अनेक रोगों में कारगर है पुष्प चिकित्सा

अनेक रोगों में कारगर है पुष्प चिकित्सा  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 8644 | मार्च 2007

रगों की प्रभावशीलता हर दृष्टिकोण स े महत्वपूर्ण है। रंग हमारे जीवन का अटूट हिस्सा रहे हंै। रंग ही नहीं खुशबू भी हमारे मन-मस्तिष्क पर गहरे एवं अनुकूल प्रभाव छोड़ती है। रंग एवं सुगंध का समग्र मिश्रण रंग-बिरंगे सुरभित पुष्प हैं, जिनकी एक झलक भर से हमारा तन-मन तरोताजा हो उठता है।

दुनिया भर में विभिन्न तरह की शारीरिक एवं मानसिक व्याधियों से ग्रस्त लोगों को स्वास्थ्यलाभ प्रदान करने के लिए पुराने समय से पुष्प चिकित्सा का प्रयोग किया जाता रहा है। आज भी चिकित्सा की यह विधि प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से लाखों लोगों के जीवन में आशा एवं स्वास्थ्य का एक नया उजियारा बिखेर रही है। अंतर्राष्ट्रीय रंग विशेषज्ञ लियेट्रिस इसमेन के अनुसार-‘रंग हमारे चित्त को शांत एवं प्रसन्न करते हैं, जिससे उत्पन्न सुखद अनुभूति हमारे जीवन में ऊर्जा एवं उत्साह का एक नया संचार पैदा करती है।’

वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि फूलों और पौधों का हमारी मानसिक अवस्था और भावनाओं पर हितकारी प्रभाव पड़ता है। फूलों की मौजूदगी ही हमारे मन को प्रफुल्लित कर देती है। पुष्प चिकित्सा से न केवल मनुष्य के शारीरिक दोष ही ठीक होते हैं, अपितु यह अप्रत्यक्ष रूप से रंग चिकित्सा होने के कारण दोहरे लाभ प्रदान करती है। फूल हमारी गं्रथियों की सक्रियता को बढ़ाते हैं, जिससे हमारे जीवन पर सकारात्मक प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।

पुष्प चिकित्सा हमारी ग्रंथियों से लाभकारी स्राव उत्सर्जित करती है, जिससे हमारे स्वास्थ्य पर दीर्घ एवं अनुकूल प्रभाव पड़ते हैं। विभिन्न रंगों के फूल हमारे शरीर पर निम्नलिखित तरह से प्रभाव डालते हैं-

लाल रंग: लाल रंग शक्ति का प्रतीक है। लाल गुलाब हमारी ऊर्जा में वृद्धि करते हैं। ये हमारी ‘एड्रीनल ग्रंथि’ को प्रभावित करते हैं। लाल गुलाब की पंखुड़ियों से निर्मित गुलकंद हमारे उदर विकारों को दूर कर शरीर की गर्मी को कम करता है। इसके नियमित सेवन से हमारे होंठ गुलाब की पंखुड़ी जैसे ही लाल बनते हैं। विभिन्न आयुर्वेदिक उपचारों में लाल रंग के गुलाब की पंखुड़ियों का प्राथमिकता से प्रयोग होता है। राजा महाराजाओं के समय से सुंदर स्त्रियां गुलाब जल में स्नान करने की आदी रही हैं। गुलाब जल में स्नान करने से शरीर की रंगत निखरती है। आंखों के लिए भी गुलाब जल से बड़ा कोई सानी नहीं है।

नारंगी रंग: यह रंग एलर्जी से बचाता है। विािष्ट नारंगी डायसिस विभिन्न रोगों में प्रयुक्त होते हैं। डायसिस हमारे शरीर की प्रतिरोध् ाक क्षमता को बढ़ाते हैं। डायसिस के नियमित सेवन से हमारी पाचन शक्ति भी तीव्र एवं सशक्त होती है।

पीला रंग: यह रंग हमारे मस्तिष्क पर अच्छा प्रभाव डालता है। पीले फूलों द्वारा की जाने वाली चिकित्सा पद्धति में मुख्यतः सूर्यमुखी के फूल का प्रयोग होता है। यह फूल हमारी सोच को निखारता है तथा हमें सचेत रखता है। पीले रंग के और भी पुष्प इस पद्धति में प्रयुक्त होते हैं।

हरा रंग: हरे रंग का प्रयोग पुष्प चिकित्सा में काफी अधिक किया जाता है। हरा रंग हमारे तंत्रिका-तंत्र को प्रभावित करता है। यह रंग हमारी श्वास प्रणाली को शांत और सरल बनाने में मददगार साबित होता है। इसकी उपयोगिता उस वक्त ज्यादा बढ़ जाती, जब हम तनाव की स्थिति में होते हैं। यह रंग हमारे हृदय के संकुचन को नियंत्रित कर पूरे शरीर के तनाव को निर्मूल करता है।

नीला रंग: यह रंग ‘मेलोटोनिन ग्रंथि’ को सक्रिय करने में सहायक होता है। यह रंग हमारी ‘थाइराइड ग्रंथि’ को भी उद्दीपित करता है। इस रंग के उचित प्रयोग से नींद की अनियमितता दूर होती है। हमारी प्राचीन योग पद्धति यह बताती है कि हमारी खाने वाली वस्तुएं हमारी एकाग्रता को प्रभावित करती हैं। परमहंस योगानंद ने अपनी विश्व प्रसिद्व पुस्तक ‘योगी की आत्मकथा’ में खाद्य पदार्थों के आध्यात्मिक प्रभाव का सविस्तार वर्णन किया है।’

आयुर्वेद में फूलों की सभी जातियों को चार मुख्य श्रेणियों में बांटा गया है। इनमें से सिर्फ एक ही श्रेणी के फूलों का उपयोग दवा बनाने के काम में किया जाता है। इन फूलों का प्रयोग विभिन्न प्रकार से होता है। मूलतः फूलों का बहुत सारी दवाइयों में आधार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। हांलाकि प्राचीन समय में फूलों के विस्तृत उपयोग की झलक मिलती है। फूलों से बने मुकुट को किसी निश्चित समय के लिए पहनना ‘पुष्प आयुर्वेद’ की उपचार पद्ध ति का हिस्सा रहा है।

प्राचीन वैद्यों में ‘चक्रम’, ‘भगवान’ आदि को पुष्प चिकित्सा में महारत हासिल थी। उन्होंने इस पद्वति का सफलतापूर्वक सुनियोजित तरीके से प्रयोग किया। फूलों की सुगंध, उन्हें तोड़ने के समय, दवा में प्रयोग की विधि, दवा लगाने में किस तरह की चीजों का प्रयोग करना चाहिए आदि का पता देती है। वर्तमान समय में सेहत और पर्यटन के बढ़ते महत्व के कारण पुष्प आयुर्वेद को एक नई पहचान मिली है।

निजी क्षेत्र के बहुत सारे आयुर्वेदिक संस्थान इस दिशा में सार्थक कदम बढ़ा रहे हैं। ऋषिकेश स्थित ‘आनंदा’ तथा केरल में अनेक पर्यटक स्वास्थ्य गृहों में पुष्प चिकित्सा का प्रयोग हो रहा है।

उत्तरांचल के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में भी विभिन्न आश्रम इस विधि को आगे बढ़ाने में सक्रिय भूमिका अदा कर रहे हैं। विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियों में फूलों का प्रयोग किया जा रहा है। आसाराम बापू के आश्रम में निर्मित विभिन्न औषधियां भी पुष्प चिकित्सा पद्धति पर केंद्रित हैं।

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