राहु दशमस्थ अशुभ होने से जातक को व्यवसाय करना पड़ा। (नियम 30) कुंडली-2 में, दशमेश गुरु (लग्नेश भी) अष्टम भाव में शत्रुराशिस्थ होने से जातक को व्यवसाय करना पड़ा। पूर्व मंे गुरु व वर्तमान में नीच शनि की महादशा चल रही है। (नियम-31)

32. जिनके दशम भाव में चर राशि हो तो ऐसा जातक स्वतंत्र व्यवसाय को अपनाता है।

33. जिनके दशम भाव में द्विस्वभाव राशि हो तो नौकरी या व्यवसाय को अपनाता है।

जैसा कि कुंडली - 1, 2 के दशम भाव में द्विस्वभाव राशि धनु है। नौकरी के योग

1. षष्ठ भाव नौकरी से जुड़ा होता है अतः षष्ठ भाव बली होना चाहिए। अतः यदि षष्ठेश दशम भाव में स्थित हो या दशमेश षष्ठ भाव में हो तो जातक नौकरी करता है।

2. यदि लग्नेश षष्ठ भाव में स्थित होकर दशम भाव पर दृष्टि डालें या षष्ठेश लग्न में स्थित होकर दशम भाव को देखे तो जातक नौकरी करता है।

3. लग्नेश व दशमेश की युति हो तो जातक नौकरी करता है। साथ ही इनकी षष्ठ भाव पर दृष्टि हो या षष्ठेश इन पर दृष्टि डालता हो तो भी जातक नौकरी करता है।


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4. यदि नवमेश षष्ठ भाव में स्थित हो और दशम भाव पर दृष्टि डाले तो जातक नौकरी करता है।

5. यदि तीनांे त्रिकोण (षष्ठ, अष्टम, द्वादश भाव के स्वामी) में से कोई भी एक ग्रह यदि दशम भाव को पूर्ण रूप से देखे तो जातक नौकरी करता है।

6. यदि तीनों त्रिकोण में से एक का भी संबंध चंद्रमा से या दशम भाव या दशम से हो तो जातक नौकरी करता है। इस कुंडली- 3 पर नियम - 3, 5, 6 लग रहे हैं। अतः जातक सरकारी नौकरी में है। इस पर नियम-7 भी लग रहा है छः ग्रह पृथ्वी व जल राशियों में है। इस पर नियम-1 भी लग रहा है। षष्ठेश गुरु स्वगृही है तथा दशम भाव पर दृष्टि है (नियम-5) । 8 10 4 12 2 9 5 11 3 7 6 सूकेमं 1 गु .बुराकुंडली-3 चं. शु. श.

7. यदि पांच या अधिक ग्रह बुध, गुरु, शुक्र, शनि, केतु के नक्षत्र में हो अथवा पृथ्वी या जल तत्व की राशियों में हो तो जातक नौकरी करता है।

8. यदि दशम भाव में स्थिर राशि हो तथा दशम भाव में उच्चस्थ या स्वगृही ग्रह स्थित हो तो जातक नौकरी करता है।

10. जब दशम भाव में कोई पंचमहापुरूष योग बन रहा हो तो जातक नौकरी करता है।

वैवाहिक सुख के योग:

1 वैवाहिक सुख, सप्तम भाव, सप्तमेश, सप्तमस्थ ग्रह, कारक शुक्र (व पुरूष हेतु), गुरु (स्त्री हेतु) तथा इन सभी पर दृष्टि डालने वाले शुभ ग्रहों पर निर्भर करता है। यदि ये सभी बली ग्रह (उच्च, स्वगृही या मित्र राशिगत होकर) केंद्र या त्रिकोण में स्थित हांे तो वैवाहिक सुख जातक को प्राप्त होता है।

2. यदि सप्तम भाव में शुभ ग्रह की राशि (2, 3, 6, 7, 4, 9, 12) हो और इनके स्वामी बली होकर शुभ भावों में स्थित हो तो जातक को जीवनसाथी सुंदर प्राप्त होता है तथा वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।

3. यदि सप्तम भाव, सप्तमेश पर सौम्य ग्रहों का प्रभाव हो तो जीवन साथी उत्तम गुणों से युक्त प्राप्त होता है तथा वैवाहिक सुख प्राप्त होता है।

4. सप्तम भाव, सप्तमेश यदि शुभ ग्रह एवं वर्ग से युक्त होकर शुभ भाव में स्थित हो तो जीवनसाथी स्वभाव से उच्च विचार, निर्मल, मधुरभाषी आदि गुणों से युक्त होता है जिससे वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।

5. यदि द्वितीयेश व कारक गुरु बली होकर शुभ भावों में स्थित हो तथा द्वितीयस्थ ग्रह सौम्य व बली हो तथा इन सभी पर सौम्य ग्रहों का प्रभाव हो तो भी कुटुंब के सुख के कारण दांपत्य जीवन मधुर रहता है।

6. यदि सप्तमेश का द्वितीयेश या पंचमेश से भाव परिवर्तन हो तो दांपत्य जीवन सुखमय होता है।

7. यदि एकादशेश या एकादशस्थ ग्रह बली हो तो भी दांपत्य जीवन मधुर होता है।

8. द्वितीय, सप्तम, द्वादश भाव में 2, 3, 4, 6, 7, 9, 12 राशि का होना इन भावों में सौम्य ग्रह उच्च या स्वगृही (बली) हो तो वैवाहिक जीवन सुखी रहता है।

9. यदि द्वितीयेश व एकादशेश में भाव परिवर्तन हो या इनके स्वामी व कारक गुरु बली हो तो वैवाहिक जीवन सुखी होता है।

10. नवांश लग्न का स्वामी यदि बली होकर केंद्र/त्रिकोण में हो तो जीवन साथी का पूर्ण सुख प्राप्त होता है।

11. नवमांश लग्न का स्वामी यदि नवमेश के साथ 7 या 11 भाव में उच्च का होकर स्थित हो तो स्त्री से अनेक प्रकार का लाभ, सुख व ससुराल के धन का मालिक बनता है तथा स्त्री सुख पूर्ण प्राप्त होता है।

12. यदि अष्टमेश व द्वादशेश बली होकर शुभ भावों में स्थित हो तो जातक को पूर्णतया दांपत्य सुख प्राप्त होता है।

13. यदि स्त्री की कुंडली में लग्न में सम राशि हो तथा चंद्रमा पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो अथवा शुभ ग्रह योग हो तो स्त्री मधुरवाणी युक्त होती है जिससे दांपत्य जीवन सुखी होता है।


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14. यदि पति-पत्नी दोनों की कुंडली में सप्तमेश बली हो तो दांपत्य जीवन सुखी होता है।

15. यदि अष्टक वर्ग में सप्तम भाव में शुभ बिंदुओं की संख्या 25 से अधिक है तो वैवाहिक सुख उतना ही अधिक प्राप्त होता है।

16. शादी पूर्व दोनों के गुण मिलान (36 में से 18 गुण तथा राशि व नाड़ी दोष नहीं होने चाहिये) व कुंडली मिलान शुभ हो तो वैवाहिक सुख की पूर्ण प्राप्ति होती है। पुरूष जातक के सप्तमेश शनि दशम भाव में मित्रराशिगत शुभ है। शुक्र (कारक) का सप्तम भाव पर प्रभाव शुभ है।

द्वितीय, एकादश भाव का स्वामी बुध तृतीय भाव में मित्र राशिगत शुभ है। पंचम भाव में गुरु स्वगृही है, दोनों के 23 गुण मिल रहे हैं। स्त्री जातक के सप्तमेश, नवम भाव में तथा नवमेश सप्तम भाव में, भाव परिवर्तन में है। सप्तम में सूर्य उच्च का स्थित है, साथ ही बुधादित्य योग बना रहा है। कारक पंचम (शुक्र) भाव में मित्र राशिगत शुभ है।

साथ में बृहस्पति की स्थिति है। दोनों के बृहस्पति पंचम भाव में है। अतः योग, गुण मिलान, कुंडली मिलान ठीक है, अतः दोनों का वैवाहिक जीवन सुखमय है। यह आवश्यक नहीं है कि वैवाहिक सुख और कार्य व्यवसाय के सारे नियम एक ही कुंडली पर लागू हों। लेकिन अलग-अलग कुंडलियों पर सभी नियम लागू हो सकते हैं।



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