शनि दोष निवारण के उपाय

शनि दोष निवारण के उपाय  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 8482 | मई 2007

मान्यतः देखा गया है कि शनि ग्रह के नाम से प्रत्येक व्यक्ति प्रायः उदासीन हो जाता है। क्योंकि उन्हें एक क्रूर और आतंक पैदा करने वाला नीच ग्रह कहा जाता है। किंतु वास्तविकता यह है कि वह सभी ग्रहों में न्यायाधीश वाली स्थिति में हैं। वह सूर्य के छाया पुत्र और यमुना एवं यमराज के भाई हैं।

इसके बावजूद सूर्य, चंद्र, मंगल इनके कट्टर शत्रु हैं जबकि राहु, केतु, गुरु और बुध से इनकी मित्रता है। वह कश्यप गोत्र से संबंधित हैं। इनके अधिदेव ब्रह्मा हैं। वह पश्चिम दिशा के स्वामी हैं। शनै: शनैः चरति इति शनैश्चरा मंदगति से चलते हुए शनि ब्रह्मांड का चक्र तीस वर्ष में पूरा करते हंै और ढाई वर्ष एक राशि में रहते हैं।

अपने भ्रमण में यह साढे़ सात वर्ष के लिए एक साथ तीन राशियों पर ढाई वर्ष के तीन खंडों में स्वर्ण, रजत एवं लौह पाद के रूप में और पांच वर्ष के तीन खंडों में स्वर्ण, रजत एवं लौह पाद के रूप में और पांच वर्ष के लिए चैथे और आठवें भाव में जीवन यात्रा का शुभ अशुभ फल देते हैं।

इनकी टेढ़ी दृष्टि से देवता तक नहीं बच पाए। जीवित मानव के गुण-अवगुण और पाप-पुण्य का लेखा जोखा करने का अधिकार इन्हें प्राप्त है जबकि मृत्यु के बाद का यही अधिकार इनके भाई यम को प्राप्त हो जाता है। मकर एवं कुंभ राशि ¬ शं नो देवीरभिष्टयआपो भवन्तु पीतये शं योरभि स्रवन्तुनः। के स्वामी शनि हैं।

नीलम, नीली, जमुनिया या लाजवर्त रत्न को अष्ट धातु या चांदी की अंगूठी में मध्यमा में धारण करने से जातक पर प्रभावी शनि दोष दूर होते हैं। ढैया या साढ़े साती की स्थिति में घोड़े की नाल की या नाव की कील की अंगूठी मध्यमा में धारण करने से जातक शनि दोष से मुक्त हो जाता है। हनुमान जी के भक्त को शनि देव परेशान नहीं करते हैं, क्योंकि लंका में हनुमान जी ने उन्हें रावण के बंदीगृह से मुक्त कराया था।

तब शनि ने हनुमान जी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा था कि ‘जो कोई भी व्यक्ति आपकी उपासना करेगा उसे मैं कष्ट नहीं दूंगा।’’ इसी कारण हनुमान जी के अधिकांश मंदिरों के परिसर में पश्चिम दिशा की ओर शनि देव का मंदिर देखने को मिलता है। काल भैरव, राहु एवं बुध के साथ-साथ हनुमान जी भी इनके मित्र हैं।

इनके गुरु शंकर जी ने इन्हें नवग्रहों में श्रेष्ठ कहा है। अंक ज्योतिष के अनुसार इनका अंक 8 है। इनका रंग श्यामल और जन्म स्थान सौराष्ट्र है। इनकी रुचि के विषय हैं अध्यात्म, कानून कूटनीति, राजनीति एवं गूढ़ विद्या। स्वभाव से वह गंभीर, हठी, त्यागी, तपस्वी, क्रोधी तथा न्यायप्रिय हैं। वह अच्छे को अच्छा और बुरे को बहुत बुरा फल देते हैं। किंतु यह जरूरी नहीं कि शनि आपको केवल कष्ट ही दें।

अतः यह कहना कदापि उचित नहीं है। इनके पिता सूर्य ने इनके काले रूप को देखकर इनकी माता छाया (सुवर्णा) के चरित्र पर संदेह किया था, अतः यह अपने पिता सूर्य के शत्रु हो गए। इनके अनेक नाम हैं जैसे पिंगल, बभ्रु, कोणस्थ, सौरि, शनैश्चर, कृष्णा, रौद्रांतको, मंद, पिपलाश्रय, यमा आदि।

इसी प्रकार इनकी अनेक सवारियां हैं जैसे गर्दभ (गधा), घोड़ा, मेढ़ा, सिंह, सियार, कागा, मृग, मयूर, गिद्ध, जम्बुक, गज आदि। जिस सवारी पर यह स्वप्न में दर्शन देते हैं उसी के अनुरूप फल भी देते हैं। इनकी महादशा उन्नीस वर्ष की आती है।

शनि प्रधान व्यक्ति नौकरी से अधिक व्यापार में सफल होता है और उसके लिए लोहे, सीमेंट, कोयले, पेट्रोल, तेल या इस्पात का व्यवसाय विशेष लाभप्रद होता है। ट्रांसपोर्ट, दवाओं, प्रेस आदि का व्यवसाय भी लाभप्रद होता है। इनकी राशियां मकर एवं कुंभ और नक्षत्र अनुराधा, पुष्य और उत्तराभाद्रपद हैं। काला कपड़ा तेल, (सरसों) गुड़, उड़द, खट्टा एवं कसैला आदि इनकी प्रिय वस्तुए हैं।

शनि के रोगों में कैंसर, मधुमेह, कि. डनी, कुष्ठ (कोढ़), ब्लड प्रेशर, पागलपन, मिर्गी की बीमारी, वातरोग और त्वचा रोग प्रमुख हैं। इन्हें सुनसान, बंजर स्थान प्रिय है। पीपल के पेड़ पर इनका वास होता है। इसलिए शनिवार को सूर्यास्त के समय पीपल के पेड़ की जड़ के पास तेल का दीप जलाना शुभ होता है। कुंडली के विभिन्न भागों में इनके अलग-अलग फल होते हैं।

आठवें मृत्यु भाव में यदि शनि हो, तो जातक लंबी आयु पाता है। तीसरे, छठे, आठवें और बारहवें भाव में इनका होना शनि की दृष्टि से शुभ। यदि शनि लग्न, सातवें या आठवें भाव में हों, तो विवाह में रुकावटें जीवनसाथी से मतभेद रहता है। लेकिन स्वगृही मकर एवं कुंभ के शनि शुभ होते हैं। भाव के अनुसार यदि सूर्य के साथ हों, तो व्यक्ति को जीवन भर अशांत रखते हैं। राहु-केत के साथ हों, तो अधिक शक्तिशाली हो जाते हंै।

शनि के प्रकोप से बचने के कुछ अचूक उपाय लाल किताब में भी दिए गए हैं जिनमें प्रमुख इस प्रकार हैं: पीपल के पत्ते, कोयले सूखे नारियल, बादाम आदि को बहते जल में प्रवाहित करना। काले कपड़े, काले तिल या उड़द, सरसों के तेल, लोहे के टुकड़े आदि का शनिवार को दान करना। शनि मंदिर में तेल व पीपल के पत्तों की माला चढ़ाना। काले कुत्तों को तेल चुपड़ी रोटी खिलाना। वट वृक्ष की जड़ में मीठा दूध डालना। भीगी काली मिट्टी का तिलक करना।

ऊपर वर्णित उपायों के अतिरिक्त शनि दोष शमन के अन्य प्रमुख उपाय इस प्रकार हैं- 27 शनिवार को सरसों के तेल से मालिश करना। पानी में काले तिल, तिल के पत्ते, सौंफ, कस्तूरी और लोबान मिश्रित जल से स्नान करना। श्री हनुमान जी, भैरव, शिव और शनि की विधिपूर्वक आराधना तथा उपासना करना। हनुमान चालीसा का पाठ करना। शनिवार को हनुमान चालीसा का दान करना। (कम से कम ग्यारह)।

श्री हनुमान जी पर आक के फूलों की माला चढ़ाना। श्री हनुमान कवच, बजरंग बाण, सुंदर कांड का पाठ नियमित रूप से करना। ‘¬ श्री रामदूताय नमः ¬’ मंत्र का नौ माला (108 मुक्ताओं की) जप नित्य करना। नित्य रात को भैरवाष्टक का पाठ करना। महामृत्युंजय मंत्र का जप करना। रावणकृत शिव पूजन शिव तांडव स्तोत्र का पाठ। सप्तमुखी रुद्राक्ष काले धागे में पिरोकर आगे पीछे 23 गांठें बाधें शनि मंत्रों से प्रतिष्ठित कर धारण करना।

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