नक्षत्र, राशियां और ग्रह

नक्षत्र, राशियां और ग्रह  

बसंत कुमार सोनी
व्यूस : 31075 | फ़रवरी 2013

लोग यह जानते हैं कि आकाश में चमकने वाले सितारे नक्षत्र कहलाते हैं। अपनी-अपनी राशियां देखकर और ग्रहों के शुभाशुभत्व को ध्यान में रखकर ज्योतिष के माध्यम से अपना भविष्य जानने की उत्कंठा सभी के मन में रहती है। ग्रह नौ और राशियां बारह सर्वविदित ही है। सामान्य अर्थ में नक्षत्र यानि तारे। यदि नक्षत्र का अर्थ और स्पष्ट किया जाये तो हम यह कह सकते हैं कि चंद्रमा के पथ में पड़ने वाले कुछ विशेष तारों के विभिन्न समूह जिनके नाम अलग-अलग हैं और जिनकी संख्या सत्ताइस है। चंद्रमा को नक्षत्रों का राजा यानि नक्षत्रराज कहा जाता है। गगन मंडल में ग्रहों की स्थिति का पता करने के लिये दैवज्ञों ने वृत्ताकार आकाश या भचक्र के 3600 अंशों को 12 समान खंडों में बांटा। तीस अंश के ये भाग राशि कहलाये। जिस भाग का जैसा स्वरूप दिखाई देता है उसी के आधार पर राशियों का नामकरण किया ह जसै मष् आदि। इन्हें यंत्रादि की सहायता से देखा जा सकता है। इन्हीं भागों के नीचे ग्रहों का चलना फिरना होता रहता है और तभी यह कहते हैं कि फलां-फलां ग्रह फलां-फलां राशि पर भ्रमण कर रहा है। इसका विचार फलादेश करते समय किया जाता है।

दैवज्ञों के द्वारा ग्रहों की स्थिति जानने के लिए राशि खंडों का निर्धारण कर चुकने पर पुनः आकाश में उन संकेतों का अन्वष्ण किया गया जा एक-दसू रे से समान दूरी पर हों और अडिग हों। ऐसे 27 चिह्न ढूढ़ें गये जो न चलने फिरने के कारण नक्षत्र कहलाने लगे यानि न क्षरति इति नक्षत्रम’’। भचक्र के 3600 अंशों को 27 से विभाजित करने पर 130 20’ का क्षेत्र नक्षत्र कहलाया। ग्रह 9 होते हैं यह हम सभी जानते हैं। ज्योतिष में इन्हीं नवग्रहों का विचार किया जाता है। सात ग्रह सात दिनों के अधिपति हैं। शेष दो ग्रह राहु व केतु हैं। सूर्य को एक नक्षत्र को पार करने में करीब-करीब पंद्रह दिनों का समय लग जाता है जबकि चंद्रमा को ऐसा करने मं करीब एक दिन का समय लगता है। इस तरह चंद्रमा इन 27 नक्षत्रों को लगभग एक मास में पार कर लेता है जबकि सूर्य को इन सभी नक्षत्रों को पार करने में लगभग बारह मास की अवधि लग जाती है। शेष सात ग्रह भी अपनी-अपनी भिन्न-भिन्न गतियां से इन 27 नक्षत्रों पर भ्रमण करते रहते हैं। एक नक्षत्र के चार चरण होते हैं। सवा दो नक्षत्रों की एक राशि होती है यानि नौ चरणों की एक राशि हुई।


For Immediate Problem Solving and Queries, Talk to Astrologer Now


किन-किन नक्षत्रों के किस-किस चरण से द्वादश राशियां बनती हैं, उसे जानने के लिये होरा चक्र का अवलोकन करने की आवश्यकता पड़ती है।

सत्ताइस नक्षत्र

1. अश्विनी

2. भरणी

3. कृतिका

4. राेि हणी

5. मृगशिरा

6. आदा्र्र

7. पुनवर्स

8. पुष्य

9. अश्लेषा

10. मघा

11. पूर्वा-फाल्गुनी

12. उत्तरा-फाल्गुनी

13. हस्त

14. चित्रा

15. स्वाति

16. विशाखा

17. अनुराधा

18. ज्येष्ठा

19. मूल

20. पूर्वाषाढ़ा

21. उत्तराषाढ़ा

22. श्रवण

23. धनिष्ठा

24. शतभिषा

25. पूर्वा-भाद्रपद

26. उत्तरा-भाद्रपद

27. रेवती।


अपनी कुंडली में सभी दोष की जानकारी पाएं कम्पलीट दोष रिपोर्ट में


पंचक संज्ञक नक्षत्र नक्षत्र संख्या 23 से 27 तक के नक्षत्र अर्थात् धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती नामक इन अंतिम पांच नक्षत्रों को पंचक संज्ञक नक्षत्र कहते हैं। इन्हें शुभ मांगलिक कार्यों हेतु अग्राह्य माना गया है। किसी के कुल में, मुहल्ले या गली में, गांव में अथवा गांव के बाहर किसी का जन्म या मृत्यु पंचक वाले नक्षत्र में होने से उस स्थान विशेष में ऐसे कार्यों की पुनरावृत्ति पांच बार होती है। दूसरे रूप में यह कह सकते हैं कि जब चंद्रमा कुंभ और मीन राशियों में होता है तब पंचक नक्षत्र काल होता है। पंचक में तृण, लकड़ी आदि यानि काष्ठ का संग्रह, अग्नि कर्म मकान छाना, बाड़ी लगाना, दक्षिण की ओर यात्रा करना आदि वर्जित माना गया है। पंचक वाले समय में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिये। ऐसे नक्षत्रों की संख्या छह है। मूल वाले नक्षत्र जानने का सहज तरीका यह है कि इन सत्ताइस नक्षत्रों के यदि तीन भाग किये जायें तो नौ-नौ नक्षत्र प्रत्येक हिस्से में आयेंगे। इस तरह से नौ नक्षत्रों वाले प्रत्येक भाग का पहला और नौवां नक्षत्र मूल का होता है। अत्यंत सरल रूप में कहें तो 1 ला, 9वां, 10वां, 18वां, 19 वां और 27वां नक्षत्र मूल का होता है। इनके नाम निम्नानुसार जानना चाहिये।

1- अश्विनी

2- अश्लेषा

3- मघा

4- ज्येष्ठा

5- मूल

6- रेवती इन नक्षत्रों में जन्म होने पर शांति हवनादि का विधान है।

सौर मंडल में स्थित नक्षत्र या तारे ग्रह राशियां परस्पर मिलकर अपना शुभाशुभ प्रभाव पूर्ण रूपेण जगत के प्राणियों पर डालते हैं। ग्रह नक्षत्र आदि मानव जगत के लोगों को सुख भी देते हैं और दुख भी। दुखों का शमन ग्रह शांति, मंत्र जप, हवन, रत्न धारण, उपवास, ईश्वरोपासना आदि के माध्यम से करके मनुष्य सुख शांति प्राप्त करने में सफल होता है। ऋतुओं में होने वाले परिवर्तन जैसे शीत उष्णता वर्षा आदि भी ग्रह, नक्षत्रां विशेषकर सूर्य और चंद्रमा के कारण ही होते हैं। सपणर् चर चर जगत पर ग्र ह नक्षत्रों का शुभाशुभ प्रभाव पड़ता रहता है। वनस्पतियां भी इनसे अछूती नहीं हैं। जो फसलें भूमि के ऊपर कृषि उपज देती हैं उन्हें शुक्ल पक्ष में बोने स व अच्छी पदैवार देती है । इसी तरह जमीन के अंदर उत्पन्न होने वाली फसलों को कृष्ण पक्ष में बोने से अधिक उपज देती हैं। भूमि के ऊपर उत्पन्न होने वाली फसलें, आलू, कंदमूल, घुइयां शकरकंद आदि हैं। यह वनस्पतियों पर चंद्रमा के प्रभाव के कारण होता है। जल में उत्पन्न होने वाला कमल सूर्य से अनुकूलता प्राप्त करता है जबकि कमलिनी चंद्रमा से। स्वाति नक्षत्र के जल की बूंद सीप पर पड़ने से मोती बन जाती है और सर्प की जिहव् पर पडऩ स विष बन जाती है। स्वाति नक्षत्र का जल वनस्पतियों के लिये अमृत के सदृश होता है जबकि विशाखा नक्षत्र का जल वनस्पतियों के लिये विष के समान होता है। सौरमंडलीय ग्रह-नक्षत्रों का प्रभाव निश्चित रूप से सबों पर पड़ता है,यह सत्य है।


अपनी कुंडली में राजयोगों की जानकारी पाएं बृहत कुंडली रिपोर्ट में




Ask a Question?

Some problems are too personal to share via a written consultation! No matter what kind of predicament it is that you face, the Talk to an Astrologer service at Future Point aims to get you out of all your misery at once.

SHARE YOUR PROBLEM, GET SOLUTIONS

  • Health

  • Family

  • Marriage

  • Career

  • Finance

  • Business


.