इस लेख के माध्यम से बर्थ टाइम रेक्टीफिकेशन को व्यावहारिक तौर पर समझने की कोशिश की गई है। यहां जिस कस्पल कुंडली का अध्ययन कर रहे हैं वह एक पुरुष जातक की कुंडली है जिसका जन्म 30 सितंबर 1979 को दोपहर 15ः45 बजे मालदा, पश्चिम बंगाल के रेखांश /अक्षांश (88.08 पूर्व / 24.59 उत्तर) पर हुआ। रिकार्ड किए गए समय यानि 15ः45 बजे जातक का लग्न कुंभ राशि पर 10.15.09 डिग्री का उदय हो रहा है और लग्न के को रुलिंग ग्रह शनि-राहु-गुरु-राहु हैं और लग्न की आर्क (चाप) 28.06 प्रतिशत है। लग्न का सब सब लाॅर्ड राहु है और जैसा कि नियम है लग्न के सब सब लाॅर्ड का संबंध मून स्टार सूर्य के साथ भी स्थापित हो रहा है और आर्क भी 50 प्रतिशत से कम है। 5वें भाव का स.स.ल गुरु है और इस जातक के पहले बच्चे का मून स्टार शनि है और गुरु तथा शनि का संबंध भी आपस में स्थापित हो रहा है। जातक के दूसरे बच्चे का मून स्टार शनि है और नोटेड टाईम यानि कि 15.45 बजे पर सातवें भाव का सब सब लाॅर्ड शुक्र है और नियम के अनुसार चन्द्र और शुक्र का भी आपस में संबंध स्थापित हो रहा है। इस विशिष्ट जातक के पिता की मृत्यु 13.8.2015 को रात करीब 11-11.30 बजे, राहु की महादशा में हुई है।
मृत्यु के इवंेट के माध्यम से कुंडली का समय कैसे शुद्ध करें इस लेख को ध्यान से पढ़ें और समझें। पिछले लेख में मृत्यु घटित होने के सभी नियम आपके सम्मुख प्रस्तुत किए गए हैं। आईए एक-एक कर सभी नियमों को लागू करने का प्रयास करें। दशा स्वामी राहु 7वें भाव (पिता के लिए बाधक भाव) में बैठ कर पहली कंडीशन पूरी करता है। दशा स्वामी राहु का चैथे भाव के सब सब लाॅर्ड (पिता के लिए 8वां) शुक्र से भी संबंध स्थापित हो रहा है। दशा स्वामी ग्रह राहु को अब लग्न और अष्टम (पिता के लिए 9वां और चैथा भाव) भाव का मारक और बाधक (3,7,10) भावों का प्रबल तौर पर सिग्निफिकेटर बनना अनिवार्य है। परन्तु दशा स्वामी राहु नवें और चैथे भावों का फल प्रदान करने में सक्षम नहीं है क्योंकि राहु, गुरु के सब सब में है और गुरु तो केवल 9वीं कस्पल पोजीशन में प्रकट हो रहा है। गुरु न तो तीसरे, न ही चैथे, न ही 7वें और 10वें कस्प से प्रकट हो रहा है इसलिए दशा स्वामी राहु अनिवार्य कंडीशन को पूर्ण नहीं करता है। परन्तु इस विशिष्ट दिन यानि कि 13.08.2015 को इस जातक के पिता का देहांत तो हुआ है। इस कारण इस जातक का नोटेड जन्म समय 15ः45 बजे सही नहीं हो सकता।
दशा स्वामी की अनिवार्य कंडीशन पूरी करने के लिए गुरु का मारक या बाधक (3, 10, 7) भावों या 8वें कस्प (4) में प्रकट होना अनिवार्य है। 15ः45 बजे तीसरी कस्पल पोजीशन के को रुलिंग ग्रह मंगल-शुक्र-शनि-शनि हैं। अगर कुण्डली का समय 21 सेकंेड कम कर दिया जाए यानि कि (15ः 44ः39 बजे) कर दिया जाए तो तीसरे कस्प में गुरु सब लाॅर्ड और राहु सब सब लाॅर्ड के रुप में प्रकट हो जाता है और इस समय पर जातक के लग्न का सब सब लाॅर्ड राहु से हटकर मंगल बन जाता है तथा मंगल का संबंध भी जातक के मून स्टार से हो जाता है तात्पर्य लग्न का स स ल मंगल रखा जा सकता है। 5वें और 7वें भाव के सब सब लाॅर्ड भी नहीं बदल रहे हैं। अब गुरु का तीसरे कस्प में प्रकट होना जातक के पिता के देहांत के समय चल रही राहु की दशा को पूर्ण रुप से लग्न और 8वें भाव यानि कि (पिता के लिए 9वें और चैथे भाव) का फल मारक (3,10) और बाधक (7वें) भावों के साथ देने में सक्षम हो जाती है तथा मृत्यु के समय आवश्यक और अनिवार्य (दमबमेेंतल - मेेमदजपंस) दोनों कंडीशन भी पूरी हो जाती है। अब नियम यह है कि अगर राहु या केतु मृत्यु के समय दशा स्वामी ग्रह बने तो राहु या केतु उस विशिष्ट कुण्डली में (जिसका अध्ययन किया जा रहा है) जिन ग्रहों का प्रतिनिधित्व करते हैं उन ग्रहों को भी दशा स्वामी के रुप में लग्न और अष्टम भावों (जिस संबंधी की भी मृत्यु का आकलन किया जा रहा हो) का प्रबल तौर पर फल देने में सक्षम हो मारक और बाधक या मारक या बाधक भावों के साथ।
कस्पल कुंडली में कोई भी ग्रह इन्वोल्वमेंट, कमिटमेंट और फाईनल कन्फर्मेशन के माध्यम से सिग्निफिकेटर बनता है। दशा स्वामी राहु द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए ग्रह सूर्य और शुक्र हैं। अब यहां सूर्य और शुक्र को भी लग्न और 8वें भाव (9वें और चैथे) का सिग्निफिकेटर बनना अनिवार्य है। मारक तथा बाधक (3,10,7) भावों के सहयोग से दशा स्वामी सूर्य, चन्द्र के नक्षत्र में, राहु के सब और केतु के सब सब में है यानि कि चन्द्र इन्वोल्वमेंट करेगा, राहु कमिटमेंट और केतु को फाईनल कन्फर्मेशन करना है। सूर्य 15: 44 ः 39 बजे पर 9वें, चैथे, तीसरे, 7वें और 10वें भावों के फल प्रदान करने में सक्षम हो जाता है यानि कि सूर्य इस जातक के पिता को मृत्यु देने में सक्षम है। अब हम दशा स्वामी राहु द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए दूसरे ग्रह शुक्र का भी ठीक उसी प्रकार अध्ययन करेंगे जिस प्रकार हमने राहु और सूर्य का अध्ययन किया (शुक्र -.झ चन्द्र - सूर्य - मंगल)। शुक्र, चन्द्र के नक्षत्र, सूर्य के सब और मंगल के सब सब में है। 15: 44: 39 बजे पर न तो सूर्य और न ही चन्द्र 9वें कस्प में प्रकट हो रहा है। इसलिए शुक्र लग्न और 8वें भाव (9वें और चैथे) का फल प्रदान करने में सक्षम नहीं है इसलिए अब हमारा ध्यान 9वीं कस्पल पोजीशन पर केन्द्रित होना चाहिए क्योंकि जब तक सूर्य या चन्द्र 9वें कस्प में प्रकट नहीं होंगे तब तक शुक्र ग्रह लग्न और 8वें भाव (9वें और चैथे पिता की मृत्यु के लिए) का फल देने में सक्षम नहीं होगा।
हमने कस्प सेटिंग टूल को खोला, 9वां भाव सेलेक्ट किया, तीन पोजीशन पीछे की ओर गए और 15:42: 50 बजे 9वें भाव / कस्प में चन्द्र सब सब लाॅर्ड के रुप में मिल गया। हमने अडोप्ट ;।कवचजद्ध का बटन दबा दिया। इस समय पर लग्न का सब सब लाॅर्ड भी बदल गया जो मंगल के स्थान पर शुक्र प्रकट हुआ जिसे हम लग्न के सब सब लाॅर्ड के रुप में रख सकते हैं क्योंकि शुक्र का संबंध इस जातक के मून स्टार के साथ स्थापित होता है। 5वें भाव का सब सब लाॅर्ड राहु तथा 7वें भाव का सब सब लाॅर्ड शनि के रुप में प्रकट हुए तथा राहु तथा शनि का संबंध भी इस जातक के पहले और दूसरे बच्चे के मून स्टार के साथ स्थापित हो रहा है तथा इस प्रकार लगे हाथ आप जेनेटिकल कनेक्शन भी स्थापित कर सकते हैं। परन्तु 15: 42: 50 बजे चैथे भाव (यानि कि पिता के लिए 8वें) का ससल बुध के रुप में प्रकट हुआ। बुध को हम चैथे भाव के ससल के रुप में नहीं रख सकते क्योंकि दशा स्वामी राहु का चैथे भाव के ससल से संबंध स्थापित नहीं होता। अब हमें चैथे भाव के सब सब लाॅर्ड के रुप में कोई ऐसा ग्रह रखना अनिवार्य होगा जिसका संबंध दशा स्वामी राहु (पिता की मृत्यु के समय जातक की कुण्डली में) के साथ स्थापित होना भी अनिवार्य है।
हमारा ध्यान अब चैथी कस्पल पोजीशन पर केन्द्रित करना होगा। हमने फिर कस्प सेटिंग टूल खोला चैथा बटन दबाया और दो पोजीशन पीछे जा कर चैथे भाव के ससल को गुरु रख दिया क्योंकि गुरु का संबंध दशा स्वामी राहु से बन रहा है और इस पोजीशन यानि कि 15: 42: 22 बजे पर दशा स्वामी राहु और इसके प्रतिनिधि ग्रह सूर्य और शुक्र इस जातक के पिता को मृत्यु देने में पूर्ण रुप से सक्षम हो जाते हैं। 15: 42: 22 बजे लग्न का ससल शुक्र से हटकर बुध प्रकट हुआ तथा बुध का संबंध भी इस जातक के मून स्टार सूर्य से बनता है क्यांेकि बुध राहु के सब में है। अगर बुध राहु के सब में है तो बुध सूर्य के सब में भी है। इस समय यानि कि 15: 42 ः 22 बजे लग्न की आर्क (चाप) 85. 27 प्रतिशत है जो कि 50 प्रतिशत से कम होनी चाहिए। अगर इस कुण्डली का समय 15: 42: 05 बजे कर देते हैं तो लग्न की आर्क (चाप) 48.91 प्रतिशत पर प्रकट होती है क्योंकि यह जातक पुरुष है और लग्न पर कुंभ राशि (पुरुष राशि) उदय हो रही है। इसलिए लग्न की आर्क (चाप) को 50 प्रतिशत से कम रखना होगा। 15 ः 42: 05 बजे समय पर जातक के पिता की मृत्यु के समय दशा स्वामी ग्रह राहु बहुत ही प्रबल तौर पर मृत्यु देने वाले भावों (9, 4, 3, 7, 10) का स्ट्राँग सिग्निफिकेटर बनता है।
गोचर में शनि वृश्चिक राशि में गोचर कर रहा था जिसका स्वामी मंगल 7वें भाव (बाधक) में बैठा है और चैथे भाव के सब सब लाॅर्ड (पिता के लिए 8वां) के साथ संबंध भी स्थापित करता है और मंगल पिता को मृत्यु देने वाले भावों का सिग्निफिकेटर भी बनता है। पिता की मृत्यु वाले दिन चन्द्र गोचर में शनि के नक्षत्र में गोचर कर रहा था तथा नियम है कि चन्द्र नक्षत्र (मृत्यु देने वाले दिन का) का भी 8वें (चैथे इस केस में) या बाधक (7वें इस केस में) भाव के सब सब लाॅर्ड से संबंध स्थापित हो और वह नक्षत्र स्वामी मृत्यु देने में सक्षम भी हो और इस रेक्टिफाईड समय यानि कि 15: 42 ः 05 बजे की बनाई कुंडली में सभी प्रकार की लिंकेज स्थापित हो रही हैं। इस शुद्ध किए गए जन्म समय यानि कि 15: 42: 05 बजे पर 5वें भाव का सब सब लाॅर्ड मंगल बना जिसका संबंध इस जातक के पहले बच्चे के मून स्टार शनि के साथ स्थापित हो रहा है। 5वें कस्प की आर्क भी 50 प्रतिशत से कम है। 5वें कस्प पर पुरुष राशि उदय हो रही है और आर्क का 50 प्रतिशत से कम होना इस जातक के पहले बच्चे का सेक्स पुरुष बतलाता है। 7वें कस्प का सब सब लाॅर्ड राहु है तथा दूसरे बच्चे का मून स्टार चन्द्र है। राहु और चन्द्र में भी संबंध स्थापित होता है।
जातक के पिता की मृत्यु के समय इस जातक की राहु-शुक्र-शनि-गुरु-चन्द्र की दशा चल रही थी और गोचर में शनि त्रत्रझ मंगल-शनि-शनि-शुक्र, गुरु त्रत्रझ सूर्य-केतु-राहु-बुध, सूर्य त्रत्रझ चन्द्र-बुध-गुरु-बुध और चन्द्र त्रत्रझ चन्द ्र-शनि-शनि-ब ुध गोचर कर रहे थे। ये ऊपरलिखित सभी ग्रह जातक के पिता को मृत्यु देने में सक्षम तथा कस्पल इंटरलिंक ज्योतिष के सभी नियम यहां लागू भी होते हैं। जातक के विवाह के समय यानि कि 26.11.2007 को जातक की दशा, राहु-शनि-शुक्र-सूर्य-केतु की चल रही थी और गोचर में गुरु त्रत्रझ गुरु-केतु-शुक्र-शुक्र, सूर्य त्रत्रझमंगल -शनि-शुक्र-बुध और चन्द्र त्रत्रझ बुध-राहु-राहु-शुक्र में गोचर कर रहे थे। जैसा कि नियम है विवाह के लिए दशा स्वामी का कम से कम न्यूट्रल होना अनिवार्य है तथा भुक्ति स्वामी ग्रह को 7वें भाव का स्ट्राँग सिग्निफिकेटर बनना है, अंतरा, सूक्ष्मा, प्राण दशा आदि भी प्रासंगिक भावों का फल प्रदान करने में सक्षम हो और इस रेक्टिफाईड समय की कुण्डली में ये सभी ग्रह जातक को विवाह देने में सक्षम हैं। इस जातक के पहले बच्चे ने 08. 11.2009 को जन्म लिया।
उस समय जातक की राहु-बुध-बुध-राहु -शनि की दशा चल रही थी तथा गोचर में गुरु त्रत्रझ शनि -मंगल -राहु-राहु सूर्य त्रत्रझशुक्र-गुरु-शनि-शनि तथा चन्द्र त्रत्रझ चन्द्र-शनि-शनि-बुध में गोचर कर रहे थे तथा ये ऊपरलिखित सभी ग्रह भी इस जन्म के लिए 2, 5, 11 भावों का फल प्रदान करते हैं। इस जातक के दूसरे बच्चे का जन्म 15.01.2012 को हुआ। उस समय जातक की राहु-बुध-शनि-चन्द्र-शुक्र की दशा चल रही थी। गोचर में गुरु त्रत्रझ मंगल-केतु-राहु-शुक्र, सूर्य त्रत्रझ शनि-सूर्य-राहु-केतु तथा चन्द्र त्रत्रझबुध-चन्द्र-शनि-शनि में गोचर कर रहे थे तथा ये सभी ग्रह भी 2, 7, 11 का फल प्रदान करने में सक्षम हैं। अंत में हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि जातक का जन्म समय 15: 45 बजे न होकर, जातक का जन्म समय 15: 42: 05 बजे है। हमने जातक के जीवन काल में होने वाली प्रमुख घटनाओं जैसे कि पिता की मृत्यु, स्वयं का विवाह, संतान का जन्म इत्यादि को लागू किया तथा एक ऐसे बिन्दु पर पहुंचे जहां हमें ये सारी घटनायें जातक की कुण्डली में समर्थन कर रही हैं। हमने इस लेख के माध्यम से बहुत ही सटीक ढंग से इवेंट की किस प्रकार सहायता लेकर कुण्डली के समय को करेक्ट किया जाय, समझाने का प्रयत्न किया गया है।