सुगन्धित तेलों से उपचार

सुगन्धित तेलों से उपचार  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 6611 | मार्च 2007

सुगंध चिकित्सा का इतिहास 5000 वर्षों से भी अधिक पुराना है। ‘एरोमा’ शब्द की उत्पŸिा ग्रीक भाषा के शब्द ‘स्पाइस’ से हुई है। आधुनिक युग में इसका प्रयोग विस्तृत रूप से मधुर सुगंध के अर्थ में होता है। सुगंध चिकित्सा उपचार की एक पवित्र व वैकल्पिक पद्धति है जो परिपूरक दवा के रूप में लोकप्रिय हो रही है।

इसका एलोपैथी से कोई संबंध नहीं है, परंतु यह होम्योपैथिक एवं आयुर्वेदिक उपचार से पूर्णतया अलग नहीं है। फर्क इतना है कि आयुर्वेदिक उपचार में पूरे पौधे का प्रयोग किया जाता है, जबकि सुगंध चिकित्सा में पौधे से निकाले गए केवल सुगंधित तेलों का प्रयोग होता है। इन तेलों में पेड़-पौधों का सार अर्थात उनकी जीवनदायिनी शक्ति होती है।

ये तेल वाष्पीकृत, घनीभूत और सुगंधित होते हंै, जो कि आसवन प्रक्रिया तथा अर्कसंचय द्वारा फलों, जड़ी-बूटियों, पेड़ों, छालों, घास, पŸिायों, बीजों, जड़ों व पेड़ के तनों के बीच वाले भाग से प्राप्त किए जा सकते हैं। ये तेल बिल्कुल भी चिप चिपचिपे नहीं होते। इनमें से अधिकतर हल्के तरल पदार्थ के रूप में होते हैं, जो पानी में नहीं घुलते, पर हवा के संपर्क में आते ही उड़ जाते हैं।

इस संसार में प्रत्येक प्राणी सुगंध चिकित्सा के साथ जी रहा है। हम दवा की अपेक्षा अच्छी देखभाल से किसी रोगी को ज्यादा ठीक कर सकते हैं। इसी प्रकार एक मधुर सुगंध मस्तिष्क पर अच्छा प्रभाव डाल सकती है, जो कि एक औषधि का काम करती है।

उदाहरणार्थ जब हम किसी रोगी को फूल भेंट करते हैं, तो हम सुगंध के द्व ारा उसे अच्छा महसूस करने में मदद करते हैं। सुगंधित तेल जैरेनियम, चमेली, लैवेन्डर आदि विभिन्न फूलों की सुगंध प्रदान करते हैं। इनमें रसायन होते हैं, जो कि नाड़ी संस्थान को आराम पहुंचाते हैं तथा चिŸावृŸिा को शीघ्र ही शांत करते हैं। सुगंध चिकित्सा में सुगंधित तेलों को सूंघकर तथा त्वचा पर मलकर प्रयोग में लाया जाता है।

इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि ये तेल न केवल शरीर पर बल्कि भावनाओं पर भी प्रभाव डालते हैं। सूंघते समय सूक्ष्म कण हमारे फेफड़ों में चले जाते हैं और फिर रक्त में मिल जाते हैं। सुगंधित तेलों द्वारा मालिश शरीर में तेल के प्रवेश कराने का अन्य तरीका है। ये तेल मांसपेशियों में समा जाते हैं तथा उस अंग विशेष के दर्द को दूर कर देते हैं। ये हमारे रक्त संचार को भी बढ़ाते हैं।

विभिन्न रोग एवं सुगंधित तेलों के उपयोग:- साधारण एंटीसेप्टिक: काजुपुट, यूकेलिप्टस, लैवेंडर, नींबू।

श्वसन तंत्र के लिए एंटीसेप्टिक ः तुलसी, बे, काली मिर्च, काजुपुट, यूकेलिप्टस।

पाचन तंत्र के लिए: तुलसी, बर्गामाॅट, काजुपुट, कैमोमाइल, जूनीपर बेरी, लैवेंडर।

आंत संबंधी तंत्र के लिए: तुलसी, काजुपुट, साइप्रेस, यूकेलिप्टस, जूनीपर बेरी।

मूत्राशय तंत्र के लिए: काली मिर्च, काजुपुट, साइप्रेस, यूकेलिप्टस, जूनीपर बेरी।

जोड़ों का दर्द: काली मिर्च, काजुपुट, कैमोमाइल, साइप्रेस, यूकेलिप्टस, जूनीपर बेरी, लैवेंडर, नींबू, मार्जोरम।

अंतःस्रावी तंत्र के लिए: तुलसी, काजुपुट, जूनीपर बेरी, लैवेंडर, गुलाब।

हृदय उŸोजन के लिए: लैवेंडर, नींबू, रोजमेरी।

अत्यधिक उŸोजक: तुलसी, जैरेनियम, मार्जोंरम, पिपरमिंट, गुलाब, रोजमेरी, सेज।

फंगस रोकने के लए: लैवंेडर, पचूली, सेज, थाइम।

सामान्य मुहांसे: बे, जूनीपर बेरी, लैवेंडर, नींबू, मिर्र, नियाउली, स्टाइरेक्स, थाइम।

लाल/पस वाले मुहांसे: कैमोमाइल, साइप्रेस, जैरेनियम, जूनीपर बेरी, नेरोली, पिपरमिंट, गुलाब, सेज, चंदन।

चर्म रोग: कैमोमाइल, पचूली, चंदन।

दाद: कैमोमाइल, जैरेनियम, जूनीपर बेरी, लैवेंडर, नेरोली, पिपरमिंट, सेज, चंदन।

कीड़ों के काटने पर: तुलसी।

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