नव रत्नों के उत्पति स्थान

नव रत्नों के उत्पति स्थान  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 13184 | अकतूबर 2007

नव रत्नों के उत्पत्ति स्थान विजय कुमार अक्सर एक ही रत्न के भिन्न-भिन्न स्थानों से प्राप्त होने के कारण उसके रंग, गुण व आकार में भिन्नता पाई जाती है। नव रत्नों की उत्पत्ति एवं स्थान के बारे में विस्तृत जानकारी निम्न प्रकार है।

माणिक्य रत्न के उत्पत्ति स्थान :

1. बर्मा में मिलने वाले माणिक्य श्याम रंग की आभा लिए हुए होते हैं। 

2. सबसे उत्तम जाति के माण् िाक्य उत्तरी बर्मा के मोगोल नामक स्थान में प्राप्त होते हैं। ये माणिक्य गुलाब की पत्ती की तरह गहरे लाल रंग के होते हंै। 

3. श्री लंका के रत्नपुर नाम के स्थान में मिलने वाले माणिक्य में यद्यपि पानी अधिक होता है परंतु बर्मा से मिलने वाले माणिक्यों के मुकाबले लोच कम होती है। 

4. श्रीलंका से मिलने वाले माणिक्यों में कुछ पीलापन होता है। 

5. थाइलैंड से प्राप्त उत्तम कोटि का माणिक्य भी बर्मा के माणिक्य के सामने फीका ही होता है। राजस्थान के जोधपुर में भी अच्छी जाति के माणिक्य प्राप्त होते हैं। थाइलैंड में बैंकाक के निकट पाए जाने वाले माणिक्य लाल रंग के होते हैं।

काबुल के निकट खानों में तथा बदख्शा की लाजवर्त की खानों के उत्तर भी माण् िाक्य पाए जाते हैं। मोती रत्न के उत्पत्ति स्थान मोती संसार के अलग-अलग हिस्सों में पाए जाते हैं।

विभिन्न समुद्रों में मिलने के कारण इनके आकार, रंग-रूप, कठोरता तथा गुरुत्व अलग -अलग होते हंै। विभिन्न स्थानों से प्राप्त मोतियों की विशेषताएं निम्नलिखित हैं।

दक्षिण भारत: दक्षिण भारत में मोती मद्रास प्रांत तमिलनाडु में पाया जाता है। यह तूती कोरीन के मोती के नाम से प्रसिद्ध है। यह बसरे के मोती से मिलता-जुलता है।

दरभंगा: यहां का मोती चूना खाड़ी से मिलता जुलता ही होता है किंतु उससे घटिया किस्म का होता है। इसकी प्रायः भस्म बनाई जाती है।

श्रीलंका: इसे काहिल का मोती भी कहा जाता है। यह बहुत चमकदार होता है। बसरे के मोती के मुकाबले में यह श्याम आभायुक्त तथा है। वजन में कुछ हल्का होता है।

मेक्सिको: मेक्सिको में पाया जाने वाला मोती प्रायः श्याम आभा युक्त होता है। यह अत्यंत निम्न कोटि का है।

फारस की खाड़ी: यहां के मोती को बसरा का मोती कहते हैं। यह सबसे उत्तम कोटि का माना जाता है क्योंकि यह सबसे ज्यादा टिकाऊ होता है। इसकी चमक व चमड़ी अच्छी होती है।

बेनजुएला: यहां का मोती भी बसरे के मोती के सदृश होता है। किंतु इसका आकार कम गोल होता है। यह अधिक सफेद होता है।

चूना खाड़ी: चूना खाड़ी का मोती गुलाबी रंग का होता है। यह प्रायः नर्म होता है। पसीने के कारण सफेद किंतु अधिक सुंदर हो जाता है। इसके रंग में समानता न होने के कारण रसायनों से इसे सफेद कर लिया जाता है। इस कारण यह कुछ कमजोर हो जाता है।

उड़न मुर्गी: यह कच्चापन लिए हुए हल्का व चमकीला होता है। कपड़े पर रगड़ने से इसका वजन कम हो जाता है अतः निम्न कोटि का माना जाता है। मूंगा रत्न के उत्पत्ति स्थान भूमध्य सागर के समुद्री तट पर मूंगे के जंतु पाए जाते हैं।

अल्जीरिया, टयूनिशिया, कारासिका, सार्डीनिया और सिसली के समुद्री तटों से भी मूंगा प्राप्त होता है। जापानी द्वीपों के समुद्री तटों पर भी मूंगा पाया जाता है। परंतु मूंगे को निकालने का काम अधिकतर इटली के निवासी ही करते हैं और उसे रत्न का रूप नेपल्स नगर में दिया जाता है।

श्रेष्ठ कोटि का मूंगा बैल के खून की तरह होता है जिसे मोरो कलर भी कहा जाता है। स्पेन के समुद्र तट पर भी मूंगा प्राप्त होता है जो गहरे लाल रंग का होता है। मूंगा रत्न के उद्योग का प्रधान क्षेत्र नेपल्स ही है।

पन्ना रत्न के उत्पत्ति स्थान आस्ट्रिया: आस्ट्रिया के सेल्जबर्ग स्थान में पन्ने की एक बहुत पुरानी खान है।

मिस्र: पहले मिस्र से जो पन्ना आता था, उसका रंग बहुत गहरा होता था परंतु उसमें चमक बिल्कुल भी नहीं होती थी।

अजमेर: यहां के पन्ने में प्रायः जर्दी होती है। इसका रंग आकर्षक होता है तथा पानी भी अच्छा होता है। परंतु कोलंबियाई पन्ने के मुकाबले इसमें कठोरता कम होती है।

कोलंबिया: कोलंबिया से एक नया उत्पाद आया है जो ट्रिपेची के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी बनावट 6 कलियों की होती है। इन कलियों को घिसकर बीच के भाग से माल तैयार किया जाता है। इसमें पन्ने के अन्य अवगुण बहुत कम मात्रा में पाए जाते हैं।

अमेरिका: यहां की खान के पन्ने पुष्ट होते हैं। ये बक्स के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन पन्नों का रंग व पानी सर्वोत्तम है। इस खान के किसी-किसी पन्ने में स्वर्णभक्षिका भी पाई जाती है। यहां का पन्ना सभी विशेषताओं से युक्त सर्वोत्तम होता है।

रूस: यहां भी खानों में हरेक तरह का पन्ना पाया जाता है परंतु अमेरिका के मुकाबले कम आकर्षक होता है। इसमें कठोरता भी अपेक्षाकृत कम होती है। पानी भी अमेरिकी पन्ने के मुकाबले कम होता है।

अफ्रीका: यहां का पन्ना प्रायः श्याम आभा लिए हुए काले छींटों वाला होता है। इसे बाटली भी कहते हैं क्योंकि इसका रंग हरे व काले मिश्रित रंग वाली बोतल के समान होता है।

उदयपुर: उदयपुर का पन्ना गहरे रंग का किंतु चुरचुरा होता है। इसमें पानी कम होता है। पाकिस्तान: यहां भी पन्ने की खाने पाई जाती हैं। यहां पाए जाने वाले पन्ने का रंग बहुत गहरा होता है। इसमें चुरचुरापन भी होता है।

सेन्डेवाना: यह अफ्रीका में है। यहां के पन्ने को सेन्डेवाना कहा जाता है। यहां का पन्ना सर्वोत्तम माना जाता है। इसमें जर्दी, निम्मस और पारी प्रचुर मात्रा में होते हंै।

रोडेशिया: यहां पाया जाने वाला पन्ना रोडेशिया के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी खान भी अफ्रीका में ही है। इसमें पानी कुछ अधिक होता है। इस पर काले छींटे बाटली के समान नहीं होते हैं। इसमें श्याम रंग की आभा भी बाटली के मुकाबले कम होती है। पुखराज रत्न के उत्पत्ति स्थान पुखराज प्रायः ग्रेनाइट, नाइस तथा पैम्नेटाइट की शिलाओं में मिलता है।

इन शिलाओं में आग्नेय पदार्थ पाए जाते हैं। इन पदार्थों से निकलने वाले जल वाष्प तथा फ्लोरीन गैस की पारस्परिक क्रिया से पुखराज रत्न उत्पन्न होता है। रूस और साइबेरिया में गे्रनाइट की शिलाओं की गुफाओं में प्रायः नीले रंग का पुखराज मिलता है।

ब्राजील की खानों में मिलने वाले पुखराज सबसे बढ़िया किस्म के होते हैं। रोडेशिया की खानों में मिलने वाले पुखराज प्रायः रंगहीन अथवा पीले या नीले रंग के होते हैं। इन्हें काटने पर नीला रंग खत्म हो जाता है और ये सुंदर दिखाई देने लगते हैं। श्रीलंका, जापान, मेक्सिको, तस्मानिया, इग्ं लडंै आदि दश्े ाा ंे म ंे अच्छे और उत्तम कोटि के पुखराज मिलते हैं।

श्रीलंका का पुखराज हल्का पीला व लचीला होता है। हीरा रत्न के उत्पत्ति स्थान हीरा निम्नलिखित स्थानों में प्राप्त होता है। 

दक्षिण अफ्रीका: दक्षिण अफ्रीका में हीरा मुख्यतः बार्कली बस्त, किंबरली, बोशप, जंगरस व फान्टीन ब्रूनस्टेड में पाया जाता है। संसार के 80 प्रतिशत से अधिक हीरों की खानंे दक्षिण अफ्रीका में हैं।

पश्चिम अफ्रीका: पश्चिम अफ्रीका के गोल्ड कोस्ट, कांगो और अंगोला में भी हीरे पाए जाते हैं। यहां हीरे सूखी नदियों की तलहटियों में मिलते हैं।

रोडेशिया: रोडेशिया में पुरानी नदियों की सूखी तलहटियों में हीरे पाए जाते हैं। हीरक पत्थरों का मुख्य केंद्र सोमाबुल जंगल का वेलो नामक क्षेत्र है। यहां हीरे क्राइसोबेरिल, पुखराज और नीलम जैसे रत्नों के साथ पाए जाते हैं।

आस्ट्रेलिया: आस्ट्रेलिया में न्यू साउथ वेल्स में हीरे पाए जाते हैं।

दक्षिण अमेरिका: दक्षिण अमेरिका, ब्रिटिश गायना में उत्तम कोटि के हीरक पत्थर पाए जाते हैं। यहां के हीरे 10 से 15 कैरेट तक के हाते े ह।ंै सियरा लियाने आरै टगंै निका में उत्तम कोटि के हीरे मिलते हैं।

भारत: भारत में हीरा मुख्यतः मध्य प्रदेश के पन्ना शहर में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त इसी प्रदेश के हैं। हीरा चरबारी और कोगी शहरों में भी हीरा पाया जाता है।

पहले दक्षिण भारत में गोलकुंडा क्षेत्र में हीरा पाया जाता था। हीरे की छोटी-छोटी खानें मद्रास में भी हैं। दक्षिण भारत के अनंतपुर, बेल्लारी, बेलपल्ली, कोम्पेटा, कड़ापा, पोलीपट, पोलूर, गुरीयाद, गुरुपुर, गंुटूर, मड़गल, पेटियाल, कबूल और बन्बूर क्षेत्रों में हीरा पाया जाता है। उड़ीसा में कालाहांडी, पलमन खिमा और संबलपुर के निकट हीरे प्राप्त होते हैं। नीलम रत्न के उत्पत्ति स्थान नीलम निम्न स्थानों पर प्राप्त होता है।

भारत: भारत के कश्मीर प्रदेश में मिलने वाला नीलम श्रेष्ठ होता है। इसे मयूर नीलम कहा जाता है क्योंकि इसका रंग मोर की गर्दन के रंग के समान होता है। बिजली के प्रकाश में यह नीले रंग का दिखाई देते हैं। कश्मीर प्रदेश में नीलम की खान खूमनाम नामक गांव के निकट है। कश्मीर के अतिरिक्त दक्षिण भारत में सलेम जिले मंे भी नीलम प्राप्त होते हैं।

रोडेशिया और रूस: रोडेशिया और रूस में भी नीलम प्राप्त होते हैं परंतु ये घटिया दर्जे के होते हैं।

श्रीलंका: श्रीलंका के नीलम सबसे उत्तम होते हैं और प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। यहां नीलम विभिन्न प्रकार की शिलाओं में पाए जाते हैं। श्रीलंका में नीलम प्राप्ति के मुख्य स्थान बलान गोड़ा, रकबाना और रतनपुर हैं। ये स्थान श्रीलंका के दक्षिणी मध्य भाग में स्थित हैं।

बर्मा: बर्मा के नीलम में सुंदर नीली आभा होती है। विजातीय पदार्थ चिपका न होने के कारण इसकी काट अच्छी तरह से हो जाती है और रत्न बनाने में सुविधा रहती है।

अमेरिका: अमेरिका में नीलम प्राप्ति का मुख्य स्थान मोंटाना है। यहां से प्राप्त नीलम की चमक धातु सी होती है।

आॅस्ट्रेलिया: आस्ट्रेलिया में नीलम क्वीन्सलैंड और न्यू साउथ वेल्स में पाए जाते हैं। ये गहरे रंग के होते हैं। रोडेशिया थाइलैंड में भी मिलते हैं। थाइलैंड में मिलने वाले नीलम गहरे रंग के होते हैं। गोमेद रत्न के उत्पत्ति स्थान सबसे उत्तम गोमेद श्रीलंका में मतुरा नामक स्थान पर पाए जाते हैं।

इसके अलावा गोमेद आस्ट्रेलिया में न्यू साउथ वेल्स के मग्गी स्थान पर, भारत में काश्मीर, कुल्लू, शिमला, बिहार तथा तमिलनाडु के कोयम्बतूबर स्थान पर पाए जाते हैं। थाइलैंड में भी नीले रंग के श्याम आभा वाले गोमेद पाए जाते हैं। इन देशों के अलावा फ्रांस और रूस में भी गोमेद रत्न पाए जाते हैं।

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