तन मन को चुस्त रखें दुरुस्त रहें

तन मन को चुस्त रखें दुरुस्त रहें  

फ्यूचर समाचार
व्यूस : 6441 | अकतूबर 2007

मनुष्य के मन में बढ़ती आयु के विकल्प चिर यौवन की चाह हमेशा से रही है। तन और मन को चुस्त रखने या तनाव प्रबंधन आपके अंदर छिपे यौवन को संवारने और बढ़ती आयु को रोकने, उससे बचने की एकमात्र विधि है। बढ़ती आयु की परिभाषा एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में की गई है जिसमें कोई कोशिका नवीनीकरण या अखंडता की स्मरणशक्ति खो देती है और इस प्रकार बूढ़ी, बीमार होकर मर जाती है।

यदि किसी कोशिका की नवीनीकरण या अखंडता की स्मरणशक्ति बरकरार रहे, तो हम उसकी अक्षतता और अपरिमेय बुद्धि को बनाए रख सकते हैं जिसमें नवीनीकरण और स्वस्थ करने की क्षमता होती है, और इस तरह यौवन बरकरार रह सकता है।

हजारों वर्ष पहले शंकर ने कहा था कि लोग बढ़ते और मर जाते हैं क्योंकि वे दूसरों को बूढ़ा होते और मरते देखते हैं। इस तरह यौवन आपके अपने प्रत्यक्ष ज्ञान का विषय है, आप अपने भीतर इसकी खोज, अपनी जीवनशैली को आशावादी बनाकर और अपने तनाव का प्रबंधन कर सकते हैं।

यदि हम स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहें और अखंडता प्राप्त करने के लिए अपनी दिनचर्या में स्वास्थ्य के विविध घटकों की अक्षतता को बनाए रखें, तो हम यौवन को बरकरार रख सकत े ह।ंै विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्य की परिभाषा कायिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक खुशहाली के रूप में की है।

तन मन के परिप्रेक्ष्य में अथवा आयुर्वेद की दृष्टि से स्वास्थ्य तन, मन, आत्मा और परिवेश का एक अनुकूल संघटन है। चरक संहिता में कहा गया है कि स्वास्थ्य कल्याण, सद्गुण, समृद्धि, संपत्ति, खुशहाली और मोक्ष का आधार है। परिवेश या वातावरण हमारा विस्तृत शरीर है। आप न केवल हर साल बल्कि अपने जीवन के हर पल युवा हैं।

हम माइक्रोकाॅज्म अर्थात आंतरिक परिवेश और मैक्र्रोकाॅज्म अर्थात बाह्य परिवेश के बीच परस्पर व्यवहार की अभिव्यक्ति या प्रकट रूप या फल हैं। इस तरह, यह सारा ब्रह्मांड एक ब्रह्मांडीय कंप्यूटर की तरह है और हमारे शरीर की साठ खरब कोशिकाएं ब्रह्मांडीय कंप्यूटर का मानो आखिरी पड़ाव हैं जहां हर छह सेकंड पर छह खरब रासायनिक प्रतिक्रियाएं होती हैं जिसका पता तक हमें नहीं चल पाता है।

फिर यह सारा कुछ कौन करता है? यह हमारा दिमाग है। हमारा मन ब्रह्मांडीय दिमाग की और हमारी ऊर्जा ब्रह्मांडीय ऊर्जा की अभिव्यक्ति है। हमारे मानसिक ब्रह्मांड का हमारे शारीरिक ब्रह्मांड पर जबर्दस्त प्रभाव पड़ता है। ब्रह्मांड में, इस तरह, स्वस्थ बढ़ती आयु या यौवन हमारे अंदर और बाहर माइक्रोकाॅज्म और मैक्रोकाॅज्म के बीच अनुकूल परस्पर व्यवहार का फल है।

कहते हैं कि यदि आप जानना चाहते हैं कि अतीत में आपकी सोच क्या थी, तो अपने आज के शारीरिक और मानसिक बढ़ती आयु को देखें, और यदि आप जानना चाहते हैं कि भविष्य में आपकी कायिक और मानसिक आयु और यौवन क्या होगा, तो अपने आज के विचारों को देखें। इस तरह बढ़ती आयु हमारे अपने अवबोधनों, विचारों, अर्थनिण्र् ाय, अनुभवों और हमारी रुचियों की अभिव्यक्ति है।

हमारी संपूर्ण मानसिक रुचि हमें इस योग्य बनाती है कि हम बढ़ती आयु के साथ आनंदपूर्वक बढ़ सकें। इस तरह, स्वस्थ बढ़ती आयु कोई दैवयोग की नहीं, बल्कि इच्छाशक्ति की बात है।

यह ऊर्जा, ज्ञान, बुद्धि और विविध क्रियाकलापों तथा हमारे अंदर और आसपास की दुनिया के साथ हमारे परस्पर व्यवहारों का एक नेटवर्क है। बढ़ती आयु का दृश्य-विधान आज के युग में औसत आयु सीमा सौ वर्ष है। हम में से अधिकांश सौ वर्ष की आयु तक पूरी मानसिक और कायिक अंतःशक्ति तक नहीं पहुंच पाते।

शतायुओं में 80 प्रतिशत औरतें हैं और उनमें 80 प्रतिशत विध् ावा। पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की आयु अधिक होती है। यदि हमें आनंदपूर्वक बढ़ना है, तो हमें संयुक्त परिवार प्रथा को बचाकर रखना ही चाहिए, जो दुर्भाग्यवश टूट चुकी है और इस टूटन ने पीढ़ियों के बीच खाई को बढ़ा दिया है।

यही कारण है कि बहुत से वृद्ध जन उपेक्षित, तिरस्कृत, अवांछित, एकाकी और बहिष्कृत महसूस करते हैं और मृत्यु के भय तथा आर्थिक संकट से घिर जाते हैं और अंततः कमजोरी व बीमारी के शिकार होकर मर जाते हैं। बढ़ती आयु का वर्गीकरण कैसे हो? बढ़ती आयु का वर्गीकरण तीन रूपों में किया जा सकता है -- कालक्रमिक, या तैथिक, शारीरिक और मानसिक। कालक्रमिक आयु कैलेंडर आयु है और यह हमारे जन्म प्रमाणपत्र के अनुरूप होती है।

शारीरिक आयु से तात्पर्य है कि आप कितने अच्छे दिखते हैं। शारीरिक आयु के परिचायक बायोमार्कर्स के नाम से जाने जाते हैं और इनमें प्रमुख हैं: बालों का सफेद होना श्रवण क्षमता - श्रवण का ह्रास दृष्टि क्षमता -- मोतियाबिंद का पनपना दंतक्षय चेहरे पर झुर्रियां (त्वचा का मोटापा) मांसपेशी का क्षणन और उसकी शक्ति का क्षीण होना हड्डियों की कमजोरी अंतःस्रावी परिवर्तन प्रोस्टेट ग्रंथो में वृद्धि शरीर की वसा में कमी रक्तचाप में वृद्धि प्रतिरोधक क्षमता में कमी ज्ञानेंद्रियों की कार्य क्षमता में कमी अव्यवस्थित शयन ह म ा र ी श् ा ा र ी िर क अ ा य ु कालक्रमिक आयु से भिन्न हो सकती है।

किसी 70 वर्षीय व्यक्ति की शारीरिक आयु 50 की और किसी 50 वर्षीय व्यक्ति की शारीरिक आयु 70 की हो सकती है। यह उसकी यौवन की क्षमता पर निर्भर करता है। हम अपनी शारीरिक आयु में अपने प्रत्यक्ष ज्ञान, अपनी सोच और अपनी रुचियों के माध्यम से परिवर्तन ला सकते हैं। शारीरिक आयु बढ़ती आयु अथवा यौवन की प्रक्रिया का मुख्य घटक है। मानसिक आयु से तात्पर्य है कि हम कितना बूढ़ा महसूस करते हैं। कुछ लोग 40 वर्ष की आयु में ही स्वयं को 60 वर्ष का बूढ़ा समझने लगते हैं। यह हमारी मानसिक अवस्था और ऊर्जा स्तर का परिचायक है।

हम कालक्रमिक या तैथिक आयु को पलट तो नहीं सकते, पर अनुशासित जीवनशैली व अपने अंदर व बाहर शांत व निर्माण परिवेश अपनाकर शारीरिक तथा मानसिक आयु को थामे रख सकते हैं और इस तरह निश्चय ही यौेवन पुनः प्राप्त कर सकते हैं।

जीवन लुका छिपी का काॅस्मिक खेल है जिसमें हम खुद को पाने के लिए खुद को ही खोते हैं। अगर हमारी रुचियां सही हों तो हम यौवन को निश्चय ही बनाए रख सकते हैं। हम में आध्यात्मिकता की शक्ति की परख होनी चाहिए।

इस ब्रह्मांड में हम ही एक ऐसे प्राणी हैं जो अपने विचारों और रुचियों से अपनी शारीरिक क्रिया को बदल सकते हैं। तन और मन को स्वस्थ रखें, चिर यौवन का आनंद लें रोजाना 30 मिनट का व्यायाम करें -- इससे शारीरिक और मानसिक आयु की रक्षा हो सकती है।

घूमना, वाॅगिंग, जाॅगिग, तैरना, नृत्य, साइकिल चलाना, आदि हृदय के अनुकूल व्यायाम हैं। ये व्यायाम हमें किसी हरे भरे उद्यान में खुली हवा में हरे भरे पौधों, फूलों, पेड़ों, घास, प्राकृतिक दृश्यों और आसमान को देखते हुए करने चाहिए ताकि हमें ऊर्जा और स्फूर्ति मिल सके। प्रकृति के इन सारे उपादानों से मिलने वाली ऊर्जा दृश्य ऊर्जा कहलाती है।

हम पत्तों की सरसराहट, जल प्रपात की सनसनाहट, चिड़ियों की चहचहाहट आदि से भी ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं जिसे ध्वनि ऊर्जा कहते हैं। सुबह जब हम घूमते टहलते हों तो हमें उस क्षण के प्रति सजग होना चाहिए न कि शाम के समय की मीटिंग के प्रति। इसके अतिरिक्त घ्राण तथा स्पर्श ऊर्जाएं भी हमारे लिए जरूरी होती हैं।

व्यायाम हमारे खराब कोलेस्ट्राॅल को कम करने और स्वस्थ कोलेस्ट्राॅल को बढ़ाने में सहायक होता है। इससे हमारा रक्तचाप और ब्लड शुगर का स्तर सामान्य रहता है और तनाव का सामना करने, इच्छाशक्ति तथा आत्मसम्मान में सुधार और मांसपेशी की शक्ति की वृद्धि में मदद मिलती है। वहीं यह हड्डियों को सुदृढ़ करने तथा सभी शारीरिक और मानसिक क्षमताओं के सुधार में भी सहायक होता है।

यह हृदयाघात, उच्च रक्तचाप, फालिज या लकवे से हमारी रक्षा कर सकता है। मानसिक और शारीरिक विकास के लिए सोच सकारात्मक रख,ें प्रेम, करुणा, परोपकार, मानवता, परानुभूति, सहानुभूति आदि की भावना को हृदय में स्थान दें। प्रेम आहत मन को सुकून देता है, अच्छी दिशा में बढ़ने को प्रेरित करता है, नया जोश देता है, ईश्वर से जोड़ता है।

स्वार्थपरता, भय और किसी के प्रति घृणा की भावना से स्वयं को मुक्त रखें। रोज 20 मिनट तक चिंतन करें। इससे यौवन को बरकरार रखने में सहायता मिलेगी। चिंतन एक औषधि है -- एक उत्कृष्ट औषध् िा। नकारात्मक तनाव और अवसाद सरीखे बढ़ती आयु के मुख्य घटकों से जूझने में यह हमारी सहायता करता है।

वहीं यह शरीर क्रियाविज्ञान और जीव-रसायन में आवश्यक परिवर्तन करने और प्रतिरोधक क्षमता के सुधार आदि में भी हमारी मदद कर सकता है। योग के इन आठ अंगों का पालन करें -- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रतिहार, धारण, ध्यान और समाधि। इन सब के साथ साथ समाज में लोगों के साथ अपना व्यवहार सकारात्मक रखें। डरें नहीं। प्रकृति के नियमों का पालन करें।

समाज के कल्याण के लिए कुछ करें। पेड़ पौध् ाों और पशुओं का पोषण करें। स्वयं के लिए कुछ समय निकालें। अनुकूल जीवनशैली तथा आध्यात्मिकता का प्रभाव मानसिक आयु पर पड़ता है, मानसिक आयु शारीरिक आयु को प्रभावित करती है और शारीरिक आयु का प्रभाव कालक्रमिक या तैथिक आयु पर पड़ता है।

If you are facing any type of problems in your life you can Consult with Astrologer In Delhi



Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.