टाॅन्सिलाइटिस

टाॅन्सिलाइटिस  

अविनाश सिंह
व्यूस : 2576 | अप्रैल 2017

आयुर्वेदिक दृष्टिकोण: हर व्यक्ति के गले में दो नर्म मांस के लिजलिजे टुकड़े होते हैं, जो श्लेष्मा झिल्ली से जुड़े होते हैं। इनके द्वारा नासिका का भ्रमण होता है जो रक्तधारा से जीवाणुओं और गंदगी को दूर करने में मदद करता है। गले का टाॅन्सिल वाला भाग जब जीवाणु या विषाणु के कारण दूषित हो जाता है, तो उसे टाॅन्सिलाइटिस कहते हैं। इसमें ग्रसनी लसिका के ढांचे में सूजन आ जाती है। साथ ही लसिका ग्रंथि और उसके आसपास का क्षेत्र भी सूजकर लाल हो जाता है।

टाॅन्सिल एक तरह का पहरेदार है जो मुंह और नाक द्वारा शरीर के अंदर जाने वाले नुकसानदायक पदार्थों से बचाता है। जब शरीर के अंदर कोई गलत चीज जाती है, तो यह पहरेदार सारा नुकसान अपने ऊपर ले लेता है अर्थात टाॅन्सिल सूज जाता है। टाॅन्सिल की इस सूजी अवस्था को टाॅन्सिलाइटिस कहते हैं। टाॅन्सिलाइटिस हो जाने पर अक्सर डाॅक्टर शल्य चिकित्सा द्वारा टाॅन्सिल बाहर निकाल देते हैं जो गलत है। आधुनिक अनुसंधानों से मालूम हुआ है कि टाॅन्सिल को निकाल देने से व्यक्ति के शरीर की रोग-प्रतिरोधक शक्ति समाप्त हो जाती है, जिससे मनचाही वस्तु शरीर में प्रवेश कर शरीर को हानि पहुंचा कर कई प्रकार की समस्याएं एवं रोग उत्पन्न कर सकते हैं।

टाॅन्सिल एक अंतःस्रावी ग्रंथि है, जो अणु ग्रंथि की विरोधी है। अतः जब टाॅन्सिल को निकाल दिया जाता है, तो थायराॅइड बहुत बढ़ जाता है क्योंकि थायराॅइड पीयूष ग्रंथि का विरोधी है, इसलिए पीयूष ग्रंथि का कार्य बिगड़ जाता है। अतः कई बार बढ़ते बच्चों की याददाश्त खराब हो जाती है। टाॅन्सिल के किसी भी मरीज को ठीक करने का अर्थ है उनके शरीर में प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करना, जिससे वह शरीर के हानिकारक, सूक्ष्म जीवों से लड़ सके। जब शरीर की प्रतिरक्षा पद्धति भंग होती है, तब जीवाणु हमारे शरीर मंे प्रविष्ट होते हैं, जो पहले टाॅन्सिल और बाद में पूरे शरीर को हानि पहुंचाते हैं।

घरेलू उपचार -आंवले का चूर्ण गाय के दूध के साथ लें।

- फूली-फिटकरी और नमक गर्म पानी में डालकर दिन में दो-तीन बार गरारे करें।

- सोंठ, काली मिर्च, पीपल, हरड़, बहेड़ा, आंवला और जवारवाट, इन सबका चूर्ण बनाकर थोड़ा-थोड़ा, मंुह में डालते रहें।

- हल्दी, सेंधा नमक, वायडिंग तीनांे वस्तुओं को छः-छः ग्राम लें और 300 ग्राम पानी में पांच मिनट घोलें। फिर कपड़े से छान कर गर्म पानी से नित्य दो बार गरारे करें। रात में सोते समय अवश्य करें। एक सप्ताह में ही रोग जाता रहता है।

-अडूसे के पत्तों का काढ़ा शहद के साथ पीएं।

- गोरखमुंडी की जड़ पान में रखकर खाएं।

- गाजर का रस प्रतिदिन दिन में एक बार दो चम्मच, तीन माह तक पीएं।

- बच, अजवायन, मालकांगनी, कुलंजन, हरड़ की गिरी, सेंधा नमक इन सबका चूर्ण बनाकर सुबह शाम शहद में मिलाकर सेवन करें।

- अकरकरा, कुलजन और मुलेठी के टुकड़े, सुपारी की तरह मुंह में रखने से टाॅन्सिल में आराम मिलता है।


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ज्योतिषीय दृष्टिकोण ज्योतिषीय दृष्टि से जन्म कुंडली में तृतीय भाव से गले का विचार किया जाता है। तृतीय भाव का कारक ग्रह मंगल है। मंगल को ग्रह मंत्रिमंडल में सेनापति माना गया है और सेनापति का कार्य सुरक्षा करना है। टाॅन्सिल भी एक तरह का सुरक्षा प्रहरी है, जो हमें नुकसान पहुंचाने वाले विषाणुओं से बचाता है। इसलिए टाॅन्सिल का कारक ग्रह मंगल है। कंुडली में तृतीय भाव, मंगल, तृतीयेश और लग्नेश जब दूषित प्रभावों में रहते हंै, तो टाॅन्सिल रोग या गले से संबंधित रोग होता है। विभिन्न लग्नों में टाॅन्सिल रोग: मेष लग्न: शनि लग्न या षष्ठ भाव में, बुध तृतीय भाव में, राहु से दृष्ट हो और लग्नेश मंगल षष्ठ या अष्टम भाव में हो, तो टाॅन्सिल रोग होता है।

वृष लग्न: तृतीयेश षष्ठ भाव में, लग्नेश धनु या मीन राशि में, गुरु तृतीय, नवम या एकादश भाव में और मंगल राहु से दृष्ट या युक्त होकर कहीं भी हो तो टाॅन्सिल हो सकती है। मिथुन लग्न: मंगल तृतीय भाव में, सूर्य षष्ठ भाव में लग्नेश से युक्त और राहु-केतु से दृष्ट हो और गुरु नवम या एकादश भाव में हो तो टाॅन्सिल होता है। कर्क लग्न: मंगल-शनि से युक्त केंद्र में हो, बुध षष्ठ भाव में हो, चंद्र वृश्चिक में राहु-केतु से दृष्ट हो, गुरु तृतीय भाव में हो तो बालक को टाॅन्सिल हो जाता है। सिंह लग्न: शुक्र-शनि षष्ठ भाव में, बुध तृतीय भाव में, मंगल अष्टम भाव में राहु से युक्त, सूर्य द्वितीय भाव या चतुर्थ भाव में हो तो टाॅन्सिल जैसा रोग हो सकता है।

कन्या लग्न: गुरु तृतीय भाव में मंगल से युक्त या दृष्ट हो, बुध अस्त होकर षष्ठ भाव में हो और राहु-केतु से दृष्ट हो तो टाॅन्सिल हो सकते हैं। तुला लग्न: गुरु तृतीय भाव में राहु या केतु से दृष्ट या युक्त हो, मंगल अष्टम, नवम या द्वादश भाव में शनि से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को टाॅन्सिल रोग हो सकता है। वृश्चिक लग्न: मंगल षष्ठ या अष्टम भाव में राहु-केतु से दृष्ट या युक्त हो, बुध तृतीय भाव में हो, चंद्र शनि से युक्त या दृष्ट हो तो टाॅन्सिल दे सकता है। धनु लग्न: शुक्र तृतीय भाव में और गुरु नवम भाव में हो और राहु-केतु से युक्त हो, मंगल अष्टम या द्वादश भाव में शनि से युक्त या दृष्ट हो तो टाॅन्सिल रोग होता है।

मकर लग्न: तृतीय भाव में मंगल राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो, गुरु तृतीय भाव में दृष्टि दे, शनि षष्ठ या अष्टम भाव में चंद्र से युक्त या दृष्ट हो तो बालक को टाॅन्सिल होता है। कुंभ लग्न: मंगल द्वादश भाव में राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो, गुरु तृतीय भाव में हो, शनि षष्ठ या अष्टम भाव में अस्त हो तो जातक को टाॅन्सिल होता है। मीन लग्न: शुक्र नवम भाव में राहु-केतु से युक्त हो, गुरु षष्ठ या अष्टम भाव में हो, मंगल, शनि से युक्त या दृष्ट अष्टम या द्वादश भाव में हो तो जातक को टाॅन्सिल हो सकता है।

नोट: रोग की उत्पत्ति संबंधित ग्रहों की दशा-अंतर्दशा और गोचर के प्रतिकूल रहने से होती है। जब तक दशा-अंतर्दशा प्रतिकूल रहती है तब तक जातक को रोग देंगे। उसके उपरांत रोगी स्वस्थ हो जाएगा।


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