नक्षत्र

नक्षत्र  

डॉ. अरुण बंसल
व्यूस : 8356 | फ़रवरी 2013

अश्व्यादिरूपं तुरगास्य योनि क्षुरोन एणास्य मणिर्गृहं च। पृषत्कचक्रे भवनं च मंचः शय्याकरो मौक्तिकविदु्रमं च।। तोरणं बलिनिभं च कुण्डलं सिंहपुच्छगजदन्तमंचकाः। त्र्यास्रि च त्रिचरणाभमर्दलौ वृत्तामंचयमलाभमर्दलाः।।

अर्थातः अश्विनी नक्षत्र का स्वरूप घोड़े के मुख के समान, भरणी गुप्तांगवत्, कृतिका छुरे के समान, रोहिणी रथ यागाड़ी सदृश (अनः), मृगशिरा हिरण के मुख के समान, आद्र्रा मणिवत्, पुनर्वसु-घर के समान, पुष्य-बाणवत् (पृषत्क), श्लेषा-चक्रवत्, मघा-भवनवत्, पू.फा.-मंचवत् या खाटवत्, उ.फा. बिस्तर, हस्त-हाथ, चित्रा-मोती, स्वाति-मूंगा, विशाखा-तोरण, प्रवेशद्वारवत्, अनुराधा-उबले चावलों जैसा, ज्येष्ठा-कुण्डल, मूल-शेर की पूंछ, पू.षा.-हाथी दांत, उ.षा.-मंचवत्, मृदंगवत् (मर्दल), शतभिषा-वृŸााकार, पू.भा.-मंच, उ.भा.-जुड़वां बालक व रेवती-मृदंग जैसे दिखते है।

पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती रहती है। एक चक्कर लगाने में पृथ्वी को 365.2422 दिन लगते हैं। यही एक वर्ष का मान है। चंद्रमा की दो प्रकार की गति है। एक पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने में इसे 27.32 दिन लगते हैं। दूसरी गति से चंद्र सूर्य के अंशों पर पुनः 29.531 दिनों में आ जाता है, अतः लगभग 30 दिनों के दो पक्ष होते हैं। और दो पक्षों का एक माह होता है। तारों के परिपेक्ष में चंद्रमा प्रतिदिन एक नक्षत्र आगे चलता है एवं 360 डिग्री चलने में 27.32 दिन लगते हैं। अतः चंद्रमा प्रतिदिन लगभग एक नक्षत्र आगे चलता है। इस 360 अंश के वृŸा को भचक्र कहते हैं क्योंकि सभी ग्रह पृथ्वी के एक ही अक्ष पर सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। अतः इनका पथ 9 अंशों के अंदर ही सीमित रहता है और इसी 9 अंशों की चैड़ी पट्टी को भचक्र कहते हैं। केवल भचक्र को यदि 30-30 अंशों के 12 भागों में विभाजित करते हैं तो एक भाग राशि कहलाती है। इन बारह भागों के अतिरिक्त भचक्र को 27 उपविभागों में भी विभाजित किया गया है।


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प्रत्येक उपविभाग का विस्तार 360/27=13 अंश 20 कला होता है। इन उपविभागों को नक्षत्र कहा जाता है। नक्षत्र भी कई तारों से मिलकर बना होता है। जो सामूहिक रूप से विशेष आकृति के दिखाई देते हैं। इनमें स्थित प्रमुख तारों के नामों पर नक्षत्रों के नाम रखे जाते हैं। बारह राशियों के सŸााईस नक्षत्र होने से एक राशि में नक्षत्र होते हैं। अतः एक नक्षत्र के पुनः 4-4 लघु विभाग किये गये हैं। इस प्रकार 27 नक्षत्रों के 108 चरण होते हैं।इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि - आकाश में चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर अपनी कक्षा पर चलता हुआ 27 दिन 32 घंटों में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करता है। इस प्रकार एक मासिक चक्र में आकाश में जिन मुख्य सितारों के समूहों के बीच से चंद्रमा गुजरता है। चंद्रमा व सितारों के समूह के उसी संयोग को नक्षत्र कहा जाता है। ंद्रमा की 360 अंश की एक परिक्रमा के पथ पर लगभग 27 विभिन्न तारा-समूह बनते हैं। इन 27 नक्षत्रों में चंद्रमा प्रत्येक नक्षत्र की 13 अंश 20 कला की परिक्रमा अपनी कक्षा में चलता हुआ लगभग एक दिन में पूरी करता है।

न. सं न. नाम न. स्वामी तारा संख्या न. स्वरूप न. वृक्ष
1 अश्वनी अश्वि.कु. 3 अश्वमुख आंवला
2 भरणी यम 3 योनि युग्म
3 कृतिका अग्नि 6 छुरे समान गूलर
4 रोहिणी ब्रह्मा 5 गाड़ी जामुन
5 मृगशिरा चंद्रमा 3 मृगस्य खैर
6 आद्र्रा रुद्र 1 मणि पाकड़
7 पुनर्वस अदिति 4 गृह बांस
8 पुष्य गुरु 3 बाण पीपल
9 आश्लेषा सर्प 5 चक्र नागकेसर
10 मघा पितर 5 भवन बरगद
11 पू. फा. भग 2 मंच पलास
12 उ. फा. अर्यमा 2 शय्या रुद्राक्ष
13 हस्त सूर्य 5 हाथ रीठा
14 चित्रा त्वष्टा 1 मोती नारियल
15 स्वाती वायु 1 मूंगा अर्जुन
16 विशाखा इंद्राग्नी 4 तोरण विकंकत
17 अनुराधा मित्र 4 बलि/उबले चावल मौलश्री
18 ज्येष्ठा इंद्र 3 कुंडल चीड़
19 मूल राक्षस 11 सिंहपुच्छ साल
20 पू.आषाढ़ा जल 2 गजदंत अशोक
21 उ.आषाढ़ा विश्वेदेव 2 सिंहासन कटहल
22 अभिजित ब्रह्मा 3 त्रिभुज -
23 श्रवण विष्णु 3 वामन अकवन
24 धनिष्ठा वसु 4 मृदंग शमी
25 शतभिषा वरुण 100 वृत्त कदंब
26 पू.भाद्रपद अजपाद 2 मंच आम
27 उ.भाद्रपद अहिर्बुध्न्य 2 जुड़वा पु. नीम
28 रेवती पूषा 32 मृदंग महुआ

साथ में दी गई तालिका एवं चित्र से विभिन्न नक्षत्रों के स्वरूप को दर्शाया गया है। उनके स्वामी नक्षत्रों में तारों की संख्या को दर्शाया गया है। रात को इन नक्षत्रों को हम विदित चित्रानुसार आकाश में पहचान सकते हैं। दिल्ली में 01 जनवरी को सूर्यास्त के बाद अश्विनी नक्षत्र सिर के ऊपर देखा जा सकता है। लगभग 13 दिन बाद उसी समय भरणी नक्षत्र सिर के ऊपर आ जाता है।


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इस प्रकार सभी 27 नक्षत्र एक-एक करके रात्रि में देखे जा सकते हैं। एक प्रकाशहीन रात्रि में लगभग 10 नक्षत्र पूर्व से पश्चिम तक देखे जा सकते हैं। यदि प्रकाश की मात्रा अधिक हो तो केवल सिर के ऊपर पांच-सात नक्षत्र दिखाई पड़ते हैं। ज्योतिष में राशियों की अपेक्षा नक्षत्रों की विशेष महत्वता है। सटीक फलादेश के लिए ग्रह जिस नक्षत्र के आपेक्ष में विचरण करते हैं उनका ही फल प्रदान करते हैं।



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