दंत रोग

दंत रोग  

अविनाश सिंह
व्यूस : 6818 | मार्च 2016

मानव शरीर के सौंदर्य एवं आकर्षण को चार चांद लगाने में जहां बाल, आंख, नाक, हांेठ विशेष महत्व रखते हैं वहीं मुस्कान में चार-चांद लगाते हैं हमारे दांत। दांत सुंदर, सफेद मोतियों की तरह लड़ीबद्ध हों, तो व्यक्तित्व में और आकर्षण पैदा करते हैं। खाने के लिए दांतों की भूमिका से सभी परिचित हैं। साहित्यकारों ने भी दांतों के महत्व को समझते हुए इन पर बहुत कुछ लिखा है। दांतों की तारीफ में किसी ने ठीक कहा है कि ‘‘दांत गये स्वाद गया’’ अर्थात दांतों के माध्यम से ही भोजन का पूर्ण आनंद लिया जा सकता है। दांत जीवन भर साथ दें, इसलिए प्रतिदिन दांतों की भली-भांति देखभाल आवश्यक है ताकि दांत मजबूत रहें और आपका साथ न छोडं़े। आयु अनुसार दांत दो तरह के होते हैं।


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दुग्ध दांत: ये अस्थाई दांत गिनती में बीस-दस ऊपर के जबड़े में और दस नीचे के जबड़े में और जबड़े के दायें और बायें पांच-पांच दांत होते हैं जिनमें से छेदक, एक खदंत, दो चवर्ण दंत होते हैं। जन्म के बाद सात मास के बाद पहला दांत निकलता है और दो वर्ष की आयु तक सभी दुग्ध दांत निकल आते हैं।

पक्के दांत: ये गिनती में बत्तीस होते हैं। ये स्थायी दांत सोलह ऊपर और सोलह निचले जबड़े में होते हैं। दोनों जबड़ो के दायें-बायें, आठ-आठ दांत होते हैं जिनके दो छेदक, एक खदंत, दो पूर्व चर्वण तीन चर्वण हैं। बारह वर्ष की आयु तक सभी पक्के दांत निकल आते हैं। किंतु तीसरा चर्वण दांत सत्रह से पच्चीस वर्ष की आयु में निकलता है। दांत की मुख्य तीन परतंे होती हैं:

दंत वलक: यह दांत का बाहरी भाग है, जो मानव शरीर का सबसे ठोस और सख्त पदार्थ है और भोजन चबाने में सहायक होता है।

दंत धातु: यह दंत वलक के नीचे की परत है जिसमें हड्डीनुमा तत्व होता है।

दंत रक्त शिराएं: ये दंत धातु के नीचे होती हंै। इनमें रक्त शिराएं और स्नायु तंत्र का जाल होता है, जो दांतों में दर्द या ठंडे-गर्म की अनुभूति करवाता है। दांतों की जडं़े मसूड़ांे में होती है, जो दांतों को मजबूती से जकड़े रखते हैं तथा हिलने-डुलने नहीं देते।

दांतों के रोग: दांतों के रोगों का मुख्य कारण दांतों की सफाई का अभाव है। दांतों की भली-भांति सफाई और देखभाल होती रहे, तो दांतों में भोजन के कण जमा नहीं होते और दंत रोग नहीं होते। सफाई न होने से दांतों में सड़न पैदा होती है जिससे कीटाणु पैदा होते हैं, जो दांतों की जड़ों को धीरे-धीरे खोखला बना देते हंै जिससे मसूड़े कमजोर हो जाते हैं। दांतों की जडं़े गल जाती हैं और दांतों की ऊपरी परत दांत वलक खत्म होने लगती है और दंत रक्त शिराएं कमजोर हो जाती हैं जिससे दांतों में दर्द होता है। ठंडा-गर्म खाने-पीने में तकलीफ होती है और धीरे-धीरे दंात साथ छोड़ देते हैं।

दांतों के रोगों में सबसे भयंकर और हानिकारक रोग है ‘पायरिया’। पायरिया में मसूड़ों में हल्की ठंडक होती है जिससे मसूड़ों के किनारांे से पीव निकलने लगती है। फिर दांतों की शक्ति क्षीण होने लगती है। मसूड़ों से रक्त आने लगता है। तीसरी अवस्था में रोग अपना उग्र रूप धारण कर लेता है। पीव पेट में जाने लगती है, जिससे और भी कई प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। पान, जर्दा, तंबाकू का सेवन करने वालों को पायरिया जल्द हो जाता है।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण ज्योतिषीय दृष्टिकोण से शनि-राहु दांतों में दर्द और रोग उत्पन्न करते हैं। दांतों की तीन मुख्य परतों में पहली और दूसरी परत अर्थात वलक और दंत धातु का नेतृत्व सूर्य करता है क्योंकि दंत वलक ठोस पदार्थ है और दंत धातु हड्डीनुमा है। तीसरी परत में रक्त शिराएं होती हैं। इनमें रक्त संचारित होता है। इसलिए इनका नेतृत्व चंद्र और मंगल करते हैं।

सूर्य, चंद्र, मंगल जब शनि-राहु से ग्रस्त एवं पीड़ित होते हैं तो दंत रोग होते हैं। काल पुरुष की कुंडली में द्वितीय भाव मुख का है। इससे दांतों की सुंदरता का अनुमान लगाया जाता है। इसलिए द्वितीय भाव भी अगर शनि-राहु से युक्त और पीड़ित हो तो दंत रोग या दांतों की सुंदरता पर असर पड़ता है। लग्न और लग्नेश के भी शनि-राहु से युक्त और दृष्ट होने से दंत रोग हो सकते हैं।

जातक तत्व के अनुसार दंत रोग के योग इस प्रकार हैं

- द्वितीयेश षष्ठेश के साथ होकर नैसर्गिक अशुभ ग्रह से युक्त हो तो दंत रोग होते हैं।

- केतु द्वितीय स्थान पर हो तो एक दांत ऊंचे होते हैं अर्थात दांत लंबे तथा बाहर की ओर होते हैं।

- सप्तम भाव में अशुभ ग्रह शुभ की दृष्टि से रहित हो तो जातक दांतों के किसी न किसी रोग से पीड़ित होता है।

विभिन्न लग्नों में दंत रोग मेष लग्न: लग्नेश मंगल षष्ठ भाव में, बुध द्वितीय भाव में राहु से युक्त या दृष्ट, शनि पंचम, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो जातक को दंत संबंधित रोग होता है।


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वृष लग्न: द्वितीय भाव में गुरु राहु से युक्त या दृष्ट हो, द्वितीयेश बुध चंद्र से युक्त षष्ठ भाव में, शुक्र सूर्य से अस्त हो तो जातक को दंत रोग होते हैं।

मिथुन लग्न: द्वितीेयेश चंद्र वक्री शनि से युक्त या दृष्ट होकर षष्ठ भाव में हो और षष्ठेश मंगल अष्टम भाव में या एकादश भाव में राहु या केतु से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को दंत संबंधित रोग होते हैं।

कर्क लग्न: शनि सूर्य से सप्तम हो, चंद्र शनि से युक्त हो, राहु द्वितीय भाव में हो या दृष्टि दे तो जातक को दंत रोग होता है।

सिंह लग्न: वक्री शनि द्वितीय भाव में चंद्र से युक्त या दृष्ट हो, लग्नेश सूर्य षष्ठ भाव में राहु-केतु से युक्त या दृष्ट हो तो जातक दंत रोग से पीड़ित रहता है।

कन्या लग्न: शनि वक्री शुक्र से द्वितीय भाव में राहु केतु से दृष्ट हो, मंगल सप्तम या अष्टम भाव में चंद्र से युक्त हो तो जातक को दंत पीड़ा रहती है।

तुला लग्न: वक्री गुरु राहु से युक्त या दृष्ट द्वितीय भाव में या षष्ठ भाव में हो, लग्नेश अस्त और वक्री होकर अष्टम भाव में हो तो जातक को दांतों का रोग रहता है।

वृश्चिक लग्न: बुध राहु या केतु से युक्त होकर द्वितीय भाव में, शनि चंद्र से युक्त अष्टम भाव में एवं गुरु वक्री षष्ठ या दशम भाव में हो तो जातक को दंत रोग होता है।

धनु लग्न: वक्री शनि चंद्र से दृष्ट या युक्त द्वितीय, पंचम, अष्टम् या द्वादश भाव में हो, गुरु षष्ठ भाव में राहु का केतु से दृष्ट हो तो जातक को दंत रोग होता है।

मकर लग्न: वक्री गुरु राहु या केतु से युक्त द्वितीय भाव में हो एवं शनि चंद्र से युक्त षष्ठ भाव में या अष्टम भाव में हो, तो जातक को दंत रोग होता है।

कुंभ लग्न: लग्नेश शनि गुरु से युक्त होकर द्वितीय भाव, तृतीय भाव, एकादश या द्वादश में राहु से दृष्ट हो और षष्ठेश चंद्र लग्न में हो तो जातक को दंत रोग होता है।

मीन लग्न: वक्री शनि लग्न में और गुरु षष्ठ भाव में हो, शुक्र वक्री होकर राहु या केतु से दृष्ट या युक्त हो एवं चंद्र षष्ठ या अष्टम भाव में अकेला हो तो जातक को दंत संबंधित रोग रहते हैं।

घरेलू उपचार

- लौंग और नमक को पीस कर चूर्ण बनाकर, दांतों पर लगाने से दांतों का हिलना रूक जाता है।

- पीपल की छाल का चूर्ण बनाकर दांतों और मसूड़ों की मालिश करने से दांतों का हिलना तथा दर्द ठीक होते हैं।

- लौंग इलायची और खस के तेल को मिलाकर दांतों तथा मसूड़ों पर लगाने से पायरिया में आराम मिलता है।

- नीम की पत्तियां, काली मिर्च, काला नमक रोजाना सेवन करना चाहिए। इससे रक्त साफ होता है और पायरिया में आने वाला पीव खत्म हो जाता है।

- फिटकरी को नमक के साथ मिलाकर दांतों और मसूड़ों की मालिश से मसूड़े मजबूत होते हैं।

- लौंग का तेल दांतों के खोह पर लगाने से दांत दर्द ठीक होता है।

- अमृत धारा और दाल-चीनी का तेल दांतांे के खोह पर लगाने से दांतों के दर्द में राहत मिलती है।

- नीला थोथा और सफेद कत्था दोनों को बराबर मात्रा में लंे और इन्हें तवे में भूनकर अच्छी तरह मिलाकर पीस लें। दिन में दो-तीन बार अंगुली पर लगा कर मसूड़ों की मालिश करें और बाद में कुल्ला कर मुंह साफ करें। इससे मसूड़ांे की सूजन, सड़न, दर्द, दुर्गंध सब से राहत मिलती है।



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