भारतीय संस्कृति में भोजन बनाने का
स्थान शुद्ध होना तथा भोजन बनाने
वालों का मन पाप रहित शुद्ध व शांत
होना चाहिए। इसीलिए कहा गया है
कि ‘‘जैसा खाये अन्न वैसा होवे मन’’
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो
भोजन कीटाणु व जीवाणु रहित
पौष्टिक तथा संतुलित होना चाहिए
जिससे व्यक्ति को भरपूर ऊर्जा प्राप्त
हो। यह तभी संभव है जब भोजन
बनाने वाला स्वयं शुद्धि का ध्यान रखे।
भारतीय गृहिणी के परिप्रेक्ष्य में देखें तो
प्रत्येक भारतीय गृहिणी अपना
अधिकतम समय रसोई में बिताती है।
अतः रसोईघर को बनाते समय यह
ध्यान रखें कि यह हवादार, रोशनी
युक्त (सूर्य की) तथा धुआं रहित हो।
वास्तु शास्त्रानुसार किसी भी भवन के
या प्लाॅट के आग्नेय कोण (पूर्व व दक्षिण
के बीच की दिशा) में ही रसोईघर का
निर्माण किया जाना चाहिए जो गृह
स्वामी के लिये शुभकारी होता है। यदि
किन्हीं कारणों से इस दिशा में बनाना
संभव नहीं होता तो वायव्य कोण (उत्तर
व पश्चिम के बीच दिशा) में बनाना
चाहिए अन्य किसी भी दिशा में नहीं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो पृथ्वी
सूर्य की परिक्रमा करती है तो सूर्य का प्रकाश दिन भर में अधिक समय तक
आग्नेय कोण पर पड़ता है जिससे
रसोईघर में उपयुक्त ताप (गर्मी) से
हानिकारक जीवाणु नष्ट होते रहते
हैं। आधुनिक युग में रसोई घर
विभिन्न उपकरणों से सुसज्जित बनाई
जाती है अतः निम्न बातों का ध्यान
रखना चाहिए:
1. काउन्टर पूर्वी दीवार के सहारे
बनाना चाहिए।
2. खाना बनाने वाले का मुंह पूर्व
दिशा में होना चाहिए।
3. गैस टंकी व चूल्हा रसोई घर के
आग्नेय कोण में होना चाहिए।
प्रकाश दिन भर में अधिक समय तक
आग्नेय कोण पर पड़ता है जिससे
रसोईघर में उपयुक्त ताप (गर्मी) से
हानिकारक जीवाणु नष्ट होते रहते
हैं। आधुनिक युग में रसोई घर
विभिन्न उपकरणों से सुसज्जित बनाई
जाती है अतः निम्न बातों का ध्यान
रखना चाहिए:
1. काउन्टर पूर्वी दीवार के सहारे
बनाना चाहिए।
2. खाना बनाने वाले का मुंह पूर्व
दिशा में होना चाहिए।
3. गैस टंकी व चूल्हा रसोई घर के
आग्नेय कोण में होना चाहिए।