नवरत्नों के गुण एवं पहचान

नवरत्नों के गुण एवं पहचान  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 27780 | अकतूबर 2007

ज्यातिष के उपायों में रत्नों का प्रभाव सर्वमान्य व महत्वपूर्ण हैं। जितना महत्वपूर्ण कुंडली के आधार पर रत्नों का चुनाव हो उतना ही महत्वपूर्ण रत्न खरीदते समय उसकी गुणवत्ता तथा रंग, आकृति आदि का ध्यान रखना है। अंततः रत्न की गुणवत्ता प्रयोगशाला में जानी जा सकती है। परंतु कुछ मूलभूत पहचान निम्न तरीकों से भी की जा सकती है।

इसके सामान्य गुण व पहचान की विधि विस्तृत रूप से दी गयी है। माणिक्य माणिक्य को सूर्य ग्रह का रत्न कहा जाता है। यह लाल रंग का होता है। 24 रत्ती से अधिक का हो तो लाल कहलाता है। यह एक मूल्यवान रत्न हैं। यह षडभुजीय पद्धति के अंतर्गत आता है। कबूतर के रक्त के रंग का माणिक्य श्रेष्ठ समझा जाता है।

माणिक्य के गुण श्रेष्ठ और उत्तम माणिक्य के निम्नलिखित गुण होते हैं। जिस माणिक्य को प्रातः काल सूर्य के सामने रखते ही उसमें से लाल रंग की किरणें चारों तरफ बिखरने लगें वह माणिक्य उत्तम गुण का माना जाता है। अगर माणिक्य को पत्थर पर घिसने पर वह न घिसे और उसका वजन न घटे और उसकी शोभा और बढ़ जाए तो उसे शुद्ध समझना चाहिए।

अंधकार में रखने पर यदि वह सूर्य की आभा के समान चमकता हो तो वह श्रेष्ठ माणिक्य होगा। सौगुने दूध में माणिक्य को डालने से दूध लाल दिखाई दे अथवा लाल किरणंे निकलने लगें तो वह उच्च कोटि का माणिक्य होता है। प्रातः काल सूर्य के सामने दर्पण पर माणिक्य को रखें। यदि दर्पण के नीचे की तरफ छाया भाग में किरणें दिखाई दें तो समझें कि वह उत्तम माणिक्य है।

श्रेष्ठ माणिक्य लाल कमल की पंखुड़ियों के समान लाल, निर्मल, सुंदर, गोल, समान अंग-अवयव वाला और दीप्तिमान होता है। माणिक्य के दोष अगर माणिक्य में निम्नलिखित दोष पाए जाएं तो बिल्कुल नहीं पहनना चाहिए। सुन्न माणिक्य अथवा बिना खनक वाला अर्थात जिस माणिक्य के जमीन पर गिरने से आवाज न आए। दोरंगा अर्थात एक ही नग में दो रंग हों तो उसे त्याग देना चाहिए।

अगर उसमें किसी भी तरह का जाला आदि हो तो समझें कि वह दोषपूर्ण है। अगर उसमें किसी प्रकार का कोई बिंदु, चीरा या गड्ढा हो अथवा वह धमू ्रवर्ण हा े ता े इस े दाष्े ापणर््ू ा मान।ंे अगर रत्न में चुरचुरापन, पारदर्शिता की कमी, रंग में मलिनता, शहद के रंग का छींटा आदि हों तो वह दोषपूर्ण होता है। माणिक्य की पहचान श्रेष्ठ और सच्चे माणिक्य की पहचान निम्नलिखित है।

श्रेष्ठ माणिक्य को आंखों पर रखने से ठंडक मालूम होती है। अगर रत्न में बुलबुले दें या रत्न हल्का हो तो कंाच को बनावटी समझना चाहिए। अगर कोई चीर या चरेड़ अथवा लकीर दिखाई दे, तो देखना आवश्यक है कि य े सब दाष्े ा शीश े के हंै या माणिक्य के। यदि यह शीशा होगा तो उसके चीर में चमक होगी। रत्न के चीर, चरेड़ अथवा लकीर में चमक नहीं होती।

उस चीर में अस्वाभाविकता नहीं होती बल्कि वह टेढ़ी-मेढ़ी होती है। उसकी सफाई भी नहीं होती है। कृत्रिम रत्नों में रेशा होता है। यह रूखा और सफेद होता है। अगर इमीटेशन के रबड़ के पैंदे का भाग नग में आ गया हो तो उसमंे सफेद कण स्पष्ट दिखाई देते हैं। यदि माणिक्य में ‘दूधक’ हो, उस दूधक में नीलिमा हो और वह चलता हुआ नहीं हो तो उसे नकली समझना चाहिए।

माणिक्य की परत सीधी और नकली की परत बलयाकार होती है। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंतर है। अगर श्रेष्ठ माणिक्य को बर्फ के टुकड़े के ऊपर रख दिया जाए तो जोर की आवाज आती है।

इसके विपरीत नकली होगा तो कोई आवाज नहीं आएगी। मोती मोती चंद्र ग्रह का रत्न है। इसका रंग सफेद होता है। यह खनिज नहीं। बल्कि जैविक पदार्थ है। भारत में प्राचीन मान्यता के अनुसार मोती आठ प्रकार के होते हैं- अभ्र मोती, शंख मोती, शुक्ति मोती, सर्प मोती, गज मोती, बांस मोती, शूकर मोती और मीन मोती। इन मोतियों की उत्पत्ति अलग-अलग प्रकार से होती है।

कल्चर मोती: यह एक प्रकार का ब्लिस्टर मोती होता है। एक कृत्रिम पदार्थ सीपी और मेंटल के बीच पहुंचा दिया जाता है। यह पदार्थ मोती का एक छोटा सा दाना होता है। घोंघा इसी पर परतें डालने लगता है। जैसा कि यह प्राकृतिक विजातीय पदार्थ के अंदर आने पर करता है।

इस प्रकार जो मोती तैयार होता है उसे सीपी से अलग कर उस पर मुक्ता आवरण चढ़ा दिया जाता है। फिर पालिश की जाती है। पालिश करने के बाद इसे एक विशेष किस्म की पालिश की मोटी परत से ढक दिया जाता है। 24 घंटे रखा जाए तो असली मोती और ज्यादा चमकने लगता है। कल्चर मोती में काफी अंतर आ जाता है।

चावल में मोती को रगड़ने से सच्चे मोती की चमक और ज्यादा बढ़ जाती है जबकि कल्चर मोतियों की चमक कम हो जाती है। मूंगा यह मंगल ग्रह का रत्न है। इसका रंग लाल सिंदूरी होता है। यह खनिज नहीं अपितु जंतु की देन है। इसकी आकर्षक आभा और रंग के कारण इसे नवरत्नों में शामिल किया गया है। इसकी उत्पत्ति वानस्पतिक मानी गई है।

परंतु यह भी मोती की भांति समुद्र से ही प्राप्त होता है। देखने पर इसका आकर बेल की शाखाओं जैसा लगता है। मूंगे नाम का एक जंतु, जो गूदे या जेली के समान लसलसा होता है, समुद्र में डूबी हुई चट्टानों से चिपक जाता है।

इसके बाद यह कैल्शियम कार्बोनेट के कठोर जमाव को एकत्रित करके मधुमक्खियों के समान छत्ता बना लेता है। उसके बाद वर्षों तक यह जंतु कैल्शियम कार्बोनेट को इक्ट्ठा करके मूंगे का निर्माण करता है। मूंगा अपारदर्शक होता है। अलग-अलग समुद्रों में मिलने के कारण इसके आकार, रंग-रूप, और चमक में फर्क होता है।

मूंगे की जांच और परख जो मूंगा पके हुए बेल के समान होता है, वह अति श्रेष्ठ होता है। गोल, लंबा, सीधा, चिकना और अपारदर्शक मूंगा भी उत्तम होता है। गड्ढे, धब्बे, तिल या लकीरों से रहित साफ, चमकदार मूंगा उत्तम होता है। जांच और परख मोती को अच्छी तरह जांच परख कर ही ही धारण करना चाहिए। फटा हुआ बारीक रेखा युक्त और धब्बेदार मोती दोषपूर्ण होता है।

अगर मोती चमकरहित हो या उसके चारों ओर गोलाकार रेखा या कोई धब्बा हो तो वह दोषपूण्र् ा होता है। अगर मोती में जाल या चीरा हो, या वह श्यामवर्ण अथवा दोरंगा, हो तो अनिष्टकारी माना जाता है। मोती की पहचान असली मोती की पहचान निम्नलिखित है।

कल्चर: इसमें कांच के समान विजातीय पदार्थ की गोली होती है। जो बींधने पर सूराख सी दिखाई देती है। सूराख में समानता नहीं होती है। कल्चर का छेद बीच में चैड़ा होता है। बींधने से गोली कई बार निकल जाती है। अगर यह अंदर ही रहे तो इसे लेंस द्वारा देखा जा सकता है। कल्चर मोती में ऊपर की चमड़ी कुछ कठोर होती है जबकि असली मोती की चमड़ी में कोमलता होती है। अगर गोमूत्र या खार में कल्चर मोती और असली मोती क जिस मूंगे का रंग सिंदूर, टिंगूल अथवा सिंगरफ से मिलता-जुलता हो, उत्तम होता है।

उत्तम कोटि के मूंगे को लेंस से देखने पर बिल्कुल समतल दिखाई देता है। इसके विपरीत नकली मूंगे को लेंस से देखने पर मोटे-मोटे रवे स्पष्ट दिखाई देते हैं जो ढले हुए कांच के समान होते हैं। असली मूंगे को अगर शीशे पर रगड़ा किया जाए तो किसी भी तरह की आवाज नहीं आती है।

इसके विपरीत नकली मूंगे को घिसने से शीशे के समान स्पष्ट आवाज आती है। पन्ना यह बुध ग्रह का रत्न है। इसमें दोष होना अनिवार्य है क्योंकि ये अक्सर षडभुजीय प्रिज्म के रूप में पाए जाते हैं। अगर इनकी कटाई की जाए तो ये खंडित हो जाते हैं।

पन्ने का गहरे मखमली और घास के रंग का पन्ना सर्वोत्तम माना जाता है। इन्हें आभूषणों में जड़ते समय अत्यंत सावधानी की आवश्यकता होती है क्योंकि ये बहुत ही भंगुर होते हैं। पन्ने की पहचान श्र े ष् ठ पन्ने की पहचान निम्नलिखित है। पन्ने की जांच इसलिए आवश्यक है कि कई बार नकली कांच को रसायनों से रंगकर पन्ने के समान बना दिया जाता है।

अभ्रकी: अभ्रक के समान चमक वाला, यह पन्ना अभ्रक के साथ निकलता है। इसमें अभ्रक का कुछ अंश आ जाता है। यह स्पष्ट झलकने लगता है। गड्ढे या चीर से युक्त, दो रंगा, सुन्न, काले या पीले छींटों वाला, बुरबुरा और रुग्ण चमकहीन पन्ना नहीं धारण करना चाहिए।

उत्तम पन्ना हरे रंग का, चिकना, पारदर्शक या अर्धपारदर्शक तथा उज्ज्वल किरणों वाला होता है। यह अति उत्तम कोटि का माना जाता है। उत्तम पन्ना बिंदुरहित और पानीदार होता है। असली पन्ने को चेसस फिल्टर से देखा जाए तो वह गुलाबी रंग का दिखाई देगा जबकी नकली का रंग हरा ही रहेगा।

उत्तम कोटि के पन्ने का रंग कृत्रिम प्रकाश में भी हरा ही दिखाई देता है। नकली और असली रत्न के जो दोष होते हैं वे दोष देखने से ही पता चल जाते हैं। इमीटेशन की चीर शीशे की चीर के समान होती है। अगर असली रत्न को हल्दी के साथ घिसा जाए तो हल्दी का रंग नहीं बदलेगा।

इसके विपरीत नकली पन्ने को हल्दी के साथ घिसने पर हल्दी लाल हो जाएगी। नकली पन्ने में पानी के बुलबुलों जैसे हवा के छोटे-छोटे बुलबुले यंत्र से देखने पर दिखाई देंगे। इसके विपरीत असली पन्ना एकदम साफ होगा। पुखराज यह वृहस्पति ग्रह का रत्न है। शुद्ध पुखराज हल्के पीले रंग का चमकदार होता है।

यह मांगलिक भी होता है। पुखराज सहज ही चिर जाता है। पुखराज के गुण और परख असली पुखराज की नीचे लिखी विशेषताएं होती हैं। आजकल बाजार में पुखराज से मिलते जुलते कई पीले रंग के नकली रत्न उपलब्ध रहते हैं। इसलिए नीचे लिखी विशेषताओं और गुणों को ध्यान में रखकर ही पुखराज लेना चाहिए। हाथ में रखने पर भारी लगता है।

इसकी छवि स्निग्ध और स्वच्छ होती है, दाना बड़ा और परतरहित होता है। असली पुखराज मुलायम तथा चिकना होता है। इसका रंग कनेर के फूल के जैसा होता है। उत्तम कोटि के पुखराज को कसाटै ी पर घिसन े पर उसक े रगं आरै छवि में निखार आ जाता।

जिस पुखराज के पीलेपन में कालिमा मिली हो, या जो दोरंगा हो, चमकहीन हो और बालू के समान कर्कश हो वह, नकली होता है। पुखराज रत्न के तीन रवे एक दूसरे के साथ समकोण बनाते हुए परंतु असमान कक्ष होते हैं और सामान्यतया प्रिज्म या त्रिभुज के आकार के होते हैं। उत्तम पुखराज की अपनी निराली चमक होती है।

उच्च कोटि के पुखराज को रगड़कर आग उत्पन्न की जा सकती है। उत्तम पुखराज को अगर एक किनारे से कनिष्ठिका और अंगूठे से पकड़कर जोर से दबाया जाए तो यह छिटककर दूर जा गिरता है। श्रेष्ठ पुखराज को अगर आग पर गर्म किया जाए तो वह बीच से अस्त होते सूर्य की तरह लाल हो जाता है।

इसके अलावा अगर रत्न में बुलबुले हों, या जाला हो, किसी भी किस्म की चीर या हरेड़ हो, तो धारण नहीं करना चाहिए। अलग-अलग खानों से निकलने के कारण पुखराज विभिन्न रंगों के हो सकते हंै। इसलिए ज्योतिष में पुखराज को चार श्रेणियों में बांटा गया है- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। ब्राह्मण वर्ण का पुखराज सफेद होता है। रंगहीन होता है। क्षत्रिय वर्ण का पुखराज गुलाबी होता है। शूद्र वर्ण का पुखराज श्याम आभायुक्त होता है। वैश्य वर्ण का पुखराज पीले रंग का होता है।

नीलम यह शनि ग्रह का रत्न है। वि.ि भन्न स्थानों से प्राप्त होने के कारण इसकी कठोरता भी भिन्न-भिन्न होती है। नीलम अर्धपारदर्शक और पारदर्शक दोनों होते हैं। नीलम की पहचान असली नीलम की पहचान निम्नलिखित हैं। नकली नीलम में रंगों की वक्र पट्टियां दिखाई देती हैं जबकि असली नीलम में रंगों की पट्टियां सीधी और षडभुजीय प्रिज्म के समान होती हंै।

असली नीलम में कुछ खनिज पदार्थ रहते हैं जो स्थान भेद के अनुसार भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। असली नीलम चिकना, चमकदार, साफ और मोर के पंख के समान आभा वाला होता है। असली नीलम को अगर मुट्ठी में पकड़ा जाए तो गर्मी का अनुभव होता है और कई बार रक्त का दबाव बढ़ जाता है। श्रेष्ठ नीलम के पास अगर कोई तिनका लाया जाए तो वह इससे चिपक जाता है।

पूर्णिमा की रात जब चंद्रमा की विमल ज्योत्सना फैली हुई हो तब गौरवर्ण की किसी सुंदर कन्या के हाथ में स्वच्छ दूध से भरा कटोरा दे दिया जाए और उस पात्र पर नीलम का प्रकाश डाला जाए। यदि नीलम अपने प्रकाश से दूध, दूध के पात्र और कन्या पर तत्काल नीली आभा छा दे तो उसे उत्तम कोटि का समझना चाहिए। गोमेद गोमेद राहु ग्रह का रत्न है। ये पारदर्शक, पारभासक और अपारदर्शक होते हैं। गोमेद की पहचान गोमेद की पहचान निम्नलिखित है।

सामान्यतः गोमेद उल्लू अथवा बाज की आंख तथा गोमूत्र के रंग के समान हल्के पीले रंग का होता है। असली गोमेद को 24 घंटे तक गोमूत्र में रखने से अगर गोमूत्र का रंग बदल जाए तो रत्न असली होता है। स्वच्छ, चिकना और भारी गोमेद उत्तम होता है तथा उसमें शहद के रंग की झाईं दिखाई देती है। इस रत्न की पहचान यह भी है कि कभी-कभी स्पेक्ट्रोस्कोप यंत्र में यह शोषण पटरियां बताता है।

इसकी स्पष्ट पहचान यह है कि इसमें दोहरावर्तन होता है और इस कारण पिछले किनारे सामने से देखने पर दोहरे दिखाई देते हैं। लहसुनिया लहसुनिया केतु ग्रह का रत्न है। लहसुनिया की पहचान लहसुनिया रत्न की पहचान निम्नलिखित है।

उच्च कोटि के लहसुनिया रत्न को अगर हड्डी के ऊपर रख दिया जाए तो 24 घंटे के अंदर, हड्डी के आर-पार छेद हो जाता है। असली लहसुनिया में ढाई या तीन सफेद सूत होते हैं जो बीच में इधर-उधर हिलते रहते हैं। रत्न अपने चित्ताकर्षक रंग तथा चमकदार आभा के कारण हरेक आदमी का मन मोह लेते हैं। प्रकृति की देन ये रत्न संसार के प्रायः सभी देशों में पाए जाते हंै।

हीरा यह शुक्र ग्रह का रत्न है। यह विभिन्न रंगों में पाया जाता है। हीरा विद्युत का कुचालक है। छः कोणों वाले हीरे के देवता इंद्र, शुक्ल वर्ण के यम, सर्प मुखाकार विष्णु, शंक्वाकार के वरुण और व्याघ्र के समान हीरे के देवता यम हैं। हीरे की पहचान असली हीरे की पहचान निम्न प्रकार से की जा सकती है। असली हीरे में प्रविष्ट हुआ प्रकाश लगभग पूरा भीतर से लौट आता है।

हीरे से प्रकाश की किरण का इंद्र धनुषी रंगों का बिखराव अत्यधिक मात्रा में होता है। श्रेष्ठ हीरे की अपनी विशेष चमक-दमक होती है। ऐसी चमक अन्य किसी रत्न में नहीं होती है। काटे-संवारे हीरे के खंड की मेखला के ऊपर अथवा इसके समीप की मूल परत पर प्राकृतिक अंश भी अवश्य बचा रह जाता है।

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