उंगलियाँ और उँगलियों के बीच दूरी का फल

उंगलियाँ और उँगलियों के बीच दूरी का फल  

जय इंदर मलिक
व्यूस : 83918 | जून 2013

उंगलियों का सीधा संबंध मस्तिष्क से होता है। यदि उंगलियों में विशेष बोझ पड़ता है तो मस्तिष्क की धमनियां भी बोझल होने लगती है। उंगलिया देख कर व्यक्ति के स्वभाव के बारे में कुछ जानकारी हो सकती है। इसके लिये उंगलियों की लंबाई, मोटापन, पतलापन टेढ़ापन ध्यान से देखने पर उसके बारे में भविष्यवाणी किया जा सकता है। उंगलियां चार प्रकार की होती हैं। 1. तर्जनी: अंगूठे के साथ वाली ऊंगली। इसका स्वामी गुरु है। 2. मध्यमा: तर्जनी के साथ वाली दूसरी ऊंगली। इसका स्वामी शनि है। 3. अनामिका: तीसरी ऊंगली, इसका स्वामी सूर्य है। 4. कनिष्ठिका: चैथी और सबसे छोटी ऊंगली। इसका स्वामी बुध है। तर्जनी अधिकतर हाथों में यह ऊंगली अनामिका से छोटी होती है। यह व्यक्ति के अहं भाव, सम्मान पाने की ईच्छा बताती है। यदि यह ऊंगली अनामिका से बड़ी हो तो व्यक्ति उत्तरदायित्व वाले पदों पर काम करने वाला होता है। अधीनस्थ कर्मचारी से कड़ाई से काम लेने वाला तथा घंमंडी होता है।


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यदि यह सामान्य से छोटी हो तो व्यक्ति में कोई महत्वाकांक्षा नहीं होती। यदि यह अनामिका से छोटी हो तो व्यक्ति चालाक होता है। यदि यह ऊंगली लंबी हो और ऊपर से नुकीली हो तो व्यक्ति अंधविश्वासी, धर्म पर आस्था रखने वाला होता है। यदि तर्जनी और मध्यमा दोनों बराबर हों तो व्यक्ति पूरे संसार में प्रसिद्धि प्राप्त करता है। यदि यह ऊंगली अनामिका से लंबी हो और वर्गाकार हो तो ऐसे व्यक्ति सच्चरित्र तथा उदार होते हैं। मध्यमा ऊंगली यह ऊंगली तर्जनी और अनामिका से बड़ी होती है। परंतु लंबाई 1/4 इंच (6 एम. एम.) से बड़ी नहीं होनी चाहिए। यदि यह 1/4 इंच से बड़ी है तो सामान्यतः ऐसे व्यक्ति का जीवन दुखमय, अभाव एवं परेशानियों से व्यतीत होता है। मध्यमा ऊंगली तर्जनी से 1/2’’ या इससे बड़ी हो तो जातक निश्चय ही हत्यारा होता है। यदि मध्यमा ऊंगली लंबी हो तो जातक रोगी एवं कामी होता है। मध्यमा ऊंगली लंबी होने के साथ-साथ यदि गांठेदार और फूली हुई हो तो व्यक्ति स्वार्थी, चिंताओं से ग्रस्त रहने वाला होता है। यदि यह पहली ऊंगली तर्जनी या तीसरी ऊंगली अनामिका के बराबर हो तो इसे छोटी मध्यमा कहते हैं।

सामान्य से छोटी मध्यमा वाले व्यक्ति में छिछोरापन होता है और सामान्य से लंबी मध्यमा ऊंगली वाला व्यक्ति सोसाइटी के मेल जोल से दूर रहता है। यदि मध्यमा ऊंगली लंबी हो और ऊदर का सिरा वर्गाकार हो तो व्यक्ति गंभीर स्वभाव वाला तथा उत्तरदायी पदों पर काम करने वाला होता है। ऐसे व्यक्ति कला के क्षेत्र में विशेष सफलता प्राप्त करते हैं। यदि मध्यमा ऊंगली लंबी तथा चपटी हो तथा मध्यमा ऊंगली के ऊपर का सिरा तर्जनी की तरफ झुका हुआ हो या मुड़ा हो तो ऐसे जातकों में जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास होता है। यदि मध्यमा ऊंगली के ऊपर का सिरा अनामिका की तरफ झुका हो तो व्यक्ति भाग्य पर भरोसा करने वाला तथा संगीत प्रेमी होता है।

अनामिका ऊंगली यह मध्यमा से छोटी तथा तर्जनी से अपेक्षाकृत लंबी होती है। तर्जनी से बड़ी होने पर ऐसा व्यक्ति उन्नति करता है तथा उसमें दया, स्नेह, प्रेम आदि गुण जरूरत से ज्यादा होते हैं। यदि यह ऊंगली सामान्य से अधिक लंबी हो अर्थात तर्जनी से अधिक लंबी हो तो व्यक्ति का दिखावा आडंबर बन जाता है और जोखिम में रस लेने की उसकी ईच्छा बढ़ जाती है। यदि यह ऊंगली मध्यमा के बराबर पहुंच जाती है तो व्यक्ति पूरे स्वार्थी होते हैं तथा अपने स्वार्थ के लिये सामने वाले का अहित करने से नहीं चूकते। ये भाग्यवादी होते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने धन का अधिकांश भाग जुआ सट्टा आदि में लगा देते हैं। यदि अनामिका का झुकाव कनिष्ठिका की ओर हो तो व्यापार में विशेष लाभ मिलता है। यदि झुकाव मध्यमा की ओर हो तो जातक चिंता ग्रस्त और आत्म केंद्रित होता है।


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वह जीवन में कुछ ऐसे कार्य कर जाता है जो समाज उसे याद रखता है। अनामिका तर्जनी के बराबर हो तो उस व्यक्ति को विशेष ख्याति की भूख बनी रहती है। यदि अनामिका ऊंगली मध्यमा के बराबर हो या उस से थोड़ी छोटी हो तो उसके जीवन में कई कार्य अचानक होते हैं और अंत में ऐसे व्यक्तियों को सफलता मिलती है। यदि अनामिका ऊंगली सीधी हो तो जातक को सम्मानित होने के योग, पारिवारिक संबंध अच्छे, लेखक, साहित्यकार आदि के रूप में प्रसिद्धि पाते हैं। कनिष्ठिका ऊंगली यह हाथ में सबसे छोटी ऊंगली होती है। यह ऊंगली व्यक्ति की वाक्पटुता और चातुर्य बताती है। यदि यह ऊंगली अनामिका के नाखून तक पहुंच जाये तो व्यक्ति जीवन में अत्यंत उच्चस्तरीय सफलता प्राप्त करता है। कनिष्ठिका ऊंगली जितनी अधिक लंबी होती है उतना ही शुभ होता है। यदि यह अनामिका के ऊपरी पोर के आधे भाग पर पहुंच जाये जो ऐसा व्यक्ति सचिव अथवा आई. ए. एस. अधिकारी तक होता है तथा जीवन का उत्तरार्द्ध सुखपूर्वक बीतता है।

यदि यह ऊंगली साधारण से छोटी हो तो इनके जीवन में संघर्ष बहुत होता है। यदि यह टेढ़ी हो तो ऐसे व्यक्ति गुप्त रहस्य ढूंढ निकालते हैं। सामान्य से छोटी कनिष्ठिका वाले व्यक्तियों में हीनता की भावना होती है और ये अपनी बात खुलकर नहीं कह पाते। यदि यह ऊंगली सीधी हो तो व्यक्ति बहुत सीधा होता है और जीवन के दौड़ में पीछे रह जाता है। और यदि यह ऊंगली बहुत अधिक छोटी हो तो व्यक्ति बात के मर्म को बहुत शीघ्र समझ लेता है तथा तुरंत निर्णय लेने में समर्थ होता है। यदि उंगलियों के आगे सिरे नुकीले हों तो व्यक्ति बुद्धिमान, सूक्ष्म दृष्टि संपन्न तथा वाक्पटु होता है। यदि आगे का भाग वर्गाकार हो तो व्यक्ति बोलने की कला में निपुण होता है। यदि आगे का भाग चपटा हो तो व्यक्ति वैज्ञानिक, मशीनरी संबंधी कार्यों में विशेष रूचि रखने वाला होता है। यदि कनिष्ठिका ऊंगली अनामिका के बराबर हो तो ऐसे व्यक्ति ऊंचे स्तर के दार्शनिक तथा बुद्धिमान होते हैं।


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कनिष्ठिका ऊंगली मध्यमा के बराबर हो तो व्यक्ति अपने कार्यों से विश्वविख्यात होता है। साहित्यकार, कथावाचक, बड़े-बड़े व्यापारी, राजनीतिज्ञों की यह ऊंगली टेढ़ी होती है। उंगलियों के बीच की दूरी तर्जनी और मध्यमा के बीच में खाली जगह हो तो जातक अपने विचारों में स्वतंत्र होता है तथा अपनी बात को कहने में नहीं हिचकचाता। मध्यमा और अनामिका के बीच खाली जगह हो तो व्यक्ति लापरवाह और असभ्य होता है। अनामिका और कनिष्ठका के बीच खाली स्थान व्यक्ति को क्रूर और हत्यारा बनाता है। उंगलियों के (पर्व) पोरो का फल 1. तर्जनी ऊंगली का पहला पोर लंबा होने पर जातक आत्म विश्वासी होता है। दूसरा पोर बड़ा होने पर व्यक्ति उच्चाभिलाषी होता है। तीसरा पर्व (पोर) बड़ा होने पर जातक घमंडी और अभिमानी होता है। 2. मध्यमा ऊंगली का पहला पर्व (पोर) बड़ा होने पर व्यक्ति आत्म हत्या करता है।

दूसरा पर्व बड़ा होने पर जातक व्यापार के क्षेत्र में मशीनों का व्यापार करता है और इसे लाभ मिलता है। तीसरा पर्व बड़ा होने पर व्यक्ति जरूरत से ज्यादा कंजूस एवं अपयश का भागी होता है। 3. अनामिका ऊंगली का पहला पर्व बड़ा होने पर जातक में कलात्मक रूचि होती है। दूसरा पर्व बड़ा होने पर जातक अपनी प्रतिभा के बल पर ऊंचाई तक पहुंचता है। अनामिका का तीसरा पर्व बड़ा होने पर (लंबा एवं चैड़ा हो) व्यक्ति राष्ट्रव्यापी सम्मान प्राप्त करता है। 4. कनिष्ठिका कनिष्ठिका ऊंगली का पहला पर्व बड़ा होने पर जातक वैज्ञानिक एवं खोजी प्रवृत्ति का होता है। दूसरा पोर बड़ा होने पर जातक परिश्रम के आधार पर व्यापारिक सफलता प्राप्त करता है। तीसरा पर्व बड़ा होने पर व्यक्ति चालाक, चतुर एवं झूठ बोलने में माहिर होता है।



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