अपने घर को बनाएं वास्तु सम्मत

अपने घर को बनाएं वास्तु सम्मत  

जय इंदर मलिक
व्यूस : 4304 | दिसम्बर 2016

वर्तमान समय में सामान्य जन अपनी मध्यम आर्थिक स्थिति के कारण तथा छोटे परिवार के कारण छोटे भूखंड पर भवन बनाते हैं। ऐसे में सभी प्रकार के कक्ष बनाना संभव नहीं हो पाता। लेकिन जो कक्ष मुख्य रूप से बनाए जाते हैं उसमें 8 या 9 कक्ष होते हैं।

इस लेख में ऐसे कक्ष किस दिशा में होने चाहिए जिससे मकान वास्तु सम्मत बने और उसमें रहने वाले लोग खुशहाल जिंदगी जी सकें इसका वर्णन किया गया है। जो लोग अपना मकान बनाना चाहते हैं उनके लिए यह जानकारी काफी महत्वपूर्ण है।

1. पूजा घर :

1. पूजा घर ईशान कोण में बनाना चाहिये। प्रातःकालीन सूर्य की पवित्र रश्मियां इस भाग को पवित्र और शुद्ध बनाती हैं। दक्षिण दिशा में पूजा घर न बनायें। पूजा करते समय कक्ष के उत्तर या पूर्वी भाग में उत्तर या पूर्व की ओर मुंह करके बैठना चाहिये। इससे घर में धन-धान्य समृद्धि और सद्ज्ञान की वृद्धि होती है।

2. पूजा के लिये भगवान की मूर्तियां या तस्वीरंे उत्तर या पूर्व की ओर दीवार के निकट रखनी चाहिये। इनका मुख उत्तर की ओर नहीं होना चाहिये। खंडित मूर्तियां या कटी-फटी तस्वीरंे पूजा घर में नहीं रखनी चाहिये।

3. पूजा घर के आस-पास ऊपर या नीचे शौचालय नहीं होना चाहिये। दीवारों पर सफेद, हल्का पीला या आसमानी रंग कराना चाहिये।

4. इसके द्वार पर यदि हो सके तो दहलीज अवश्य बनवायें। दरवाजे दो पल्ले वाले होने चाहिये।

5. पूजा घर के निकट आंगन या खुली छत पर तुलसी का पौधा रखना चाहिये। दीपक दक्षिण-पूर्वी कोने में रखना चाहिये। हवन भी आग्नेय कोण में करना चाहिए।

2. स्नान घर :

1. स्नान घर पूर्व दिशा में बनाना चाहिये। इसका कारण यह है कि प्रातःकाल स्नान करते समय खुले बदन पर सूर्य की रश्मियां पडे़ंगी तो उनका संपूर्ण लाभ शरीर को मिलेगा। यह स्वास्थ्य के लिये उत्तम है। स्नान घर में पानी का बहाव उत्तर या पूर्व या ईशान कोण की ओर होना चाहिए।

2. सूर्य की किरणांे को आने के लिये रोशनदान या खिड़कियां पूर्व दिशा में रखनी चाहिये। स्नान घर का द्वार दक्षिण की ओर नहीं होना चाहिए।

3. यदि मुख्य घर के बाहर अहाते में स्नानघर बनाना हो तो पूर्व या उत्तर में होना लाभदायक होता है। इसका कमरा इस प्रकार बनायें कि मुख्य भवन की दीवार को न छुए।

4. स्नानघर की दीवारांे और टाईल्स का रंग सफेद या हल्का आसमानी या हल्का नीला होना चाहिये।

5. गर्म पानी के लिये गीजर या हीटर आदि लगाने हों तो इन्हें स्नान घर के आग्नेय कोण में लगायें। नल, फुहारा व वाश बेसिन ईशान कोण में लगवायें। दर्पण दक्षिण की दीवार पर न लगायंे। धोने के लिये कपडे़ पश्चिम मंे रखें।

6. यदि अटैच्ड शौचालय बनायें तो शौच-कुंडी स्नानघर के वायव्य कोने में लगायें। इसका तल स्नानघर के फर्श से थोड़ा ऊंचा रखें ताकि इसपर से पानी स्नानघर के फर्श पर न जाये। पानी के निकास की नाली उत्तर या पूर्व की ओर रखनी चाहिये। यह दक्षिण या आग्नेय या नैर्ऋत्य की तरफ नहीं होना चाहिये।

3. रसोई घर :

1. रसोई घर के लिये सर्वोत्तम स्थान आग्नेय कोण है क्योंकि रसोईघर में अग्नि का उपयोग होता है और अग्नि देव का अधिकार आग्नेय कोण पर है। चूल्हा, गैस, बर्नर, स्टोव रसोई घर में आग्नेय कोण में रखा जाना चाहिये। इसलिये स्लैब पूर्वी दीवार के सहारे इस प्रकार लगाएं कि यह पूर्वी व दक्षिणी दीवार को छूए नहीं इससे दो इंच दूर रहे।

2. भोजन पकाते समय गृहिणी का मुंह पूर्व की ओर रहे तो बहुत शुभ होता है परन्तु ईशान की ओर देखते हुये भोजन नहीं पकाना चाहिए। इससे मानसिक तनाव और भारी हानि हो सकती है। पश्चिम की ओर देखते हुए भोजन पका सकते हैं।

3. यदि रसोई घर वायव्य कोण में है तो परिवार में भोजन संबंधी व्यय अनावश्यक रूप से बढ़ जाता है। उत्तर में रसोई घर होने से निरंतर मेहमानों का आवागमन होता रहता है, आर्थिक हानि होती है तथा अग्नि दुर्घटनाओं का डर बना रहता है।

4. ईशान या नैर्ऋत्य कोण में रसोई घर बनाने से बहुत ही कष्ट व हानि होती है। अग्नि दुर्घटनाओं का भय तथा जन-धन की हानि हो सकती है।

5. पेय-जल का भंडारण या वाश-बेसिन उत्तर या ईशान कोण में ही रखें।

4. शयन कक्ष :

1. भवन में मुख्य शयन कक्ष दक्षिण-पश्चिम में स्थित होना चाहिये और यह गृह-स्वामी के लिये होना चाहिये।

2. युवा विवाहित दंपत्ति के लिये शयन कक्ष का उचित स्थान उत्तर या वायव्य कोण में होना चाहिये। अविवाहित छोटे सदस्यों के लिये विशेषकर बालिकाओं के लिये शयन कक्ष वायव्य कोण में शुभ रहता है। अतिथियों के लिये भी वायव्य कोण उत्तम रहता है।

3. शयन कक्ष में सोते समय व्यक्ति को सिरहाना दक्षिण या पूर्व में रखना चाहिये। उत्तर की ओर सिरहाना रखकर नहीं सोना चाहिये।

4. शयन कक्ष ईशान कोण में हो तो गृह स्वामी को आर्थिक हानि होती है तथा सभी कामों में बाधा आती है। कन्या के विवाह में देरी होने से प्रगति में बाधायंे आती हैं। आग्नेय कोण में भी शयन कक्ष का होना अशुभ माना गया है। इससे पति-पत्नी में कलह, निद्रा का अभाव, चिंताएं, अग्नि भय आदि रहती हैं।

5. परिवार के मुखिया का शयन कक्ष उसके पुत्र-पुत्रियांे से बड़ा होना चाहिये। विपरीत होने पर संतान पिता की आज्ञाकारी नहीं रहेगी। यदि शयन कक्ष के साथ शौचालय-स्नान घर अटैच हो तो यह उत्तर या पश्चिम भाग में लाभकारी होता है।

6. शयन कक्ष के द्वार दक्षिण की ओर नहीं खुलने चाहिये। शयन कक्ष का नैर्ऋत्य कोण कभी खाली नहीं होना चाहिये। वहां फर्नीचर अलमारी आदि रख देनी चाहिये।

7. शयन कक्ष में अन्य सामान जैसे टी. वी., हीटर या अन्य विद्युत उपकरण आग्नेय कोण में, वस्तुओं के लिये अलमारी नैर्ऋत्य या वायव्य भाग में, ड्रेसिंग टेबल उत्तर या पूर्व भाग में, लिखने पढ़ने के लिये मेज पश्चिम में रखनी चाहिए।

5. कोषागार :

1. नकद धन और बहुमूल्य वस्तुएं उत्तर दिशा में रखनी चाहिये क्योंकि उत्तर दिशा का स्वामी कुबेर है। इस कक्ष का एक द्वार पूर्व या उत्तर की दीवार में रखना चाहिये। दक्षिण-आग्नेय- वायव्य या नैर्ऋत्य में द्वार नहीं रखना चाहिये। बहुमूल्य रखी हुई वस्तुआंे का द्वार उत्तर की ओर खुले। अलमारी या तिजोरी को ईशान कोण वाले क्षेत्र में नहीं रखना चाहिए। इससे धन का नाश होता है। सेफ में बरतन, कपड़े आदि रखने हांे तो नीचे के खाने में रखें।

2. सेफ के ऊपर सूटकेस या अन्य भारी वस्तुएं नहीं रखनी चाहिए। इस कक्ष में अलमारी आदि में मकड़ी का जाला नहीं बनने देना चाहिये, इससे दरिद्रता आती है। कक्ष की दीवारों पर पीला रंग शुभ होता है।

3. उत्तरी या पूर्वी दीवार में ऊंचाई पर एक छोटी खिडकी हो तो शुभ होता है।

6. अन्न भंडार:

भण्डार कक्ष का द्वार नैर्ऋत्य कोण में नहीं होना चाहिये अन्य किसी भी दिशा में रख सकते हैं। खिड़की या रोशनदान पूर्व या पश्चिम की ओर रख सकते हैं। प्रतिदिन काम में आने वाला सामान वायव्य कोने में रखें। आग्नेय कोने में ईंधन, गैस सिलेंडर आदि रखना चाहिए। खाली डिब्बे, मटके आदि इस कक्ष में रखना अशुभ होता है। मकड़ी का जाला आदि नहीं लगने देना चाहिये।

7. भोजन कक्ष :

1. भोजन कक्ष पूर्व या पश्चिम दिशा में हो। यदि रसोई घर वायव्य कोण में है तो भोजन कक्ष रसोईघर के उत्तरी या पश्चिमी दिशा में बनायें। भोजन कक्ष का द्वार पूर्व या उत्तर में होना चाहिये।

2. भोजन करने के लिये प्रमुख सदस्यों को पूर्व की ओर मुंह करके बैठना चाहिये। उत्तर या पश्चिम की ओर देखते हुये अन्य सदस्य बैठ सकते हैं। दक्षिण की ओर मुंह करके नहीं बैठना चाहिए। भोजन कक्ष में डाइनिंग टेबल आयताकार या वर्गाकार हो, गोल या अंडाकार टेबल नहीं होनी चाहिये।

3. पीने के पानी की व्यवस्था का कक्ष ईशान कोण में हो। फ्रिज आदि यदि रखना हो तो आग्नेय कोण में रखंे। वाश-बेसिन उत्तर या पूर्व की ओर लगायें।

8. अध्ययन कक्ष :

1. पश्चिम दिशा और नैर्ऋत्य कोण के बीच का भाग अध्ययन कक्ष के लिये सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यह क्षेत्र बृहस्पति, शुक्र, बुध ग्रहों तथा चन्द्रमा के प्रभाव क्षेत्रों में होता है। बुध बुद्धि प्रदान करने वाला तथा बृहस्पति ज्ञान बढ़ा कर विद्या देने वाला होता है। शुक्र व्यक्ति को अध्यवसायी बनाता है तथा चंद्रमा की शीतलता मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करने वाली होती है। इन देवताओं के प्रभाव से अध्ययन करने में सफलता मिलती है।

2. अध्ययन करते समय पूर्व या उत्तर की ओर मुंह करके बैठना चाहिये। पुस्तकों की अलमारी पूर्व या उत्तर की दीवार में रखनी चाहिए। आग्नेय या नैर्ऋत्य कोण में पुस्तकों की अलमारी नहीं रखनी चाहिये।

3. अध्ययन कक्ष की दीवारों, फर्नीचर, कपाट, परदों आदि का रंग हल्का नीला, हरा, बादामी या सफेद होना चाहिये। इन रंगों से आध्यात्मिक व मानसिक शांति मिलती है, नेत्र व मस्तिष्क को शीतलता भी मिलती है।

4. अध्ययन कक्ष में सोने का बिस्तर नैर्ऋत्य कोण में होना चाहिये। सोते समय सिर दक्षिण में हो तो अति उत्तम होता है। बच्चों के कमरे का द्वार कभी भी सीढ़ियांे के या शौचालय के सम्मुख न हो।

5. इस कक्ष के ईशान कोण पर पूर्व की ओर अपने इष्ट देव का चित्र रखना शुभ होता है।

9. शौचालय :

1. शौचालय का सबसे उत्तम स्थान वायव्य कोण होता है।

2. शौचालय पश्चिम या उत्तर दिशा में भी बनाया जा सकता है परंतु ईशान, आग्नेय या भवन के मध्य भाग में कभी न बनायें।

3. शौचालय में सीट/कमोड की स्थापना उत्तर-दक्षिण अक्ष पर इस प्रकार हो कि बैठने वाले का मुंह उत्तर या दक्षिण की ओर रहे।

4. शौचालय का द्वार उत्तर या पूर्व में होना चाहिये। शौचालय के पानी का नल आग्नेय या नैर्ऋत्य कोण में न हो। फर्श की ढलान इस प्रकार हो कि पानी ईशान या उत्तर या पूर्व की ओर बहकर जाये। शौचालय में संगमरमर का उपयोग नहीं करना चाहिए।

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